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सार्स पर निबन्ध | Essays on SARS (Severe Acute Respiratory Syndrome) in Hindi
सार्स यानि सीवियर एक्यूट रिसपायरेट्ररी सिंड्रोम संसार के सत्ताईस देशों में एक आतंक के रूप में उभरा । इन्फ़्लुएंजा, निमोनिया जैसे इस रोग का अभी कोई इलाज ज्ञात नहीं है । सार्स से हमारे देश में किसी की मृत्यु नहीं हुई, सैकडों सम्भावित
मरीजों मे से सिर्फ एक ही पुष्टि हुई और वह भी जल्द ही स्वस्थ हो गया । भारत ही क्या यदि चीन, हांगकांग, वियतनाम और कनाडा को छोड़ दें तो कहीं भी सार्स से हुई मौत का आंकड़ा अप्रत्याशित या अस्वाभाविक नहीं लगता । हांगकांग तथा कनाडा के टोरेंटों में जहां चीनी लोगों की सघन आबादी थी वही यह रोग पहुंचा ।
सार्स के पहले मरीज की पुष्टि से तकरीबन छ: माह पहले मेडागास्कर मे एक बीमारी फैली थी जिसे पहचाना न जा सका । बाद में उसे उसके लक्षणों के आधार पर रहस्यमयी एनफ्लुएंजा नाम दे दिया गया । मेडागास्कर में इस रोग से करीब पच्चीस हजार से ज्यादा लोग ग्रस्त हुए, जिनमें से आठ सौ की मृत्यु हो गयी ।
नि:सन्देह सार्स उतनी घातक बीमारी नहीं है जितना इसे प्रचारित करके लोगों में भय और आतंक की स्थिति पैदा कर दी गयी । सार्स है क्या ? यह पक्षियों तथा जानवरों से मनुष्य में आये कोरोना वायरस परिवार के उत्परिवर्तित विषाणु का संक्रमण है । सामान्य संक्रमति व्यक्ति के लिए यह सर्दी जुखाम जैसा है जो हफ्ते भर दवा लेने पर ठीक हो जाती है । चिकित्सकों का मानना है कि यह सार्स का विषाणु मानव शरीर के बाहर तीन-चार घंटे तक ही सक्रिय रह सकता है ।
जो व्यक्ति ऐसे रोगी के तीन-चार फिट के दायरे में आते हैं या रोगों से लड़ने की आंतरिक शक्ति कम होती है या जिन्हें फेफडों की कोई बीमारी है यदि वे इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के सम्पर्क में आते हैं तो वे इससे गम्भीर रूप से प्रभावित होते है । भारतीय चिकित्सको का मानना है कि यह रोग खसरे से ज्यादा लेकिन चेचक से कम घातक है ।
सार्स का विषाणु रोगी के थूक, छींक, बलगम तथा मूत्र आदि से छोटी बूंदो के रूप में निकलता है । रोगी के नजदीक रहने वाला व्यक्ति तथा उसके द्वारा बरते गये कपड़े का प्रयोग करने वाला व्यक्ति इस रोग का शिकार हो सकता है । सार्स रोगियों का उपचार निमोनिया, ब्रोंकाइटिस या दमा के रोगियों की तरह ही किया जा रहा है ।
सार्स से हुई मौतों और उसकी गम्भीरता के बराबर यह आंकड़ा दस लाख बच्चो का होता है और विश्व मे चालीस लाख से अधिक बच्वे इसकी चपेट मे आकर मर जाते हैं । क्षय रोग से तकरीबन पन्द्रह सौ लोग रोज मरते हैं । इस रोग का सबंध उल्टी, दस्त या डायरिया से है ।
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भारत में किसी भी रोग के महामारी बन जाने के लिए कई अनुकूल परिस्थितियां हैं जैसे भारी भीड़, सघन आबादी, सार्वजनिक परिवहन के साधनों, बसों, रेलों आदि में भीड़ जो संक्रमण का तेज संवाहक हो सकते हैं जनता में जानकारी का अभाव, झोलाछाप डाक्टरों की भरमार और प्रशिक्षित डाक्टरों की कमी, गरीबी मुख्य हैं ।
भारत में हर वर्ष कोई न कोई नयी बीमारी अपना सिर उठाती है । वर्ष 2002 के नवम्बर माह में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में तीव्र ज्वर, उल्टी और दस्त की रहस्यमय बीमारी फैली थीं । सरकार के हरकत में आने से पहले ही इस बीमारी से 34 लोग मृत्यु का शिकार हो चुके थे । बाद में जांच-पड़ताल से पता चला कि यह बीमारी हरपी सिम्पलैक्स विषाणुओं के संक्रमण से फैली थी ।
इस बीमारी की कुछ समय तो जोर-शोर से जांच-पड़ताल चली, बाद में कोई नतीजा न निकलने पर इस बीमारी से रहस्य पर से परदा नहीं उठ पाया । वर्ष 2002 के दौरान हिमाचल प्रदेश में प्लेग के सोलह रोगियों का पता चला जिनमें से पांच की मौत हो गयी थी ।
रहस्यमय बीमारियों की रोकथाम के लिए देश में उचित स्वास्थ्य और इसके साथ ही जांच के लिए अत्याधुनिक प्रयोगशाला को कमी भी है । ऐसी बीमारियों पर नजर रखने के लिए राष्ट्रीय संचारी रोग संस्थान का जो निगरानी तंत्र है वह बेहद लापरवाह है ।
इसके निगरानी केन्द्रों की स्थापना देश भर के 593 जिलों में से मात्र 102 में ही पाई है । हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि एक संजीवनी फोर्स तैयार की जा रही है जो किसी भी प्राकृतिके आपदा अथवा महामारी फैलने की स्थिति में तत्काल राहत उपाय शुरू करेगी ।