व्यायाम के लाभ पर निबन्ध | Essay on Benefits of Exercise in Hindi!
स्वस्थ दिमाग सदैव स्वस्थ शरीर में ही होता है । संसार में प्रत्येक महापुरुष ने स्वास्थ्य को ही मानवीय सुन्दरता का मुख्य लक्षण माना है । आदमी का चेहरा, नयन – नक्श लाख बढ़िया और आकर्षक हों, लेकिन यदि वह स्वस्थ नहीं है, तो समझो कि उन सबका जरा भी मूल्य और महत्त्व नहीं ।
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स्वास्थ्य के बिना आदमी की दशा एक तन्तु रहित पौधे के समान ही कही जायेगी । अस्वस्थ आदमी के लिए जीवन में धन-दौलत आदि सब कुछ रहते हुए भी जीवन में न तो कोई रस है और न किसी तरह का कोई आनन्द ही है ।
वह अमृत से भरा प्याला हाथ में रहते हुए भी प्यासा है तरह – तरह के स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों से भरा हुआ थाल सामने रहने पर भी भूखा है वास्तव में उसके पास भूख-प्यास को जैसे सहने ही नहीं दिया उसकी अस्वस्थता ने। तभी तो तन्दरूस्ती को हजार नियामत कहा गया है ।
तन्दरूस्ती पाने के लिए व्यायाम आवश्यक है । नियमपूर्वक अपनी स्थिति और शक्ति के अनुसार मिलने वाले समय के अनुसार व्यायाम करते रहने वाला व्यक्ति जीवन का सच्चा रस, वास्तविक आनन्द अवश्य पा लेता है । जिसे वास्तविक प्रसन्नता कहा जाता है, अस्वस्थ रहने वाला व्यक्ति लाख चाहने पर भी कभी पा नहीं सकता । स्वस्थ व्यक्ति का ही उस पर अधिकार हुआ करता है ।
व्यायाम करने का एक लाभ स्वास्थ्य रक्षा और शरीर को नियमित बनाए रखना तो है ही, व्यायाम करने वाला हमेशा प्रसन्न ही रेहता है । प्रसन्नता उसकी एक बहुत बड़ी और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है । व्यायाम आदमी को कमजोर और चिड़चिड़ा नहीं होने देता । सब तरह के रोगों से भी नियमित व्यायाम करने वाला व्यक्ति बचा रहता है ।
उदासी और निराशा कभी भूल कर भी ऐसे आदमी के पास नहीं फटकने पाते । कहा गया है कि स्वास्थ्य ही सच्चा धन है । सो नियमपूर्वक व्यायाम करने वाला व्यक्ति स्वास्थ्य रूपी सम्पत्ति से हमेशा मालामाल रहता है ।
कमजोर आदमियों की तरह ऐसे व्यक्ति को कभी परिश्रम से जी नहीं चुराना पड़ता । अपनी असमर्थता का परिचय देकर दूसरों के सामने कभी शर्मिन्दा नहीं होना पड़ता । व्यायाम कई प्रकार के होते हैं । तरह-तरह के खेल खेलना, दण्ड बैठक पेलना, दौड़ लगाना, कबड्डी खेलना, कुश्ती लड़ना, योगाभ्यास या आसन करना, तैरना, नृत्य करना, घुड़सवारी करना एवं नौकायन आदि सभी व्यायाम ही तो हैं ।
प्रात: काल खुले स्थान पर भ्रमण करना जोर-जोर से खुली सास लेना भी व्यायाम ही है । इनमें से आदमी अपनी रुचि, अपनी शक्ति और स्थिति, अपने को मिलने वाले समय के अनुसार किसी भी व्यायाम को अपना सकता है ।
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उसे करते रहने का नियम बनाकर अपने लिए जीवन की वास्तविक प्रसन्नता और आनन्द प्राप्त करने का अधिकार पा सकता है और नहीं तो दो चार किलोमीटर तक थोड़ा तेज – तेज चलने से भी एक तरह का व्यायाम हो जाया करता है । यही कारण है कि कुछ लोग सुबह कार्यालय जाते समय घर से कुछ पहले ही निकाल पड़ते हैं और दो चार किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही बस आदि पर सवार हुआ करते हैं ।
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महात्मा गाँधी ने अपनी आत्म-कथा में लिखा है की वे चाहे कहीं भी रहते, देश में होते या परदेश में, सुबह-शाम सैर करने के लिए समय जरूर निकाल लिया करते थे । गाँधी जी के विचार में सुबह – शाम भ्रमण एक बहुत ही अच्छा व्यायाम है । फिर हर आयु और स्थिति वाला व्यक्ति भ्रमण तो कर ही सकता है । इसलिए उन्होंने सभी को व्यायाम के रूप में प्रात: और सायं सैर या भ्रमण करने की आदत डालने की सलाह दी है ।
व्यायाम आदमी चाहे किसी भी प्रकार का कियों न करे, उसके लिए स्थान अवश्य ही उचित होना चाहिए । ऐसा स्थान यदि खुला हरा – भरा, साफ सुथरा हो तो क्या कहना?
वास्तव में, व्यायाम के लिए भी उपयुक्त स्थान होना चाहिए । बन्द और गन्दे स्थान पर, घुटने भरे वातावरण में व्यायाम करने से लाभ के स्थान पर उलटे हानि हो सकती है । कई प्रकार के रोगों का शिकार होना पड़ सकता है । इसलिए यह आवश्यक है कि उचित और योग्य स्थान पर ही व्यायाम किया जाये । हरे – भरे खुले मैदान, नदी का किनारा, कोई पार्क, वन-उपवन या फिर दूर स्थित खेतों के हरे – भरे पेड़ भी व्यायाम के लिए उपयुक्त स्थल माने जा सकते हैं ।
मनुष्य जीवन बड़ा दुर्लभ माना गया है । यह रोग-शोक में रहकर यूं ही गंवा देने के लिए नहीं है । एक-एक पल बड़ा ही मूल्यवान माना गया है । इसलिए इसका सदुपयोग होना चाहिए । केवल स्वस्थ व्यक्ति ही हर प्रकार से सदुपयोग करने की बात सोच सकता है और कर भी सकता है ।
स्वस्थ व्यक्ति ही किसी प्रकार का धर्म-कर्म करने में भी समर्थ हो सकता है । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी कुछ समर्थ लोगों के हिस्से में ही आया करते हैं । समर्थ बनने और बने रहने के लिए व्यायाम करना बहुत ही आवश्यक है । बस, एक बार इसकी आदत डाल लीजिए, फिर देखिए कि सब प्रकार की खुशियाँ, सब तरह के आनन्द कैसे भागे आते हैं, अपने आप ।