होली पर निबंध | Essay for Kids on Holi in Hindi!
आज के वैज्ञानिक युग में मानव ने चांद पर पहुँचकर अपने मस्तिष्क की चरमोन्नति को दिखाया । वहीं मानव को मस्तिष्क के विकास के साथ-साथ हृदय के विकास की भी आवश्यकता होती है । त्योहार मन को प्रसन्न रखने में विशेष सहायक होते हैं ।
यही त्योहार भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं । होली हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार है । होली फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। प्रत्येक पर्व की पृष्ठ भूमि में कुछ न कुछ इतिहास छिपा होता है । उसी प्रकार होली का भी अपना एक इतिहास है । हिरण्यकश्यप नाम का निरंकुश और नास्तिक राजा था । उसे अपनी शक्ति पर बड़ा घमण्ड था ।
उसने अपने आप को ईश्वर घोषित कर, राज्य में यह घोषणा करवा दी कि वह ईश्वर है । लोग उसकी की पूजा करें, जो व्यक्ति उसके अतिरिक्त भगवान की पूजा करेगा, उसे कठोर दण्ड दिया जाएगा । उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वरभक्त था । उसने अपने पिता को ईश्वर मानने से इंकार कर दिया ।
हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के अनेक प्रयत्न किए, लेकिन वह असफल रहा । उसने बहन होलिका को अपने इस दुष्कृत्य में शामिल किया । होलिका के पास ईश्वर का दिया हुआ ऐसा वस्त्र था जिसे आग नहीं जला सकती थी । होलिका लकड़ी के ढेर पर उस वस्त्र को ओढ़कर और प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई ।
ईश्वर का चमत्कार देखिए, होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ । जो ईश्वर के वरदान का दुरुपयोग करता है । वही वरदान उसके लिए अभिशाप बन जाता है । जैसे होलिका के लिए बना । सत्य कुछ भी रहा हो लेकिन यह घटना हर साल हमें पाप और अन्याय की होली जलाने की शिक्षा देती है ।
होली का सम्बन्ध श्रीकृष्ण से भी है । गोपी और गोपिकाओं की होली विशेष प्रसिद्ध रही है । आज भी बरसाने की होली प्रसिद्ध है । गोकुलवासी बरसाने में जाकर होली खेलते हैं । वहाँ लट्ठमार होली विशेष प्रसिद्ध है । जो लोगों के आकर्षण का विशेष केन्द्र होती है । वहाँ की गलियों में कृष्ण और राधा का प्रेममय अनुराग बरसता है ।
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इस दिन लोग अपनी गली के चौराहे पर लकड़ियों को इकट्ठा करके ऊंची से ऊंची होलिका बनाते है । शाम को महिलाएं नारियल, धूप आदि ले जाकर उस होलिका की पूजा करती हैं और परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर धागा लपेटती है ।
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रात को निश्चित मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाता है । वह गेहूं के बालों को आग में भूनकर मित्रों में बांटते हैं और खेतों में लहलहाती फसल को उनके हृदय से भर देती है । होलिका दहन के अगले दिन दुल्हैडी या रंगो वाली होली होती है। होली के रंगों में अल्हड़ता एवं हर्षोल्लास होता है । युवकों की टोली सुबह ही नाचते-गाते सड़कों पर निकल आती है । छोटे-बच्चे घरों की खिड़कियों और छतों से गुब्बारे फेंकतें हैं । पानी में तरह-तरह के रंग घोलकर एक-दूसरे पर फैंकते हैं ।
लाल, गुलाबी, पीले, काले, नीले, फिरोजी, कत्थई रंगों को एक-दूसरे में मुंह पर लगाते हैं और गले मिलते हैं । रंग-बिरंगे चेहरे, रंग-बिरंगी पोशाकों से सजे होते हैं । औरतें सुबह से मिठाइयां और पकवान बनाने में जुट जाती हैं । बाजारों में गुलाल और गुब्बारे 15 दिन पहले से ही बिकने शुरू हो जाते हैं ।
दोपहर तक होली का हुड़दंग समाप्त हो जाता है । फिर रात को कवि गोष्ठी तथा तरह-तरह के रंगा-रंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है । जिसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और अपना मनोरंजन करते हैं । होली के दिन शराब इत्यादि पीकर हुड़दंग नहीं करना चाहिए । मिट्टी, गोबर, तेजाब, तेज रंग दूसरों के ऊपर नहीं डालने चाहिए । जबर्दस्ती किसी को होली खेलने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए ।
होली का त्योहार प्राचीन काल से आज तक बिना रुके मनाया जा रहा है । इसमें छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी भाग लेते हैं । होली के रंगों में अपने आप को रंग लेना चाहिए । होली न खेलकर समाज का अलग अंग नहीं बनना चाहिए । यही एक ऐसा त्योहार है जो जाति-बन्धन और ऊंच-नीच की भावना को नष्ट करता है ।