Hindi Story on the Beneficence Helps in Future (With Picture)!
उपकार भविष्य में काम आता है |
जंगल का राजा शेर शिकार पर था । आज बहुत कड़ी धूप थी । शेर भी घूमते-घूमते थक गया था । एक जगह पानी देखकर उसने पानी पिया, फिर थोड़ी देर आराम करने लगा । हारा-थका तो वह था ही । पेड़ के नीचे छाया में आते ही वह गहरी निंद्रा में सो गया । उस पेड़ की जड़ में एक चूहे का बिल था । वह शेर के खर्राटे सुनकर बाहर निकला । उसने शेर को सोया देखा ।
वह चूहा शरारती था । उसे शरारत सूझने लगी । बस, फिर क्या था । वह शेर के ऊपर चढ़ गया और लगा धमाचौकड़ी करने । उसे शेर की गद्देदार पीठ पर बहुत आनन्द आ रहा था । अचानक शेर की नींद टूट गई । उसे क्रोध आ गया । उसने चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया ।
”क्यों रे तुच्छ चूहे! तेरी हिम्मत कैसे हुई?” शेर दहाड़ा- ”मैं सो रहा था । तूने मुझे जगाकर अपनी मौत को दावत दे दी ।” ”सरकार, क्षमा कीजिए!” चूहा गिड़गिड़ाने लगा- ”मुझसे भूल हो गई ।” ”मैं तुझे अभी तेरी भूल का मजा चखाता हूं ।” शेर गुर्राया । ”महाराज, आप जंगल के राजा हैं ।
बड़े-बड़े बलशाली जीव आपकी शक्ति के सामने नतमस्तक हैं । मैं तो तुच्छ प्राणी हूं ।” चूहा विनती करने लगा- ”आप तो हाथी को भी पछाड़ देते हैं । मुझे मार डालना आपके लिए क्या बड़ा काम है, परंतु इससे आपकी प्रशंसा नहीं होगी । सभी आपकी बहादुरी पर उंगली उठाएंगे ।
दया करके मुझे छोड़ दीजिए । आपका यह उपकार मैं जीवन-भर याद रखूंगा । कभी समय आने पर आपका उपकार उतार दूंगा ।” शेर ने जोर से अट्टहास किया । ”चूहे, तू बातें तो अच्छी करता है । वाकई तुझे मारना बहदुरी नहीं है । मैं तुझे छोड़ रहा हूं, परंतु यह न कह कि तू मेरा उपकार उतार देगा ।
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भला तेरे जैसे तुच्छ प्राणी से सिंहराज को क्या काम पड़ सकता है ।” ”समय बड़ा बलवान है महाराज, सुई भी काम आती है ।” ”जा, जा, प्रवचन मत कर ।” शेर हंसकर बोला । शेर ने उसे छोड़ दिया । चूहा मनौती मनाकर बिल में जा घुसा । इस बात को शेर तो भूल ही गया था ।
वह एक दिन जंगल में शिकार ढूंढते हुए एक शिकारी के जाल में जा फंसा । इस संकट ने शेर के होश उड़ा दिए । वह जाल से निकलने के लिए छटपटाने लगा, परंतु जाल था कि कसता ही जा रहा था । बहा कोशिशों के बाद भी वह उस कैद से छूट न सका ।
कोई उपाय न देखकर शेर जोर-जोर से चीखने-दहाड़ने लगा । शेर की आवाज सारे जंगल में गूंज रही थी । चूहे ने भी वह दहाड़ सुनी । ‘अरे, यह तो उसी शेर की आवाज है । उसका एक उपकार है मुझ पर । मैं भली प्रकार से इस आवाज को पहचान रहा हूं ।’ चूहा सोचने लगा ।
फिर वह आवाज की दिशा में दौड़ने लगा । ”कहां भाग रहे हो चूहे भाई?” एक कोयल ने पूछा । ”सिंहराज किसी मुसीबत में फंस गए लगते हैं । मैं उनका ऋणी हूं, जाता हूं, संभव है, उनकी कोई मदद कर सकूं ।” चूहा बोला । कुछ ही देर में वह उस जगह पहुंच गया ।
शेर वास्तव में ही संकट में फंसा हुआ था । चूहा उसके सामने पहुंच गया । ”सरकार, मुझे आप पहचानते हैं? मैं वही हूं, जिस पर दया करके आपने जीवनदान दिया था । मैं आपका वह उपकार नहीं भूला ।” ”मैंने तुम्हें पहचान लिया है भाई, परंतु अब तू कुछ कर । शिकारी आता ही होगा । मेरे प्राण संकट में हैं ।”
”घबराइए मत सरकार, मैं अभी जाल को काट देता हूं ।” कुछ ही देर में चूहे ने जाल काट दिया । उसके दांत बहुत ही नुकीले और पैने थे । शेर आजाद हो गया । ”वाह चूहे भाई! तुम तो बड़े काम के निकले । मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं । मैंने तुम्हें तुच्छ समझा ।
प्राणी का बड़प्पन उसके कर्म से होता है । उपकार करना और उपकार मानना दोनों महानता के चिन्ह हैं ।” चूहा प्रसन्न था । शेर ने उसे बार-बार धन्यवाद जो दिया था । फिर वे दोनों मित्र बन गए । उनकी मित्रता आश्चर्यपूर्ण थी ।
सीख:
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बच्चो! यह कहानी उपकार की उपयोगिता सिद्ध करती है । उपकार करना श्रेष्ठ है । उपकार मानना सर्वश्रेष्ठ है । उपकार मानकर उसे उतारने वाला ही सच्चा है । उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता ।