काली पूजा पर अनुच्छेद | Paragraph on Kali Puja in Hindi
प्रस्तावना:
बंगाल में काली पूजा एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मनाई जाती है । यह वहाँ का बड़ा प्रमुख त्यौहार है । दुर्गा-पूजा के बाद इसी का नम्बर आता है । काली देवी को देवी दुर्गा का दूसरा रूप माना जाता है । कई राक्षसों का संहार करने तथा अन्य महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं को निभाने के लिए उन्होंने काली का रूप ग्रहण किया था ।
इसलिए कहा जा सकता है कि दुर्गा का अन्य नाम ही काली है । यह पूजा बंगाल में दीवाली के दिन की जाती है, जबकि उत्तर भारत में दीवाली पर लक्ष्मी पूजन होता है ।
काली की प्रतिमा:
काली देवी के चार हाथ दिखाए जाते हैं । काली की प्रतिमा में उन्हें लम्बी जीभ निकाले दिखाया जाता है । उनका एक पैर उनके पति भगवान् शंकर की छाती पर होता है । भगवान् शंकर उनके पैरों के पास लेटे हुए दिखाये जाते हैं ।
काली की प्रतिमा को वस्त्र नहीं पहनाये जाते । वे राक्षसों के सिरों की मुण्डमाला पहने होती हैं । उनके बाल बिखरे हुए और जटाओं जैसे दीखते है । उनकी लम्बी जीभ से राक्षसों का खून टपकता दिखाई देता है ।
काली पूजा का प्रारम्भ:
काली पूजा मुख्य रूप से एक तांत्रिक अनुष्ठान या पूजा है । काली पूजा के प्रारम्भ होने से एक पौराणिक कथा जुडी है । इस कथा के अनुसार एक समय शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो बलवान और प्रतापी राक्षस थे । वे संतों और देवताओं को बहुत पीड़ा पहुंचाते थे ।
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उनके अत्याचारों से जब देवता परेशान हो गए, तो वे देवी दुर्गा की शरण में गए और उनसे इन राक्षसों के संहार की प्रार्थना की । उनके काले कारनामों को सुनकर देवी दुर्गा बहुत नाराज हुईं और उन्होने तत्काल अपने आपको काली के रूप में बदल लिया ।
उन्होंने यह विकराल रूप राक्षसों को डराने के लिए धारण किया । उन्होंने राक्षसों का संहार कर दिया । इस युद्ध के दौरान मा काली बड़ी क्रोधित हो गई । उनके विकराल और प्रचंड रूप और संहार शक्ति को देखकर ऐसा लगा कि वे थोड़े ही समय में सारे संसार को नष्ट कर देंगी ।
अब देवता पुन: व्याकुल हो गए । वे काली को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उन्होंने एक न सुनी । हार कर शंकर उनके पैर भगवान शंकर की छाती पर पड़ गया । ज्यों ही उन्होंने भगवान शंकर पर अपना पैर देखा उनका साल क्रोध दूर हो गया और आश्चर्य से उनकी जीभ बाहर निकल आई । उनके इसी रूप का बंगाल में पूजा की जाती है ।
पूजा का महत्व:
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मां काली के अनेक भक्त हैं । वे काली के जन्म का बड़ा गहरा अर्थ लगाते है । उनका मत है कि राक्षसों का अर्थ मनुष्यों की बुरी भावनाओं से है । काली का अभिप्राय शक्ति चपे स्रोत से है तथा शिव ज्ञान का प्रतीक हैं । शक्ति द्वारा, ज्ञान के सहारे बुरी भावनाओं पर विजय पाकर सच्चाई प्राप्त होती है ।
उपसंहार:
काली पूजा में बंगाल में बहुत से पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है । वध स्थल पर बकरों, भेड़ों आदि को कटते देख अच्छे-अच्छों का दिल दहल जाता है । लोगों का विश्वास है कि बलि चढ़ाने से काली मां प्रसन्न होकर आर्शीवाद देती है । वे सभी का कल्याण चाहती हैं ।