Here is a compilation of Essays on ‘Holi’ for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Holi Festival’ especially written for Kids, School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Holi Festival, Celebrated in India


Essay Contents

  1. होली का त्योहार । Essay on Holi in Hindi Language
  2. होली: राग-रंग का त्योहार । Essay on Holi for Kids in Hindi Language
  3. होली रंगों का त्यौहार । Paragraph on Holi for School Students in Hindi Language
  4. होली-रंग और उमंग का त्यौहार | Essay on Holi for College Students in Hindi Language
  5. होली | Essay on Holi in Hindi Language

Read More on Holi Festival:

1. होली का त्योहार । Essay on Holi Festival in Hindi Language

1. भूमिका ।

2. होली चेतना व जागति का पर्व ।

3. होली का महत्त्व (सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक)

4. होली की बुराइयां ।

5. उपसंहार ।

1. भूमिका:

फागुन मास की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष मनाये जाने वाला होली का यह पावन त्योहार सर्दी के अन्त और ग्रीष्म के प्रारम्भ के सन्धिकाल में तथा वसंत ऋतु की श्रीवृद्धि समृद्धि के मादक वातावरण में अपनी उपस्थिति देता है ।

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वासंती पवन के साथ फागुनी रंगों की बौछार लिये होली का यह त्योहार प्रेम, हर्ष, उल्लास, हास्य विनोद, समानता चेतनता, जागति का पर्व है । यद्यपि इस पर्व के मनाये जाने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं हैं, तथापि इसे मनाये जाने के सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं ।

2. होली चेतना व जागृति का पर्व:

सर्व प्रचलित कथा के अनुसार होली तब से मनायी जाती है, जब सत्याग्रही विष्णु भक्त प्रहलाद को छल प्रपंच से मारने के लिए हिरण्याकश्यप ने यथासम्भव प्रयत्न किये । हारकर उसने अपनी बहिन होलिका को आग में बैठाकर प्रहलाद को जला डालने हेतु निर्देशित किया ।

आग में नहीं जलने का वरदान पाकर भी जल मरी होलिका ।  होलिका की   दुष्टता का अंत हुआ, उधर सच्चे भक्त प्रहलाद ने असत्य और अन्योय का जो कभी विरोध सत्य की रक्षा के लिए किया, उसमें सत्य की ही विजय हुई । नरसिंह अवतार में प्रकट होकर स्वयं भगवान विष्णु ने व्यक्ति की पूजा करवाने वाले हिरण्याकश्यप का वध कर डाला ।

3. होली का महत्त्व (सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक):

इस त्योहार के पीछे पौराणिक कथाएं जो भी रही हैं, किन्तु इसके साथ वैज्ञानिक कारण यह है कि ग्रीष्म और शीत के सन्धिकाल में अनेक संक्रामक रोग पनपते हैं, वातातरण में कीटाणुओं की वायु में उपस्थिति को नष्ट करने के लिए होलिका दहन किया जाना चाहिए ।

टेसू के रंगों के प्रभाव से चेचक माता जैसी बीमारियों का शमन भी किया जाता है । होली का यह पव सुख-समृद्धि का पर्व भी है । फसलें पककर तैयार हो जाती हैं । इसलिए वासति नव संस्येष्टि का परिवर्तित रूप भी है होली । इसी शुभ दिन होली की पवित्र अग्नि में उात्न की बालियों को भूनकर खाया जाता है ।

होली के इस सामूहिक यइा में प्रत्येक गांव, नगर के लोग समिधा और कण्डों का संग्रह करते हैं और पूर्णमासी के प्रदोष काल में घर के चौड़े आगन में किसी चौराहे पर गोबर से लिपी-पुती पवित्र भूमि पर शमी वृक्ष का खम्भा लगा दिया जाता है और उसके चारों तरफ संग्रह की गयी पलास, आम, पीपल, खैर के संचित काष्ठ घास-फूस और उपलों को घेरा जाता है ।

नारियल के लक्षे लपेटकर यइा की पूर्णाहूति, मिठाई, गुड आदि चढाये जाते हैं । अग्नि के हविपात्र में पकाई गयी कन के बालियों का प्रसाद वितरण किया जाता है ।

4. होली की बुराइयां:

होली का त्योहार मनाये जाने के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक महत्त्व में से यह प्रमुख है कि होली समानता, सदभाव में वृद्धि करने, शत्रुता को मित्रता में बदलने का पर्व है । इस दिन छोटे-बड़े सभी अपनी सामाजिक पद प्रतिष्ठा भूलकर मनोमालिन्य दूर करते हैं । अपने विरोधी भावों को छोड़ स्नेही भाव तरंगों में सराबोर हो हास्य-विनोद करते हैं, फगुवा गाते हैं ।

होली के इस पवित्र त्योहार में समय परिवर्तन के साथ-साथ कुछ विकृतियों का प्रवेश हो गया है, जिसके फलस्वरूप ऐसा भी प्रतीत होता है कि कहीं हम इसके मूल स्वरूप को विस्मृत न कर जायें । होली के दिन स्वाभाविक सहज हास्य-विनोद के स्थान पर कुरुचिपूर्ण अश्लील, भद्दे, पतनकारी मनोभावों का प्रयोग होने लगा है । किसी सभ्य सुसंस्कृत समाज के लिए इसे छेड़छाड़ का रूप देना उचित नहीं है ।

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कई अवसरों पर अपने से सम्मानीय स्त्रियों के प्रति अमर्यादापूर्ण आचरण करते हुए इसकी गरिमा, महता को यदूल जाते हैं । होलिका को गाली देने का आशय कुछ दूसरे अर्थो में लेने लगे हैं । कुछ तो होली के अवसर पर अपनी बुराइयों को पवित्र अग्नि में होम करने की बजाये प्रतिशोध की भावनाओं में जलकर अमानवीय कृत्य करते हैं । मदिरा उघैर भांग का आवश्यकता से अधिक सेवन असन्तुलित बना देता है ।

टेसू, पलाश के प्राकृतिक रंगों के स्थान पर गहरे रासायनिक रंगों, कीचड़ वार्निश इत्यादि का भी प्रयोग होने लगा है । होली के लिए हरे-भरे वृक्षों की कटाई करने में संकोच नहीं करते, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से नुकसानदेह है ।

5. उपसंहार:

यदि हम इन दोषों से दूर रहकर होली के वास्तविक परम्परागत स्वरूप को कायम रखते हैं, तो इस त्योहार की जो महिमा है, गरिमा है, वह बनी रहेगी; क्योंकि होली तो जीवन को उल्लासमय, उज्जल बनाने का पर्व

है ।

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अपने विचारों, भावों को क्रियात्मक, संस्कार देने का पर्व है । सबको एक रंग में, मानवीयता के रंगों में रंगने का पर्व है होली । फागुनी उन्माद के रंग रंगीले रंगों का, फाग और अबीर का, अपने सभी स्नेहीजनों के लिए हार्दिक शुभकामनाओं को प्रकट करने का पर्व है होली ।


2. होली: राग-रंग का त्योहार Essay on Holi for Kids in Hindi Language

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हमारे देश ने त्योहारों की माला पहन रखी है । शायद कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण अतिथि हो, जो किसी न किसी त्योहार, पर्व से सम्बन्धित न हो । छोटे-बड़े त्योहारों को लेकर चर्चा की जाए, तो हमारी सभी तिथियां किसी-न-किसी घटना का ही प्रतीक और स्मृति हैं ।

दशहरा, रक्षाबन्धन, दीवाली, रामनवमी आदि धार्मिक त्योहारों का अधिक महत्त्व है । रंगी होली का त्योहार सभी त्योहारों का शिरोमणि त्योहार है । वह त्योहार सभी त्योहारों से अधिक आनन्दवर्द्धक है, प्रेरणादायक एवं उल्लासवर्द्धक भी है । यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हे ।

होली का त्योहार हर्षोल्लास, एकता और मिलन का प्रतीक है । हमारे हर एक धार्मिक त्योहार से सम्बन्धित कोई न कोई पौराणिक कथा प्रसिद्ध है । होली के सम्बन्ध में कहा जाता है कि दैत्य-नरेश हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने की चेतावनी दे रखी थी ।

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किन्तु उसके पुत्र प्रह्लाद ने अपने पिता की आज्ञा न मानी । अब पिता के बार-बार समझाने पर भी प्रह्लाद न माना, तो उसे मार डालने के अनेक प्रयास किए गए; किन्तु उसका बाल भी बाँका न हुआ । दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकेगी ।

वह प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई । लकड़ियों में आग लगा दी गई । प्रभु की कृपा से वरदान अभिशाप बन गया । होलिका जल गई, मगर प्रह्लाद को आँच तक न आई । इस दिन की स्मृति में तब से लेकर अब तक हिन्दू फाग से एक दिन पहले होली जलाते हैं ।

अधिकाँश भारतीय त्योहार ऋतुओं से भी सम्बन्धित हैं । होली के अवसर पर कृषकों की फसल पकी हुई होती है । कृषक उसे देखकर खुशी से झूम उठते हैं । वे अपनी फसल की बालों को आग में भूनकर उनके दाने मित्रों व सगे-सम्बन्धियों में बांटते हैं।

होली के शुभावसर पर प्रत्येक भारतीय प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देता है । चारों ओर रंग और गुलाल का वातावरण दिखाई पड़ता है। मस्त-मौलों की टोलियाँ ढोल-मँजीरे बजाती मस्ती में गाती-नाचती दिखाई देती हैं । कही भंग की तरंग, कहीं सुरा की मस्ती में झूमते हुए लोगों के दर्शन होते हैं ।

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होली खुशी का त्योहार है । प्रेम, एकता और त्याग इसके मूल आदर्श हैं । होली मिलन का त्योहार है, फिर भी इस मौके पर अक्सर लड़ाई-झगड़ा देखने को मिलता है । कारण स्पष्ट है कि कई लोग रंगों के इस त्योहार (होली) का महत्त्व नहीं समझते ।

यह त्योहार वैर-भाव मिटाता है; किन्तु इस मौके पर मदिरा और जुए के कारण होली के मूल आदर्शों पर चोट लगती है । इस हर्षोल्लास के त्यौहार पर गुब्बारों की मार हर्ष को विषाद में बदल देती है । इसलिए इस अवसर पर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे रंगों के त्योहार होली के रंग में भंग पड़ जाए । हाँ, होली का रंग जमाने के लिए नाच-गाने, हास्य, कवि-गोष्ठियां की जाएँ, रामलीलाएं की जाएँ । इस अवसर पर मित्रों को आमंत्रित कर होली-मिलन का आयोजन किया जाए ।


3. होली रंगों का त्यौहार । Paragraph on Holi festival for School Students in Hindi Language

होली भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है । होली का शुभारंभ माघ शुक्ल पंचमी को ही हो जाता है जिसे बसंत पंचमी कहते हैं । किन्तु त्यौहार के रुप में यह फाल्गुन महिने के आंतिम दिन अर्थात पूर्णमासी के दिन होलिका दहन के रुप में मनाया जाता है और चैत्र कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि तक चलता है ।

कतिपय स्थानों पर होलिका दहन के दिन ही लोग एक-दूसरे पर रंग उड़ेलकर खुशियां मनाते हैं तो अधिकांश लोग चैत्र महिने के प्रथम दिन रंगों और अबीरों के प्रयोग से आनन्दोत्सव मनाते हैं । होली हिन्दुस्तान के कण-कण में आनन्दोत्सव के रुप में मनाया जाता है । इस पर्व का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है ।

इस पर्व के साथ भक्त प्रहलाद की कथा जुड़ी हुई है । हिरण्यकश्यप के अत्याचार से तंग आकर भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु की आराधना में तल्लीन हो गया । उसके पिता ने उसे खत्म करने के अनेक उपाय किये किन्तु वह ईश्वरीय कृपा से बचता  गया । अन्त में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया ।

होलिका को देवताओं से वरदान स्वरूप एक चादर मिला था जिसे ओढ़ लेने से अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था । वह चादर ओढ़कर प्रहलाद को गोद में ले अग्निपुंज में प्रविष्ट हो गई । किन्तु ईश्वर की कृपा से वही चादर प्रहलाद का सुरक्षा कवच बन गया और होलिका उसी अग्नि में जल गई । इसी आलौकिक घटना के उपानन्द में होलिका दहन के पश्चात् होली मनाने की प्रक्रिया चल पड़ी ।

इस पर्व से जुड़ी एक और कथा है एक “ढुँढला” नाम की राक्षसी थी । वह बालकों को पकड़ कर खा जाया करती थी । मानव समाज उससे आतंकित रहने लगा । एक ऋषि ने उससे छुटकारा पाने के लिए यह विधान निकाला कि जो बालक अपने चेहरे को विकृत बना लेगा वह “ढुँढला” के कोप से बच जायेगा ।

कदाचित् इसी कारण नाना प्रकार के रंगों से अपने आपको विकृत और भयंकर बना लेने की प्रथा चल पड़ी और होली पर्व का प्रारंम हो गया । होली मनाने का ढंग विचित्र है । फाग-पूर्णिमा की रात्रि में संगीतनृत्य की उमंगों से भरे हुए लोग होलिका का दहन करते हैं । ऐसा माना जाता है कि इस दाह से उठने वाली लपटें पाप की कालिमा को नष्ट कर देती है ।

होलिका दहन के पश्चात् चैत्र प्रतिपदा को प्रत्येक व्यक्ति रंगों से सराबोर रहते हैं । भारत वर्ष में ‘ब्रज की होली’ अपना विशेष आकर्षण रखती हैं । यहाँ देश के कोने-कोने से लोग आते है । बड़े-छोटे, स्त्री-पुरूष, आबाल-वृद्ध सभी इस आनंदोत्सव के रंग में बहते दिखते है ।

भारतीय जन-जीवन के लिए यह पर्व उमंग और उल्लास का प्रतीक है । बंसल के मोहक और मादक परिवेश को होली का रंग और भी उत्तेजित कर देता है । अमीर-गरीब, बड़े-छोटे, ब्राह्मण-शूद्र सभी साथ-मिलकर इस उत्सव का आनन्द उठाते हैं । यह त्यौहार सभी को अपने रंग में रंगकर पारस्परिक प्रेम के सूत्र में बांध देती है ।

वर्तमान समय में इस पर्व की पवित्रता और प्रेम के मध्य अश्लीलता और फूहड़ता का भी समावेश हो गया है जो बांछनीय नही है । कभी-कभी आपसी राग-द्वेष और अनैतिक किया-कलाप के चलते प्रेम के इस त्यौहार में संघर्ष और वैमनस्यता की स्थिति भी दिखाई देने लगती है ।  इस प्रकार के कलंक से होली के पावन त्यौहार को अछूता रखना हमारा धर्म है ।

होली भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है । यह हमें आपसी वैमनस्यता और राग-द्वेष को छोड्‌कर परस्पर मेल-मिलाप, आपसी सौहार्द्र और प्रेम के साथ रहना सिखाती है ।  भारत की अनेकता और विषमता की खाईयों को पाटकर यह पर्व एकता और समता की जाज्वल्यमान धारा प्रवाहित करती है । यह पर्व हमारी अखण्डता का भव्य दिग्दर्शन कराती है ।


4. होली-रंग और उमंग का त्यौहार | Essay on Holi for College Students in Hindi Language

त्यौहार जीवन की एकरसता को तोड़ने और उत्सव के द्वारा नई रचनात्मक स्फूर्ति हासिल करने के निमित्त हुआ करते हैं । संयोग से मेल-मिलाप का अनूठा त्यौहार होने के कारण होली में यह स्फूर्ति हासिल करने और साझेपन की भावना को विस्तार देने के अवसर ज्यादा हैं । देश में मनाये जाने वाले धार्मिक व सामाजिक त्यौहारों के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य जुड़ी हुई है ।

शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण तिथि हो, जो किसी न किसी त्यौहार या पर्व से संबंधित न हो । दशहरा, रक्षाबन्धन, दीपावली, रामनवमी, वैशाखी, बसत पंचमी, मकर संक्रांति, बुद्ध पूर्णिमा आदि बड़े धार्मिक त्यौहार हैं । इनके अलावा कई क्षेत्रीय त्यौहार भी हैं । भारतीय तीज त्यौहार साझा संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं ।

रंगों का त्यौहार होली धार्मिक त्यौहार होने के साथ-साथ मनोरंजन का उत्सव भी है । यह त्यौहार अपने आप में उल्लास, उमंग तथा उत्साह लिए होता है । इसे मेल व एकता का पर्व भी कहा जाता है । हंसी ठिठोली के प्रतीक होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार कहलाता है ।

इस त्यौहार में लोग पुराने बैरभाव त्याग एक दूसरे को गुलाल लगा बधाई देते हैं और गले मिलते हैं । इसके पहले दिन पूर्णिमा को होलिका दहन और दूसरे दिन प्रतिपदा को धुलेंडी कहा जाता है । होलिका दहन के दिन गली-मौहल्लों में लकड़ी के ढेर लगा होलिका बनाई जाती है । शाम के समय महिलायें-युवतियां उसका पूजन करती हैं ।

इस अवसर पर महिलाएं शृंगार आदि कर सजधज कर आती हैं । बृज क्षेत्र में इस त्यौहार का रंग करीब एक पखवाड़े पूर्व चढ़ना शुरू हो जाता है । होली भारत का एक ऐसा पर्व है जिसे देश के सभी निवासी सहर्ष मनाते हैं । हमारे तीज त्यौहार हमेशा साझा संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं । यह साझापन होली में हमेशा दिखता आया है ।

मुगल बादशाहों की होली की महफिलें इतिहास में दर्ज होने के साथ यह हकीकत भी बयां करती हैं कि रंगों के इस अनूठे जश्न में हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर शामिल होते हैं । मीर, जफर और नजीर की शायरी में होली की जिस धूम का वर्णन है, वह दरअसल लोक परंपरा और सामाजिक बहुलता का ही रंग है ।

होली के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है । इस संबंध में कहा जाता है कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने का आदेश दे रखा था । किन्तु उसके पुत्र प्रहलाद ने अपने पिता के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया ।

उसके पिता द्वारा बार-बार समझाने पर भी जब वह नहीं माना तो दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के अनेक प्रयास किए, किन्तु उसका वह बाल भी बांका न कर सका । प्रह्लाद जनता में काफी लोकप्रिय भी था । इसलिए दैत्यराज हिरण्यकश्यप को यह डर था कि अगर उसने स्वयं प्रत्यक्ष रूप से प्रह्लाद का वध किया तो जनता उससे नाराज हो जाएगी ।

इसलिए वह प्रह्लाद को इस तरह मारना चाहता था कि उसकी मृत्यु एक दुर्घटना जैसी लगे । दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में जलेगी नहीं । मान्यता है कि होलिका नित्य प्रति कुछ समय के लिए अग्नि पर बैठती थी और अग्नि का पान करती थी ।

हिरण्यकश्यप ने होलिका की मदद से प्रह्लाद को मारने की ठानी । उसने योजना बनाई कि होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में वैठ जाए तो प्रह्लाद मारा जाएगा और होलिका वरदान के कारण बच जाएगी । उसने अपनी उस योजना से होलिका को अवगत कराया । पहले तो होलिका ने इसका विरोध किया लेकिन बाद में दबाव के कारण उसे हिरण्यकश्यप की बात माननी पड़ी ।

योजना के अनुसार होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई और लकड़ियों में आग लगा दी गई । प्रभु की कृपा से वरदान अभिशाप बन गया । होलिका जल गई, मगर प्रह्‌लाद को आंच तक न पहुंची । तब से लेकर हिन्दू फाग से एक दिन पहले होलिका जलाते हैं ।

इस त्यौहार को ऋतुओं से संबंधित भी बताया जाता है । इस अवसर पर किसानों द्वारा अपने खेतों में उगाई फसलें पककर तैयार हो जाती हैं । जिसे देखकर वे झूम उठते हैं । खेतों में खड़ी पकी फसल की बालियों को भूनकर उनके दाने मित्रों व सगे-संबंधियों में बांटते हैं ।

होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी होती है । इस दिन सुबह आठ बजे के बाद से गली-गली में बच्चे एक-दूसरे पर रंग व पानी डाल होली की शुरूआत करते हैं । इसके बाद तो धीरे-धीरे बड़ों में भी होली का रंग चढ़ना शुरू हो जाता है और शुरू हो जाता है होली का हुडदंग । अधेड़ भी इस अवसर पर उत्साहित हो उठते हैं ।

दस बजते-बजते युवक-युवतियों की टोलियां गली-मौहल्लों से निकल पड़ती हैं । घर-घर जाकर वे एक दूसरे को गुलाल लगा व गले मिल होली की बधाई देते हैं । गलियों व सड़कों से गुजर रही टोलियों पर मकानों की छतों पर खड़े लोगों द्वारा रंग मिले पानी की बाल्टियां उंडेली जाती हैं । बच्चे पिचकारी से रंगीन पानी फेंककर व गुब्बारे मारकर होली का आनन्द लेते हैं । चारों ओर चहल-पहल दिखाई देती है ।

जगह-जगह लोग टोलियों में एकत्र हो ढोल की थाप पर होली है भई होली है की तर्ज पर गाने गाते हैं । वृद्ध लोग भी इस त्यौहार पर जवान हो उठते हैं । उनके मन में भी उमंग व उत्सव का रंग चढ़ जाता है । वे आपस में बैठ गप-शप व ठिठोली में मस्त हो जाते हैं और ठहाके लगाकर हंसते हैं ।

अपराह्‌न दो बजे तक फाग का खेल समाप्त हो जाता है । घर से होली खेलने बाहर निकले लोग घर लौट आते हैं । नहा-धोकर शाम को फिर बाजार में लगे मेला देखने चल पड़ते हैं । मुगल शासन काल में भी होली अपना एक अलग महत्व रखती थी । जहांगीर ने अपने रोजनामचे तुजुक-ए-जहांगीरी में कहा है कि यह त्यौहार हिंदुओं के संवत्सर के अंत में आता है ।

इस शाम लोग आग जलाते हैं जिसे होली कहते हैं । अगली सुबह होली की राख एक-दूसरे पर फेंकते व मलते हैं । अल बरुनी ने अपने यात्रा वृत्तांत में होली का बड़े सम्मान के साथ उल्लेख किया है । ग्यारहवीं सदी की शुरूआत में जितना वह देख सका, उस आधार पर उसने बताया कि होली पर अन्य दिनों से अलग हटकर पकवान बनाए जाते हैं ।

इसके बाद इन्हें ब्राह्मणों को देने के बाद आपस में आदान-प्रदान किया जाता है । अंतिम मुगल बादशाह अकबरशाह सानी और बहादुरशाह जफर खुले दरबार में होली खेलने के लिए प्रसिद्ध थे । बहादुरशाह जफर ने अपनी एक रचना में होली को लेकर उन्होंने कहा है कि:

क्यों मोपे रंग की डारे पिचकारी देखो सजन जी दूंगी मैं गारी भाग सकूं मैं कैसे मोसो भागा नहिं जात ठाड़ी अब देखूँ और तो सनमुख गात

इस दिन अपने आप में एक बुराई लिए हुए भी है । लोग मदिरापान आदि कर आपस में ही लड़ पड़ते हैं । वे उमंग व उत्साह के इस त्यौहार को विवाद में बदल देते हैं । कुछ सामाजिक संस्थाओं द्वारा इस दिन शाम को हास्य सम्मेलन, कवि गोष्ठियां आदि आयोजित की जाती हैं व मूर्ख जुलूस निकाले जाते हैं ।


5. होली | Paragraph on Holi in Hindi Language

रंगों का त्योहार होली, हिन्दुओं के चार बड़े पर्वों में से एक है । यह पर्व फाल्गुनी पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात् चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में धूमधाम से मनाया जाता है । वसन्त ऋतु वैसे भी ऋतुराज के नाम से जानी जाती है । इसी प्रकार फाल्गुन का महीना भी अपने मादक सौन्दर्य तथा वासन्ती पवन से लोगों को हर्षित करता है ।

हमारा प्रत्येक पर्व किसी-न-किसी प्राचीन घटना से जुड़ा हुआ है । होली के पीछे भी एक ऐसी ही प्राचीन घटना है जो आज से कई लाख वर्ष पहले सत्ययुग  में घटित हुई थी । उस समय हिरण्यकश्यप नाम का एक दैत्यराजा आर्यावर्त्त में राज्य करता था । वह स्वयं को परमात्मा कहकर अपनी प्रजा से कहता था कि वह केवल उसी की पूजा करें । निरुपाय प्रजा क्या करती, डर कर उसी की उपासना करती ।

उसका पुत्र प्रह्लाद, जिसे कभी नारद ने आकर विष्णु का मंत्र जपने की प्रेरणा दी थी, वही अपने पिता की राय न मानकर रामनाम का जप करता था । ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, उसका प्रिय मंत्र था ।

अपने पुत्र के द्वारा की जाने वाली राजाज्ञा की यह अवहेलना हिरण्यकश्यप से सहन न हुई और वह अपने पुत्र को मरवाने के लिए नाना प्रकार के कुचक्र रचने लगा । कहते हैं जब प्रह्लाद किसी प्रकार भी उसके काबू में नहीं आया तो एक दिन उसकी बहन होलिका, जो आग में जल नहीं सकती थी – अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर जलती आग में कूद गई । किन्तु प्रह्लाद का बाल-बाँका नहीं हुआ और होलिका भयावह आग में जलकर राख हो गई ।

इस प्रकार होली एक भगवद्‌भक्त की रक्षा की स्मृति में प्रतिवर्ष मनाई जाने लगी । होली पूजन वस्तुत: अग्निपूजन है जिसके पीछे भावना यह होती है कि हे अग्नि देव  जिस प्रकार आपने निर्दोष प्रह्लाद को कष्टों से उबारा, उसी प्रकार आप, हम सबकी दुष्टों से रक्षा करें, प्रसन्न हों ।

होली पूजन का एक रहस्य यह भी है कि फाल्गुन के पश्चात् फसल पक जाती है और खलिहान में लाकर उसकी मड़ाई-कुटाई की जाती है । इस मौके पर आग लग जाने से कभी-कभी गांव के गांव तथा खलिहान जलकर राख हो जाते हैं । होलिका पूजन के द्वारा किसान अग्नि में विविध पकवान, जौ की बालें, चने के पौधे आदि डालकर उसे प्रसन्न करते रहे हैं कि वह अपने अवांछित ताप से मानव की रक्षा करे । कितना ऊँचा शिव संकल्प था ।

होली का त्योहार वैसे लगभग पूरे भारत में मनाया जाता है किन्तु ब्रज मण्डल में मनाई जाने वाली होली का अपना अलग ही रंग-ढंग है । बरसाने की लट्ठमार होली देखने के लिए तो देश से क्या, विदेशों से भी लोग आते हैं । इसमें नन्द गांव के होली खेलने वाले पुरुष जिन्हें होरिहार कहते हैं, सिर पर बहुत बड़ा पग्गड़ बांधकर बरसाने से आई लट्ठबन्द गोरियों के आगे सर से रागों में होली गाते हैं और बरसाने की महिलाओं की टोली उनके ऊपर लाठी से प्रहार करती हैं ।

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पुरुष स्वयं को वारों से बचाते हुए होली गाते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं । एकाध बार भूल से चोट लग जाने के अलावा सारा वातावरण रसमय होता है तथा लोग आपस में प्रेम और स्नेह से मिलकर पकवान खाते हैं ।

यह सिलसिला काफी समय से चला आ रहा है तथा हर साल इसे देखने के लिए कई हजार स्त्री-पुरुष जमा होते हैं । ब्रज की होली के अतिरिक्त नाथद्वारा में होली का ठाट-बाट ज्यादा राजसी होता है । मथुरा, वृन्दावन में भी होली का सुन्दर रूप देखने को मिलता है तथा लोग नाचरंग करते हुए होली गाते और आनन्द मनाते हैं ।

होली सामाजिक तथा विशद्ध रूप से हिन्दुओं का त्योहार है किन्तु ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि मुसलमान शासक भी इस रंगारग त्योहार को धूमधाम से मनाते थे । लखनऊ में वाजिद अली शाह का नाम ऐसे शासकों में अग्रणी माना जाता है ।

वे कृष्ण पर कविता करते, होली लिखते तथा होली के अवसर पर कैसर बाग में नाच-गाने की व्यवस्था कराते थे । वाजिद अली, हिन्दु-मुसलमानों के बीच स्नेह और प्यार को प्रोत्साहन देने वाले एक बहुत अच्छे शासक थे ।

होली का शहरों में स्वरूप गांवों से थोड़ा भिन्न होता है । कुछ शहरों में तो होली मनाने का तरीका अभद्रता की सीमा पार कर जाता है जिसे रोका जाना जरूरी है । होली के अवसर पर कुछ लोग ज्यादा मस्ती में आ जाते हैं । वे मादक द्रव्यों का सेवन करके ऐसी हरकतें करते हैं जिनको कोई सभ्य समाज क्षमा नहीं कर सकता ।


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