रक्षा बंधन पर निबंध | Essay on Rakhsha Bandhan!
रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम का त्योहार है । यह प्रत्येक वर्ष सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस दिन बहन सुबह ही स्नान कर तैयार हो जाती है । इसके बाद वह थाली में आरती का सामान सजाकर भाई की आरती उतारती है और भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांध देती है । साथ ही भाई का मुंह मिठाईयों से भर देती है । भाई भी बदले में बहन को रूपये एवं अन्य उपहार देता है । भाई को राखी बांधते समय बहन की यह कामना रहती है कि मेरा भाई सुखी और ऐश्वर्यशाली बने । और भाई बहन की रक्षा करने का वचन लेता है ।
ADVERTISEMENTS:
प्राचीन समय मे राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी । इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा ।
राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है । मुगल काल के दौर में जब मुगल बादशाह हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लीआ । हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज निभाने के लिए चितौड की रक्षा हेतु बहादुरेशोंहे के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और मेवाड़ राज्य की रक्षा की ।
रक्षा बंधन से संबंधित दूसरी घटना भी है, कि सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया । पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया ।
ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी । युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया । सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया । यह है रक्षा बंधन का पवित्र भाव ।
रक्षा बंधन मानवीय भावों का बंधन है । यह प्रेम, त्याग और कर्तव्य का बन्धन है । इस बंधन में एक बार भी बंध जाने पर इसे तोड़ना बड़ा कठिन है । इन धागों में इतनी शक्ति है, जितनी लोहे की जंजीर में भी नहीं । जिस प्रकार हुमायूँ ने इसी धागे से बंधे होने के कारण बहादुरशाह से लड़ाई की ठीक उसी प्रकार इस दिन हर भाई को यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी बहन की रक्षा करेगा। यही रक्षा-बंधन पर्व का महान् संदेश है ।