दुर्गा पूजा पर अनुच्छेद | Paragraph on Durga Puja in Hindi

प्रस्तावना:

दुर्गा-पूजा हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है । यह त्यौहार देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है । दुर्गा को हिमाचल और मेनका की पुत्री माना जाता है । भगवान् शंकर की पत्नी सती के आत्म-बलिदान के बाद दुर्गा का जन्म हुआ ।

उन्हें सती का दूसरा रूप माना जाता है । उनका भगवान् कर से विवाह था । कहा जाता है रावण का वध करने को शक्ति पाने पने लिए भगवान् राम ने दुर्गा की पूजा की थी । अत: इस दिन पहले भगवान राम की पूजा जाती है और उसके बाद माँ दुर्गा की ।

दुर्गा की प्रतिमा:

इस अवसर के लिए देवी दुर्गा की भव्य और विशाल प्रतिमायें तैयार की जाती हैं । कहीं-कहीं उन्हें उनके पति भगवान शंकर, दो पुत्रियों लक्ष्मी और सरस्वती तथा दो पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के साथ दिखाया जाता है । देवी दुर्गा की प्रतिमा में उनके दस हाथ दिखाये जाते हें ।

उनके दसों हातों में कोई न कोई अस्त्र होता है । उनकी सवारी सिंह पर होती है । प्रतिमा में उनका एक पैर सिंह पर तथा दूसरा पैर महिषासुर की छाती पर दिखाया जाता है । लक्ष्मी को उनकी दाहिनी ओर तथा सरस्वती को बाईं ओर दिखाया जाता है ।

पूजा का आयोजन:

दुर्गा-पूजा बड़ी निष्ठा और श्रद्धा से की जाती है । यह बार महीने के शुक्ल पक्ष में की जाती है । प्रतिपदा के दिन से नवरात्रों का प्रारंभ माना जाता है । इन 10 दिनों तक श्रद्धालु स्त्रियों व्रत रखती हैं और देवी दुर्गा का पूजन करती हैं । यह त्यौहार दशहरे के त्यौहार के साथ ही मनाया जाता है । अत कई दिन तक स्कूल और कॉलेज बन्द रहते हैं ।

दुर्गा-पूजा का त्यौहार बंगाल, असम, पूर्वी बिहार में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है । पूजा का विशेष आयोजन तीन दिन तक होता है । यह विशेष पूजा सप्तमी, अष्टमी तथा नौमी तिथियों को होती है । इन तीन दिनो बहुत-से भागों में भेड़, बकरे और भैंसों की बलि चढ़ा कर देवी दुर्गा को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

हर दिन दुर्गा की प्रतिमा की धूम-धाम से पूजा की जाती है । इस हेतु बड़े-बड़े शामियाने और पण्डाल लगाये जाते हैं । बड़ी संख्या में लोग इन आयोजनों में भाग लेते हैं । पूजा के शामियाने को खूब सजाया जाता है । उस पर तरह-तरह के बच्चों से रोशनी की जाती है । वे इसे बड़े उत्साह से सजाते हैं ।

पूजा के बाद बड़े समारोहपूर्वक भजन गाते हुए आरती की जाती है । आरती का थाल सभी लोगों के सामने लाया जाता है । हर व्यक्ति आरती लेकर यथाशक्ति थाल में कुछ सिक्के डाल देता है । अष्टमी की पूजा-शक्ति पूजा कहलाती है । पूजा के बाद इन शामियानो में नाटक, ड्रामा और संगीत सभाओं के आयोजन भी किए जाते हैं ।

प्रतिमा विसर्जन:

ADVERTISEMENTS:

तीन दिन की विशेष पूजा के बाद विजय दिवस आता है । यह दशमी का दिन होता है । इस दिन प्रतिमाओं को जल में विसर्जित करने का समारोह होता है । इन प्रतिमाओं को एक जुलूस की शक्ल में पास की नदी या तालाब के किनारे ले जाया जाता है ।

प्रतिमाओं को नाव में रखकर बीच धारा में ले जाकर इनका विसर्जन नदी की बीच धार में या तालाब में कर दिया जाता है । यह दुर्गा-पूजा के त्यौहार की समाप्ति का सूचक है । प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद लोग अपने-अपने घर लौट आते हैं ।

उपसंहार:

दुर्गा-पूजा बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाई जाती है । देवी दुर्गा को शक्ति का अवतार समझा जाता है । शक्ति-पूजा से लोगों में साहस का संचार होता है और वे आपसी वैर-भाव भुलाकर एक-दूसरे की मगल-कामना करते हैं ।

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