सुभाषचन्द्र बोस | Subhash Chandra Bose in Hindi!
देश को स्वतंत्र कराने में जिन महान् नेताओं ने विशेष योगदान दिया, उनमें सुभाषचन्द्र बोस का नाम चिर स्मरणीय है । सुभाषचन्द्र बोस के इस नारे से उत्साहित होकर, ”तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा” हजारों देशवासी स्वतन्त्रता संघर्ष में कूद पड़े थे ।
वे कहा करते थे ”मैं रहू न रहू आजाद रहे हिन्दुस्तान मेरा” और सचमुच हिन्दुस्तान तो आजाद हो गया पर वे आज तक नहीं आए । सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ । इनके पिता जानकीदास बोस अपने समय के प्रसिद्ध वकील थे ।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा कटक में ही हुई । सन् 1913 में इन्होंने मैट्रिक पास की । इसके पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए ये कलकत्ता चले गए । वहाँ इन्होंने प्रेसीडैसी कॉलेज में दाखिला लिया और प्रथम श्रेणी में बी॰ए॰ की परीक्षा पास की ।
इसके पश्चात् वे इंगलैण्ड चले गए और आई॰सी॰एस॰ की परीक्षा पास की । परीक्षा पास करते ही उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई परन्तु देश की परतन्त्रता और भूखे-नंगे भारत ने इन्हें सरकारी सेवा से विमुख कर दिया । बंगाल के प्रसिद्ध देशभक्त नेता बाबू चितरंजन दास के नेतृत्व में ये स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े ।
यह प्रारम्भ से ही गरम दल के नेता थे । विद्यार्थी काल में ही उन्होंने एक बार भारतीयों का अपमान करने के कारण अपने एक प्रोफेसर के मुँह पर तमाचा मार दिया था । गरम दल के नेता होते हुए भी वे गांधी जी का बड़ा सम्मान करते थे ।
उन्होंने गांधी जी के साथ 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ और 1929 में ‘नमक आंदोलन’ में भाग लिया । जब चितरंजन दास गुप्त कलकत्ता कार्पोरेशन के मेयर बने तो उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को कार्पोरेशन का उच्च अधिकारी बना दिया ।
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अंग्रेज सरकार ने एक अंग्रेज की हत्या के झूठे आरोप में इन्हें मांडले जेल में डाल दिया । ये 1929 और 1937 में कलकत्ता काँग्रेस कार्पोरेशन के मेयर बने और 1938-1939 में काँग्रेस के सभापति बने । नेताजी ने काँग्रेस की नीतियों से मतभेद के कारण त्याग पत्र दे दिया और ‘फारवर्ड ब्लाक’ नामक राजनैतिक दल का गठन किया । इस दल का उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य और हिन्दू-मुस्लिम एकता था ।
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इनकी गतिविधियों से सरकार बौखला उठी और इन्हें जेल में डाल दिया । सन् 1940 में अस्वस्थ होने के कारण इन्हें जेल से रिहा कर दिया गया, पर घर पर नजरबन्द कर दिया गया । 1941 में वे अंग्रेज सिपाहियों को चकमा देकर भाग जाने में सफल हो गए । ये सबसे पहले अफगानिस्तान पहुँचे और फिर जर्मनी गए । वहां हिटलर ने इनका स्वागत किया ।
जर्मन रेडियों ने सुभाषचन्द्र बोस ने स्वाधीनता का संदेश दिया । 1942 में ये जापान चले गए और वहाँ आजाद हिन्द फौज बनाई । ये देश को आजाद कराने के लिए बर्मा पहुँचे । इम्काल में अंग्रेजी सेनाओं से लोहा लिया । इनके सैनिकों में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी और ये बराबर संघर्ष करते रहे ।
1945 में जापान द्वारा हथियार डालने पर आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया । 23 अगस्त 1945 को जापान के टोकियों रेडियों द्वारा विमान दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का समाचार प्रसारित किया गया । परन्तु आज पचास साल के बाद भी उनकी मृत्यु का मामला रहस्यपूर्ण बना हुआ है ।
सुभाषचन्द्र बोस का नाम स्वतन्त्रता सेनानियों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा । उनके द्वारा दिया गया, ‘जय हिन्द’ का नारा आज हमारा राष्ट्रीय नारा है । जो 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पूरे देश में गूंजता है । ध्वजारोहण कार्यक्रम का समापन ‘जयहिन्द’ के उद्घोष से होता है ।