मेरे प्रिय कवि (जयशंकर प्रसाद) पर निबंध | Essay on My Favorite Poet in Hindi!

कविवर जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य चेतना के प्रमुख कवि थे । श्री जयशंकर प्रसाद एक कवि के साथ ही साथ एक संवेदनशील व्यक्ति तथा एक गद्‌यकार व उपन्यासकार भी थे ।

उनकी काव्य संवेदना में समाज और राष्ट्र की दशा का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है । वे एक सिद्‌धहस्त साहित्यकार थे जिनकी लेखनी में युगांतकारी परिवर्तन की क्षमता थी । इन्हीं कारणों से उन्हें छायावादी युग का सर्वाधिक सश्क्त स्तंभ माना गया है ।

श्री जयशंकर प्रसाद जी का जन्म सन् 1668 ई॰ में बनारस के सुप्रतिष्ठित सुँधनी परिवार में हुआ । वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । इनकी संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई जहाँ पर आपने हिंदी, संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया । बचपन से विभिन्न कवि गोष्ठियों में सम्मिलित होना प्रसाद जी की रुचियों में शामिल था जिससे उनका साहित्य ज्ञान और भी अधिक प्रतिस्कुटित हुआ ।

प्रसाद जी ने काव्य रचना के अतिरिक्त अजात-शत्रु, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी आदि प्रसिद्‌ध नाटकों की रचना की । प्रसाद जी ने इसके अतिरिक्त इरावती कंकाल व तितली आदि विशिष्ट उपन्यासों की रचना की । ‘कामायिनी’ नामक इनकी काव्य रचना से इनके काव्य साहित्य की प्रगाढ़ता स्पष्ट दिखाई पड़ती है ।

कामायनी के अतिरिक्त झरना, आँसू, लहर, चित्राधार, कुसुम आदि इनकी प्रचलित काव्य रचनाएँ हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि श्री जयशंकर प्रसाद जी ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।

कामायनी जयशंकर प्रसाद जी की अमर काव्य रचना है । इसमें उन्होंने मनु और श्रद्‌धा का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है जिसमें उन्हें कर्मक्षेत्र में रहकर जीवन को ऊँचाई की ओर ले जाने के संकेत किया है । उनकी इस अद्‌वितीय काव्य रचना में निराशावादी चेतना का स्पष्ट विरोध दिखाई पड़ता है ।

“प्रकृति में यौवन का श्रुंगार,

करेंगे कभी न बासी फूल ।”

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प्रसाद जी की कविताओं में उनके देश-प्रेम की उत्कट भावना स्पष्ट देखी जा सकती है । जैसे.

“अरुण यह मधुमय देश हमारा ।

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जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।

प्रसाद जी ने अपनी कविताओं में अलंकारों, छंदों का बड़ी ही कुशलतापूर्वक प्रयोग किया है । निम्नलिखित पंक्तियों में श्रुंगार रस का प्रयोग स्पष्ट देखा जा सकता है –

“जो घनीभूत पीड़ा भी,

मस्तिष्क में स्मृति-सी छाई ।

दुर्दिन में आँसू बनकर,

वह आज बरसने आई ।”

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इसी प्रकार प्रसाद जी ने अपनी चर्चित काव्यकृति ‘आँसू’ में नारी के कोमल सौंदर्य पक्ष को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से रखा है ।

”चंचला स्नान कर आवे,

चंद्रिका पर्व में जैसे ।

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उस पावन तन की शोभा,

आलोक मधुर थी ऐसी ।

प्रसाद जी के काव्य व उनके साहित्य पर चर्चा सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । उनका अपनी कविताओं में अलंकारों का कुशल प्रयोग उनकी पारंगता को दर्शाता है । श्रुंगार रस के अतिरिक्त उन्होंने रूपक, उत्पेक्षा, अनुप्रास तथा अतिशयोक्ति अलंकारों का बहुधा प्रयोग किया है ।

जयशंकर प्रसाद एक कवि के रूप में जितने प्रसिद्‌ध हैं, उतने ही वे अपने महान नाटकों के कारण भी । उनके नाटकों की मंचन-क्षमता भले ही संदिग्ध एवं दुरूह रही हो परंतु उन्होंने इनके माध्यम से ऐतिहासिक तथ्यों का शोधपूर्ण प्रकटीकरण कर हिंदी साहित्य की अनुपम सेवा की है ।

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उनके नाटक पाठकों को अत्यंत आहलादित करते हैं । नाटकों के मध्य में कवित्व प्रदर्शन उनकी विशेषता रही है । इन सभी कारणों से जयशंकर प्रसाद को मैं हिंदी साहित्य जगत का एक सर्वाधिक जगमगाता नक्षत्र मानता हूँ ।

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