दशहरा अथवा विजयादशमी पर निबंध | Essay on Dushera or Vijaya Dashmi in Hindi!

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हिन्दू धर्म में वर्ष भर अनेकों त्योहार मनाये जाते हैं । उनमें ‘दशहरा’ का त्योहार प्रमुख है जिसे बच्चे, युवक व वृद्‌ध सभी वर्ग के लोग बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं ।

यह पर्व देश के सभी भागों में दस दिनों तक मनाया जाता है । इसमें प्रथम नौ दिन को नवरात्र तथा दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता दशहरा हिंदी गणना के अनुसार आश्विन मास में मनाया जाता है ।

दशहरा हिंदी गणना के अनुसार आशिवन मास में मनाया जाता है । इस त्योहार की उत्पत्ति के संदर्भ में अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं । अधिकांश लोगों का मानना है कि भगवान श्रीराम ने अपने चौदह वर्ष के वनवास की अवधि के दौरान इसी दिन आततायी असुर राजा रावण का वध किया । तभी से दशहरा अथवा विजयादशमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ परंपरागत रूप से मनाया जाता है ।

इस त्योहार का सबसे प्रमुख आकर्षण ‘राम-लीला’ है जिसमें भगवान राम के जीवन-चरित्र की झलक नाट्‌य प्रस्तुति के माध्यम से दिखाई जाती है । रामलीला में उनकी बाल्य अवस्था से लेकर वनवास तथा वनवास के उपरांत अयोध्या वापस लौटने की घटना का क्रमवार प्रदर्शन होता है जिससे अधिक से अधिक लोग उनके जीवन-चरित्र से परिचित हो सकें और उनके महान आदर्शों का अनुसरण कर उनकी ही भाँति एक महान चरित्र का निर्माण कर सकें ।

रामलीलाएँ प्रतिपदा से प्रारंभ होकर प्राय: दशमी तक चलती हैं । दशमी के दिन ही प्राय: राम-रावण युद्‌ध के प्रसंग दिखाए जाते हैं । रामलीला दर्शकों के मन में एक और जहाँ भक्ति-भाव का संचार करती है वहीं दूसरी ओर उनमें एक नई स्कूर्ति व नवचेतना को जन्म देती है ।

नवरात्र व्रत, उपवास, फलाहार आदि के माध्यम से शरीर की शुद्‌धि कर भक्ति-भाव से शक्ति स्वरूपा देवी की आराधना का पर्व है । चैत्र माह में भी नवरात्र पर्व मनाया जाता है जिसे वासंतिक नवरात्र या चैती नवरात्र भी कहा जाता है । आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है ।

दुर्गा सप्तशती के अनुसार माँ दुर्गा के नौ रूप हैं जिन्हें क्रमश: शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्‌धिदात्री कहा गया है । माँ दुर्गा के इन्हीं नौ रूपों की पूजा-अर्चना बल, समृद्‌धि, सुख एवं शांति देने वाली है । यहाँ दुर्गा सप्तशती का यह श्लोक उल्लेखनीय है:

”या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।

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नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमोनम: ।।”

इस त्योहार के संदर्भ में कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि इस दिन महाशक्ति दुर्गा कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करती हैं । नवरात्रि तक घरों व अन्य स्थानों पर दुर्गा माँ की मूर्ति बड़े ही श्रद्‌धा एवं भक्ति-भाव से सजाई जाती है । लोग पूजा-पाठ व व्रत भी रखते हैं ।

विजयदशमी के त्योहार में चारों ओर चहल-पहल व उल्लास देखते ही बनता है । गाँवों में तो इस त्योहार की गरिमा का और भी अधिक अनुभव किया जा सकता है । इस त्योहार पर सभी घर विशेष रूप से सजे व साफ-सुथरे दिखाई देते हैं ।

बच्चों में तो इसका उत्साह चरम पर होता है । वे ‘रामलीला’ से प्रभावित होकर जगह-जगह उसी भाँति अभिनय करते दिखाई देते हैं । किसानों के लिए भी यह अत्यधिक प्रसन्नता के दिन होते हैं क्योंकि इसी समय खरीफ की फसल को काटने का समय होता है । दशहरा का पर्व हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है । यह बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाता है ।

पराक्रमी एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन-चरित्र महान् जीवन मूल्यों के प्रति हमें जागरूक करता है । उनके जीवन चरित्र से हम वह सब कुछ सीख सकते हैं जो मनुष्य के भीतर आदर्श गुणों का समावेश कर उन्हें देवत्व की ओर ले जाता है । अत: हम सभी का नैतिक दायित्व बनता है कि इन महान आदर्शो का अनुसरण कर अपनी संस्कृति व सभ्यता को चिरकाल तक बनाए रखने में अपना सहयोग दें ।

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