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सज्जनता मनुष्य का आभूषण है (निबन्ध) | Essay on Good Human Being in Hindi!
जिस प्रकार गहने शरीर को सजाने, उसकी बाहरी सुन्दरता को बढ़ाने के लिये कम आया करते हैं । ठीक उसी प्रकार आन्तरिक सुन्दरता के लिए मानव के पास एक अन्य स्वाभाविक और जन्मजात गहना भी होता है ।
वह उसके बिना रोसी प्रकार का सच-झूठ का सहारा लिए बिना अपने- आप प्राप्त हो जाता है । मनुष्य चाहे तो उसे बढाकार, नित नए रूप में उसका प्रयोग करके उसका असीमित विस्तार कर सकता है। उसे सबके गले का हर बना सकता है । उसके कारण खुद भी सबके गले का हार वन सकता है ।
लेकिन नहीं, बिना मूल्य मिलने वाले अपने इस आभूषण को अक्सर मनुष्य पहचान नहीं पाता । यदि पहचान भी लेता है तो अक्सर छोटे से स्वार्थ के लिए उसे उठाकर फेंक देने में तनिक भी लज्जा अनुभव नहीं करता । तनिक-सी देरी किये बिना इस अमूल्य भूषण को उतार कर फेंक देता है और फिर कहीं का नहीं रह जाता। जन्मजात रूप से मुफ्त में प्राप्त होने वाले इस गहने का नाम सभी जानते हैं । सज्जनता यानि सत् जन होना ।
यानि जो सच्चा मोर श्रेष्ठजन है, वही सज्जन है । मनुष्यता के प्रति सच्ची मनुष्यता को ही सबसे बढ्कर श्रेष्ठ मानने वाला व्यक्ति सज्जन है । सज्जन वह तभी है कि उसके पास सज्जनता है अर्थात जिस प्रकार आभूषण एवं सुन्दर वस्त्र पहनाये जाने पर आदमी की शरीर की सुन्दरता को बढ़ा देते हैं, उसी प्रकार अच्छे गुण और व्यवहार मनुष्य के मन की ज्योति बढ़ाकर उसकी मनुष्यता की भावना में निखार ला दिया करतै हैं । इससे उसे जो लोकप्रियता, मान एवं यश प्राप्त हुआ करता है, वास्तव में वही सज्जनता रूपी भूषण से बढ़ने वाली शोभा है ।
रहीम दास जी ने कहा है:
जो रहिम उत्तम प्रकृति का, का करि सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्यापत नाहिं, लिपटे रहत भुजंग ।
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अर्थात उत्तम प्रकृति वालों का कुसंगति उसी प्रकार कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जैसे चन्दन वृक्ष से लिपटे रहकर भी जहरीले नाग उसकी सुगन्ध और शीतल प्रकृति को प्रभावित कर बदल नहीं पाते । हर हाल में एक बने रहना यानि अच्छे और मानवीय भाव से युक्त बने रहना ही वास्तव में सज्जनता है ।
आमतौर पर कहा जाता है कि जैसी संगति बैठिए, वेसा ही फल मिलता अर्थात संगति का प्रभाव आदमी पर अवश्य पड़ता है । लेकिन स्वभाव से सज्जन व्यक्ति और उसकी सज्जनता के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता ।
सज्जनता हमेशा सागर के समान मोती भरे गहरे अन्तराल हृदय वाला, धरती के समान अच्छा-बुरा सब कुछ सह कर भी बदले में अच्छा ही देने वाला विशाल विस्तृत, हिमालय के समान शांत, स्थिर और उच्च भावों से भरा हुआ होता है ।
वह चन्दन के समान वीष की जलन को शांत – शीतल करने वाला होता है, जहरीले साँप सा मनुष्यता के लिए हानिकारक कभी भूलकर भी नहीं बना करता । हरेक के काम आने, नम्र होने, नि:स्वार्थ और निस्पंद यानी लालच-लालसा से रहित होने का नाम सज्जनता है । हमेशा सबके काम आने के लिए तैयार रहने का नाम सज्जनता है ।
सबके सुख – दु:खू को अपना समझने का नाम सज्जनता है । सभी के दुखते घावों के लिए मरहम का फाहा बन जाने का नाम सज्जनता है । ऐसी प्रकृति यानि स्वभाव ही सज्जनता है जो मानवता का भूषण हुआ करती है यदि धरती पर मानवता टिकी हुई है, इसका अर्थ है कि सज्जनता जीवित है और हमेशा जीवित रहकर मानवता को विभूषित करती रहेगी ।