Here is a compilation of Essays on ‘Dusshera ’ for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Dusshera ’ (Indian Festival) especially written for Kids, School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Dusshera (Durga Puja), An Indian Festival


Essay Contents:

  1. विजयादशमी या दशहरा पर्व । Essay on Vijay Dashami or Dusshera in Hindi Language (Indian Festival)
  2. दुर्गापूजन एवं नवरात्रि-पूजा । Essay on Durga Puja for Students in Hindi Language (Indian Festival)
  3. विजयादशमी । Essay on Dusshera for College Students in Hindi Language (Indian Festival)
  4. दुर्गापूजा व दशहरा (विजया दशमी) | Essay on Dusshera for School Students in Hindi Language (Indian Festival)
  5. दशहरा (विजयादशमी) | Essay on Dusshera (Vijayadashmi) for School Students in Hindi Language (Indian Festival)
  6. विजयादशमी । Essay on Dusshera for College Students in Hindi Language (Indian Festival)

1. विजयादशमी या दशहरा पर्व । Essay on Vijay Dashami or Dusshera in Hindi Language (Indian Festival)

1. प्रस्तावना ।

2. कब और क्यों मनाया जाता है?

3. कैसे मनाया जाता है?

4. महत्त्व ।

5. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

परस्पर प्रेम और भाईचार देना है, वहीं नवीनता, उल्लास एवं सरसता का भाव भी पैदा करना है । दशहरा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हैदश हरा और दस सिर वाला रावण हारा । इस अर्थ में दीपावली, होली की तरह ही दशहरा भी हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार है । इसे विजयादशमी भी कहा जाता है । यह त्योहार बुराई पर अच्छाई तथा अन्याय पर न्याय की जीत का प्रतीक है ।

2. कब और क्यों मनाया जाता है?

विजयादशमी का त्योहार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है । सीताहरण कर ले जाने वाले लंकापति रावण का वध कर इसी दिन राम ने सीता को उसके बन्धन से मुक्ति दिलाई थी ।

ADVERTISEMENTS:

साथ ही रावण की मनमानी से त्रस्त लंका की प्रजा को भी अत्याचारी रावण से छुटकारा मिला था ।

विभीषण को लंका का राजा घोषित कर, रावण पर जीत का यह स्मरणीय दिवस विजयादशमी के रूप में अत्यन्त उल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है । भगवान राम ने नौ दिनों तक मां शक्ति की आराधना करके रावण पर विजय का वरदान प्राप्त किया था ।

तब से नौ दिनों तक मां दुर्गा के पूजन-आराधन के बाद विजयादशमी के दिन ही दुर्गाजी की प्रतिमाओं का विर्सजन किया जाता है । विजयादशमी के साथ ही दुर्गापूजा की समाप्ति होती है ।

3. कैसे मनाया जाता है ?

विजयादशमी का पर्व सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । विजयादशमी के कई दिनों पूर्व से ही इसकी तैयारियां प्रारम्भ हो जाती हैं । नौ दिनों तक रामलीलाओं का आयोजन छोटे-बड़े सभी शहरों में अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया जाता है ।

विजयादशमी के दिन रावण के पुतलों के साथ-साथ कुम्भकर्ण एवं मेघनाथ के पुतले भी जलाये जाते हैं । पुतले बनाने में स्पर्धा होती है । सबसे बड़ा पुतला कहां बनेगा, इस विषय को लेकर लोगों में काफी उत्साह व रुचि नजर आती है । रावण के पुतले का दहन कर, लोग बुराइयों से दूर रहने का संकल्प लेते हैं ।

इस प्रकार रावण को मारकर वे एक दूसरे के घर सोना बांटने, अर्थात् शाल्मली वृक्ष के पत्तों को बांटकर एक दूसरे को बधाई देते हैं । मिठाइयां बांटते हैं । कहा जाता है कि इसी वृक्ष के पत्तों के नीचे पाण्डवों ने अज्ञातवास के समय अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाये थे । इसी वृक्ष के पत्तों को विजय तथा समृद्धि का प्रतीक मानकर बांटा जाता है और बड़ों से आशीर्वाद भी लिया जाता है ।

महाराष्ट्र में सोना बांटने ६इशाल्मली वृक्ष के पत्तों को की परम्परा प्रचलित है । विजयादशमी के दिन बाजार, हाट, गली सब सजे होते हैं । दुर्गा की स्थापना के साथ-साथ उनकी पूजा-आराधना भी साथ-साथ चलती रहती है । दशावतार राम की पूजा भी की जाती है । घरों में मिठाइयां बनाई जाती हैं । लोग अपने धार्मिक सद्‌भाव को प्रकट करते हैं ।

4. महत्त्व:

विजयादशमी का यह त्योहार हमारी धार्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना का पर्व है । अच्छाई, नैतिकता का उच्च आदर्श स्थापित करने वाले इस त्योहार का महत्त्व सामाजिक समानता व धार्मिक सद्‌भाव को भी प्रकट करना है । भगवान राम के आदर्श चरित्र के माध्यम से लोगों को इस बात की प्रेरणा मिलती है कि एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श पिता, एक आदर्श राजा कैसा होना चाहिए ?

रावण का चरित्र भी यह सन्देश देता है कि महान, विद्वान एवं ज्ञानी होते हुए भी रावण की एक चूक ने उसे नायक से खलनायक बना दिया और उसे बुराइयों का प्रतीक बना दिया । लोगों के बीच रावण प्रतीकार्थ बन गया-अन्याय, बुराई एवं अनैतिकता का । अत: ऐसी आसुरी शक्ति का नाश ही विजयादशमी है, दशहरा है ।

5. उपसंहार:

ADVERTISEMENTS:

निश्चय की विजयादशमी का यह पर्व बुराइयों पर अच्छाई का प्रतीक है । वहीं इस बात का भी प्रतीक है कि हमें रावण के पुतले ही नहीं जलाने हैं, वरन् अपने भीतर की बुराई, अर्थात् रावण को मारना है । हमें अपना तन और मन दोनों ही पवित्र करना है । अत: विजयादशमी पर्व है हमारी धार्मिक आरथा का, हमारे आदर्शो का, हमारी लोक-आस्थाओं का ।


2. दुर्गापूजन एवं नवरात्रि-पूजा । Essay on Durga Puja for Students in Hindi Language (Indian Festival)

1. प्रस्तावना ।

2. कब और क्यों मनाई जाती है?

3. कैसे मनाई जाती है?

ADVERTISEMENTS:

4. महत्त्व ।

5. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

हिन्दू संस्कृति में छप्पन करोड़ देवी-देवताओं के पूजन की परम्परा है । इन छप्पन करोड़ देवी-देवताओं में शक्ति स्वरूपा, जगतजननी, आदिशक्ति, मां देवी दुर्गा की आराधना विशेष रूप से की जाती है । देवी दुर्गा को शक्ति का पुंज कहा जाता है ।

उनके शतनाम प्रचलित हैं, जिनमें सती, भवानी, महामाया, दुर्गा, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहन्त्री, चण्डमुण्डविनाशिनी, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी कालरात्रि, भद्रकाली, नारायणी, शिवदूती, कात्यायनी, मां काली, पार्वती आदि नाम प्रचलित हैं । कहा जाता है कि मां दुर्गा सभी देवी-देवताओं के अंश से निर्मित हैं । सम्पूर्ण प्रकृति उन्हीं में समाहित है ।

ADVERTISEMENTS:

शक्तिस्वरूपा मां देवी की आराधना हमारे यहां चैत्र एवं शारदीय नवरात्र में दो बार होती है । शारदीय नवरात्र में विजयादशमी से मां दुर्गा के विर्सजन के साथ उनकी आराधना का पर्व समाप्त होता है । प्रतिवर्ष दुर्गापूजन का यह पर्व दो बार असीम श्रद्धा एवं भक्ति-भाव से मनाया जाता है ।

2. कब और क्यों मनाई जाती है ?

नवरात्र एवं दुर्गापूजन की परम्परा प्रारम्ब होने के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता है, किन्तु पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दशहरे से पूर्व भरावन राम ने रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए शक्ति की आराधना की थी ।

वैसे इससे पूर्व रावण ने भी शक्ति की पूजा कर उसे प्रसन्न कर रखा था । युद्धक्षेत्र में अपनी पराजय की आशंका से जब राम ने शक्ति की आराधना की, तो पूजन के बीच ही ”शक्ति” उनका 108 कमल उठाकर ले जाती हैं ।

राम ‘108’ कमल की जगह अपना राजीवनयन भेंट करने को उद्यत हो जाते हैं, तो शक्ति प्रसन्न होकर ‘राम’ को विजयी भव! का आशीर्वादपप्रदान: करती हैं । अत: विजयादशमी से पहले एकम से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है । इसे कुवार तथा शारदीय नवरात्र भी कहते हैं । हिन्दू धर्म में नवरात्र का प्रारम्भ चैत्र से होता है ।

ADVERTISEMENTS:

इस समय प्रथमा से लेकर रामनवमी तक जो नवरात्र मनाई जाती है, वह चैत्र नवरात्र कहलाई जाती है । इसी प्रकार नवरात्रों का सम्बन्ध धार्मिक प्रक्रिया के साथ-साथ प्रकृति तथा कृषि कार्यो से भी सम्बन्धित है ।

यह दोनों प्रक्रियाएं साथ चलती हैं । लोग जवारा बोते हैं, उसे फलता-फूलता देखकर देवी मानकर उसकी पूजा भी करते हैं । ‘जवारा’ को देवी मानकर पूजन की परम्परा हमारे देश में प्रचलित रही है ।

नवरात्र तथा दुर्गापूजन को उत्साह एवं धार्मिक विधि-विधान से मनाने के पीछे महत्त्वपूर्ण कारण है कि ‘महिषासुर’ नामक दैत्य ने देवताओं को अपने अत्याचारों से पीड़ित कर रखा था । देवतुल्य शक्तियां और वरदान प्राप्त कर वह आततायी और निरंकुश-सा हो चला था ।

त्राहिमाम-त्राहिमाम कर जब समस्त देवता ‘ब्रह्मा तथा इन्द्र के पास पहुंचे, तो ब्रह्माजी ने महिरघसुर जैसे महादानव से लड़ने हेतु समस्त देवताओं को अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान करने को कहा । जैसे-भगवान् शंकर के तेज से उनका मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजायें, इन्द्र के तेज से जंघा तथा पिण्डली, ब्रह्मा के तेज से उसके चरण, सूर्य के तेज से पांवों की अंगुलियां, कुबेर के तेज से दांत, अग्नि के तेज से तीनों नेत्र ।

इस तरह अन्यान्य देवताओं के तेज से शिवा, कल्याणकारी देवी की सृष्टि हुई । देवताओं ने शंख, चक्र, गदा, पद्‌म, त्रिशूल, धनुष, तरकश, वज, आयुध, एरावत, हाथी से धण्टा, पाश, स्फटिक, कमण्डल, खड़ग, दो दित्य वस्त्र दिये, जिससे देवी ने महिषासुर, मधु-कैटभ, चण्ड- मुण्ड, रक्तबीज आदि दानवों का नाश किया ।

स्वर्गलोक में सर्वत्र शान्ति, कल्याण का वातावरण व्याप्त करने वाली देवी दुर्गा की सभी देवताओं ने स्तुति की । देवी-देवताओं के साथ-साथ धरती के सभी प्राणी भी उस सिंहवाहिनी दुर्गा की उपासना करते हैं ।

3. कैसे मनाई जाती है?

नवरात्र, अर्थात् दुर्गापूजन का यह उत्सव श्रद्धालुगण अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्तिभाव से मनाते हैं । नव दिनों की इस पूजा-आराधना में लोग नव दिनों का व्रत रखते हैं । नव दिनों तक अखण्ड ज्योति-दीप प्रज्वल्लित करते हैं ।

जसगीत, श्रवण, भजन-पूजन, कीर्तन आदि करते है । मांदर की थाप से गांव-गांव भक्ति रस में डूबे नजर आते हैं । शहरों में देवी दुर्गा की स्थान-स्थान पर प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं । उसमें नवरूपों की पूजा की जाती है ।

देवी भागवत, नवधा रामायण का पाठ होता है । अष्टमी के दिन कन्याओं को देवी मानकर उनकी पूजा के साथ-साथ उन्हें भोजन खिलाकर व्रत तोड़ा जाता है । बंगाल में तो यह पर्व अत्यन्त धूमधाम से मनाया जाता है ।

लोग दुर्गा की प्रतिमा के साथ सुन्दर-सुन्दर झांकियां देखने निकल पड़ते हैं । गुजरात में जगतजननी की आराधना में जगराता तथा गरबा किया जाता है । पंजाबी तथा सभी अन्य प्रान्तों में लोग वैष्णव देवी, महामाया, डोंगरगढ़, मैहर आदि देवस्थलों की पैदल यात्रा में ”जय माता दी” की जय-जयकार करते हुए निकल पड़ते हैं ।

रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर लोग गीत-संगीत, नृत्य, भजन-पूजन के साथ मां की आराधना में रम जाते हैं । विजयादशमी के दिन पूर्ण भक्ति-भाव से उन्हें विसर्जित कर देते हैं ।

4. महत्त्व:

नवरात्रों में दुर्गापूजन का महत्त्व जहां धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है, वहीं मन, आत्मा हृदय की शान्ति तथा रागात्मक प्रवृति के परिष्कार से जुड़ा हुआ यह पर्व हमारे मन को कलुषताओं से मुक्त करता है ।

मानसिक शान्ति के नाल-सा, शारीरिक दृष्टि से यह पर्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । व्रत-उपवास आदि के कारण शारीरिक बीमारियां दूर होती हैं । पाचन-तन्त्र प्रणाली सुव्यवस्थित होती है ।

सामाजिक दृष्टि से लोगों में आपसी सद्‌भाव, धार्मिक सहिष्णुता एवं श्रद्धा-भाव उत्पन्न होता है । आपसी भाईचारा भी बढ़ता है । दीप, धूपबत्ती आदि के जलने से पर्यावरण स्वच्छ होता है । इस पर्व का महत्त्व आर्थिक दृष्टि से भी है; क्योंकि यह पर्व ”कृषि’ की सम्पन्नता से भी जुड़ा हुआ है ।

जवारा के रूप में देवी की स्तुति कर इसके फलने-फूलने व सम्पन्न एवं पुष्ट होने की कामना भी की जाती है । मनोविज्ञान की दृष्टि से यह पर्व शान्ति, एकाग्रचित्तता व ध्यान का शुद्धिपर्व है ।

5. उपसंहार:

इस तरह नवरात्र में देवी दुर्गा की स्तुति एवं आराधना आसुरी एवं दानवी शक्तियों पर दैवीय शक्तियों के विजय का पर्व है । एक ओर जहां यह पर्व फसलों की श्रीवृद्धि के साथ-साथ प्रकृति की सम्पन्नता को प्रकट करता है, वहीं नारी-शक्ति एवं स्त्री-शक्ति का द्योतक भी है ।

देवी के रूप में उनकी आराधना, धार्मिक, सामाजिक सभी दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है । आदिशक्ति दुर्गा की उपासना सारे भारतवर्ष में जिस श्रद्धा से की जाती है, उतनी व्यापक किसी अन्य देवता की नहीं । यह हमारा सांस्कृतिक एवं धार्मिक गौरव पर्व है ।


3. विजयादशमी । Essay on Dusshera for College Students in Hindi Language (Indian Festival)

‘विजयादशमी’ हिंदुओं का प्रमुख पर्व है । इसे ‘दशहरा’ भी कहते हैं । सभी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाते हैं । विजयादशमी का संबंध ‘शक्ति’ से है । जिस प्रकार ज्ञान के लिए सरस्वती की उपासना की जाती है उसी प्रकार शक्ति के लिए दुर्गा की उपासना की जाती है ।

कहा जाता है कि अत्याचार करनेवाले ‘महिषासुर’ नामक राक्षस का उन्होंने संहार किया था । इसके लिए उन्होंने ‘महिषासुरमर्दिनी’ का रूप धारण किया था । दुर्गा ने ही शुभ-निकुंभ नामक राक्षसों को मारा था । उन्होंने चामुंडा का रूप धारण करके चंड-मुंड राक्षसों का वध किया ।

श्रीरामचंद्र ने दुर्गा माँ की पूजा करके ही रावण का वध किया था । इसलिए बंगाल में तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में भी इस पर्व को ‘दुर्गा पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है । विजयादशमी का त्योहार दस दिनों तक चलता रहता है । आश्विन मास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से इसका आरंभ होता है । दशमी के दिन इसकी समाप्ति होती है ।

प्रतिपदा के दिन प्रत्येक हिंदू परिवार में देवी भगवती की स्थापना की जाती है । गोबर से कलश सजाया जाता है । कलश के ऊपर जौ के दाने खोंसे जाते हैं । आठ दिनों तक नियमपूर्वक देवी की पूजा, कीर्तन और दुर्गा-पाठ होता है । नवमी के दिन पाँच कन्याओं को खिलाया जाता है ।

उसके बाद देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है । इस उत्सव को ‘नवरात्र’ भी कहते हैं । इन नौ दिनों में पूजा करनेवाले बड़े संयम से रहते हैं । दशमी के दिन विशेष उत्सव मनाया जाता है । इसे ‘विजयादशमी’ (दशहरा) कहते हैं । दशहरा दस पापों को नष्ट करनेवाला माना जाता है ।

इस पर्व को कुछ लोग कृषि-प्रधान त्योहार के रूप में भी मनाते हैं । इसका संबंध उस दिन से जोड़ते हैं, जब श्रीरामचंद्र ने लंका के राजा रावण को मारकर विजय प्राप्त की थी, इसलिए यह ‘विजयादशमी’ के नाम से भी जाना जाता है । विजयादशमी के साथ अनेक परंपरागत विश्वास भी जुडे हुए हैं ।

इस दिन राजा का दर्शन शुभ माना जाता है । इस दिन लोग ‘नीलकंठ’ के दर्शन करते हैं । गाँवों में इस दिन लोग जौ के अंकुर तोड़कर अपनी पगड़ी में खोंसते हैं । कुछ लोग इसे कानों और टोपियों में भी लगाते हैं । उत्तर भारत में दस दिनों तक श्रीराम की लीलाओं का मंचन होता है । विजयादशमी रामलीला का अंतिम दिन होता है ।

इस दिन रावण का वध किया जाता है तथा बड़ी धूमधाम से उसका पुतला जलाया जाता है । कई स्थानों पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं । राजस्थान में शक्ति-पूजा की जाती है । मिथिला और बंगाल में आश्विन शुक्लपक्ष में दुर्गा की पूजा होती है । मैसूर का दशहरा पर्व देखने लायक होता है ।

वहाँ इस दिन ‘चामुंडेश्वरी देवी’ के मंदिर की सजावट अनुपम होती है । महाराजा की सवारी निकलती है । प्रदर्शनी भी लगती है । यह पर्व सारे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । विजयादशमी के अवसर पर क्षत्रिय अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते हैं । जिन घरों में घोड़ा होता है, वहाँ विजयादशमी के दिन उसे आँगन में लाया जाता है ।

इसके बाद उस घोड़े को विजयादशमी की परिक्रमा कराई जाती है और घर के पुरुष घोड़े पर सवार होते हैं । इस दिन तरह-तरह की चौकियाँ निकाली जाती हैं । ये चौकियाँ अत्यंत आकर्षक होती हैं । इन चौकियों को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग टूट पड़ते हैं ।


4. दुर्गापूजा दशहरा (विजया दशमी) Essay on Dusshera for School Students in Hindi Language (Indian Festival)

हिन्दुओं के अनेक पर्व-त्योहार हैं । जिनका किसी-न-किसी रूप में कोई विशेष महत्त्व है; क्योंकि इन सभी पर्वों और त्योहारों से हमें नवजीवन और उत्साह के साथ-साथ विशेष आनन्द भी प्राप्त होता है ।

हम इनसे परस्पर प्रेम और भाईचारे की भावना तथा सहानुभूति की प्रेरणा ग्रहण करके अपने जीवन-रथ को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाते हैं । इन पर्वों और त्योहारों से हम सच्चाई, आदर्श और नैतिकता की शिक्षा ग्रहण करते हैं ।

ये पर्व और त्योहार हमारे अतीत के गौरव और उसके महत्त्व का जागरण सन्देश देते हैं । इनसे हम धन्य और कृतार्थ होते हैं । हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में होली, रक्षा-बंधन, दीपावली की तरह दशहरा भी है । इसे सभी हिन्दू बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं । इसे विजयदशमी भी कहते हैं ।

दशहरा मनाने का कारण यह है कि इस दिन महान पराक्रमी और मर्यादा-पुरुषोत्तम श्री राम ने महाप्रतापी लंका-नरेश रावण को पराजित ही नहीं किया था, अपितु उसका अन्त करके लंका पर विजय प्राप्त की थी । इस खुशी और उल्लास में यह त्योहार प्रति वर्ष आश्विन माह के शुक्रल-पक्ष की दशमी को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है ।

दशहरा के इस त्योहार को मनाने के कुछ और कारणों का उल्लेख भी देखने को मिलता है । बंगाल में उत्तर-पूर्वी भारत की तरह श्रीराम की याद में दशहरा का त्योहार नहीं मनाया जाता है । वहाँ महाशक्ति दुर्गा के सम्मान और श्रद्धा में दशहरा का त्योहार मनाया जाता है ।

वहाँ के लोगों में यह धारणा है कि इस दिन ही महाशक्ति दुर्गा कैलाश पर्वत को प्रस्थान करती है । इसके लिए दुर्गा की याद में लोग रात भर पूजा, उपासना और अखण्ड पाठ एवं जाप करते हैं । नवरात्रि तक प्राय: सभी घरों में दुर्गा माता की मूतियाँ सजा-धजा कर बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ उन की झाँकियाँ निकाली जाती हैं और भजन-कीर्तन होते हैं ।

यों तो दशहरा का त्योहार मुख्य रूप से राम-रावण युद्ध-प्रसंग से ही जुड़ा है । इसको प्रदर्शित करने के लिए प्रतिपदा से दशमी तक रामलीलाएँ होती हैं । दशमी के दिन राम-रावण के परस्पर युद्ध के प्रसंगों को दिखाया जाता हैं । बन्दर-भालुओं और राक्षसों के प्रतीकों के परस्पर हाँ-हूँ बड़े ही अनूठे और रोचक लगते हैं ।

इन लीलाओं को देखकर भक्तजनों के अन्दर जहाँ भक्ति-भावना उत्पन्न होती है, वही दुष्ट रावण के प्रति क्रोध भी उत्पन्न होता है । इस अवसर पर एक विशेष प्रकार की स्फ़्रूर्ति और चेतना जनमानस में उत्पन्न हो जाती है । इस त्योहार के दिन सर्वत्र खूब चहल-पहल होती है ।

बाजारों में मेलों का दृश्य दिखाई देता है । छोटे-छोटे गाँवों में भी मेले लगते हैं । धनी तथा गरीब सभी व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार सामानों की खरीद करते हैं । बच्चे सबसे अधिक प्रसन्न रहते हैं और उनमें एक अद्‌भुत चेतना होती है ।

किसानों के लिए इस त्योहार का विशेष आनन्द होता है । इस समय खरीफ की फसलें काट कर वे इसका उचित मूल्य प्राप्त करते हैं । घरों की विशेष सजावट और सफाई इस त्योहार के शुभ अवसर पर हो जाती है । लोग नये-नये वस्त्र धारण करते हैं ।

दशहरा का त्योहार हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है ! यह त्योहार पूर्णत: धर्म-भावना से सिंचित त्योहार है । इसके सभी कार्य हमारी आस्था और विश्वास के द्वारा ही सम्पन्न होते हैं । इस त्योहार को मनाते समय हमें पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा, नैतिक, अनैतिक जैसे मानवीय और पाशविक प्रवृत्तियों का ज्ञान होने लगता है ।

दशहरा ही एक ऐसा त्योहार है, जिसे मनाते हुए हमारे अन्दर राम के अनुपम आदर्श और दुर्गा की असीम शक्ति का आभास होने लगता है । वास्तव में हम दशहरा त्योहार के द्वारा मनुष्य के देवता बन जाने की भी कल्पना करने लगते हैं ।

विजयादशमी का यह त्योहार रावणत्व पर रामत्व की विजय का संदेश देता है । हमें निष्ठा और पवित्र भावना सहित इस त्योहार को मेल-मिलाप के साथ मानना चाहिए । इससे हमारी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता एवं पवित्र विचारधारा कायम रहे । तभी हमारी आने वाली पीढ़ी भी इसे अपनाने में कोई हिचक नहीं करेगी ।


5. दशहरा (विजयादशमी) | Essay on Dusshera (Vijayadashmi) for School Students in Hindi Language (Indian Festival)

प्रस्तावना:

भारत में विजयादशमी का पर्व हिन्दुओ की चिर सस्कृति का प्रतीक है । यह पर्व आश्विनि शुक्ल दशमी तिथि को मनाया जाता है जो लगभग सितम्बर-अक्टूबर में पड़ता है ।

मूलत उद्देश्य:

किसी भी त्यौहार को मनाने के पीछे उसका मूल उद्देश्य छिपा रहता है । विजयादशमी से सम्बद्ध कई घटनाएँ हमारे धर्म-ग्रन्धो में मिलती है । इस दिन शक्ति रूपणी दुर्गा ने नौ दिन तक युद्ध करके दशवे दिन महिषासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था, इसलिए इस अवसर पर नव-रात्रियों का बहुत महत्त्व है ।

वीर पांडवो ने लक्ष्य भेदकर द्रौपदी का वरण किया था । महाभारत का युद्ध भी विजयादशमी को आरम्भ हुआ था । इसी दिन भगवान् राम ने दस दिन के घोर संग्राम के बाद दसवें दिन आश्विनि शुक्ला दशमी को लकापति रावण का वध किया था क्योकि रावण ने देव व मानव सब को सता रखा था । अत: राम की विजय पर इस दिन सभी ने खुशियाँ मनाई ।

दुर्गा पूजा की विधि:

माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर पर विजय प्राप्त करने की खुशी में श्रद्धालु भक्त दुर्गा माँ की पूजा करते हैं । दुर्गा की अष्ट-भुजा युक्त मूर्ति बनाकर नौ दिन तक उसकी पूजा की जाती है । इस हेतु कई भक्त नव-रात्रियो में व्रत भी रखते हैं । दसवे दिन दुर्गा की प्रतिमा बाजारो व गलियों में झाँकियों के साथ जलूस बनाकर निकाली जाती है ।

फिर उस प्रतिमा को नदियों व पवित्र सरोवरों, सागरों में विसजिइत किया जाता है । विशेषकर बंगाल में दुर्गा पूजा का विशिष्ट महत्च है । इसके अलावा देश के अन्य भागो में भी दुर्गा पूजा इस अवसर पर बड़े उल्लास के साथ मनायी जाती है ।

रामलीला आयोजन की परम्परा:

राम की रावण पर विजय के हर्ष में इन दिनों नव-रात्रियों में राम के जीवन पर आधारित रामलीला का आयोजन होता है । उत्तर भारत में रामलीलाओं की धूम-सी मची रहती है । दिल्ली में रामलीला मैदान, परेड़ ग्राउण्ड एवं कई स्थलों पर वृहद रूप से रामलीला का आयोजन होता है । नव-रात्रियो में प्रतिदिन राम के जीवन सम्बन्धी झाँकियाँ बाजारों व गलियो में निकाली जाती है ।

लोग उन्हे बड़ी श्रद्धा व उत्साह से देखते हैं । दसवे दिन दशहरे को रावण, कुम्भकरण, मेघनाथ के विशाल पुतलो को जलाया जाता है । इन विशाल पुतलो में अनेक पटाखे-बम लगे रहते हैं । दनदनाहट की आवाज करते हुए पुतलों के जलने के दृश्य दर्शनीय होते हैं । पुन: राम के राज-तिलक का अभिनय दृश्य देखकर लोगो का हृदय आनन्द विभोर हो उठता है ।

कार्यो का शुभारम्भ:

दशहरा वर्षा की समाप्ति पर मनाया जाता है । प्राचीन काल में लोग अपनी हर प्रकार की यात्राओ का शुभारम्भ इसी तिथि को करना शुभ मानते थे । व्यापारी लोग इस दिन से व्यापार करने के लिये निकल पड़ते थे ।

राजा लोग अपनी विजय यात्रा व रण यात्रा का शुभारम्भ दशहरे से ही शुरू करते थे क्योकि उन दिनो बड़ी-बड़ी नदियों पर पुल आदि नही होते थे, जिससे वर्षा में उन्हें पार करना असम्भव होता था इसलिये वर्षा समाप्ति पर यात्राओ का शुभारम्भ होता था । उसी परम्परा के अनुसार आज भी लोग अपने व्यापार से सम्बन्धित यात्रा एवं अन्य प्रकार के कार्यो का शुभारम्भ दशहरे की तिथि से ही करते हैं ।

आध्यात्मिक महत्व:

भारत एक धर्म प्रधान देश है । यहा के पवों का सम्बन्ध धर्म, दर्शन व आध्यात्म से होता है । माँ दुर्गा, भगवान राम आदि दैवी शक्ति ‘सत्य’ के प्रतीक है और महिषासुर, रावण आदि असुर शक्तियाँ असत्य के प्रतीक हैं ।

इसलिए विजयादशमी दैवी शक्तियो की आसुरी शक्तियों पर विजय अर्थात् सत्य की असत्य पर प्राप्त विजय का प्रतीक है । हमारे अन्तःकरण में दैवी या असुर दोनो प्रकार की शक्तियाँ विद्यमान हैं जो हमें सदैव शुभ व अशुभ कार्यो के लिये प्रेरित करती रहती है । जो व्यक्ति अपनी असुरी वृत्तियो पर विजय प्राप्त कर लेता है, वही महान् है, वही राम व शक्ति (मां दुगा) जैसा आदर्श बन जाता है ।

इसके विपरीत जो अपनी असुरी प्रवृत्तियों के आधीन होकर दैवी वृत्तियो की अवहेलना करता है वह रावण, महिषासुर जैसा बन जाता है । इसलिये यह पर्व हमें संदेश देता है कि हमे सदैव अपने अन्त-करण में विद्यमान असुरी वृत्तियों को जीतना चाहिए, तभी हमारा इस पर्व को मनाना सार्थक हो सकेगा ।

उपसंहार:

हमें अपने त्यौहारो को परम्परागत ढंग से मना लेना ही काफी नही है, प्रत्युत उनके आदर्शो पर चलकर उन्हें अपने जीवन मे भी चरितार्थ करना चाहिए । हम दशहरे के पुण्य अवसर पर माँ दुर्गा की पूजा करते हैं, भगवान राम की लीला का गान करते हैं, ऐसा कर देना मात्र ही हमारे त्यौहार मनाने की इति श्री नही होनी चाहिए ।

माँ दुर्गा ने अपने जीवन को खतरे में डालकर दूसरो के कल्याणार्थ बड़े-बड़े असुरो का नाश किया । भगवान राम ने जीवन भर मर्यादा का पालन कर अपने जीवन के ऐश्वर्यो को ठुकरा दिया तथा सबको सताने वाले रावण को मार कर उन्हे अभयदान दिया । इसी प्रकार हमारे सारे कार्य जन कल्याणार्थ होने चाहिए । अपने सकल स्वार्थो को त्याग कर हमें सदैव दूसरो की भलाई में तत्पर रहना चाहिए ।


6. विजयादशमी । Essay on Dusshera for College Students in Hindi Language (Indian Festival)

अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक पर्व दशहरा प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है । हमारे देश में विजयादशमी का महत्त्व दो तरह से है ।

प्रथम तो यह पर्व उस महान् स्मृति का प्रतीक है जिस दिन दुराचारी, पापात्मा रावण का वध मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने किया था और इस प्रकार अधर्मी का अंत करके और लंका में धर्म की पताका फहराकर श्रीरामचन्द्र अपनी भार्या सीताजी और भाई श्रीलक्षमण के साथ बापस अयोध्या दीपावली के दिन आए थे ।

दूसरा महत्त्व इसलिए है कि हमारे देश के बंगाल राज्य में शारदीय नवरात्रों का विशिष्ट महत्त्व है तथा जगह-जगह दुर्गाजी की प्रतिमाएं स्थापित करके उनकी नियमित पूजा की जाती है । विजयादशमी को दोपहर 12 बजे पूजा पूरी होती है तथा शाम को प्रतिमाओं का जलाशय अथवा नदी में विसर्जन कर दिया जाता है ।

भगवती महाशक्ति पुंज दुर्गाजी ने भी शुभ-निशुंभ नामक दैत्यों का वध इसी दिन किया था । इस प्रकार दोनों तरह से दशहरा शक्ति का एक महान् पर्व है । गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम के चरित्र को जन-जन में फैलाने के लिए श्रीरामलीला करने की प्रेरणा दी थी ।

काशी में सर्वप्रथम रामलीला शुरू हुई थी और अब तो लगभग सम्पूर्ण भारत में श्रीरामलीलाएं होती हैं और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर एकादशी पर्यन्त रामलीला का आयोजन धूमधाम से होता है । दिल्ली में तो जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर स्थित एक पुराना मैदान श्रीरामलीला मैदान के नाम से जाना जाता है । कहते हैं कि इस मैदान में रामलीला मुगलों के जमाने से हर वर्ष होती आ रही है ।

विजयादशमी का चरम उत्कर्ष होता है दशमी के दिन अर्थात् जिस दिन रावण मारा जाता है । इस दिन प्राय: सभी रामलीलाओं के प्रबंधक रावण, कुंभकर्ण एवं मेघनाथ के काफी बड़े-बड़े पुतले बनाते हैं । इन पुतलों के अन्दर काफी बारूद भरी होती है । बारी-बारी से इन पुतलों में राम के बाण द्वारा आग लगाई जाती है ।

आग लगते ही पुतलों में कारीगरी के साथ भरी बारूद में विशेष चमक पैदा होती है और ऐसा लगता है कि क्षणभर के लिए मानो पुतलों ने कीमती जेवर और रत्न पहन रखे हों । किन्तु क्षणभर बाद ही बारूद अपना रंग लाती है और पुतले धू-धू कर जलने लगते हैं । मान्यता है कि पुतलों का पीठ के बल गिरना अच्छा नहीं होता । पुतले प्राय: सामने राम को नमन करते हुए गिरते हैं ।

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दिल्ली की मुख्य रामलीलाओं में कई बड़े-बड़े नेता भी रामलीला देखने के लिए आते हैं । डॉ॰ जाकिर हुसैन जैसे राष्ट्रपति भी रामलीला में आकर राजा राम को तिलक करते थे । पं॰ जवाहरलाल नेहरू रामलीला मैदान में रामलीला देखने जरूर आते थे । वे जीप में बैठकर रामलीला मैदान में बैठे लोगों का अभिवादन स्वीकार करते थे ।

दशहरा अथवा विजयादशमी का त्योहार ऐसा त्योहार है जो हमें यह बताता है कि हमेशा अधर्म पर धर्म की विजय होती है । पाप पर हमेशा पुण्य की विजय होती है । सच्चाई की जीत अवश्य होती है तथा एक-न-एक दिन लोगों को असलियत का पता अवश्य लग जाता है ।

दशहरा के बारे में यह भी कहा जाता रहा है कि यह क्षत्रियों का त्योहार है । ऐसा कहना उचित नहीं है । त्योहारों के बीच जातियों के आधार पर कोई विभाजन रेखा खींचना अनुचित होगा । रक्षाबंधन को कभी ब्राह्मणों का त्योहार माना जाता था । प्राचीन काल में आमतौर से ब्राह्मण जंगलों में रहा करते थे ।

वे लोककल्याण की भावना से यज्ञ करते थे और यज्ञ करने के उपरान्त यजमान वर्षभर स्वस्थ रहे, इसके लिए उसके हाथ में एक रक्षा सूत्र बांधते थे, जिसे रक्षाबंधन कहा जाता था । वे परम्पराएं लुप्त हो गई हैं और अब रक्षाबंधन विशुद्ध रूप से भाई-बहन के त्योहार के रूप में जाना जाता है ।

विजयादशमी दुर्गापूजा का चरमोत्कर्ष होता है अर्थात् रामलीला का आखिरी दिन । देश-काल एवं परिस्थितियों के अनुकूल पर्वों के स्वरूप भी बदले हैं । दशहरा भी अब सार्वजनिक त्योहार बन गया है जो श्रीराम के वीरत्व, उनकी न्यायप्रियता एवं दयालुता का संदेश प्रतिवर्ष देता है ।


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