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रंगों का त्योहार: होली पर निबंध |Essay on Holi : Festival of Colours in Hindi!

भारत में अनेक धर्मो व संप्रदाय के लोग निवास करते हैं । सभी की अपनी-अपनी मान्यताएँ, रहन-सहन व वेश-भूषाएँ हैं । सभी के त्योहार भी भिन्न हैं । अत: देश में हर मास किसी न किसी धर्म से संबधित त्योहार आते ही रहते हैं ।

कभी लोग दीपावली की खुशियाँ मनाते हैं तो कभी प्रभु ईसा के जन्म दिवस पर चर्च में प्रार्थना करते हैं । इसी प्रकार मुसलमान कभी ईद के अवसर पर गले मिलते व नमाज अदा करते दिखाई देते हैं तो कभी वैशाखी के अवसर पर सिक्ख भाँगड़ा नृत्य करते, झूमते-गाते दिखाई देते हैं । रंगों में सिमटा, खुशियों का त्योहार होली भी इसी प्रकार देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है ।

होली का त्योहार हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो हर वर्ष हिंदू तिथि के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । एकता, मिलन और हर्षोल्लास के प्रतीक इस त्योहार को मनाने के संदर्भ में अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं ।

प्रमुखत: इस त्योहार की पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन काल में राक्षसराज हिरण्यकश्यप एक आततायी एवं अभिमानी राजा था । वह स्वयं को देवताओं से भी श्रेष्ठ समझता था । उसके राज्य में दैव-पूजा खासकर विष्णु-पूजा पर पाबंदी थी परंतु वह स्वयं अपने पुत्र प्रह्‌लाद की दैवभक्ति को नहीं रोक सका । प्रह्‌लाद को डराने, धमकाने व उसे मार डालने के जब समस्त प्रयास असफल हो गए तब उसने उसे मारने का दायित्व अपनी बहन होलिका को सौंपा । होलिका को यह वरदान था कि अग्नि उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती ।

होलिका प्रह्‌लाद को जला देने के उद्‌देश्य से उसे गोद में लेकर बैठ गई । परंतु प्रह्‌लाद की भक्ति के सम्मुख होलिका का प्रयास निष्फल रहा । उस अग्नि में होलिका तो जलकर भस्म हो गई परंतु भक्त प्रह्‌लाद का बाल भी बांका न हुआ । उस दिन से परंपरागत रूप से होली के त्योहार के एक दिन पूर्व होलिका दहन का आयोजन होता है । इस प्रकार होली का यह पावन त्योहार अधर्म पर धर्म की तथा असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता है ।

होली के शुभ अवसर पर वातावरण अत्यंत मनोहर होता है । शरद ऋतु का प्रभाव उस समय तक फीका पड़ जाता है । कष्टदायक ठंडी हवा के स्थान पर बासंती शीतोष्ण वायु के चलने से वातावरण में एक उमंग का संचार होने लगता है । कृषकगण भी आनंद से पूर्ण झूम उठते हैं ।

इस समय खेतों पर फसलों के पकने का अवसर होता है । पकी हुई फसल होलिकोत्सव के आनंद को दुगुना कर देती है । आम्र मंजरियाँ, फूलों से लदे पेड़-पौधे चतुर्दिक एक सुगंध फैलाते हैं । इस अवसर पर दुकानों, सड़कों आदि पर चहल-पहल देखते ही बनती है । कई जगह तोरणद्‌वार सजाए जाते हैं । मिठाई की दुकानों पर तो रंग-बिरंगी विभिन्न स्वादों की मिठाइयाँ सभी को आकर्षित करती हैं ।

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होलिका दहन के दूसरे दिन लोग अबीर, गुलाल व रंगों से होली खेलते हैं । क्या अमीर, क्या गरीब सभी होली के रंगों से सराबोर रहते हैं । सारा वातावरण रंग से ओतप्रोत हो उठता है । युवक टोलियाँ बना कर ढोल, मजीरों व नगाड़ों आदि के साथ सड़कों पर निकल पड़ते हैं । हर तरफ लोग मस्ती में झूमते व एक दूसरे पर अबीर-गुलाल लगाते व रंगों की वर्षा करते दिखाई देते हैं ।

होली के अवसर पर बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता है । पर्वतीय स्थानों पर तो लोग सप्ताह भर पहले से होली के रंग और मौज-मस्ती में डूबे रहते हैं । सायंकाल अनेक स्थानों पर होली-मिलन समारोह का आयोजन होता है जिसमें हास्य कविताएँ, लतीफे व अन्य रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है । इसके अतिरिक्त सायंकाल सभी लोग नए वस्त्र धारण कर एक-दूसरे के घर मिलने जाते हैं ।

होली का त्योहार मौज-मस्ती व खुशियों का त्योहार है । यह हर्षोल्लास परस्पर मिलन व एकता का प्रतीक है । इस पर्व के अवसर पर लोग आपसी वैमनस्य को भुलाकर मित्र बन जाते हैं । यह त्योहार अमीर और गरीब के भेद को कम कर वातावरण में प्रेम की ज्योति प्रज्वलित करता है । नि:संदेह होली का पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर है ।

इस परंपरा का पूर्ण निर्वाह करना हमारा दायित्व है । हमें उन तत्वों का मिल-जुलकर विरोध करना चाहिए जो इस अवसर का लाभ उठाकर वातावरण में अश्लीलता फैलाते हैं या फिर रंगों के स्थान पर कीचड़, कालिख व त्वचा को हानि पहुँचाने वाले खतरनाक रसायनों क्रा प्रयोग करते हैं । इनसे बचने के लिए पहले लोग कई प्रकार फूलों से रंग तैयार करते थे ।

इस प्राचीन परंपरा तथा इसी तरह की अन्य शुभ परंपराओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है । इस अवसर पर मदिरापान भी त्योहार की छवि को धूमिल करता है । अत: इस पर्व की मूल परंपरा की पवित्रता का पूर्ण निर्वाह हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है । हमारी यह भी जिम्मेदारी है कि हममें से प्रत्येक होली के बहाने एक नवीन उत्साह से भरकर स्वयं को समाज के उत्थान के प्रति समर्पित कर दें ।

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