मित्र के रूप में पुस्तक पर निबन्ध | Essay on Books as Friends in Hindi!
फ्रांसिस बेकन के अनुसार पुस्तकें मनुष्य की सर्वोतम सहयोगी हैं । वे हमें शिक्षित करने के साथ-साथ हमारा मनोरंजन भी करती हैं । पुस्तकें समय व्यतीत करने का सबसे अच्छा माध्यम हैं ।
वे हमसे किसी चीज की माँग नहीं करती, केवल देना ही इनका धर्म है । हम उन्हें अपनी मर्जी के मुताबिक खोल और बंद कर सकते हैं । साधारणत: पुस्तकों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है । प्रथम श्रेणी में वे पुस्तकें आती हैं, जो हमारी पढ़ाई से संबंधित हैं ।
इसके अंतर्गत विद्यालय, महाविद्यालय और प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पुस्तकें आती है । इन पुस्तकों का अध्ययन हम परीक्षा में सफल होने के लिए करते है । इन पुस्तकों से हमारा मनोरंजन नहीं होता तथा इनका अध्ययन हम खाली समय में नहीं करते है । इन पुस्तकों का अध्ययन हमें नियमित रूप से करना पड़ता है । इसलिए इनके प्रति अरुचि की भावना उत्पन्न होने लगती है ।
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दूसरी श्रेणी के अंतर्गत आने वाली पुस्तकें मनोरंजन प्रधान होती हैं । जो व्यक्ति की रुचि पर आधारित होती हैं । छोटे बच्चे को रंगीन चित्रों वाली सचित्र-कथाएं या वैज्ञानिक कल्पनाओं पर आधारित पुस्तकें भाती हैं । जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसे प्रेम तथा जासूसी और रहस्य भावना से भरी किताबें पसंद आती है ।
इन किताबों को पढ़ने पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं हैं, क्योंकि यह विकास की क्रिया का अंग है । किशोर अवस्था में रोमांस से भरे उपन्यास अच्छे लगते हैं । उनका खाली समय मिल्स एंड बून्स, अगाथा क्रिस्टी; के उपन्यासों को पढ़ते हुए व्यतीत होता है । पुस्तकें मित्र और सहयोगी की भूमिका निभाती हैं ।
उम्र के बढ़ने के साथ-साथ रुचियों में भी परिवर्तन आता जाता है । दृष्टिकोण में व्यापकता लाने के कारण ज्ञान की नई दिशाएं उन्हें दिखाई देती हैं और रोमांस की किताबों का स्थान चिकित्सा, मनोविज्ञान, कम्प्यूटर, अंतरिक्ष, ज्योतिष, साहित्य, राजनीति, अंतरराष्ट्रीय विषय, बागवानी, चित्रकला आदि से संबंधित किताबें ले लेती हैं ।
जीवन में सफल होने के बाद व्यक्ति अधिकांश समय पुस्तकों के साथ बिताता है । पुस्तकों के अध्ययन से मनुष्य का दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है । इस प्रकार पुस्तकें न सिर्फ मनुष्य की मित्र हैं, बल्कि मार्गदर्शक भी हैं । वृद्धावस्था में मनुष्य धर्म और अध्यात्म से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन करता है ।
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एक सक्रिय और कर्मशील जीवन बिताने के बाद बुढ़ापा मनुष्य की विश्रामावस्था होती है । तब तक बच्चे बड़े हो जाते हैं और अपने-अपने कामधन्धों में लग जाते है । इसलिए वृद्धावस्था के दौरान अपने प्रिय लेखकों की पुस्तकों का पढ़ना, निश्चय ही लाभदायक होता है । इस प्रकार पुस्तकें प्रत्येक अवस्था में मनुष्य के सच्चे मित्र की भूमिका निभाती है ।