श्रीमती इंदिरा गाँधी पर निबंध | Essay on Indira Gandhi in Hindi!
श्रीमती इंदिरा गाँधी एक महान राजनेत्री के साथ ही दृढ़ चरित्र की महिला थीं जिसके लिए वह केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक हृदयों में राज करती थीं । वे एक महान पिता की महान पुत्री थीं । वे बचपन में प्रियदर्शनी के नाम से जानी जाती थीं ।
श्रीमती इंदिरा गाँधी जी का जन्म 19 नवंबर 1917 ई॰ को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था । श्रीमती गाँधी उस परिवार में जन्मी थीं जो पूर्ण रूप से देश की सेवा के लिए समर्पित था । इनके पिता पं॰ जवाहर लाल नेहरू तथा माता कमला नेहरू थीं। बाल्यावस्था से ही उच्च स्तर के राजनीतिक वातावरण का प्रभाव बहुत हद तक उनके जीवन चरित्र में देखने को मिलता है ।
उनकी शिक्षा-दीक्षा इलाहाबाद के फोर्ड तथा गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के विद्यालय शांति निकेतन में हुई । सन् 1942 ई॰ में उनका विवाह एक पारसी युवक फिरोज गाँधी से हुआ । 18 वर्ष के वैवाहिक जीवन के उपरांत उनके पति की मृत्यु हो गई । राजीव तथा संजय उनके दो पुत्र थे ।
इंदिरा गाँधी ने बचपन से ही अपने परिवार को राजनीतिक गतिविधियों से घिरा पाया। अत: उनके व्यक्तित्व पर भी राजनीति का तीव्र प्रभाव पड़ा । इलाहाबाद में उनका घर ‘ आनंद भवन ‘ कांग्रेस पार्टी की अनेक गतिविधियों का केंद्र था ।
पिता पं॰ जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता व नेता थे । दस वर्ष की अल्पायु में ही इंदिरा गाँधी ने अपने हमउम्रों के साथ मिलकर ‘ वानरी सेना ‘ तैयार की । गाँधी जी के असहयोग आदोलन में इस सेना ने प्रमुख योगदान दिया ।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत सन् 1959 ई॰ में वे सर्वसम्मति से कांग्रेस दल की अध्यक्षा बनीं । देश के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद 1966 ई॰ में उन्हें देश के प्रधानमंत्री पद के लिए नियुक्त किया गया । तत्कालीन राष्ट्रपति डा॰ राधाकृष्णन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई । 1967 ई॰ के आम चुनावों में कांग्रेस भारी बहुमत के साथ विजयी हुई और वे पुन: प्रधानमंत्री चुन ली गई ।
श्रीमती गाँधी 1967 ई॰ में प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के पश्चात् अंतकाल तक प्रधानमंत्री बनी रही परंतु 1977 ई॰ से 1980 ई॰ के बीच उन्हें सत्ता से बाहर रहना पड़ा । अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने जिस रणनीति और राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया उसका लोहा आज भी सारा विश्व मानता है ।
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वे एक ऐसी महान नेत्री थीं जिनकी बुद्धि, चतुराई व राजनैतिक दक्षता का गुणगान उनके विरोधी भी करते थे । बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रीवी पर्स की समाप्ति, प्रथम पोखरण परमाणु विस्फोट, प्रथम हरित क्रांति जैसे कार्यों के लिए उन्हें सदैव याद किया जाता रहेगा । गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व भी उन्होंने अदम्य साहस के साथ किया था ।
1917 ई॰ के पाकिस्तान के आक्रमण का अनुकूल जवाब देते हुए उन्होंने उसे करारी मात ही नहीं दिलवाई अपितु उसके पूरक अंग (बांग्लादेश) को अपनी सूझबूझ और राजनीति से अलग करवा दिया । इमरजेंसी के समय 1977 ई॰ में दल की हार के बावजूद वे संघर्ष करती रहीं और मात्र तीन वर्ष बाद पुन: सत्ता में आ गईं । श्रीमती गाँधी का पूरा जीवन उनके अदम्य साहस और दिलेरी का इतिहास है । राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर उन्होंने अनेक महान कार्य किए ।
पंजाब में आतंकवाद समाप्त करने हेतु उनके ‘ ब्लू स्टार ‘ कार्यवाही से क्षुब्ध उनके ही दो सुरक्षाकर्मियों बेअंत सिंह व सतवंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 ई॰ को उन्हें गोलियों से भून दिया । इस प्रकार हमारे देश का ही नहीं अपितु विश्व की राजनीति का एक उज्यल सितारा चिरकाल के लिए डूब गया ।