List of seven popular hindi stories for storytelling!
Contents:
- लालच बुरी बला |
- ऐसा प्यार कहां |
- इतना पानी |
- भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया |
- सच्चा न्याय |
- बरगद का पेड़ |
- काली परी का शाप |
Hindi Story # 1 (Kahaniya)
लालच बुरी बला |
बहुत पहले किसी गांव में एक गड़रिया रहता था । वह गाव के लोगों की भेड़-बकरियां चराकर अपनी जीविका कमाता था । उसका नाम तो सुमेर सिंह था, गांव वाले उसे सुमेरा कहकर बुलाते थे ।
एक दिन की बात है । रोज की तरह सुमेरा जगल में भेड़-बकरियां चरा रहा था । पास ही एक ऊंची चट्टान थी । उसके नीचे एक खड़ा था । सुमेरा चट्टान के ऊपर खड़ा होकर इधर-उधर देख रहा था । एकाएक तेज हवा चलने लगी । वह संभल नहीं पाया और धड़ाम से खड्ड में जा
गिरा । खड्ड में गिरने से उसको चोटें लगी, वह बुरी तरह से कराहने लगा । तभी उसने देखा, खड्ड के एक कोनेसे रोशनी की एक छोटी-सी लौ उभरी । देखते-ही-देखते वह पूरा प्रकाश बन गई । खड्ड में चारों ओर उजियाला फैल गया । सुमेरा रोना भूल गया और आश्चर्य से औखें फाड़-फाड़कर उस प्रकाश की ओर देखने लगा ।
प्रकाश में से एक परी निकली और बोली : “इतनी जोर से क्योरो रहे हो ? तुमने मेरी नींद खराब कर दी ।” ”मेरे शरीर में भर्यकर दर्द है । क्या मैं रोऊं भी नहीं ?” सुमेरा ने सिसकते हुए कहा । खड्ड में एक छोटा-सा सुनहरे रग का पौधा उगा हुआ था ।
सुमेरा का ध्यान उस ओर नहीं गया था । परी ने वह पौधा जड़ से उखाड़ लिया । जड़ को उसने सुमेरा के शरीर पर मला । सुमेरा का दर्द एकदम से जाता रहा । वह तत्काल भला-चंगा होकर उठकर खड़ा हो गया । परी जाने लगी तो सुमेरा ने तेजी से आगे बढ्कर उसका एक पंख पकड़ लिया ।
ADVERTISEMENTS:
बोला : ”परी रानी जाओ मत ।” परी बोली : “मुझे जाना ही होगा ।” ”अगर जाना ही है तो यह पौधा म्उझे देती जाओ ।” सुमेरा ने कहा: ”मैं इससे दूसरे लोगों की बीमारियां दूर करूंगा ।” ”ठीक है । यह पौधा मैं तुम्हें देती है किंतु एक शर्त है ।
तुम यह कार्य निःस्वार्थ भाव से या बिना किसी लालच के करोगे । यदि इस पौधे को तुमने अपना धन कमाने का जरिया बनाया तो मैं इसे उसी दिन तुमसे ले लूंगी ।” ”मैं कसम खाता हूं कि काम के बदले में किसी से कुछ नहीं लुंगा । एक पैसा भी नहीं ।” सुमेरा ने परी को आश्वस्त किया ।
सुमेरा की बात पर विश्वास कर परी ने प्रसन्न भाव से वह पौधा उसे दे दिया और गायब हो गई । सुमेरा बड़ा खुश हुआ । वह खड्ड से बाहर आया । बाहर उसे कोई मवेशी दिखाई न दिया । शायद शाम होने पर रोज की आदत के अनुसार मवेशी गांव लौट गए थे ।
उस दिन के बाद गांव में कोई भी आदमी बीमार पड़ता तो सुमेरा पलक झपकते ही उसे ठीक कर देता । एक रात गांव में एक अजीब घटना घटी । एक स्त्री घर में खाना बना रही थी । पता नहीं कैसे उसके कपडों में आग लग गई । वह बुरी तरह जल गई ।
लोग उसे बैलगाड़ी द्वारा नगर के अस्पताल में ले जाने की तैयारी कर रहे थे कि सुमेरा वहां पहुंच गया । उसने पूछा : ”क्यों भाइयो ! क्या हो गया इसे ?” ”यह खाना बनाते समय बुरी तरह से जल गई है । इलाज कराने के लिए शहर के अस्पताल में ले जा रहे हैं ।” लोगों ने कहा ।
”इसकी कोई जरूरत नहीं । मैं इसे अभी ठीक किए देता हूं ।” यह कहकर सुमेरा ने उस पौधे की जड़ उस स्त्री के जले हुए अंगों पर मली । देखते-ही-देखते स्त्री बिल्कुल ठीक हो गई । उसके जले हुए अंगों की पीड़ा जाती रही और शरीर पर पड़े फफोले भी मिट गए । लोग सुमेरा के चमत्कार को देखकर आश्चर्य में पड़ गए ।
पास के गांव में एक साहूकार रहता था । उसकी बेटी बीमार थी । शहर में हर तरह के इलाज करवाने के बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था । साहूकार का अब तक हजारों रुपया खर्च हो चुका था । उसने सुमेरा के विषय में सुना तो वह अपनी बेटी को बैलगाड़ी में बैठाकर सुमेरा के यहां पहुंचा । सुमेरा ने उसकी बेटी के शरीर पर उस पौधे की जड़ मली तो उसकी बेटी कुछ ही देर में भली-चंगी हो गई ।
साहूकार बहुत खुश हुआ । उसने कहा : ”सुमेरा महाराज! आपके उपचार के कितने पैसे दूं ?” “पैसे ? मैं इस काम के बदले कोई पैसे नहीं लेता ।” सुमेरा ने कहा । ”नहीं महाराज! इस महान कार्य के बदले आपको कुछ तो लेना ही चाहिए ।” कहते साहूकार ने सौ रुपए उसके चरणों में रख दिए और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया ।
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सुमेरा सौ रुपए देखकर चकराया । उसने मन में सोचा : ‘इस चमत्कार से तो सैकड़ों रुपए कमाए जा सकते हैं ।’ यह विचार मन में आते ही उसकी बांधे खिल गईं । उसने मन में निश्चय कर लिया कि कल से जो भी उसके पास इलाज के लिए आएगा, वह उससे इलाज की कीमत जरूर वसूल करेगा । अब वह गरीब नहीं रहना चाहता था ।
सुबह हुई । लोग उसके पास इलाज के लिए आए । उनमें उसका एक पड़ोसी भी था, जोसारी रात बुखार से तड़पता रहा था । सुमेरा ने उससे कहा : ”मैं तुम्हें ठीक तो कर दूंगा, लेकिन बदले में तुम्हें मेरे इलाज की कीमत अदा करनी पड़ेगी । तुम मेरे पड़ोसी हो, इसलिए तुमसे तो सिर्फ दस रुपए ले तूगा । औरों से तो बीस रुपए वसूलता ।
जिसको इलाज करवाना हो, वह रुके । बाकी यहां भीड़ इकट्ठी न करें । अब मैं मुफ्त में किसी का इलाज नहीं करूंगा ।” जिनके पास पैसे थे, वे रुक गए । जिनके पास नहीं थे वे बेचारे चले गए । कुछ ही दिनोंमें सुमेरा मालदार हो गया ।
अब वह किसी से सीधे मुह बात तक नहीं करता था । बिना पैसे के इलाज का तो उसके यहां कोई मतलब ही नहीं था । अब तो उसने एक तरह से मरीजों को लूटना शुरू कर दिया । एक औरत अपने बीमार पति को लेकर उसके इलाज के लिए आई थी । उसका पति बेहोश पड़ा हुआ था ।
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सुमेरा ने उससे कहा : ‘पैसे लाई हो इलाज के लिए ? नहीं लाई तो चलती बनो । मैं मुफ्त में किसी का इलाज नहीं करता ।’ वह औरत बहुत गिड़गिड़ाई, हाथ जोड़े, पर सुमेरा पर कोई असर नहीं हुआ । रोती-बिलखती वह अपने बीमार पति को लेकर वापस लौट गई ।
शाम हुई । सुमेरा सोने के लिए लेटा । पर उसे नींद नहीं आई । उसे डर था कि कहीं पौधा लेने के लिए परी न आ जाए । उसने उठकर पौधे को संदूक में रख दिया और संदूक में ताला लगा उसकी चाबी सिरहाने रख ली । फिर सोने की कोशिश की, किंतु बहुत कोशिश करने पर भी उसे नींद नहीं आई ।
आधी रात के समय कमरे के एक कोने में प्रकाश की एक नन्हीं-सी लौ उभरने लगी । देखते-ही-देखते कमरे में उजियाला छा गया । प्रकाश में वही परी प्रकट हुई, जिसने सुमेरा को वह पौधा दिया था । परी को देखते ही सुमेरा ने सिरहाने रखी सदूक की चाबी झट से उठा ली और मुट्ठी में कसकर बंद कर ली ।
यह देखकर परी मुस्कराई । वह संदूक के पास पहुंची । उसने संदूक को हाथ से स्पर्श किया तो संदूक का ताला अपने आप खुलकर नीचे जा गिरा । परी ने संदूक खोला और वह पौधा निकाल लिया । पौधा लेकर परी जैसे ही जाने को हुई, सुमेरा जल्दी से उठा और उसने परी के पंख पकडू लिए ।
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बोला : ”तुम्हारी यह हिम्मत ! मेरे घर में पुसकर मेरी चीज चुरा ली । लाओ, मेरा पौधा मुझे दो ।” ”नहीं ।” परी बोली: ”अब कोई लाभ नहीं । अब तुम इस पौधे को अपने पास रखने योग्य नहीं रहे । तुममें स्वार्थ और लालच भर गया है । मेरे पंख छोड़ दो, मुझे जाना है ।
सुमेरा अट्टाहस कर उठा । बोला : “मैं क्या तुमसे डरता हूं । तुम मेरा पौधा लौटा दो तो मैं तुम्हारे पंख छोड़ दूंगा ।” परी का चेहरा एकदम क्रोध से भर उठा । उसने अपना हाथ ऊपर उठाया । उसके हाथ में एक चमक उभरी । सुमेरा को लगा, जैसे उसके सारे शरीर में आग लग गई हो ।
उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा । ”लालची व्यक्ति कभी सुखी नहीं रहता ।” कहकर परी चली गई । सुमेरा की जादुई शक्ति समाप्त हो गई । साथ ही उसका सुख-चैन भी चला गया । किसी ने सच ही कहा है : ‘लालच बुरी बला है’ ।
Hindi Story # 2 (Kahaniya)
ऐसा प्यार कहां |
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बहुत समय पहले किसी नगर में एक स्त्री रहती थी । बेचारी का पति मर चुका था, इसलिए अपने और अपनी नन्ही बिटिया के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई थी ।
विधवा स्त्री ने नगर में एक सेठ के धर में साफ-सफाई का काम द्वू लिया । वह वहां से जो अ कमाती, उसी से अपना तथा अपनी बेटी रानी का पेट-पालन करने लगी । उसकी बेटी रानी जब अ बड़ी हो गई तो उसने नगर के एक वृद्ध अध्यापक के पास उसे पढ़ने के लिए भेज दिया ।
वृद्ध अध्यापक ने नगर में एक पाठशाला खोल रखी थी, जहां वे रानी की तरह ही और भी गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया करते थे । रानी की जब पाठशाला से छुट्टी हो जाती तो उसकी मां वहाँ पहुंच जाती और वह अपनी बेटी को साथ लेकर सेठ के घर पहुंच जाती ।
सेठ के घर का वैभव देखकर रानी बहुत चकित होती थी । वह सोचती : ‘कितना अच्छा होता, जो उसके पास भी यह सब सुख-सुविधाएं होती ।’ एक रात रानी सोई हुई थी । उसे सपने में एक परी दिखाई दी । सुदर कपड़े पहने, गहने से सजी, पंख फैलाए वह परी जमीन पर उतरी ।
परी ने रानी से पूछा : ‘तुम पकवान खाना चाहती हो ? क्या तुम आलीशान महल में रहना चाहती हो ? मोतियों से सजी सेज पर सोना चाहती हो ?’ रानी एकदम उछलकर बोली : ‘हां-हां मैं यह सब चाहती हूं । मगर मुझे यह सब मिलेगा कैसे ?’ परी ने कहा : ‘तो आओ मेरे साथ ।
मैं पंख ख्रौऊंगी, तुम उन पर बैठ जाना । मैं तुम्हें लेकर उड़ जाऊंगी और तुम्हें परी महल में पहुंचा दूंगी । वहां हमारी रानी रहती है । बहुत-सी परियां भी वहां रहती है । तुम उन सबसे मिलकर बहुत खुश होगी । उस परी महल में तुम्हारी सारी इच्छाए पूरी हो जाएंगी ।’
परी की यह बात सुनकर रानी खुश होकर बोली : “फैलाओ अपने पंख । मैं तुम्हारे साथ चलूंगी ।”परी ने पंख फैला दिए । रानी उन पंखों पर बैठकर परी महल में जा पहुंची । परी महल का वैभव देखकर रानी चौक गई । इतनी आकर्षक साज-सज्जा उसने पहले कभी नहीं देखी थी ।
परी महल के आगे सेठ का घर उसे बहुत फीका लगा । रंग-बिरंगे प्रकाश से जगमगाता यह महल उसकी कल्पना से परे था । परी ने रानी को अन्य परियों से मिलवाया । फिर वह उसे परी रानी के पास ले गई । परी रानी ने उसे देखते ही पूछा : “तो तुम्हारा नाम रानी है ।
तुम यह सब सुख-सुविधाएं पाना चाहती थीं न । इसलिए हमने तुम्हे यहां बुलवा लिया है । अब आराम से यहां रहो ।” परी रानी ने एक परी की ओर संकेत करके कहा : ‘जाओ, रानी को सबसे सुंदर कमरे में ले जाओ । इसे स्वादिष्ट भोजन कराओ और परी महल की सैर कराओ । जब यह थकने लगे तो इसे नरम-नरम बिस्तर पर सुला देना ।’
रानी यह सब सुनकर खुशी से फ्टी नहीं समा रही थी । मखमली फर्शपर उसके पांव टिक नहीं पा रहे थे । रानी ने सुगंधित जल सेस्नान किया । सुर-रेशमी वस्त्र पहने । फिर भोजन करने के लिए बैठ गई । चांदी की थाली पकवान देखकर उसके कु मेपानी भरआया । एक के बादएक पकवान वह चखती चली गई ।
खा-पीकररानी सैरकर नेको निकली । रंग-बिरंगे जल के फबारोंसे सजेबाग-बगीचे देखकर वह खुशी से नाचने लगी । नाचते-नाचतेजब वह थक गई तो अपने साथ आई परी से बोली : ‘मैं थक गई हूँ । मुझे नींद आ रही है ।’ परी रानी को एक सुंदर कमरे में ले गई, उस कमरेमेंएक बहुत ही सुंदर पलंग पर बिस्तर लगा हुआ था ।
परी ने रानी से कहा : ‘यही है तुम्हारा सोने का कमरा । जाओ बिस्तर पर सो जाओ ।’ रानी ने परी से कहा : ‘तुम भी मेरे पास सो जाओ । मुझे लोरी सुनाओ । बिना लोरी के मुझे नींद नहीं आती । मेरी माँ मुझे रोज लोरी गाकर सुलाती थी ।’
यह सुनकर परी खिलखिलाकर हँस पड़ी । बोली : ‘अरे हम क्या जानें, मा कैसे सुलाती है ? हमने न मां देखी है और न हम कभी मा बनी हैं । हमें नहीं पता, मां की ममता क्या होती है । यहां सारे सुख, सारी सुविधाएं तो मिलेंगी, लेकिन लोरी सुनाकर सुलाने वाली यहा कोई नहीं है ।
चलो, सो जाओ ।’ इतना कहकर परी कमरे का दरवाजा बद करके चली गई । रानी एकदम अधीर हो उठी । उसे मां के बिना सोने की आदत नहीं थी । वह रोने लगी । रोते-राते उसकी सिसकियां बंध गईं । वह एक ही बात बोलती जा रही थी : ‘मुझे नहीं रहना यहां ।
मुझे मेरी मां के पास ले चलो । मुझे नहीं चाहिए ये खाना, ये कपड़े । मुझे मेरी मी के पास छोड़ आओ ।’ मां ने उसकी बड़बड़ाहट सुनी तो वह तुरंत कमरे में दौड़ी आई । मां ने देखा, रानी का चेहरा आसुओंसे तर-बतर था । वह बार-बारकह रही थी: ‘मुझे मेरी मां चाहिए…मुझे मेरी मां चाहिए ।’
मां ने उसके सिर पर हाथ रखा । वह बोली : ”मैं तो यही हूं मेरी बच्ची ! मैं कहां गई हूं ? तुझे क्या हो गया है ?” रानी ने औखें खोली । उसने अपनी मां को सामने पाया तो वह उससे लिपट गई ।
बोली : ”मुझे परी महल नहीं चाहिए । मैं यही रहूंगी, अपनी मां के पास । मां की गोदी में जो सुख मिलता है, वह उस परी महल में भी नहीं है ।” मां ने पूछा : ”यह सब तू क्या कह रही है मेरी बच्ची ?” रानी ने तब सपने में देखे परी महल की सारी कहानी मां को सुना दी । फिर कहानी सुनाते-सुनाते ही वह मां की गोदी में अपना सिर रखकर सो गई ।
शिक्षा:
बच्चे को जैसा प्यार अपनी मां से मिलता है, वैसा प्यार उसे कहीं भी नहीं मिलता । ऋषि, महर्षि और देवतागण भी माता के प्यार को तरसते हैं । इसलिए हमें अपनी माता का सम्मान करना चाहिए । उसके हर आदेश को ईश्वर का आदेश मानकर उसका पालन करना चाहिए । मां ही बच्चे की प्रथम गुरु होती है, बही बालक को नसीहतें देकर चार से उसे संसार में रहने के गुण सिखाती है ।
Hindi Story # 3 (Kahaniya)
इतना पानी |
एक था जूलियन । वह एक गांव में अपनी मां के साथ रहता था । उसकी मां दूसरे लोगों के घरों में काम-धंधा करके अपना परिवार चलाती थी । एक दिन उनके गांव में एक जादूगर आया । उसने गांव वालों को जादू के कई विचित्र करतब दिखाए ।
गांव वाले जादूगर से बहुत प्रभावित हुए, साथ ही उन्हें डर भी लगा कि कहीं जादूार कुछ उल्टा-सीधा न कर दे । जादूगर जाने लगा तो उसने देखा, जूलियन अपनी मां के साथ रास्ते के एक ओर खड़ा है । जादूगर रुक गया । जूलियन की मां ने कहा : ”जादूार भैया ! यह लड़का गांव में यूं ही फिरता रहता है ।
इसे मैं किसी काम में लगाना चाहती हूं । शायद यह तुमसे ही कुछ सीख जाए ।” जादूगर जूलियन की मां की बात समझ गया । उसने कहा : ”बहन! क्या तुम जुलियन को मेरे साथ भेजना पसंद करोगी ? मैं इसे अपने साथ रखकर कुछ जादू भी सिखा दूंगा ।
इसे कोई परेशानी भी नहीं होगी । मैं पास के गांव में ही रहता हूं ।” इस तरह कृइलयन जादूगर के साथ चला गया । उसे मां से बिछुड़ने का दुख तो था, लेकिन नई जगह जाने और जादू सीखने का उत्साह भी था । उसके मन में कुछ कर दिखाने की तीव्र इच्छा थी ।
जादूगर जूलियन का बहुत ध्यान रखता था । उसके घर में तरह-तरह की विचित्र चीजें थी । सबसे अछूत थी जादू की किताब । जादू की वह किताब बहुत मोटी थी । जाद्रार अक्सर किताब खोलकर पड़ता था, फिर उसे जंजीर से बाँधकर ताला लगा दिया करता था ।
वह नहीं चाहता था कि उससे पूछे बिना कोई उस किताब को छुए । जादूगर जब जादू की उस विशाल किताब को पढ़ता, तब जूलियन बड़ी उत्सुकता से उसे देखता रहता । सच तो यह था कि वह भी उस किताब पढ़ना चाहता था, लेकिन सिर्फ चाहने भर से तोबातनहीं बनती ।
जादूकी किताब पढ़ना तोल जूलियन को उसे देखने का अवसर भी नहीं मिलता था, लेकिन एक दिन अचानक जूलियन का मन चाहा काम हो गया । जाने की जल्दी में जादूगर उसे किताब पर बंधी जंजीर में ताला लगाना भूल गया । जूलियन को तो जैसे मन चाही मुराद मिल गई ।
वह किताब के पन्ने उलट-पलटकर उसे पढ़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन जादू की किताब का एक भी शब्द नहीं पड़ सका । न जाने वह किताब किस भाषा में लिखी गई थी । जूलियन निराश हो उठा । वह मौके का फायदा नहीं उठा सका था ।
अचानक एक आवाज उसे सुनाई पड़ी : ‘क्या आज्ञा है ?’ आवाज सुनकर लिए बुरी तरह चौक पड़ा । उसे लगा, शायद जादूगर लौट आया है । उसने डरते-डरते इधर-उधर नजर घुमाई, लेकिन उसके कानों में जो आवाज आई थी, वह जादूगर की नहीं थी और फिर जो शब्द उसने सुने थे, वह जादूगर तो कभी कह ही नहीं सकता था ।
एकाएक उसने देखा, जादू की किताब पर एक बौना बैठा हुआ था । बौने ने कहा : ”क्या आज्ञा है ?” ”यह आप किससे बातें कर रहे हैं ?” जूलियन ने घबराए हुए स्वर में पूछा । ”तुमसे और किससे ।” बौना बोला । पर मैने तो आपको बुलाया नहीं ।
इससे पहले मैंने आपको कभी नहीं देखा ।” जूलियन बोला । चुलाया कैसे : “नहीं, मैंक्या अपने आप आ गया ? अब जब तक तुम मुझे कोई काम नहीं बताओगे मैं वापस नहीं जाऊंगा । जल्दी से काम बताओ ।” ”अरे बौने भैया! जल्दी से चले जाओ ।
अगर जादूगर आ गया तो मेरी शामत आ जाएगी ।” जूलियन ने गिड़गिड़ाकर कहा । ”मैंने कहा न । पहले काम बताओ । उसके बाद ही मैं जाऊंगा ।” बौना बोला । जूलियन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बौने को क्या काम बताए ? लेकिन काम तोबताना ही था । बगैर काम बताए बौना टलने वाला नहीं था । एकाएक उसके मुंह से निकल गया-मुझे पानी चाहिए ।” ”यह लो ।”
कहकर बौने ने पानी से भरा एक छोटा-सा प्याला जूलियन की ओर बढ़ा दिया । जूलियन के सामने प्याले से पानी की धार कमरे में गिरने लगी । कमरे में सब जगह पानी-ही-पानी नजर आने लगा । ”अरे…यह क्या कर दिया?” जूलियन ने घबराकर कहा: ”इतना पानी नहीं चाहिए मुझको ।
बद करो इसे । कहीं जादूगर आ गया तो…।” वाह ! अब मैं पानी का बहना कैसे बंद करूं ? तुमने पानी मांगा था, लेकिन यह नहीं बताया कि कितना पानी चाहिए । अब तो कमरा भर जाने के बाद ही पानी का बहना रुक सकता है ।”
बौने ने कहा । पानी जूलियन के पुटनों तक आ चुका था और प्याले से पानी की धार अब भी गिरती जा रही थी । जूलियन मेज पर चढ़ गया । पानी मेज से भी ऊपर चढ़ आया । अब पानी जादू की उस किताब को डुबाने जा रहा था ।
जूलियन ने झट से जादू की भारी-भरकम किताब उठा ली और दोनों हाथ सिर से ऊपर उठा दिए, ताकि किताब पानी में न भीगे । तभी जादूगर कमरे में पुस आया । वह चीखा : “सत्यानाश ! अरे मूर्ख ! यह क्या कर दिया ?” ”मैंने कुछ नहीं किया ।” जूलियन घिघिया पड़ा : ”यह तो इस बौने…।”
जूलियन बस इतना ही कह सका । उसने हाथों से किताब को अब भी अपने सिर से ऊपर उठाया हुआ था । जादूार ने विचित्र-सी भाषा में कुछ कहा तो पानी का बहना रुक गया । फिर कमरे में भरा पानी जैसे भाप बनकर उड़ गया । लग रहा था, जैसे वहां पानी की एक बूंद भी नहीं गिरी हो ।
बौना भी गायब हो चुका था । जादूगर ने कहा : ”अब किताब को उसके स्थान पर रख दो । आगे ऐसी भूल फिर कभी मत करना । जो कुछ जानना चाहते हो, मुझसे पूछ लो । बिना पूछे जानने की कोशिश करोगे तो कभी इससे भी बड़ी मुसीबत आ जाएगी ।”
जूलियन ने कांपते हाथों से जादू की किताब को सही स्थान पर रख दिया और बोला : ”मुझसे भूल हो गई । मुझे सजा मिलनी चाहिए ।” ‘सजा तो मिल चुकी तुम्हें ।’ जादूगर ने हंसकर कहा-‘इतनी भारी किताब दोनों हाथों में उठाकर इतनी देर खड़े रहना, यही बहुत है ।”
जादूगर को हंसता देखकर लिन का डर जाता रहा । वह भी हंस पड़ा । कमरे में दोनों की हंसी मने लगी । बाद में जाद्रार ने जूलियन से वादा किया कि वह जल्दी ही उसे जादू की किताब पढ़ना सिखा देगा । गुरुजनों से पूछे बिना कोई कार्य नहीं करना चाहिए । क्या करना अच्छा है और क्या करना बुरा है इस बात का ज्ञान हमसे ज्यादा गुरु को होता है । अत: हमें गुरु की आज्ञा का सदैव ही पालन करना चाहिए ।
Hindi Story # 4 (Kahaniya)
भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया |
यह कहानी काफी समय पहले की है । तब महेन्द्रगढ़ रियासत में वीरसेन नाम का एक पराक्रमी शासक राज करता था । उसके राज्य में प्रजा बहुत खुशहाल थी । चारों ओर सुख-समृद्धि छाई हुई थी ।
राजा वीरसेन एक कुशल प्रशासक थे । उन्होंने राजकोष से धन देकर पूरे राज्य की सिंचाई के लिए बड़ी-बड़ी नहरें बनवाईं और-आवागमन के लिए नए-नए मार्गों का विकास किया । इससे किसान भरपूर फसलें उगाने लगे और उनका व्यापार भी खूब फलने-फूलने लगा ।
इसके अलावा भी महाराज वीरसेन ने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए कई योजनाएं प्रारम्भ की । महेन्द्रगढ़ की प्रजा अपने राजा को किसी देवता के समान सम्मान देती थी । एक दिन राजा वीरसेन अपने दरबार में बैठे हुए थे कि तभी सेनापति ने सिर झुकाकर अभिवादन करने के बाद राजा से कहा : ”महाराज ! एक बुरी खबर है ।”
”बुरी खबर?” राजा वीरसेन चौके: ”क्या बुरी खबर है सेनापति?” ”महाराज! कल रात राजमहल में हमारे एक सैनिक की किसी ने हत्या कर दी है । उसके शव के पास से यह पत्र बरामद हुआ है ।” कहकर सेनापति ने वह पत्र राजा की ओर बढ़ा दिया । राजा ने पत्र पढ़ा ।
उसमें लिखा था : ‘वीरसेन ! तुम्हारे पाप का पड़ा भर चुका है, इसलिए तुम्हें जल्द-से-जल्द महेन्द्रगढ़ के पवित्र राजसिंहासन को खाली कर देना चाहिए । वरना जब तक तुम इस सिंहासन को खाली नहीं करोगे, तब तक राजमहल की सुरक्षा के लिए तैनात महेन्द्रगढ़ के एक सैनिक की प्रतिदिन इसी तरह बलि दी जाती रहेगी ।’
पत्र पर किसी के हस्ताक्षर नहीं थे । पत्र पढ़ते ही राजा वीरसेन की औरवे क्रोध से लाल हो उठी । उन्होंने सेनापति से पूछा : ”कौन है यह दुष्ट, जिसने हमें ऐसी धमकी देने का दुःसाहस किया है ?” ”क्षमा करें महाराज!” सेनापति बोला: ”हमारे गुरुचर अभी तक उस हत्यारे का पता नहीं लगा सके हैं, लेकिन आप चिंता न करें, हत्यारा कोई भी हो, जल्द-सें-जल्द पकड़ा जाएगा ।”
”महेन्द्रगढ़ का प्रत्येक सैनिक मुझे अपने परिवार के सदस्य की तरह प्यारा है और उसकी रक्षा करना हमारा दायित्व है । आज से राजमहल की सुरक्षा व्यवस्था और अधिक सुदृढ़ कर दी जाए, ताकि हमारे गुरुचरों की दृष्टि से बचकर परिंदा भी पर न मार सके और इस बात का प्रबंध किया जाए कि ऐसी घटना फिर न घटे ।” राजा वीरसेन ने आज्ञा दी ।
राजा की आज्ञानुसार सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई । हर आने-जाने वाले पर कड़ी निगाह रखी जाने लगी, पर सब व्यर्थ । अगली सुबह राजमहल में एक और सैनिक का शव पाया गया । उसके पास भी पहले की तरह ही एक पत्र रखा हुआ था । अब तो यह नित्य का नियम बन गया ।
राजमहल में प्रत्येक रात किसी-न-किसी सैनिक की हत्या हो जाती । राजा, सेनापति और सारे मंत्री परेशान । सेनापति स्वय रात-रात-भर घूमकर सुरक्षा-व्यवस्था का निरीक्षण करते, लेकिन कोई नतीजा न निकला । हत्याओं का सिलसिला लगातार जारी रहा । हत्यारे का कुछ भी पता नहीं चला ।
पूरे राज्य में अफवाहों का बाजार गर्म था । लोग तरह-तरह की बातें करते । कोई कहता कि दैविक शक्ति महाराज से नाराज हो गई है तो कोई कहता कि महाराज से जरूर कोई भयकर अपराध हो गया है, जिसकी सजा महेन्द्रगढ़ के सैनिकों को भुगतनी पड़ रही है ।
राजा वीरसेन नित्य फैलने वाली इन नई-नई अफवाहों से परेशान थे । हालात यहां तक पहुंच गए कि कुछ सैनिकों ने राजमहल में पहरा देने से इंकार कर दिया । ऐसा लगने लगा कि सेना में विद्रोह हो जाएगा । इसी बीच राजा वीरसेन का इकलौता पुत्र प्रियवदन गुरुकुल से अपनी शिक्षा समाप्त करके महेन्द्रगढ़ वापस लौटा ।
यहां घट रही घटनाओं के बारे में सुनकर वह चिंतित हो उठा । प्रियवदन एक साहसी और बुद्धिमान युवक था । उसने सभी हत्याओं का पूर्ण विवरण इकट्ठा करवाया और फिर उन पर गंभीरतापूर्वक विचार किया । अत में वह इस निष्कर्ष पर पली कि हत्या उसी सैनिक की हो रही है, जो कहीं पर अकेला ही पहरा दे रहा होता है ।
इसका मतलब साफ था कि इन हत्याओं के पीछे कोई दैविक शक्ति नहीं, बल्कि किसी ऐसे इंसान का हाथ था, जो एक से अधिक सैनिकों का सामना नहीं करना चाहता था । उस दिन से राजकुमार प्रियवदन ने महल की सुरक्षा का भार अपने ऊपर ले लिया ।
उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि वे कहीं पर अकेले खड़े न हों, बल्कि चार-चार सैनिकों का समूह बनाकर ही पहरा दें । राजकुमार प्रियवदन की इस आज्ञा का परिणाम बहुत सुखद निकला । उस रात किसी सैनिक की हत्या नहीं हुई ।
सेनापति ने राजकुमार को बधाई देते हुए कहा : “कुंवरजी ! आप धन्य हैं । जो काम मैं इतने दिनों तक नहीं कर सका, आपने एक ही दिन में कर दिखाया । आज पहली बार किसी सैनिक की हत्या नहीं हुई, इससे सैनिकों में नवीन आशा का संचार हुआ है ।
सभी सैनिक आपकी जय-जयकार कर रहे हैं ।” धीरे-धीरे चार दिन व्यतीत हो गए । कहीं कोई हत्या नहीं हुई तो राजकुमार ने सेनापति से कहा : ”सेनापतिजी ! लगता है, हत्यारा हमारे डर से भाग गया है । अब विशेष सुरक्षा-व्यवस्था की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती ।”
”नहीं कुंवरजी! सुरक्षा-व्यवस्था में किसी प्रकार की शिथिलता लाना खतरनाक सिद्ध हो सकता है । वह दुर्दान्त हत्यारा कभी भी दोबारा हमला कर सकता है ।ज्ञ सेनापति ने कहा । ”अब वह कभी वापस नहीं आएगा, क्योंकि उसे पता चल चुका है कि राजकुमार अइयवदन वापस आ गए हैं ।
मेरा सामना बड़े-से-बड़ा योद्धा भी नहीं कर सकता, फिर इस हत्यारे की तो बिसात ही क्या है?” राजकुमार ने गर्वपूर्वक कहा । “कुंवरजी! क्षणिक सफलता पर इस तरह गर्व करना उचित नहीं है ।” सेनापति ने समझाया । ”आपको यकीन नहीं आता तो आज रात राजमहल के बुर्ज पर एक अकेले सैनिक को पहरा देने के लिए खड़ा करते हैं ।
देखता हूं उसका बाल भी बांका कैसे होता है ?” राजकुमार ने भरपूर आत्मविश्वास के साथ कहा । हमेशा की तरह उस रात भी जब सेनापति सुरक्षा व्यवस्था का निरीक्षण करते हुए राजमहल के पिछले बुर्ज पर पहुंचे तो देखा कि वहां अकेला खड़ा सैनिक पूरी मुस्तैदी के साथ पहरा दे रहा है ।
सेनापति ने उसके समीप जाकर पूछा : ”सैनिक ! तुम्हें भय तो नहीं लग रहा ?” ”जी नहीं सेनापति जी!” सैनिक ने सम्मानपूर्वक उत्तर दिया । ”शाबास ।” सेनापति ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा । फिर वह वापस आने के लिए पीछे मुड़ा ।
अचानक उसने पलटकर उस सैनिक का एक हाथ से मुंह दाब लिया और दूसरे हाथ से तलवार का भरपूर वार सैनिक के पेट पर कर दिया, किंतु आश्चर्य! सेनापति का हाथ झनझनाकर रह गया । सैनिक के लोहे के मजबूत कवच से टकराकर उसकी तलवार उसके हाथ से छूट गई ।
इससे पहले कि सेनापति कुछ समझ पाता, सैनिक ने अपनी तलवार निकालकर उसकी गर्दन पर रख दी और मुस्कराते हुए बोला : ”सेनापतिजी । पहचानिए मुझे । मैंने कल कहा था कि मेरे रहते हत्यारा अब एक खुभी सैनिक का बाल बांका नहीं कर सकता ।”
“कुंवरजी आप !” सेनापति ने आश्चर्य से कहा । उसका चेहरा भय से पीला पड़ गया था । ”हां मैं । मुझे पहले दिन से ही शक था कि इन हत्याओं के पीछे सेना के किसी उच्च अधिकारी का हाथ है, पर यह घूर्णित कार्य आप कर रहे हैं, इसका मुझे अदाजा नहीं था ।”
सेनापति को गिरफ्तार कर राजकुमार प्रियवदन राजा वीरसेन के पास ले आया । सेनापति ने राजा के चरणों में गिरकर गिड़गिड़ाते हुए कहा : ”महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए । मैं स्वार्थ में अधा हो गया था । पड़ोसी राज्य के राजा ने मुझसे कहा था कि मैं किसी तरह आपकी सेना में विद्रोह करा दूं तब वह आक्रमण करके महेन्द्रगढ़ को जीत लेगा, मुझे आधे राज्य का राजा बना देगा ।”
पड़ोसी राजा के षड्यंत्र की जानकारी मिलते ही राजा वीरसेन का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा । उन्होंने सेनापति को कारागार में डलवा दिया और राजकुमार प्रियवदन को तुरत पड़ोसी राज्य पर आक्रमण करने की आज्ञा दे दी ।
राजकुमार प्रियवदन के नेतृल्म में महेन्द्रगढ़ की सेना ने पड़ोसी राज्य पर धावा बोल दिया । दो दिनों तक दोनों राज्यों की सेनाओं में घमासान युद्ध होता रहा, लेकिन जीत महेन्द्रगढ़ राज्य की हुई । पड़ोसी राज्य के राजा को बंदी बना लिया गया ।
राजा वीरसेन ने राजकुमार प्रियवदन को पड़ोसी राज्य का शासन सौंप दिया । प्रियवदन भी अपने पिता की ही तरह दयालु था । उसने उस राज्य की प्रजा के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की, जिसमें महेन्द्रगढ़ की तरह वह राज्य भी पूरी तरह से खुशहाल हो गया ।
शिक्षा:
कभी भी किसी पर भी बिना सोचे-विचारे विश्वास नहीं करना चाहिए, अन्यथा परिणाम के समय पछताना पड़ सकता है ।
Hindi Story # 5 (Kahaniya)
सच्चा न्याय |
प्राचीन समय की बात है । किसी नगर में एक राजा राज करता था । वह बड़ा न्यायप्रिय और प्रजा-हितैषी था । वह अपनी प्रजा को हर प्रकार से सुखी देखना चाहता था । प्रजा को उसके द्वारा सही न्याय तो मिलता ही था, यदि कोई पशु भी उसके दरबार में आकर फरियाद करता तो राजा उसकी फरियादसुननेका भरसक प्रयास करता था ।
फिर जिसने भी उस पशुको सताया होता, राजा उसकी जांच करके अपराधी को कड़ा दंड देता था । अपराध करने वाला चाहे वह राजा हो या प्रजा । रानी हो या राजकुमार, उन्हें भी दंड देने की व्यवस्था की गई थी । न्यायपूर्वक राज करने के कारण उसकी ख्याति चारों तरफ फैल गई थी ।
राजा के न्याय की ख्याति देवलोक तक भी पहुंची । दो देव राजा के न्याय की परीक्षा लेने मृत्यु लोक में आए । एक देव ने गाय का तथा दूसरे देव ने बछड़े का रूप धारण किया । दोनों नगर के राजमार्ग पर घूमने लगे । प्रात: काल का समय था । युवराज अपने रथ में बैठकर घूमने के लिए निकला ।
रथ अपने वेग से प्रतिदिन की भांति चल रहा था । राजकुमार को पता ही नहीं लगा कि कब उसके रथ की टक्कर बछड़े को लग गई । बछड़ा रथ के पहिए के नीचे आ गया । वह कुछ देर तड़पा फिर ठंडा पड़ गया । यह दृश्य नगर के जिस भी नागरिक ने देखा, उसी का दिल रो उठा ।
गाय बछड़े के निकट खड़ी होकर उसे चाटती हुई-बेर-बोर से दर्द भरी पुकार करनेलगी । जहां-गाय का बछड़ा निर्जीव अवस्था में पड़ा हुआ था, वहां की जमीन खून से भीग गई । रथ तेज गति से आगे बढ़ गया । गाय के विलाप से आस-पास का शांत वातावरण अशांत हो गया । जब युवराज की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे बेहद दुख हुआ । वह अपने आपको धिक्कारने लगा । उसे स्वय भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे हो गया ।
युवराज बेहद दुखी मन से राजमहल में लौट आया । अचानक में हुई उस हत्या से वह बहुत दुखी हुआ । कुछ लोग गाय को सहलाते हुए दुख प्रकट करके बोले : ”हे गौ माता ! राजमहल के प्रमुख द्वार पर जो घंटा लगा है, उसे अपने सींगों से बजा ।
जब घंटा बजेगा तो राजा नीचे आएंगे, तब तू करुनयी आवाज पुकारना । वे सबके साथ न्याय करते हैं । अभी तक उन्होंने न्याय धर्म का पक्ष ही लिया है ।” लोगों के देखते-देखते गाय ठीक उसी जगह पहुंची, जहा राजा की ओर से फरियादी लोगों के लिए एक घटा लगा हुआ था ।
गाय ने अपने सींगों से उस घंटे को हिलाना शुरू कर दिया । घंटे की आवाज सुनकर राजा स्वय नीचे आए । उन्होंने देखा तो उसके आश्चर्य का पारावार न रहा । गौ माता जोर-जोर से घटा बजा रही थी । उनकी आखों से अश्रुधारा बह रही थी ।
उनके करुण क्रंदन से आस-पास का वातावरण बहुत ही दुखमय हो गया था । यह देखकर राजा की आखों में भी आसू आ गए । गाय की पीठ को सहलाते हुए राजा बोले : “मां ! तुम्हें क्या दुख है ? तुम्हारे साथ किसने अन्याय किया है ?
तुम्हारी भाषा तो मैं समझ नहीं सकता, किंतु संकेत के द्वारा तुम मुझे समझा सकती हो । मैं न्याय प्रेमी हूं । तुम्हारे साथ जिसने भी यह अन्याय किया है, मैं उसे अवश्य दंड दूंगा ।” गाय राजा को उसी ओर ले गई, जहा राजमार्ग पर उसका बछड़ा निर्जीव अवस्था में पड़ा हुआ था ।
बछड़े के पास पहुचकर वह इतनी करुण आवाज में रंभाई कि पत्थर दिल लोगों के दिल भी पिघल गए । एक नागरिक ने तब निर्भीक स्वर में बताया कि युवराज के तेज रफ्तार से जाने वाले रथ की टक्कर से यह गाय का बछड़ा मृत्यु कोप्राप्त हुआ है ।
राजा ने तब युवराज को बुलाकर कहा: ”युवराज ! तुमने गौ माता का बछड़ा मार दिया । अत: अब जैसा उसके बछड़े के साथ हुआ है, वैसा ही तुम्हारे साथ होगा, तभी इस गौ माता को शांति मिलेगी । यही न्याय होगा । राजमहल से वही रथ तेज रफ्तार से चलता हुआ यहा आएगा और तुम्हारे ऊपर होकर निकलेगा ।
अत: मेरा आदेश है कि तुम वही जाकर बैठो ।” फिर राजा स्वयं रथ पर सवार होकर उसे तेज गति से भगाते हुए, उसी स्थान पर पहुंचे जहां युवराज बैठा हुआ था । ज्यों ही रथ युवराज के समीप पहुंचा, न जाने क्या हुआ कि वह रथ अपने आप ही रुक गया । अचानक एक विस्फोट हुआ ।
लोगों की आंखें भय के कारण स्वयं ही बद हो गईं । पुन: जब लोगों ने आखें खोली तो एक दूसरा ही दृश्य वहां उपस्थित था । गाय लोप हो चुकी थी और उसके साथ ही उसका मृत बछडा भी गायब था । जमीन पर बछड़े के जो खून के निशान फैले हुए थे, वे सब भी गायब हो चुके थे । उसके स्थान पर दो देवता राजा के रथ की ऊंचाई तक आकाश में खड़े हुए थे । दोनों देवता राजा की ओर पुथ वर्षा करते हुए उनकी जय-जयकार कर रहे थे ।
राजा और युवराज की न्यायप्रियता देखकर दोनों देवता अत्यंत प्रसन्न हुए । त्रुटि की क्षमा मांगते हुए दोनों देवता बोले : ”राजन ! आपकी न्याय प्रणाली देखकर हम अत्यंत प्रसन्न हैं । हमें मालूम हो गया कि आप सच्चे न्यायप्रिय हैं । आपके राज्य में जब किसी पशु के साथ भी सच्चा न्याय किया जाता है, तब मानव-समाज को मिले न्याय की तो बात ही क्या है ।
हम देव लोक के देव है । आपके न्याय की ख्याति हमारे लोक तक भी पहुंची थी । हमें आपकी प्रशंसा अच्छी नहीं लगी । तब हम आपके न्याय की परीक्षा लेने के लिए यहां मृलु लोग में आपके यहां आए । आज हमने स्वयं अपनी आखों से आपका न्याय देख लिया है । सचमुच आप जैसा न्यायप्रिय राजा इस धरा पर मिलना बहुत मुस्किल इतना कहकर दोनों देवों ने राजा को आशीर्वाद दिया और उन्हें अनेक बहुमूल्य उपहार भेंट कर स्वर्ग को लौट गए ।
शिक्षा:
न्याय तो न्याय ही होता है । एक न्यायशील व्यक्ति कभी अन्याय बर्दाश्त नहीं कर सकता है, वह अन्याय उसके किसी प्रियजन अथक किसी धनिष्ट व्यक्ति ने ही क्यों न किया हो । इसलिए हमें भी सदैव सच्चाई का पक्ष लेना चाहिए और भूलकर भी कभी कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे न्याय की गरिमा घटती हो ।
एक न्यायकारी व्यक्ति ही समाझ में सदैव प्रशंसा पाता है । अन्यायी को मुंह पर प्रशंसा तो बेशक मिल जाती है किंतु पीठ पीछे सदैव उसकी बुराई ही होती रहती है । अत: हमें न्याय का दामन हमेशा थामे रहना चाहिए ।
Hindi Story # 6 (Kahaniya)
बरगद का पेड़ |
किसी स्थान में बरगद का एक बहुत बड़ा पेड़ था । लगभग आधी एकड़ जमीन पर फैला वह बरगद कई पीढ़ियों से राहगीरों को धूप से बचा रहा था । उन्हें ठंडी छाव दे रहा था । हजारों पक्षियों को वह बरगद आश्रय भी दे रहा था ।
हर तरह के जानवर, हर जाति के पक्षी एवं मानव उस पेड़ की ठंडी छाया में आराम करके जाते थे । स्वयं धूप झेलकर सबको ठंडी छांव देने वाला वह बरगद निःस्वार्थ सेवा के अच्छे सबूत के रूप में वहां खड़ा था । उन दिनों उस प्रदेश पर गंगा वंश के राजाओं का शासन था ।
उस विशाल बरगद के नीचे सेनाधिपति घोड़ों और हाथियों को युद्ध का प्रशिक्षण दिया करते थे । राजा उस विशाल वृक्ष के नीचे न्याय करके, हजारों लोगों के सामने दुष्टों का दमन और सज्जन व्यक्तियों की रक्षा किया करते थे । पर्वों के समय उस बरगद के नीचे मेले और उत्सव होते थे ।
उस पेड़ के नजदीक बना राजभवन भी, जो बहुत ही बड़ा और कीमती था, उस बरगद के मुकाबले फीका लगता था । एक दिन माधव नाम का एक राहगीर सूर्यास्त के समय बहुत दूर से चलकर थका-मांदा उस पेड़ के नीचे पहुंचा । तब तक दो गाड़ीवान भी वहां आ पहुंचे और बैलों को गाड़ी से खोलकर वहां आराम करने की तैयारी करने लगे ।
माधव दिन-भर का थका हुआ था । वृक्ष की छाया में लेटते ही उसे नींद आ गई । आधी रात के समय उसकी नींद टूटी तो उसे लगा, जैसे कोई उसके कानों में कुछ बोल रहा हो । वह सतर्क होकर बैठ गया । उसने औखें मलकर इधर-उधर देखा, लेकिन कोई उसे दिखाई न दिया ।
माधव ने सोचा कि शायद उसे कोई अम हो गया होगा वह फिर से लेटने जा ही रहा था कि तभी उसे फिर से स्पष्ट आवाज सुनाई पड़ी कोई उससे कह रहा था : ‘बेटा ! कौन हो तुम ? कहां जा रहे हो ?’ डर के मारे माधव की घिग्घी बंध गई । उसकी सारी नींद उड़ गई ।
दूर कहीं उसे गीदड़ों की हुआ-हुआ की आवाजें सुनाई दी तो वह बेहद भयभीत हो उठा । उसका शरीर भय से थर-थर कांपने लगा । तभी उसे वही आवाज फिर से सुनाई दी : ”डरो मत पुत्र ! मैं बहुत समय से इस बरगद पर रहने वाली एक प्रेतात्मा हूं । मैं तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं करूंगा, इसलिए निडर होकर मेरी बात सुनो ।”
प्रेतात्मा का यह आश्वासन सुनकर माधव का धैर्य कुछ बंधा । उसे मालूम हुआ कि प्रेतात्मा की बातें सिर्फ उसे ही सुनाई पड़ रही हैं, क्योंकि उससे कुछ ही दूर सोए दोनों गाड़ीवान खर्राटे मारकर सो रहे थे । यदि प्रेतात्मा की बातें उन्हें भी सुनाई पड़ती तो वे भी उसी की तरह चौंककर अब तक उठ गए होते ।
”तुम कौन हो और सिर्फ मुझे ही क्यों यह बातें बता रहे हो?” माधव ने सतर्क स्वर में पूछा । प्रेतात्मा ने कहा: ”सुनो बेटा! अपनी मृलु से पहले मैं एक धनी व्यापारी था । मेरे पास ऐश्वर्य का हर सामान उपलब्ध रहता था । नौकर-चाकर, धन-दौलत, आलीशान कोठी और जो भी भौतिक सुखों की वस्तुएं होती हैं, वे सब-की-सब मेरे पास थी ।
अपनी जानकारी में मैंने किसी भी व्यक्ति का कोई अनिष्ट नहीं किया था । न्यायपूर्ण ढंग से ही मैंने अपना सारा धन कमाया था । जहां तक मुझे ज्ञात है, मैंने हमेशा अपने जीवन में गरीबों वृद्धों और रोगियों की सेवा की थी । मैं सदा भगवान से प्रार्थना करता था कि मैं स्वार्थी न बनूं और लोगों की सेवाएं करता रहूं ।
शायद इसीलिए इस योनि में रहते हुए भी मैं यह महसूस करता हूं कि जैसे इस वृक्ष के रूप में भी मैं लोगों को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा हूं ।” माधव ने मंत्रमुग्ध होकर उसकी सारी बातें सुनी । फिर पूछा : ”यह तो सब ठीक है, किंतु यह मेरी समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये सब बातें मुझे ही क्यों बता रहे हो ?”
”हां, वही तो बताने जा रहा हूं ।” प्रेत बोला: ”तुम्हें देखते ही मुझे ऐसा लगा था, जैसे तुम्हें मेरी जरूरत है । तुम एक बंजारे की तरह इधर-से-उधर घूम रहे हो । मैं चाहता हूं कि तुम्हें स्थिर जीवन दिलाकर सुखी बनाऊ, इसीलिए मैं तुम्हारे बारे में पूछ रहा था ।” यह सुनकर माधव बोला : “हे प्रेत ! यह तो तुम सही कहते हो कि में एक बहुत ही दरिद्र व्यक्ति हूं । बंजारे की तरह, कटी पतंग की भांति मैं इधर-से-उधर भटकता रहता हूं ।
मेरी शिक्षा भी विशेष अ नहीं है । इसलिए शायद मुझे भगवान की कृपा नहीं मिली । बस यूं ही इधर-उधर भटककर अपने दिन काट रहा हूं । मुझ जैसे लाचार और अनाथ को किसी-न-किसी दिन इस बरगद के पेड़ जैसे वृक्ष के नीचे अपनी जान छोड़ देनी पड़ेगी । मुझ जैसे दुर्भाग्यशाली व्यक्ति की तुम किस तरह सहायता कर सकते हो ?”
यह सुनकर प्रेत ने कहा: ”इस तरह से निराश मत हो बेटा! मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूं । कल से ही तुम अपने जीवन में स्थिरता प्राप्त कर लोगे, लेकिन तब भी तुम्हें सप्ताह में एक दिन रात के समय मेरे पास यहां आना होगा ।
तुम बहुत थके हो, इसलिए अब मैं तुमसे ज्यादा कुछ नहीं कहता । अब तुम आराम करो ।” यह कहकर प्रेत ने बोलना बंद कर दिया । प्रेत की बातें सुनकर माधव का डर तो किसी हद तक कम हो गया था, किंतु उसके मन में यह शंका बनी ही रही कि यह फ्ते आखिर उसका भला क्यों करना चाहता है ।
करेगा भी तो कैसे ? क्योंकि उसने तो अभी तक यही सुना था कि फ्रोत्माएं दुष्ट होती है । वह मानवों का बुरा चाहती है । वह उनके शरीर में प्रवेश करके उन्हें नाना प्रकार के कष्ट देती हैं आदि । माधव इन्हीं बातों पर देर तक विचार करता रहा ।
फिर यह सोचकर कि जो भी होगा, देखा जाएगा, वह नींद के हवाले हो गया । सुबह जब उसकी नींद खुली तो सूर्योदय हो चुका था । पेड़ के नीचे सोने वाले दोनों गाड़ीवान कब के जा चुके थे । वह उठा और उठकर शौच क्रिया के लिए चल पड़ा ।
शौच से निबटकर उसने एक तालाब में स्नान किया । फिर नहा-धोकर अपने रास्ते पर चल पड़ा । आगे चलकर रास्ते में उसे एक व्यापारी मिला । उसने माधव को रोका और पूछा : ”कहां के रहने वाले हो युवक और इस ओर कहां जा रहे हो ?”
‘क्या बताऊं मित्र ! मेरा तो न कोई घर है और न ठिकाना ।’ माधव बोला : ”बस जिधर भी कोई काम मिलने की आस होती है, उधर ही को निकल जाता हूं । वैसे लोग मुझे माधव कहकर बुलाते है ।” ”नौकरी करोगे मेरे पास?” व्यापारी ने सीधे और सपाट स्वर में पूछा ।
”क्यों नहीं? बशर्ते कि कोई सम्मानित कार्य हो ।” माधव ने कहा । ने समझ लो इसी घड़ी से तुम्हें नौकरी मिल गई । मुझे अपने व्यापार के कामों में सहायता देने के लिए एक नौजवान की जरूरत है ।” व्यापारी ने कहा । ”एक बात पूछूं सेठजी!” माधव बोला: ”मेरी और आपकी मुलाकात सिर्फ चंद मिनटों की है ।
फिर आपने एकाएक मेरा चयन कैसे कर लिया?” ‘मैने तुम्हारी आखों में ईमानदारी की चमक देखी है । यह भी देखा है कि तुम एक दृढ़ प्रतिज्ञ और आत्मविश्वासी व्यक्ति हो । इसी कारण तुम्हें देखकर मैंने तुम्हारे सामने अपना प्रस्ताव रखा है ।’ व्यापारी ने कहा ।
उस दिन से माधव उस व्यापारी के पास काम करने लगा । माधव इस बात को जानता था कि उसे यू आनन-फानन में जो नौकरी मिली है, उसे दिलाने में बरगद वाले प्रेत का हाथ है । उसने वादा किया था कि मैं तुम्हारा जीवन स्थिर बना दूंगा, सो अब वह मेरी भटकन दूर करके मुझे स्थिर जीवन जीने में मदद कर रहा है ।
उसे प्रेत का यह कहना भी याद था कि उसे हफ्ते में एक रात इस बरगद के पेड़ के नीचे आकर गुजारनी पड़ेगी, इसलिए वह व्यापारी से आज्ञा लेकर सप्ताह में एक दिन उस बरगद के पेड़ के नीचे जाकर सोने लगा । दिन इसी तरह व्यतीत होने लगे । व्यापारी जितना वेतन उसे देता था, वह उसके लिए पर्याप्त था ।
फिर कुछ दिन बाद माधव ने शादी कर ली । उसका जीवन स्थिर हो गया । गांव के लोग उसकी इज्जत करने लगे । समाज में उसका मान-सम्मान बढ़ गया । एक दिन हमेशा की तरह जब वह रात को बरगद के पेड़ के नीचे पहुचा तो प्रेतात्मा ने उससे कहा: ”माधव! आज मैं तुमसे अपने एक काम को करने का वचन लेना चाहता हू । बोलो, करोगे मेरा एक काम ?”
माधव बोला : ‘हे प्रेतात्मा ! मैं आपका बहुत अहसानमंद हूं । आपने मुझे एक स्थिर जीवन प्रदान किया है । आप जो भी काम बताएंगे, उसे करके मुझे बहुत खुशी होगी । आप निःसंकोच होकर अपनी इच्छा बताएं ।” ”तो सुनो ।” प्रेतात्मा ने कहा: ”जिस समय मेरी मृलु हुई थी, उस समय मेरा पुत्र घर से दूर व्यापार के लिए गया हुआ था ।
मेरा एक ही पुत्र है, जिसे मैं जी-जान से चाहता हूँ । मेरी मृत्यु के समय मेरे रिश्तेदार, मेरे परिजन सब मेरे पास थे, किंतु उनकी निगाहें मेरी कैलत पर थीं । वे चाहते थे कि जैसे ही मेरी औखें मुर्दे, मेरी सारी सम्पत्ति मिलकर हड़प कर लें । उस समय मैं लाचार था ।
मैं अपनी दौलत अपने बेटे को देना चाहता था, इसलिए मैंने अपनी मृत्यु से पूर्व कछ दौलत एक स्थान पर भूमि में दबाकर सुरक्षित रख ली थी । इस प्रेत योनि में इस बरगद के वृक्ष पर रहकर मैं इसके नीचे विश्राम करने वाले लोगों को परखा करता था ।
यहां आदमी तो बहुत आए, किंतु कभी मेरा बेटा इधर से होकर नहीं गुजरा । फिर एक दिन रात के समय तुम यहाँ ठहरे । मैंने तुम्हारी आखों में सच्चाई की झलक देखी । मैंने यह भी महसूस किया कि तुम्हें किसी सहारे की जरूरत है । अत: मैंने तुम्हारी सहायता करने का निश्चय किया ।
आज जब तुम एक सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत कर रहे हो तो मैंने तुमसे एक काम कराने का निर्णय लिया है । आशा है तुम मेरा काम कर दोगे ।” ”आप काम तो बताइए । मैं उसे प्राणपण से करने र्का चेष्टा करूंगा ।” माधव ने कहा ।
”मैंने तुम्हें अभी-अभी बताया था कि मैंने अपना कुछ धन जमीन में दबाकर रखा हुआ है । मैं वह धन अपने पुत्र तक पहुचाना चाहता हूं ।” प्रेत ने कहा । ”मुझे उस स्थान के बारे में बता दीजिए ।” माधव बोला: ”मैं आपका वह धन आपके पुत्र के पास पहुंचा दूंगा ।” ”मुझे धोखा तो नहीं दोगे ने ?”
”हर्गिज नहीं ।” ”तो सुनो, मैंने वह धन इसी वृक्ष के नीचे एक खोखल में छिपाकर रखा हुआ है । तुम वह धन निकाल लो और ले जाकर मेरे पुत्र को सौंप दो । बस, मैं तुमसे यही काम कराना चाहता हूं ।” माधव का मनसाफ था । दूसरे उस प्रेतात्मा का पुत्र अर्थात वह व्यापारी भी जिसके पास माधव काम करता था, उस समय व्यापार के सिलसिले में परदेश गया हुआ था ।
अत: उसने बरगद के खोखल से वह धन निकालकर अपना कार्य किसी अन्य दिन के लिए टाल दिया । उसने सोचा कि जब उसका स्वामी घर लौट आएगा तो वह उस धन को निकालकर उसे सौंप देगा । व्यापारी कई महीनों बाद वापस घर लौटा । इस बीच माधव का मन भी विचलित हो गया ।
वह सोचने लगा : ‘अब उसका परिवार भी बढ गया है । आगे उन्हें भी धन की जरूरत पड़ेगी, इसलिए क्यों न वह धन निकालकर अपने घर में ले आऊ । भविष्य में वह धन मेरे और मेरे परिवार के काम आएगा ।’ ऐसा विचार करके वह उस धन को निकालने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे जा पहुंचा ।
माधव ने प्रेतात्मा द्वारा बताए स्थान पर खोखल को खोदा तो उसमें रखा वह धन उसे दिखाई दे गया । धन देखकर उसकी आखों में लालच की चमक पैदा हो गई । उसने हाथ बढ़ाकर उस धन को निकालना चाहा, तभी उस धन के नीचे बैठा एक काला नाग वहा प्रकट हुआ ।
उसने माधव के हाथ पर अपना फन दे मारा । नाग के दंश से तत्काल ही माधव की दशा बिगड़ने लगी । नाग का तीक्षण जहर उसके शरीर में प्रवेश कर उसे मृलु की ओर धकेलने लगा । माधव को मूर्च्छा आने लगी ।
तभी उसने बरगद के पेड़ से आती प्रेतात्मा की आवाज सुनी : ”अरे मूर्ख इंसान ! मैंने तुझे सुधरने का एक भरपूर अवसर प्रदान किया । तेरा जीवन स्थिर किया । तुझे समाज में मान-सम्मान दिलवाया । तेरे वंश में वृद्धि की और अब तू मुझसे ही विश्वासघात करने चला था ।
तेरे स्वार्थ ने ही तेरी जान ली है । तुझे अपनी जिम्मेदारी सौंपकर मेरी आत्मा तो इस योनि से मुक्ति पा गई, किंतु अब से तू प्रेत बनकर इस बरगद पर निवास करेगा और मेरे इस धन की रक्षा करेगा । अब से तुझे भी मेरी ही तरह किसी ऐसे ईमानदार व्यक्ति की प्रतीक्षा रहेगी, जो इस धन को इसके सच्चे उत्तराधिकारी को पहुंचा सके ।
माधव! तेरा स्वार्थ ही तुझको ले डूबा । अब तू इस बरगद पर प्रेत बनकर रह और इस धन की रखवाली कर ।” इसके पश्चात प्रेतात्मा की आवाज शांत हो गई और माधव प्रेत बनकर उस बरगद के पेड़ पर रहने लगा ।
तब से न जाने कितने वर्ष बीत गए हैं, पर आज भी उस बरगद के पेड़ के नीचे सोने वालों को किसी आत्मा की पुकार यदा-कदा सुनने को मिल जाती है । उस आवाज में करुणा भरी होती है । वह आवाज पुकार-पुकारकर यही कहती है कि कभी लालच मत करना, कभी लालच मत करना । कभी किसी की अमानत में खयानत मत करना ।
शिक्षा:
ठीक ही तो कहती है उस प्रोतात्मा की आवाज । लालच सचकुच एक बुरी बला है । हसे अपने भीतर लालच को कभी स्थान नहीं देना कहिए । लालक में आकर व्यक्ति अंश हो जाता है और वह करणीय और अकरणीय कामों में भेद नहीं कर पाता ।
इसलिए हमें अपने मन को निर्मल रखना चाहिए । कोशिश करनी चाहिए कि कोई विकार मन में पैदा ही न हो । एक निर्मल मन कला व्यक्ति ही जीवन में सभी से सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है । निर्मल मन का व्यक्ति सदैव सुखी और सपंन्न रहता है ।
Hindi Story # 7 (Kahaniya)
काली परी का शाप |
बहुत पुराने-समय की बात है । किसी नगर में एक राजा राज करता था । उस राजा के यहां ऐश्वर्य के सारे साधन मौजूद थे, किंतु संतान न होने का दुख उसे हमेशा सालता रहता था । संतान न होने का राजा और रानी दोनों को ही बहुत दुख था ।
एक दिन रानी ने सपने में देखा कि एक सुंदर परी उससे कह रही है : “घबराओ नहीं, मैं तुम्हारी बेटी बनकर आ रही हूं ।” कुछ दिन बाद सचमुच ही रानी की कोख से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया । राजा ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया ।
उसने इस अवसर पर परी रानी समेत, उसकी पांच सहेलियों को भी इस उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण दिया । छहों परियां वहा पहुंची । परी रानी ने रानी से कहा : ”रानी ! मेरी बेटी ने ही तुम्हारे यहां जन्म लिया है । मैं इसकी बांह में एक तावीज बाध देती हूं ।
वह तावीज जीवन-भर इसकी रक्षा करता रहेगा । तावीज के प्रभाव से इसे भूख-प्यास नहीं सताएगी । इसकी जवानी हमेशा बनी रहेगी ।” ऐसा कहकर परी रानी ने एक तावीज नवजात कन्या की बांह मेंबांध दिया । फिर उसनेरानी कीउस नवजात कन्या केलिए निर्मित एक मोतियोंकी माला, सोनेका एक मुकुट, जादूकी एक छड़ी औरएक सुंदर-सी पोशाक दी ।
उसने कहा कि यह पोशाक कभी मैली नहीं होगी, सदैव ऐसी ही बनी रहेगी । परी रानी द्वारा उपहार देने के बाद पांचों परियों ने राजकुमारी को चारों तरफ से घेर लिया और नाचने-गाने तथा उस पर फूल बरसाने लगी । एक परी ने कहा : ”मैं राजकुमारी को ‘जादू की नाव’ दे रही हूं । यह पानी में भी चल सकती है और हवा में भी उड़ सकती है ।”
दूसरी परी बोली : “मैं यह जादू का फूल दे रही हूं । यह कभी मुरझाएगा नहीं और इसकी सुगंध कभी समाप्त नहीं होगी । इसको सुधने से उम्र बढ़ती जाएगी और कोई बीमारी पास नहीं आएगी ।” तीसरी परी राजकुमारी के हाथ में एक गुड़िया देती हुई बोली : ”यह जादू की बोलती हुई गुड़िया है ।
राजकुमारी की यह प्यारी सहेली बनकर रहेगी ।” चौथी परी ने राजकुमारी को एक सुनहरी गेंद देते हुए कहा : ”इस गेंद से राजकमारी खेला करेगी । यह गेंद पटकने से बांसुरी की आवाज करेगी और इससे सोने के फूल झड़ने लगेंगे ।” पांचवी परी ने जादू का एक थैला देते हुए कहा: ‘यह राजकुमारी के बहुत काम की चीज है ।
जब राजकुमारी बड़ी हो जाए तो यह थैला उसे दे देना । इसमें एक किताब है, जिसमें दूर-दूर के देशों की घर बैठे सैर हो जाती है और नाचने-गाने का लुत्क उठाया जा सकता है । एक ऐसा जादू का यंत्र भी इसमें रखा है, जिससे दूसरे के मन की बात जानी जा सकती है और आकाश के नक्षत्रों तक भी पहुंचा जा सकता है ।”
राजा ने पांचों परियों और परी रानी को धन्यवाद दिया । जब वे जाने लगी तो एक काली परी वहां आ पहुंची । वह बड़ी भयानक और दुष्ट स्वभाव की थी । क्रोध से उसकी आखें लाल हो रही थी और वह गुस्से से थर-थर कांप रही थी । सब परियां उसे देखकर सिहर उठी ।
वह काली परी राजा से बोली : ”तुमने मुझे क्यों आमंत्रित नहीं किया ? तुमने मेरा अपमान किया इसलिए तुम्हें शाप देती हूँ कि जब यह राजकुमारी सोलह वर्ष की होगी, तब चरखे के तकुए के घाव से इसकी मौत हो जाएगी ।”
इतना कहकर वह अपने काले पंख फड़फड़ाती हुई जिधर से आई थी उधर को ही तेजी से चली गई । उसके जाते ही वहां छाया अंधेरा दूर हो गया । ठंडी हवा चलने लगी । मुरझाए हुए पेड़ों के पत्ते हरे हो गए । सबके मुरझाए चेहरे खिल उठे ।
काली परी का शाप सुनकर राजा-रानी, दोनों उदास हो गए । परी रानी ने जादू की छड़ी पुमाते हुए कहा : ”पूरे शाप को मिटाने की ताकत तो मुझमें नहीं है पर मैं इसमें इतना उलट-फेर कर सकती हूँ कि राजकुमारी की मृत्यु नहीं होगी ।”
इतना कहकर सभी परियां चली गईं । राजा ने अपने राज्य में यह मुनादी करवा दी कि कोई भी राज्य का नागरिक अपने घर में चरखे पर सूत न काते । इस तरह पंद्रह वर्ष बीत गए । हंसी-खुशी में दिन कट गए । कहीं कोई दुर्घटना नहीं हुई ।
राजकुमारी को जब सोलहवां साल लगा तो राजा ने अपने राज्य में चारों तरफ सिपाही भेज दिए, ताकि वह यह जाकर देखें कि कोई अपने चरखे पर सूत तो नहीं कात रहा । उसने महल के चारों तरफ भी सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी करा दी । राजकुमारी महल में रहते-रहते ऊब चुकी थी ।
उसे कहीं इधर-उधर जाने नहीं दिया जाता था । एक दिन उसने झरोखे से बाहर झाका । आसमान में बादल छाए हुए थे । बारिश की हल्की-हल्की फुहारें पड़ रही थी । पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहे थे । तालाब में कमल के फूल खिले हुए थे । पेड़ों पर कोयल छूक रही थी । पपीहा अपनी मधुर आवाज में ‘पिऊ-पिऊ’ कर रहा था ।
राजकुमारी का मन बाग में घूमने को हुआ । वह चुपचाप सब की आख बचाकर बाहर चल दी । जैसे ही वह बाग के फाटक पर पहुंची, उसकी नजर एक बुढिया पर पड़ी । वह बुढ़िया चरखा चला रही थी । राजकुमारी उसके करीब पहुंची और उससे पूछा : ”दादी मां ! यह तुम क्या कर रही हो ?”
बुढ़िया बोली : ”सूत कात रही हूं बेटी !” ”जरा मैं भी सूत कातकर देखूं ।” राजकुमारी ने कहा । बुढ़िया मुस्कराकर बोली : ”हां-हां, जरूर, पर जरा जल्दी करो । कोई देख न ले ।” राजकुमारी ने हंसकर कहा : ”देख लेगा तो देखने दो । मैं कोई चोरी थोड़े ही कर रही हूं ।”
बुढिया हटी । उसकी जगह राजकुमारी सूत कातने के लिए आ बैठी । तभी बुढ़िया का हत्का-सा धक्का उसे लग गया, जिसके कारण तकुए की नोंक उसकी उंगली में चुभ गई । राजकुमारी बेहोश होकर नीचे गिर गई । बुढ़िया, जो वास्तव में काली परी थी, तत्काल वहा से गायब हो गई ।
जब राजकुमारी को गए काफी देर हो गई तो उसकी सखियां उसे ढूंढने लगीं । शीघ्र ही उन्होंने बाग के फाटक पर बेहोश पड़ी राजझारी को देख लिया । इससे वे सब घबरा गई और उसे लेकर राजमहल में चली गईं । जैसे ही उन्होंने राजझारी को उसके पला पर लिटाया, एक जोर का धमाका हुआ ।
सबको गहरी नींद आ गई । महल के कुत्ते मक्खी-मच्छर, हाथी-घोड़े, पिंजरे में टंगे तोता-मैना सभी बेहोश हो गए । कमरे में काम करते हुए नौकर सो गए । राजा-रानी को भी नींद के गहरे झोंके आने लगे । महल के चारों तरफ मीलों तक घना जंगल-ही-जंगल नजर आने लगा ।
आदमी का नामो-निशान न रहा । चारों तरफ ऊंची-ऊंची पहाड़ियां तथा तालाब दिखाई पड़ने लगे । महल के पास कंटीली झाड़ियां फैल गईं । इतना घना अंधकार हो गया कि दिन रहते भी कुछ दिखाई नहीं देता था । सूखार जंगली जानवर चारों तरफ विचरने लगे ।
पेड़ों पर सांप लटक रहे थे । कहीं शेर गरज रहा था तो कहीं चीता गुर्रा रहा था । कहीं-कहीं पर हाथी चिंघाड़ रहे थे । तालाब और नदियों में मगरमच्छ भर गए थे । पूरा जंगल हिंसक जानवरों से भर उठा था ।
ऐसे ही बहुत दिन बीत गए । बच्चे जवान हुए, जवान बूढ़े हो गए । महल को लोग ‘भुतहा महल’ कहने लगे थे । उधर जाने का कोईनाम नहीं लेता था । सौ साल ऐसे ही बीत गए । दुनिया बदल गई । अब लोग राजकुमारी की बात भूलने लगे थे ।
दूर के गांव के बुजुर्ग लोग अपने बच्चों को यह बताते थे कि उन्होंने अपनी नानी-दादियों से राजकुमारी की कहानी सुनी थी । अब तो ऐसे लोग भी चल बसे थे । कोई इक्का-दुक्का ही भलेकभी मिल जाता हो, जो राजकुमारी की कहानी सुना सकता हो ।
राजकुमारी के ‘भुतहा महल’ से एक हजार कोस की दूरी पर एक बहुत बड़ा राज्य था । वहाँ का राजा बड़ा शक्तिशाली था । उसका इकलौता बेटा ‘सुंदरम’ बड़ा सुंदर तथा वीर था । उसे शिकार खेलने का बड़ा शौक था । अपने साथी नरसिंह के साथ वह अकसर शिकार खेलने जंगल में जाया करता था ।
उसे घूमने-फिरने में बहुत आनंद आता था । वह दूर-दूर के अनेक राज्यों में घूम चुका था । क दिन सुबह के समय जब उसकी आख खुली, उसने कोयल की कूक सुनी । उसने सिरहाने की ओर नजर डाली तो उसे एक परी खड़ी हुई दिखाई दी, जो उसकी ओर देखते हुए मुस्करा रही थी ।
परी के सिर पर सोने का मुकुट था और उसके हाथ में जादू की छड़ी थी । सने कहा : ”राजकुमार! अब तुम जवान हो गए हो । दूर देश में एक राजकुमारी तुम्हारा इंतजार कर रही है । तुम आज से एक महीने के भीतर-भीतर वहां पहुंच जाओ ।” जकुमार बोला : ”कहां है वह देश ? और मैं वहां पहुंचूंगा कैसे ?”
परी ने तब एक तोता उसे दिया और कहा : ”यह तोता तुम्हें वहां पहुंचा देगा ।” र परी ने एक कवच और एक तलवार उसे दी और बोली : ”तुम यह कवच पहन लेना और यह तलवार लेकर आगे बढ़ना । रास्ते में तुम्हें कोई भी रोके, किंतु तुम रुकना नहीं । किसी से बात भी मत करना ।
बहादुरी से अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ना । सोती हुई राजकुमारी की उंगली में यह तलवार ष्युा देना । वह नींद से जाग पड़ेगी । उसके जागते ही सब जाग उठेंगे । रास्ते में एक ‘काली परी’ तुम्हें मिलेगी, जो महल का रास्ता रोके खड़ी होगी । तुम इस तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर देना ।
जब राजकुमारी जाग उठेगी तो मैं तुमसे वहीं पर मिलूंगी । अब तुम तुरत चल पड़ी और जल्दी से वहाँ पहुँच जाओ । आखों में जादुई अंजन लगा लो, तुम्हें सब-कुछ दिखाई पड़ने लग जाएगा । अंजन लगाते ही तुम यहां बैठे-बैठे ही सुँदर राजकुमारी को सोती हुई देख सकोगे ।”
यह कहकर परी गायब हो गई । राजकुमार के सोने का कमरा सुगंध से भर गया । सरे दिन राजकुमार अपने पिता के पास पहुंचा । उसने अपने पिता को सारी बातें बताकर कूछ करने की आज्ञा मांगी । राजा ने उसे आज्ञा दे दी । साथ में उसका साथी नरसिंह भी चलने को तैयार हुआ, पर राजकुमार अकेला ही घोड़े की पीठ पर बैठकर अशर्फियों की थैली लटकाकर चल पड़ा ।
वह तेजी से अपनी मंजिल तय करता हुआ चला जा रहा था । तोता उसको रास्ता बतलाता जा रहा था । कितने ही नदी-नाले उसने पार किए । कितने ही जंगलों की खाक छानी । आखिर में वह उस भयानक जंगल के पास आ पहुंचा जहा राजकुमारी का ‘भुतहा महल’ था ।
तभी तोते ने राजकुमार के कान में कुछ कहा और एक दिशा में उड़ गया । अब राजकुमार अकेला ही आगे बढ़ा । एकाएक कई फुफकारते हुए सांप उस पर टूट पड़े । परी की दी हुई तलवार से राजकुमार ने उन सभी सांपों का सफाया कर डाला । शेर, भालू और चीतों का शिकार करता हुआ वह आगे बढ़ा ।
तालाब के किनारे उसे एक बुढ़िया मिली । उसने क्टा : ‘आगे मत बड़ी खतरा है । लौट जाओ ।’ लेकिन राजकुमार ने उसकी बात नहीं मानी । वह आगे-ही-आगे बढ़ता गया । सामने उसे एक झील दिखाई दी । उस झील के किनारे एक अत्यत सुदर परी खड़ी हुई थी ।
उस परी ने मुस्कराकर कहा : ”आओ न मेरे पास । हम दोनों मिलकर इस सुंदर झील के मोती जैसे चमकने वाले जल में स्नान करेंगे । राजकुमारी तक तुम्हारा पहुंचना कठिन है । तुमने गलत रास्ता चुना है ।” जकुमार ने उसका प्रस्ताव भी ठुकरा दिया । वह अपने रास्ते पर चलता रहा ।
उसका घोड़ा सही रास्ते पर जा रहा था । उसने आखों में जादुई अंजन लगाया हुआ था, इसलिए राजकुमारी उसे दिखाई पड़ रही थी । भी एकाएक उसका घोड़ा एक जगह ठिठककर खड़ा हो गया । सामने देखा तो उसे एक भयानक परी तलवार हाथ में लिए दौड़ती हुई आती दिखाई दी ।
उसके बाल बिखरे हुए थे । वह अपने काले पंखों को जोर-जोर से फड़फड़ा रही थी । उसकी आखों से चिंगारियां निकल रही थी । उसके नमुने फूले हुए थे और मुंह गुस्से से लाल हो रहा था । वह राजकुमार के समीप पहुंची और कडककर बोली: ”खबरदार जो आगे बड़े । मेरे शाप को झुठलाने वाले तुम होते कौन हो ?”
राजकुमार ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया । उसने कसकर अपनी तलवार का एक वार उस पर कर दिया । काली परी बुरी तरह से घायल होकर चीखती हुई वहां से भाग निकली । राजकुमार झाड़ियों को अपनी तलवार से काटता हुआ आगे बढ़ा । आखिर वह रात होने से पहले महल के फाटक तक पहुंच गया ।
फाटक को काली परी ने मजबूती से बंद कर रखा था । वह इमली के पेड़ की आड़ में छिपी बैठी थी । राजकुमार ने फाटक को जोर का धक्का दिया । लोहे का फाटक टूटकर गिर पड़ा । काली परी ने पीछे से उस पर वार किया । राजकुमार नेपरी रानी का दिया हुआ कवच पहन रखा था, इसलिए काली परी के तलवार के वार का उस पर कोई असर नहीं हुआ ।
उसने बिना मुड़े ही तलवार का ऐसा जोरदार वार किया कि काली परी के दोनोंपँख कट गए । पँख कटतेही वह उस कमरेकी ओर दौड़ पड़ी, जिसमें राजकुमारी पलग पर लेटी थी । राजकुमार तुरंत ताड़ गया कि वह बेहोश हुई राजकुमारी पर वार करेगी ।
उसने दौड़कर उसके हाथ से तलवार छीन ली और जोर का धक्का देकर उसे जमीन पर गिरा दिया । काली परी के शरीर से खून बह रहा था, तब भी वह राजकुमारी के पलंग की ओर बढ़ती ही गई । राजकुमार ने फुर्ती से आगे बढ्कर तलवार का एक ऐसा जोरदार प्रहार उसकी गर्दन पर किया कि उसका सिर धड़ से अलग होकर भूमि पर जा गिरा ।
फिर वह तेजी से आगे बढ़ा । अपनी जेब सेपरी रानी की दी हुई बूटी निकाल कर उसने राजकुमारी की जख्मी उंगली से छुआई । बेहोश हुई राजकुमारी ने तत्काल आख खोल दी । उसने अपने सामने एक सुंदर राजकुमार को खड़े पाया । ह बोली : ”मुझे क्या हुआ था ? क्या मैं सपना देख रही हूं ?”
राजकुमार ने कहा : ”आप सपना नहीं, असलियत देख रही हैं राजकुमारी ! मैं दूर देश से आया हुआ एक राजकुमार हूं ।” जकुमारी ने पूछा : ”मेरे माता-पिता कहां हैं ? मैं कहां हूं ?” जकुमार बोला : ”आप अपने महल में ही हैं । आपके माता-पिता भी यही हैं । वे अभी आते ही होंगे ।”
इतने में परी रानी भी वहां आ गई । उसने अपनी जादू की छड़ी पुमाई तो फिर से सब-कुछ वैसा-का-वैसा ही हो गया । जंगल के स्थान पर पहले जैसा नगर बस गया । झाड़-अंखड का कहीं नामो-निशान भी न रहा । सब जाग पड़े । नौकर-नौकरानी अपने-अपने काम में लग गए ।
राजा-रानी दौड़ते हुए राजकुमारी वाले कमरे में आए वहां परी रानी और राजकुमार को देखकर वे आश्चर्य में पड़ गए । पने माता-पिता को देखकर राजकुमारी मुस्कराई । उसे ऐसा लगा मानो वह कल ही सोई हो । उसे ही क्यों, सबको ऐसा ही लगा । काली परी के शाप का असर उसकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया था ।
परी रानी ने राजा से कहा : ”अब आप इस सुंदर राजकुमार से राजकुमारी की शादी कर दीजिए । बेचारा राजकुमार हजार कोस से चलकर आपकी बेटी को खोजते-खोजते यहां आया है । काली परी को इसी ने समाप्त किया है । बस, अब मैं चली ।”
राजा ने बड़ी धूमधाम से राजकुमारी की शादी राजकुमार से कर दी । कुछ समय के बाद राजकुमारी को लेकर राजकुमार सुंदरम अपने नगर लौट आया । राजकुमार के साथ राजकुमारी को देखकर राजा-रानी बहुत प्रसन्न हुए ।
इस अवसर पर नगरवासियों ने भी बहुत खुशी मनाई । उन्होंने अपने-अपने घरों में दीपावली की तरह दीपक जलाए, एक-दूसरे को मिठाइयां बांटी और राजकुमार और राजकुमारी को उनके विवाह के उपलक्ष्य में आशीष एवं शुभकामनाएं दी । सारे नगर का वातावरण संगीतमय हो गया ।
शिक्षा:
देखा आपने बच्चो ! ऐसा होता है ईर्ष्या का परिणाम । एक तो काली परी बिना बुलाए राजकुमारी के पैदा होने के अवसर पर पहुंची और जब पहुंची तो ईर्ष्या में भरकर उसे शाप दे आई । उस शाप के कारण उसे स्वयं का जीवन तो गंवाना ही पड़ा, अपने संगी-साथियों को भी ले डूबी । इसीलिए कहा गया है कि कभी किसी से ईर्ष्या मत करो । ईर्ष्या का परिणाम भयंकर होता है ।