जलवायु परिवर्तन या तापमान में विश्वव्यापी वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) पर निबंध | Essay on Global Warming in Hindi Language!

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धरती को नीला ग्रह कहा जाता है । यह नीला ग्रह अपने आप में अनूठा है क्योंकि एक मात्र इसी ग्रह पर जीवन का सतत प्रवाह है । मनुष्यों, पशुओं तथा नाना प्रकार के सजीवों से पृथ्वी पर हमेशा चहल-पहल बनी रहती है ।

परंतु पिछले सौ वर्षों से मानवीय क्रियाकलापों के फलस्वरूप पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । यह खतरा इतना व्यापक और गहरा है कि विभिन्न राष्ट्र उसका निदान ढूँढ़ने के लिए कृत संकल्पित और प्रयासरत दिखाई दे रहे हैं ।

जलवायु परिवर्तन का मुद्दा बहुत गंभीर है । चूँकि सजीवों पर जलवायु का सीधा असर पड़ता है इसलिए जलवायु या पर्यावरण में होने वाली उथल-पुथल से जन-समुदाय का चिंतित होना बहुत स्वाभाविक है । जलवायु परिवर्तन के परिणामों को जानने से पहले उसके कारणों को समझना बहुत आवश्यक है ।

जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है-बड़े पैमाने पर हुआ औद्योगीकरन तथा परिवहन के आधुनिक साधनों द्वारा छोड़ा गया विषाक्त धुआँ । पिछले सौ वर्षों में आधुनिक उद्योगों का बहुत विस्तार हुआ है । आजकल आम जरुरत की छोटी-बड़ी वस्तुओं की सूची इतनी लंबी होती जा रही है कि इनके उत्पादन के लिए कारखानों का विस्तार होता जा रहा है ।

कारखानों की चिमनियों से धुआँ निकलता है जिसमें कार्बन, पारा, मिथेन जैसे अनेक विषैले तत्व होते हैं । ये विषैले तत्व वायु में घुल-मिल जाते हैं और ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करते हैं । यह तापमान में वृद्धि क्य स्क बड़ा कारण है । इसका एक ओर बड़ा कारण है-परिवहन के आधुनिक साधनों से निकलने वाला धुआँ । यह धुआँ प्राय: पैट्रोल या डीजल के जलने से उत्पन्न होता है ।

तापमान में विश्वव्यापी वृद्धि के लिए अन्य मानवीय तथा मानवेतर गतिविधियाँ भी जिम्मेदार हैं । मानवीय गतिविधियों में चूल्हे पर खाना पकाना, रेफ्रिजरेटर का प्रयोग, कूड़े-कचरों से होने वाला उत्सर्जन, कोयले या लकड़ी को जलाना, पेड़-पौधों का कटाव आदि शामिल हैं । ताप विद्‌युत संयंत्रों में बिजली उत्पन्न करने के लिए कोयले का भारी मात्रा में उपयोग होता है ।

रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता प्रयोग भी चिन्ता का एक बड़ा कारण है क्योंकि इस प्रक्रिया में भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है । मानवेतर गतिविधियों मे जंगल में आग लगना, गाय, भैंस आदि पशुओं द्वारा जुगाली में क्रम में मिथैन गैस का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन आदि सम्मिलित हैं ।

वायु में कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, अमोनिया, मिथेन आदि गैसों की एक निश्चित मात्रा होती है । परंतु मानवीय गतिविधियों के कारण वायु में विभिन्न गैसों का असंतुलन उत्पन्न हो गया है । वायु में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है परंतु कार्बन डॉयऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, मिथेन आदि गैसों की मात्रा बड़ रही है । इससे धरती का तापमान धीरे- धीरे बढ़ रहा है ।

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यदि तापमान में इसी तरह वृद्धि होती रही तो अगले चालीस वर्षों में बर्फीले स्थानों की बर्फ पिघलकर समुद्र में आ जाएगी जिससे समुद्री जल का विस्तार होगा । इस विस्तार के परिणामस्वरूप छोटे-छोटे टापू, तटीय क्षेत्र के कई गाँव व शहर जलमग्न हो जाएँगे । तापमान में वृद्धि से जलवायु में परिर्वतन आरंभ हो गया है ।

असमय में वर्षा, कहीं सूखा, तो कहीं बाढ़, वनस्पतियों को फलने-फूलने में अनियमितता, कृषि पदार्थों के उत्पादन में कमी, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ जैसी घटनाओं में बहुत वृद्धि होगी । समस्या इतनी विकट है कि पर्यावरणविद् और विश्व के राजनीतिज्ञ बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं ।

राष्ट्रध्यक्ष इस समय का उपाय ढूंढ़ रहे हैं परन्तु कुछ विकसित राष्ट्रों का अड़ियल रवैया, इसमें व्यवधान उपस्थित कर रहा है । अमेरिका तथा अन्य विकसित राष्ट्र ही इस समस्या के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार हैं क्योंकि उनके यहाँ कार्बन उत्सर्जन की प्रति व्यक्ति दर विकासशील राष्ट्रों की तुलना में दस गुणा अधिक है ।

वे अपनी औद्‌योगिक प्रगति तथा अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिए इच्छुक नहीं हैं । दूसरी ओर भारत, चीन, ब्राजील जैसे विकासशील राष्ट्रों का मानना है कि अभी वे विकास प्रक्रिया में शामिल हैं, अत: वे इस दिशा में कुछ अधिक नहीं कर सकते । निरपेक्ष दृष्टि से देखा जाए तो धरती हम सब की है ।

अत: इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सभी की होनी चाहिए । प्रत्येक राष्ट्र अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए कार्बन-उत्सर्जन में कटौती करे । इस दिशा में प्रत्येक राष्ट्र मिल-जुलकर एक निश्चित समयावधि स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करे तथा उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु ईमानदारीपूर्वक प्रयत्न भी करे ।

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