As You Sow, So You Reap (With Picture) | In Hindi!
जो बोया वही काटा |
एक गीदड़ था । उसकी मित्रता एक सारस से थी । गीदड़ बहुत चालाक था, वह बड़ा पेटू भी था । खाने के लिए हर समय ललचाता रहता था । एक दिन उसने अपना जन्मदिन मनाया । उसने जगल के कई पशु-पक्षियों को निमंत्रण दिया । उनमें सारस भी था । सारस बड़ी खुशी से अपने मित्र के घर आया ।
वह उपहारस्वरूप गीदड़ के लिए कुछ मछलियां भी पकड़कर लाया । गीदड़ बड़ा ही प्रसन्न था । सभी उसके लिए कुछ-न-कुछ लेकर आए थे । गीदड़ ने सब उपहार ले लिए । मोमबत्ती बुझाकर उसने जन्मदिन मनाया । अब खाने की बारी थी ।
”मेरे प्रिय दोस्तो!” गीदड़ ने कहा- ”मैंने आप लोगों के लिए बड़ी स्वादिष्ट खीर बनाई थी, परंतु एक छिपकली उसमें गिर पड़ी । अब वह खीर जहरीली हो गई है । यदि आप कहें तो परोसूं ।” जहरीली खीर कौन खाता? सबने मना कर दिया । उसके बाद एक-एक करके सब मेहमान चले गए ।
अंत में सारस जाने को हुआ । ”तुम रुको मित्र ।” गीदड़ बोला- ”यह सत्य है कि खीर स्वादिष्ट थी, परंतु वह थोड़ी थी । इतने लोगों के लिए पर्याप्त नहीं थी । आओ हम दोनों पेट भरकर खीर खाएं ।” ”क्या कह रहे हो! खीर में तो छिपकली गिर पड़ी थी!” सारस आश्चर्य से बोला ।
”अरे नहीं! वह तो मैंने झूठ बोला था । उन लोगों को टरकाया था ।” गीदड़ ने हंसते हुए कहा- ”तुम जानते ही हो कि खाने में मैं जरा कच्चा हूं ।” सारस को यह बात बुरी लगी, परंतु उसने कुछ नहीं कहा । गीदड़ तुरंत खीर से भरी थाली ले आया । वह थाली बहुत चौड़ी थी ।
”आओ मित्र, मिलकर खीर खाएं ।” गीदड़ ने कहा । वे दोनों खीर खाने लगे । गीदड़ तो चपर-चपर करके खूब खीर खा रहा था, परंतु चौड़ी थाली के कारण सारस की चोंच में खीर का एकाध दाना ही आ पा रहा था । देखते-देखते गीदड़ सारी खीर खा गया । सारस समझ गया । उसका पेटू मित्र चालाकी से सारी खीर स्वयं खा चुका था । वह टुकुर-टुकुर गीदड़ का मुंह देखता रहा ।
”खीर बड़ी स्वादिष्ट थी ।” गीदड़ जीभ चाटता हुआ बोला- ”इसी कारण तो मैंने अन्य दोस्तों को टरका दिया ।” सारस भूखा-प्यासा घर से आया था । गीदड़ ने भी उसे कुछ नहीं खाने दिया । उसे अपने मित्र से ऐसी आशा नहीं थी, परंतु वह करता क्या । बस, अपने घर चुपचाप लौट आया ।
कुछ दिन बाद सारस ने अपने घर पर जलसा किया । उसने भी अपने मित्रों को बुलाया । गीदड़ को भी निमंत्रण दिया । गीदड़ खुश हो गया । उसने सोचा कि आज भरपेट सारस के यहां अच्छा-अच्छा भोजन खाऊगा । वह खुशी से झूमता हुआ सारस के घर पहुच गया ।
”आओ मित्र ।” सारस ने उसका स्वागत किया- ”मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था । देखो, कितनी रौनक है यहां ।” ”वह तो ठीक है मित्र, परंतु खाने में क्या-क्या है?” गीदड़ ने पूछा । ”खाने की तो पूछो ही मत! मैंने पके आमों का रस और संतरे का रस इकट्ठा किया है ।
इतना खट्ठा-मीठा रस तुमने कभी नहीं पिया होगा ।” ”तो लाओ न मित्र । तुम तो जानते ही हो कि मुझमें धैर्य नहीं है ।” गीदड़ बोला ”अभी तो नाच-गाना होगा, उसके बाद रस पीना ।” गीदड़ मन मारकर रह गया । आम और संतरे का रस उसे विशेष प्रिय था ।
उसकी लार टपकने लगी, वह प्रतीक्षा करने लगा कि कब वह रस उसके सामने आए । अंत में नाच-गाना शुरू हुआ । कोयल ने गाना गाया । बंदर ने सुंदर नाच दिखाया । सब मस्ती में झूम रहे थे, लेकिन गीदड़ का मन तो रस में ही उलझ चुका था ।
वह नाच-गाने का भी आनन्द नहीं ले सका । नाच-गाना खत्म हुआ । सभी चले गए, केवल गीदड़ और सारस ही वहां रह गए । गीदड़ ने उससे रस लाने को कहा । सारस एक बड़ी सुराही उठा लाया । उसमें से बड़ी अच्छी सुगंध आ रही थी । गीदड़ अपने होंठों पर भी फिरने लगा ।
”इसमें है वो सुगंधित और स्वादिष्ट रस । आओ पिएं ।” सारस ने अपनी लम्बी चोंच सुराही में डाल दी । गीदड़ का चौड़ा मुंह सुराही में कैसे जाता! वह मन मसोसकर रह गया । सारस बड़े चटखारे लेकर रस पी रहा थ । उसकी चोंच से गिरती बूंदें गीदड़ चाटने लगा । रस वास्तव में बड़ा ही स्वादिष्ट था ।
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”क्या बात है मित्र! तुम धरती क्यों चाट रहे हो?” सारस उसकी हंसी उड़ाकर बोला- ”सुराही में मुंह डालो और रस पियो । बड़ा ही मीठा और स्वादिष्ट रस है । अहा, बड़ा स्वाद है ।” गीदड़ सारस का व्यंग्य समझ गया । वह लज्जित होकर रह गया । उसके मित्र ने उससे बदला ले लिया था ।
”मानता हूं मित्र कि मैं चालाक नहीं हूं ।” गीदड़ धीरे-से बोला- ”तुम ही चालाक हो । खैर, मैंने जो बोया, वही काटा है । जैसे को तैसा मिलना ही चाहिए । जैसे करनी वैसी भरनी ।” इस तरह गीदड़ को सबक मिल गया ।
सीख:
बच्चो! यह कहानी हमें संदेश देती है । हमें किसी से वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसा हम अपने साथ होने की अपेक्षा नहीं रखते हैं । अन्यथा जैसे को तैसा ही मिलता है ।