रक्षाबंधन पर निबन्ध | Essay For Kids on Rakshya Bandhan in Hindi!

1. भूमिका:

माता-पिता के बाद व्यक्ति का सबसे निकट संबंध भाई और बहन के साथ रहता है । भाई-बहन का प्रेम अत्यंत प्राकृतिक (Natural) और पवित्र (Pure) माना जाता है जिसमें किसी प्रकार का स्वार्थ (Selfishness) या लोभ (Greed) नहीं रहता ।

इसी पवित्र प्रेम को एक दूसरे के प्रति प्रकट करने के लिए तथा भाई-बहन के बीच राखी का अटूट (Unbreakable) बंध (Tie) दर्शाने हैतु रक्षाबंधन के त्योहार (Festival) की परंपरा (Custom) हमारे देश में है ।

2. इतिहास:

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रक्षाबंधन की कहानियाँ हमारे देशके-पुराने धर्मग्रंथों में भी मिलती हैं । कहा जाता है कि एक बार यमराज अपनी बहन कालिंदी (यमुना) के पास उनसे मिलने गए थे । कालिंदी ने उनकी कलाई (Wrist) पर राखी बाँधी और बदले में यमराज से वरदान प्राप्त किया कि जो कोई कालिंदी अर्थात् यमुना में स्नान करेगा, उस पर यमराज की छाया तक नहीं पड़ेगी । इसी प्रकार श्रीकृष्ण और सुभद्रा की कथा, मेवाड़ की महारानी कर्णवती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजे जाने की कथा इतिहास के पन्नों पर सुनहरे (Golden) अक्षरों में अंकित है ।

3. आयोजन:

इसी परंपरा की रक्षा करते हुए आज भी समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन का त्योहार हर वर्ष श्रावण-मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी का कच्चा धागा (Thread) बाँधती हैं, उनके मस्तक पर तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं और मुँह मीठा कराती हैं तथा भाई की लम्बी आयु और उन्नति की कामना करती हैं ।

भाई अपनी बहन को सदा रक्षा का वचन देता है । रक्षाबंधन का पर्व आने पर बाजार रंग-बिरंगी राखियों से भर जाता है । राखी की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लग जाती है । देश के अनेक भागों में यह पर्व बड़े धूमधाम से (Vigourously) मनाया जाता है । दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में सरकारी छुट्‌टियों रहती हैं । इस अवसर पर तरह-तरह के तमाशों खेलों और रंगारंग कार्यक्रमों (Cultural programmes) का भी आयोजन किया जाता है ।

4. उपसंहार:

अपने देश में कई वर्ष पहले तक राखी के धागों का मूल्य (Value) बहुत अधिक था । बहनें पूरी श्रद्धा से (Whole Heartely) भाइयों के लिए मंगल कामना (Well-Wishing) करती थीं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते थे ।

एक राखी की लाज रखने के लिए हुमायूँ के दिल में रानी कर्णवती से दुश्मनी भुलाकर उसकी रक्षा करने की भावना पैदा कर दी थी । आज यह पर्व मात्र लेन-देन का माध्यम बन गया है । जरूरत है कि फिर से इस पर्व के लिए पवित्र भावना पैदा हो ।