रक्षा बन्धन | Raksha Bandhan in Hindi!
भारत त्योहारों का देश है । रक्षा बन्धन जैसा पवित्र त्योहार भी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है । यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इसीलिए इसे ‘श्रावणी’ भी कहते हैं ! रक्षा का यह बन्धन भाई-बहन की पवित्रता का परिचायक है ।
रक्षा बन्धन का एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण भी है । गुजरात के अत्याचारी शासक बहादुरशाह ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया और चित्तौड़ की रानी कर्मवती को अपनी सुरक्षा की कोई आशा दिखाई नहीं दी, तो उन्होंने अपने राज्य को बचाने के लिए मुसलमान शासक हुमायूं के पास राखी भेजी ।
हुमायूं पारस्परिक कटुता को भूलकर राखी के पवित्र स्नेह में बंधा हुआ चित्तौड़ चला आया । लेकिन रानी हुमायूं के वहां पहुँचने से पहले ही 1200 क्षत्रानियों के साथ जौहर की चिता में जल गई थी । हुमायुं ने कर्मवती की राखी का पूरा सम्मान करते हुए चित्तौड़ की रक्षा की ।
जनश्रुति के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्य युद्ध हुआ । राक्षसों का पलड़ा भारी हो गया और देवता हारने लगे । तब इन्द्र की पत्नी शावीं ने इन्द्र को राखी बांधी । इस रक्षा सूत्र से इन्द्र विजयी हुए और राक्षस परास्त ।
विश्व विजय की आशा रखने वाला सिकन्दर और पोरस के मध्य जब युद्ध हुआ तो सिकन्दर की यूनानी प्रेमिका ने पोरस के हाथों पर राखी बांधकर यह वचन लिया कि वह अपने हाथों से सिकन्दर का वध नहीं करेगा । युद्ध में पोरस को सिकन्दर को मारने का अवसर मिला लेकिन उसने उसे छोड़ दिया ।
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मुस्लिम शासल काल में यवन कन्या को बलात् उठाकर ले जाते थे । इसीलिए कन्या किसी बलशाली पुरुष को राखी बांधकर अपनी रक्षा का वचन उस से ले लेती थी । धार्मिक क्षेत्र में भी रक्षा बन्धन का विशेष महत्व है । कहा जाता है कि इसी दिन विष्णु ने वामन रूप धारण कर घमण्डी राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी । भगवान विष्णु ने दो पगों में सम्पूर्ण भूमि को नाप डाला और तीसरा पग उसके सिर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया ।
तब से ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते हैं और आशीर्वाद लेते हैं । बदले में उन्हें दक्षिणा मिलती है । ब्राह्मण यज्ञोपवीत भी इसी दिन धारण करते हैं । प्राचीन जैन ग्रन्थों में विष्णु कुमार द्वारा राजा बलि के शिकंजे से 700 मुनियों को आज ही के दिन स्वतन्त्र कराने का वर्णन मिलता है ।
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देश के कोने-कोने में रक्षा बन्धन मनाया जाता है । औरतें प्रात: काल घरों को साफ करके मिठाइयां बनाती हैं । बहने अपने भाइयों के मस्तक पर तिलक लगाती हैं, हाथों पर राखी बांधती हैं और आरती करते समय उनके लिए ईश्वर से दीर्घायु और उनकी सफलता की कामना करती हैं, उन्हें तरह-तरह के पकवान और मिठाइयां खिलाती हैं ।
बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है और अपनी सामर्थ्यानुसार धन और उपहार भेंट करता है । जो बहनें बहुत दूर रहती हैं और अपने भाइयों को राखी नहीं बांध पाती वे डाक द्वारा उन तक राखी पहुँचाती हैं । रक्षा बन्धन पवित्र भावनाओं का य-धन है ।
जो हमें कर्त्तव्य परायणता की ओर उम्मुख करता है । वर्तमान समय में रक्षा कथन की पवित्र भावनाएं लुप्त होती जा रही हैं । हमें भौतिकवादी दृष्टिकोण का परित्याग कर विशुद्ध भावनात्मक स्तर पर इस त्योहार को मनाना चाहिए । तभी हम इस पर्व की पवित्रता को सम्भाल कर रख सकेंगे, अन्यथा नहीं ।