Here is a compilation of Essays on ‘Festivals’ for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Indian Festivals’ especially written for Kids, School and College Students in Hindi Language.
List of Essays on Indian Festival, Celebrated across India
Essay Contents:
- भारतिय त्योहार । Essay on Indian Festivals in Hindi Language
- दुर्गापूजा | Essay on Durga Puja in Hindi Language (Indian Festival)
- रक्षा-बंधन | Paragraph on Raksha Bandhan for Kids in Hindi Language (Indian Festival)
- जन्माष्टमी | Essay on Janmasthami for School Students in Hindi Language (Indian Festival)
- ईद | Paragraph on Eid in Hindi Language
- दीपों का त्योहार ‘दीपावली’ | Essay on Diwali for College Students in Hindi Language (Indian Festival)
- क्रिसमस (25 दिसम्बर) | Essay on Christmas for Kids in Hindi Language
1. भारतिय त्योहार । Essay on Indian Festivals in Hindi Language
त्यौहार समय-समय पर आकर हमारे जीवन में नई चेतना, नई स्फूर्ति, उमंग तथा सामूहिक चेतना जगाकर हमारे जीवन को सही दिशा में प्रवृत्त करते हैं । ये किसी राष्ट्र एवं जाति-वर्ग की सामूहिक चेतना को उजागर करने वाले जीवित तत्व के रूप में प्रकट हुआ करते हैं ।
कोई राष्ट्र त्यौहारों के माध्यम से अपने सामूहिक आनद को उजागर किया करते हैं । व्यक्ति का मन आनंद तथा मौजप्रिय हुआ करता है । वह किसी न किसी तरह उपाय करके अपने तरह-तरह के साधन और आनंद-मौज का सामान जुटाता ही रहता है ।
इसके विपरीत त्यौहार के माध्यम से प्रसन्नता और आनंद बटोरने के लिए पूरे समाज को सामूहिक रूप से सघन प्रयास करना पड़ता है । समाज के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपनी-अपनी घर परिवार की सीमा में रहकर किया गया एक ही प्रकार का हुआ करता है अत: उसे भी सामूहिकता सामाजिकता या सामूहिक प्रयासों के अंतर्गत रखा जा सकता है ।
जैसे-दीपावली का त्यौहार मनाते हैं तो सभी लोग अपने-अपने घर पूजा करते हैं अपने घर-परिवार में बाँटते खाते हैं पर यह सब एक ही दिन, एक ही समय लगभग एक समान ढंग से किया जाता है और इसका प्रभाव भी सम्मिलित दिखाई देता है इस सारी प्रक्रिया को सामूहिक स्तर पर की गई आनन्दोत्साह की अभिव्यक्ति ही माना जाता है ।
त्यौहारों का महत्व अन्य कई दृष्टियों से समझा एवं देखा जा सकता है । त्यौहारों के अवसर पर घर-परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को करीब आने, मिल बैठने, एक-दूसरे के सुख-आनंद को साँझा बनाने के सुयोग भी प्रदान किया करते हैं । इतना ही नहीं कई बार त्यौहार जाति-धर्म की भावनाओं को भी समाप्त कर देने में सिद्ध हुए हैं ।
त्यौहार व्यक्तियों को आमने-सामने अपने पर परस्पर समझने-बूझने का अवसर तो देते ही हैं भावना के स्तर पर परस्पर जुड़ने या एक होने का संयोग भी जुटा दिया करते हैं क्योंकि त्यौहार मनाने की चेतना सभी में एक सी हुआ करती है ।
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त्यौहारों का संबंध किसी राष्ट्र की किसी परंपरागत चेतना, राष्ट्रीय धरोहर महत्वपूर्ण घटना, महत्वपूर्ण व्यक्तित्व स्थान, शोध-परिशोध के साथ हुआ करता है । वह क्या कहाँ और कैसे घटित या संपन्न हुआ जैसी सभी तरह की ऐतिहासिक बातों एवं तथ्यों से हम लोग त्यौहार मनाकर और जानकर ही परिचित हो पाते हैं ।
इस प्रकार त्यौहार वर्तमान और अतीत के साथ जुड़े साबित हुआ करते हैं । वह समाज और व्यक्ति को अपने जड़ मूल से अपने मौलिक तत्वों से जोड़ा करते हैं । यहाँ गण्तन्त्र दिवस या स्वतन्त्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय त्यौहारों का उदाहरण दिया जा सकता है ।
स्वतंत्रता दिवस का त्यौहार मनाकर हमारा सारा देश और समाज अपने-आप को उन कठिन क्षणों के साथ जोड़ने या उन्हे दोहराने का प्रयास किया करते हैं कि जब राष्ट्र की स्वतंत्रता और आन के मोर्चे पर डटकर सारा देश एक जुट होकर संघर्ष कर रहा था ।
इसी तरह गणतंत्र दिवस हमें निकट अतीत के उन क्षणों के साथ जोड़ता है जब स्वतंत्र भारत का अपना सविधान बनाकर उसे लागू किया गया, देश को एक लोकतंत्रीय व्यवस्था वाला राज्य घोषित किया गया । इस प्रकार त्यौहार मनाने का एक महत्व किसी राष्ट्र के वर्तमान को अतीत के साथ जोड़कर उसकी चुनौतियों के प्रति सावधान करना भी है ।
प्रत्येक त्यौहार अपने भीतर कई प्रकार के आदर्श माने एवं मूल्य भी संजोए रखता है सो उन्हे मानकर मनाने वाले उन सबसे परिचित तो हुआ ही करते हैं उन्हे बनाए रखने की तत्परता और दृढता भी सीखा करते हैं । त्यौहार धर्म एवं अध्यात्म भावों को उजागर कर लोक के साथ परलोक सुधार की प्रेरणा भी दिया करते हैं ।
सबसे बड़ी बात यह है कि त्यौहार और पर्व अपने मनाने वालों को उस धरती की सोंधी सुगंध के साथ जोड़ने का सार्थक प्रयास किया करते हैं जिस पर उन्हे धूमधाम से मनाया जाता है । त्यौहार मनाने वाले जन-समाज की विभिन्न रीति-नीतियों की जानकारी भी दिया करते हैं ये जानकारियाँ जन समाज में अपने पर एवं आत्म-सम्मान का भाव बड़े प्रिय ढंग से जाग्रत कर दिया करती है ऐसे भाव रखने वालों को ही त्यौहार मनाने का अधिकार हुआ करता है ।
इस प्रकार त्यौहारों का मूल्य एवं महत्व स्पष्ट है । उन्हें किसी जाति और राष्ट्र की जातीयता, राष्ट्रीयता सामाजिकता एवं सामूहिकता का आनंद उत्साह भरा मुस्कराता हुआ उज्जवल दर्पण भी कहा जा सकता है ।
2. दुर्गापूजा | Essay on Durga Puja in Hindi Language (Indian Festival)
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दुर्गापूजा भारतवर्ष का महत्वपूर्ण त्यौहार है । यह धार्मिक अनुष्ठान मूलत: शक्ति की आराधना के लिए आयोजित किया जाता है । मानसिक, शारीरिक और भौतिक समृद्धि के लिए की जाने वाली आराधना ही दुर्गा की अराधना है जिसे १० दिनों तक मनाया जाता है ।
“दुर्गा”: दुखेन गम्यते प्राप्यतेवा-की आराधना दस पापों अनवधानता, असमर्थता, आत्मवंचकता, आकर्मण्यता, दीनता, भीरुता, परमुखापेक्षिता, शिथिलता, संकीर्णता और स्वार्थपरता से मुक्ति की आराधना है । इसलिए इसे दशहरा के नाम से दुर्गतिनाशनी दारिद्र्यदु : खभयहारिणी मुक्ति प्रदायिनी, विश्वेश वन्ध्या, विश्वेश्वरी दुर्गा की आराधना विभिन्न क्षेत्रों में मनोहर ढंग से मनाया जाता है ।
शरद के मधुमय आगमन के साथ ही माँ दुर्गा की रंग-विरंगी भव्य मुर्तियों का निर्माण आरंभ हो जाता है । महिषासुर की छाती में बरछा धराए हुए दुर्गा का एक पैर महिषासुर की छाती पर रहता है और दूसरा पैर सिंह की पीठ पर ।
रण क्रीड़ा में बिखरे केश, ललाट पर तेजस्विता नयनों में वीरता का दर्प, मुख पर पुर्णेंदुसदृश निर्भीकता, कंद पुष्प की आभा से युक्त आक्लांत यौवन के सर्वाभूषण भूषिता रूप का दर्शन करने के लिए सभी उमड़ पड़ते है । साथ ही पूजामंडप भी उरपनी कलाकृति और साजसज्जा के कारण लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं ।
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दुर्गा के दस हाथों में दस शस्त्र-त्रिशुल खड़ग, चक्र, बाण, शक्ति, गदा, धनुष, पाश अकुंश और फरसा (बरछा) सुशोभित रहता है । उनके दाएं भाग में लक्ष्मी और बाएं भाग में सरस्वती विराजती हैं । लक्ष्मी के दाएं भाग में गणेश और सरस्वती के बाएं भाग में कार्तिकेय विराजते हैं ।
यह समारोह दस दिनों तक अपनी पराकाष्ठा पर रहता है । पूरे क्षेत्र के आबाल-वृद्ध, नर-नारी नवीन वस्त्रों में सुसज्जित हो कर देवी की आराधना और दर्शन करते हैं; प्रसाद चढ़ाते हैं । विभिन्न स्थलों पर मेला का उपायोजन होता है । मेले में विभिन्न प्रकार के झूलनों का आनन्द भी उठाया जाता है ।
दशमी के दिन जुलूस के साथ जय-जयकार करते हुए भक्त जन माँ दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा का नदी में विसर्जन करते हैं । यह उत्सव केवल आनन्द और उल्लास के लिए आयोजित नही होता वरन गूढ रहस्य है । बल महाशक्ति रूपी दुर्गा के पास भी है, आसुरी वृत्ति युक्त राक्षसों के पास भी ।
किन्तु राक्षसों का बल बुद्धिविरहित और अकल्याणकारी है, इसलिए त्याज्य है । माँ का बल कल्याणकारी और विवेक संपन्न है, इसलिए अराध्य और अनुकरणीय है ।
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दुर्गा पूजा के समय पूरे क्षेत्र में सारी रात चहल-पहल रहती है । जिधर देखिए आने-जाने वालों की भीड़ है, मोटरगाड़ियों की आवाजाही है । चारों ओर जगमगाती रोशनी, खुशियों और उमंगों की बहार लुटाती रहती है । किन्तु क्या हमने इस पर्व के रहस्य को जाना है ? इसके मर्म को पहचाना है ? हमें इस पर्व के महत्व और मर्म को भी जानना चाहिए और आसुरी-वृत्ति से संघर्ष कर अपने राष्ट्र को समुन्नति की ओर ले जाना चाहिए ।
3. रक्षा-बंधन | Paragraph on Raksha Bandhan for Kids in Hindi Language (Indian Festival)
हार्दिक-मिलन भाव को प्रकट करने वाले त्योहारों में रक्षा-बंधन का त्योहार एक प्रमुख और आकर्षक त्योहार है । यह त्योहार प्राचीनतम त्योहारों में से एक है और नवीन त्योहार में भी अत्यन्त नवीन है । यह मंगल अभिनिवेश का त्योहार है और प्रेम तथा सौहार्द्र का सूचक भी है ।
उग्तएव रक्षा-बंधन का त्योहार पवित्रता और उल्लास का त्योहार है । रक्षा-बंधन का त्योहार हमारे देश में एक छोर से दूसरी छोर तक बड़ी धमू-धाम से मनाया जाता है । यह त्योहार न केवल हिन्दुओं का ही त्योहार है, अपितु हिन्दुओं की देखा-देखी अन्य जातियों व वर्गों ने भी इस त्योहार को अपनाना शुरू कर दिया है ।
ऐसा इसलिए कि यह त्योहार धर्म और सम्बन्ध की दृष्टि से अत्यन्त पुष्ट और महान् त्योहार है । धर्म की दृष्टि से यह गुरु-शिष्य के परस्पर नियम-सिद्धांतों सहित उनके परस्पर धर्म को प्रतिपादित करने वाला
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है । सम्बन्ध की दृष्टि से यह त्योहार भाई-बहन के परस्पर सम्बन्धों की गहराई को प्रकट करने वाला एक दिव्य और श्रेष्ठ त्योहार है ।
अतएव रक्षा-बंधन का त्योहार एक महान् उच्च और श्रेष्ठ त्योहार ठहरता है । रक्षा-बंधन का त्योहार भारतीय त्योहारों में एक प्राचीन त्योहार है । इस दिन बहन भ्राई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे राखी (रक्षा-सूत्र) बांधती है । भाई उसे हर स्थिति से रक्षा करने का वचन देता है ।
इस प्रकार रक्षा-बंधन भाई-बहन के पावन-स्नेह का त्योहार है । धार्मिक दृष्टि से इस त्योहार का आरम्भ और प्रचलन अत्यन्त प्राचीन है । विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लिया था, तब उन्होंने सुप्रसिद्ध अभिमानी दानी राजा बलि से केवल तीन पग धरती दान में माँगी थी ।
बलि द्वारा स्वीकार करने पर भगवान वामन ने सम्पूर्ण धरती को नापते हुए बलि को पाताल में भेज दिया । इस कथा में कुछ धार्मिक भावनाओं को जोड़कर इसे रक्षा-बंधन के रूप में याद किया जाने लगा । उसी स्मृति में इस त्योहार का प्रचलन हुआ ।
परिणामस्वरूप आज भी ब्राह्मण अपने यजमानों से दान लेते हैं और उनको रक्षा-सूत्र बांधते हैं । इस रक्षा-सूत्र-बंधन के द्वारा उन्हें विविध प्रकार के आर्शीवाद भी देते हैं । इसी पवित्र विचारधारा से प्रभावित होकर श्रद्धालु ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा करते हैं और उन्हें भगवान के रूप में अपनी श्रद्धा-भावना भेंट करते हैं ।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इस त्योहार का आरम्भ मध्यकालीन भारतीय इतिहास के उस पृष्ठ से स्वीकार किया जाता है । यह मुगलकालीन शासन-काल से सम्बन्धित है । इसके अनुसार जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया , तब सुरक्षा का ओर कोई रास्ता न देखकर महारानी कर्मवती अपने पर आई हुई इस आकस्मिक आपदा से आत्मरक्षा की बात सोचकर दुःखी हो गई ।
उसने और कोई उपाय न देखकर हुमायूँ के पास रक्षा-बंधन का सूत्र भेजा और अपनी सुरक्षा के लिए उसे भाई कहते हुए सादर प्रार्थना की ।
बादशाह हुमायूँ इससे बहुत ही प्रभावित हुआ । इस प्रेम से भरे हुए रक्षा-सूत्र को हृदय से स्वीकार करते हुए वह चित्तौड़ की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी सेना लेकर बहन कर्मवती के पास पहुँच गया । आज रक्षा-बंधन का त्योहार समस्त भारत में बहुत खुशी और स्नेह भावना के साथ प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में श्रवण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं ।
इस दिन वहनें पवित्र भावनाओं के साथ अपने भाइयों को टीका लगाती है । उन्हें मिष्ठान्न खिलाती हैं । वे उनकी आरती उतार कर उनको राखी (राखी-सूत्र) बाँधती हैं । भाई यथाशक्ति उन्हें इसके उपलक्ष्य में कुछ-न-कुछ अवश्य भेंट करता है ।
गुरु, आचार्य, पुरोहित आदि ब्राह्मण प्रवृत्ति के व्यक्ति अपने शिष्य और यजमानों के हाथ में रक्षा-सूत्र बांधकर उनसे दान प्राप्त करते हैं । हमें इस महान् और पवित्र त्योहार के आदर्श की रक्षा करते हुए इसे नैतिक भावों के साथ खुशी-खुशी मनाना चाहिए ।
4. जन्माष्टमी | Essay on Janmasthami for School Students in Hindi Language (Indian Festival)
जन्माष्टमी का त्योहार हमारे देश के एक छोर से दूसरे छोर तक बड़े उल्लास और आनन्द के साथ मनाया जाता है । यह त्योहार होली, दीवाली, दशहरा आदि की तहर विशुद्ध रूप से धार्मिक त्योहार है । यह पवित्रता, स्वच्छता और विशुद्धता का प्रतीक है ।
इस त्योहार से श्रद्धा और विश्वास के साथ-साथ सात्त्विक भावों का उदय होता है । मुख्य रूप से यह त्योहार आत्म-विश्वास और आत्म-चेतना का प्रेरक और संवाहक है । जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद के कृष्ण-पक्ष की अष्टमी की रात्रि को मनाया जाता है । यों तो इस त्योहार का आयोजन इसकी प्रमुख तिथि से कई दिन पूर्व आरम्भ हो जाता है ।
कृष्ण के बाल-स्वरूप की आराधना-उपासना के अन्तर्गत उनके ईश्वरीय स्वरूप का चिंतन-मनन किया जाता है । बालक श्रीकृष्ण की विभिन्न बाल-लीलाओं को आधार बनाकर नाटक, परिसंवाद या नृत्य-कलाएं आयोजित की जाती हैं ।
इन सबसे अधिक रोचक और आकर्षक प्रदर्शनियां और झांकियाँ हुआ करती हैं । जन्माष्टमी मनाने के विषय में एक पौराणिक कथा है । श्रीमद्भागवद् पुराण के अनुसार द्वापर युग में मधुरा का राजा कंस बड़ा ही अत्याचारी और नृशंस था ।
वह जब अपनी बहन देवकी को विवाह के बाद उसकी ससुराल पहुंचाने के लिए रथ पर ले जा रहा था, तब उस समय यह आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को तुम इतने लाड़-प्यार के साथ विदा कर रहे हो, उसी की आठवीं संतान तुम्हारी मृत्यु का कारण होगी ।
कंस इस आकाशवाणी को सुनकर घबरा गया । उसने हड़बड़ाकर अपनी बहन देवकी को जान से मारने के लिए तलवार खींच ली थी । तब कंस को वसुदेव ने धैर्य देते हुए समझाया, ‘जब इसके ही पुत्र से आपकी मृत्यु होगी, तब इसे आप बन्दी बना लीजिए और इसका जो भी पुत्र होगा, यह आपको एक-एक करके दे दिया करेगी । आप जो चाहे वह कीजिएगा ।
कंस ने वसुदेव की बातें मान लीं और देवकी तथा वसुदेव को जेल में डाल दिया । इन पर कड़ी निगरानी रखने का सख्त आदेश भी दिया । कहा जाता है कि कंस ने देवकी के एक-एक करके सात पुत्रों को पटक-पटक कर मार डाला । आठवें पुत्र कृष्ण की जगह पर वसुदेव ने अपने मित्र नन्द की पुत्री को आकाशवाणी के अनुसार कंस को दे दिया ।
कंस ने पुत्र या पुत्री का विचार न करके क्रोध और भय के फलस्वरूप उस कन्या को जैसे ही पटकने के लिए प्रयत्न किया, वैसे ही वह कन्या उसके हाथ से छूटकर यह उग्रकाशवाणी करती हुई निकल गयी- ”हे कंस जिसके भय से तुमने मुझे मारना चाहा है, वह जन्म ले चुका है और गोकुल पहुँच चुका है ।”
कंस इस आकाशचाणी को सुनकर सहम गया । किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर वह क्रोध से विक्षिप्त हो उठा । उसने आदेश दिया कि आज जो भी बच्चे पैदा हुए हैं, उन्हें मार डालो । ऐसा ही किया गया । उसने गोकुल में भी अपने प्रतिनिधियों पूतना जैसी मायावनी को भेजकर कृष्ण को मार डालने की कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कृष्ण तो परब्रह्म परमेश्वर के अवतार थे ।
इसलिए उनका कुछ भी बाल-बांका न हो सका । इसके विपरीत श्रीकृष्ण ने न केवल कंस के प्रतिनिधियों को मार डाला । अपितु कंस की ही जीवन-लीला को समाप्त कर दिया । भगवान् श्रीकृष्ण की इस परम लीला की झांकी और प्रदर्शनी जन्माष्टमी के दिन प्राय: प्रत्येक श्रद्धालुओं के द्वारा इस जन्माष्टमी के पावन समय पर प्रस्तुत की जाती है ।
भगवान् श्रीकृष्ण के इस चरित्र और जीवन झाँकी की रूप-रेखा के द्वारा हमें उनके स्वरूप के विविध दर्शन और ज्ञान प्राप्त होते हैं । इनमें मुख्य रूप से श्रीकृष्ण का योगी, गृहस्थ, कूटनीतिज्ञ, कलाकार, तपस्वी, महान् पुरुषार्थी, दार्शनिक, प्रशासक, मनस्वी आदि स्वरूप हैं ।
इसके साथ ही साथ श्रीकृष्ण के लोक-रंजक, लोक-संस्थापक और लोक-प्रतिनिधित्व स्वरूप का भी हमें ज्ञान और दर्शन जन्माष्टमी के त्योहार के मनाने से सहज ही प्राप्त हो जाता है । भगवान् धर्म संस्थापनार्थ पापियों के विध्वंसक और साधुओं के रक्षक हैं । यह भी प्रबोध हमें मन और आत्मा से बार-बार हो जाता है ।
जन्माष्टमी के त्योहार को मनाने का ढंग बड़ा ही सहज और रोचक है । इस त्योहार को मनाने के लिए सभी श्रद्धालु सवेरे-सवेरे ही अपने घरों और आवासों की सफाई करके उसे धार्मिक चिन्हों के द्वारा सजाते
हैं । विभिन्न प्रकार के धार्मिक कृत्यों को करते हैं और व्रत रखते हुए श्रीकृष्ण-लीला-गान और श्रीकृष्ण-कीर्तन करते रहते हैं ।
बड़े-बड़े नगरों में तो इस त्योहार को बड़े पैमाने पर सम्पन्न और आयोजित करने के लिए कई दिन पहले से ही तैयारियां आरम्भ हो जाती हैं । नगर की गलियाँ-गलियारे विविध प्रकार की साज-सज्जा से झूम उठते हें । मिठाइयों की दुकानें, कपड़ों की दुकानें, खिलौनों की दुकानें, मन्दिर और अन्य धार्मिक-संस्थानों सहित कई प्रकार के सामाजिक प्रतिष्ठान भी सज-धजकर चमक उठते हैं ।
सबसे अधिक उत्साह बच्चों में होता है । अन्य भक्तगण तो इस त्योहार को सबसे बड़ा आनन्ददायक और उत्साहवर्द्धक के रूप में समझकर अपने तन-मन को न्योछावर करने के लिए प्रस्तुत किया करते हैं । सबेरे से श्रीकृष्ण का मन-ही-मन स्मरण और समर्पण भाव से नाम जपते हुए जन्माष्टमी के त्योहार को कुछ पूजा-पाठ करके दान-पुण्योपरान्त व्रत के रूप में धारण करते हैं ।
भगवान् की मूर्ति या चित्र पर अर्घ्य, अगरु, दीप, फल आदि को चढ़ा कर दिन-भर व्रत को रखते हुए रात को भी धारण किए रहते हैं । कुछ लोग तो अखंड भाव से कम-से-कम जलपान करते हुए व्रत रखते हैं ।
प्राय: सभी भक्तगण दिन भर प्रसाद या स्वच्छ फल या पेय पदार्थ का सेवन करके अर्द्धरात्रि के समय चन्द्रदर्शनोपरान्त ठीक मध्य रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का आनन्द लेते हुए कथा-श्रवण करके प्रसाद लेते हैं । इसके बाद व्रत को समाप्त करते हैं ।
इसके बाद फिर श्रीकृष्ण का जप-जाप करके ध्यान करते हुए निद्रा का आनन्द लेते हैं । कुछ लोग रात्रि भर जागरण किया करते हैं । जन्माष्टमी का त्योहार आर्थिक और कृषि की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व का है । इस दृष्टि से गोपालन और गोरक्षा की भावना पुष्ट होती है ।
इससे हमारे मन और अंतःकरण में श्रीकृष्ण के समस्त जीवन की झाँकी झलकने लगती है । हम अध्यात्मिक और धार्मिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से सबल और पुष्ट होने के लिए नए-नए संकल्पों को दुहराने लगते हैं । इस त्योहार को मनाने से हमें नयी स्कूर्ति, सम्प्रेरणा, नया उत्साह और नवीन आशाओं के प्रति जागृति होती है । अतएव हमें जन्माष्टमी के इस पावन त्योहार को बड़ी पवित्रता के साथ मनाना चाहिए ।
5. ईद | Paragraph on Eid in Hindi Language
ईद इस्लाम धर्म के मानने वालों का प्रमुख आनन्ददायक त्योहार है । यह संसार के मुसलमानों के लिए परोपकार और भाईचारे का संदेशवाहक है । ईद का त्योहार वर्ष में दो बार मनाया जाता है । एक को ईद-उल-फितर कहते हैं और दूसरे को ईद-उल-जुहा।
ईद से पूर्व का महीना रमजान का महीना कहलाता है । इस पूरे महीने में मुसलमान दिन के समय उपवास रखकर अपना सारा वक्त खुदा की इबादत (आराधना) में बिताते हैं और कोई अनैतिक कार्य न करने का प्रयास करते हैं । ईद के शुभ दिन ही उनका खाना-पीना शुरू होता है ।
ईद-उल-फितर के दिन घर-घर में तरह-तरह की मीठी सेवईयाँ पकती हैं और बांटी जाती है । इसलिए इसे ‘मीठी ईद’ भी कहते हैं । इस ईद के दो महीने और नौ दिन बाद चाँद की दस तारीख को एक और ईद मनाई जाती है । यह ईद-उल-जुहा या बकरीद कहलाती है । इस दिन बकरे काटे जाते हैं और उनका मांस इष्ट मित्रों कों बाँटा जाता है ।
ईद के दिन मुसलमान सूरज निकलने के बाद नमाज पढ़ने जाते हैं, जिसमें खुदा (ईश्वर) को धन्यवाद देते हैं कि ”तुम्हारी कृपा से हम रमजान का व्रत रखने में सफल हो गए हैं । इन दिनों में हमारे से जाने-अनजाने में कोई अपराध हो गया हो, तो क्षमा करो ।”
इस शुभ त्योहार पर मुसलमान दान करते हैं, ताकि उनके गरीब भाई भी इस त्योहार को मना सकें । इस दिन बड़ी-बड़ी मस्जिदों और ईदगाहों पर अपार भीड़ रहती है । नमाज पढ़ने के बाद सब एक-दूसरे से ईद मुबारक कहकर गले मिलते हैं । अन्य धर्मों के लोग भी मुसलमानों से गले मिलते हुए ‘ईद मुबारक’ कहते हैं ।
ईद के दिन हर गरीब-अमीर मुसलमान नये-नये कपड़े सिलवाता है । सब लोग उन्हें पहनकर खुशी-खुशी मेले और बाजार में जाते हैं । मिठाइयां और खिलौनों की दुकान पर खूब भीड़ लगी रहती है । खेल-तमाशे वाले भी बच्चों का खूब मनोरंजन करते हैं। ईद प्रेम और सद्भाव का त्योहार है । यह सभी के लिए खुशी का सन्देश लाता है । यह त्योहार प्रेम, एकता और समानता की शिक्षा देता है ।
6. दीपों का त्योहार ‘दीपावली’ | Essay on Diwali for College Students in Hindi Language (Indian Festival)
हिन्दुओं के मुख्य त्योहार होली, दशहरा और दीपावली ही हैं । दीपावली का त्योहार प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है । वैसे इस त्योहार की धूम-धाम कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीय अर्थात् पाँच दिनों तक रहती है ।
दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को आता है । दीवाली के पर्व की यह विशेषता है कि इसके साथ चार त्योहार और मनाये जाते हैं । दीपावली का उत्साह एक दिन नहीं, अपितु पूरे सप्ताह भर रहता है । दीपावली से पहले धन तेरस का पर्व आता है ।
सभी हिन्दू इस दिन कोई-न-कोई नया बर्तन अवश्य खरीदते हैं । धन तरस के बाद छोटी दीपावली; आगे दिन दीपावली, उसके भगले दिन गोवर्द्धन-पूजा तथा इस कड़ी में अंतिम त्योहार भैयादूज का होता है । प्रत्येक त्योहार किसी-न-किसी महत्त्वपूर्ण घटना से जुड़ा रहता है ।
दीपावली के साथ भी कई धार्मिक तथा ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं । इसी दिन विष्णु ने नृसिंह का अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की थी । समुद्र-मंथन करने से लक्ष्मी भी इसी दिन प्रकट हुई थीं । जैन मत के अनुसार तीर्थकर महावीर का महानिर्वाण इसी दिन हुआ था ।
रामाश्रयी सम्प्रदाय वालों के अनुसार चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत कर राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे । उनके आगमन की प्रसन्नता में नगरवासियों ने दीपमालाएँ सजाई थीं । इसे प्रत्येक वर्ष इसी उत्सव के रूप में मनाया जाता है । इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंह औरंगजेब जेल से मुक्त हुए थे ।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द तथा प्रसिद्ध वेदान्ती स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन मोक्ष प्राप्त किया था । इस त्योहार का संबंध ऋतु परिवर्तन से भी है । इसी समय शरद ऋतु का आगमन लगभग हो जाता है । इससे लोगों के खान-पान, पहनावे और सोने आदि की आदतों में भी परिवर्तन आने लगता है ।
नवीन कामनाओं से भरपूर यह त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है । कार्तिक मास की अमावस्या की रात पूर्णिमा की रात बन जाती है । इस त्योहार की प्रतीक्षा बहुत पहले से की जाती है । लोग अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं ।
व्यापारी तथा दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें सजाते हैं तथा लीपते-पोतते हैं । इसी त्योहार से दुकानदार लोग अपने बही-खाते शुरू करते हैं । दीपावली के दिन घरों में दिए, दुकानों तथा प्रतिष्ठानों पर सजावट तथा रोशनी की जाती है । बाजारों में खूब चहल-पहल होती है ।
मिठाई तथा पटाखों की दुकानें खूब सजी होती हैं । इस दिन खलि-बताशों तथा मिठाइयों की खूब बिक्री होती है । बच्चे अपनी इच्छानुसार बम, फुलझड़ियां तथा अन्य पटाखे खरीदते हैं । रात्रि के समय लक्ष्मी-गणेश का पूजन होता है । ऐसी किंवदन्ती है कि दीवाली की रात को लक्ष्मी का आगमन होता है ।
लोग अपने इष्ट-मित्रों के यहाँ मिठाई का आदान-प्रदान करके दीपावली की शुभकामनाएं लेते-देते हैं । दीपावली त्योहार का बड़ा महत्त्व है । इस त्योहार के गौरवशाली अतीत पुन: जाग्रत हो उठता है । पारस्परिक सम्पर्क, सौहार्द तथा हेल-मेल बढ़ाने में यह त्योहार बड़ा महत्त्वपूर्ण है ।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह त्योहार कीटाणुनाशक है । मकान और दुकानों की सफाई करने से तरह-तरह के कीटाणु मर जाते हैं । वातावरण शुद्ध तथा स्वास्थ्यवर्द्धक हो जरता है । दीपावली के दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं तथा पटाखों में धन की अनावश्यक बरबादी करते हैं ।
इससे हर वर्ष अनेक दुर्घटनाएँ हो जाती हैं तथा धन-जन की हानि होती है । इन बुराइयों को रोकने की चेष्टा की जानी चाहिए । दीपावली प्रकाश का त्योहार है । इस दिन हमें अपने दिलों से भी अन्धविश्वासों तथा संकीर्णताओं के अँधेरे को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए ।
हमें दीपक जलाते समय कवि की इन पंक्तियों पर ध्यान देना चाहिए:
ADVERTISEMENTS:
”जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।”
7. क्रिसमस (25 दिसम्बर) | Essay on Christmas for Kids in Hindi Language
क्रिसमस का त्योहार विश्व के महान् त्योहारों में से एक है । क्रिसमस का त्योहार न केवल ईसाइयों का ही त्योहार है, अपितु समस्त मानव-जाति का एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है । सभी त्योहार किसी-न-किसी महापुरुष की जीवन घटनाओं से सम्बन्धित हैं ।
क्रिसमस का त्योहार ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह के जन्म दिवस से सम्बन्धित है । इसे इस शुभावसर पर बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है । क्रिसमस का त्योहार मुख्य रूप से ईसाई धर्म के अनुयायियों और उसके समर्थकों के द्वारा मनाए जाने के कारण अत्यन्त महत्वपूर्ण त्योहार है ।
यह त्योहार विश्व का सबसे बड़ा त्योहार है, क्योंकि ईसाई-धर्म की विशालता और उससे प्रभावित अन्य धार्मिक मानस वाले व्यक्ति भी इस त्योहार को मनाने में अपनी खुशियों और उमंगों को बार-बार प्रस्तुत करते हैं । क्रिसमस का त्योहार इसी लिए सम्पूर्ण विश्व में बड़ी ही लगन और तत्परता के साथ प्रति वर्ष सर्वत्र मनाया जाता है ।
क्रिसमस का त्योहार प्रति वर्ष 25 दिसम्बर को मनाया जाता है । आने वाले 25 दिसम्बर की प्रति वर्ष बड़ी उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा की जाती है । इसी दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था, जो ईसवीं सन् के आरम्भ का प्रतीक और द्योतक है ।
इस संसार में महाप्रभु ईसा मसीह के इस जन्म दिन को बड़ी पवित्रता और आस्थापूर्वक मनाया जाता है । इस दिन ही श्रद्धालु और विश्वस्त भक्त जन ईसा मसीह के पुनर्जन्म की शुभकामना किया करते हैं । उनकी याद में विभिन्न स्थानों पर प्रार्थनाएँ और मूक भावनाएं प्रस्तुत की जाती हैं ।
कहा जाता है कि ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर की रात को बारह बजे बेथलेहम शहर में एक गौशाला में हुआ था । माँ ने एक साधारण कपड़े में लपेट कर इन्हें धरती पर लिटा दिया था । स्वर्ग के दूतों से संदेश पाकर धीरे-धीरे लोगों ने इनके विषय में जान लिया था ।
धीरे-धीरे लोगों ने ईसा मसीह को एक महान आत्मा के रूप में स्वीकार कर लिया । ईश्वर ने उन्हें इस धरती पर मुक्ति प्रदान करने वाले के रूप में अपना दूत बनाकर भेज दिया था । जिसे ईसा मसीह ने पूर्णत: सत्य सिद्ध कर दिया ।
इनके विषय में यह भी विश्वासपूर्वक कहा जाता है कि आज बहुत साल पहले दाउद के वंश में मरियम नाम की कुमारी कन्या थी, जिससे ईसा मसीह का जन्म हुआ । जन्म के समय ईसा मसीह का नाम एमानुएल रखा गया । एमानुएल का अर्थ है-मुक्ति प्रदान करने वाला ।
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इसीलिए ईश्वर ने इन्हें संसार में भेजा था । ईसा मसीह सत्य, अहिंसा और मनुष्यता के सच्चे संस्थापक और प्रतीक थे । इनके सामान्य और साधारण जीवनाचरण को देखकर हम यही कह सकते हैं कि ये सादा जीवन और उच्च विचार के प्रतीकात्मक और संस्थापक महामना थे ।
ईसा मसीह ने भेड़-बकरियों को चराते हुए अपने समय के अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति विरोधी स्वर को फूंक दिया था । इसीलिए इनकी जीवन-दशाओं से क्षुब्ध होकर कुछ लोगों ने इनका कड़ा विरोध भी किया था । इनके विरोधियों का दल एक ओर था तो दूसरी ओर इनसे प्रभावित इनके समर्थकों का भी दल था ।
इसलिए ईसा मसीह का प्रभाव और रंग दिनोंदिन जमता ही जा रहा था । उस समय के अज्ञानी और अमानवता के प्रतीक यहूदी लोग इनसे घबरा उठे थे और उनको मूर्ख और अज्ञानी समझते हुए उन्हें देखकर जलते भी थे । उन्होंने ईसा मसीह का विरोध करना शुरू कर दिया ।
यहूदी लोग अत्यन्त क्रूर स्वभाव के थे । उन्होंने ईसा मसीह को जान से मार डालने का उपाय सोचना शुरू किया । इनके विरोध करने पर ईसा मसीह उत्तर दिया करते थे- ”तुम मुझे मार डालोगे और मैं तीसरे दिन फिर जी उठूंगा ।” प्रधान न्याय कर्त्ता विलातुस ने शुक्रवार के दिन ईसा को शूली पर लटकाने का आदेश दे दिया ।
इसलिए शुक्रवार के दिन को लोग गुड फ्राइडे कहते हैं । ईस्टर शोक का पर्व है, जो मार्च या अप्रैल के मध्य में पड़ता है । ईसा मसीह की याद में क्रिसमस का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाना चाहिए यह मनुष्यता का प्रेरक और संदेशवाहक है । इसलिए हमें इस त्योहार को श्रद्धा और उमंग के साथ अवश्य मनाना चाहिए ।