Do Not Depend on Others (With Picture)!
दूसरे के भरोसे रहकर कार्य पूरा नहीं होता |
एक गांव में महेश नाम का एक किसान रहता था । वह वहुत परिश्रमी था एक दिन वह गाड़ी लेकर जंगल में गया । वहां उसने लकड़ियां एकत्र कर गाड़ी में भर लीं । फिर वह वापस अपने गांव चल दिया । रास्ते में एक गहरा नाला पड़ता था । उसमें कीचड़ भी था ।
महेश ने बैलों को नाले में उतार दिया । वजन अधिक था । इस कारण गाड़ी का पहिया कीचड़ में धंस गया । बैलों ने खूब जोर लगाया, मगर गाड़ी कीचड़ से नहीं निकल सकी । महेश ने बैलों को खूब मारा-पीटा । लेकिन गाड़ी जहां-की-तहां फंसी रही ।
अंधेरा होने लगा था । महेश सहायता के लिए इधर-उधर देखने लगा । उसे कोई न दिखाई दिया । ऐसे ही काफी समय बीत गया । वह थक हारकर बैठ गया । फिर वह अपनी आराध्य देवी मां माँ स्मरण करने लगा ।
”हे देवी, आज मेरी सहायता करो । इस बियाबान जंगल में मुझे तुम्हारे अलावा और कौन बचा सकता है । मेरी गाड़ी पार करा दो । मैं तुम्हें प्रसाद चढ़ाऊंगा ।” महेश ने देवी को पुकारा । देवी ने उसकी पुकार सुन ली । अगले ही क्षण वहां देवी प्रकट हो गई । महेश की खुशी का ठिकाना न रहा ।
”कहो वत्स, क्यों पुकार रहे थे?” देवी ने पूछा । ”मां, मेरी गाड़ी कीचड़ में फस गई है । बैल थक गए हैं । कृपा करके आप मेरी गाड़ी बाहर निकाल दें ।” महेश ने हाथ जोड़कर कहा । ”मूर्ख किसान! बैलों को मार-पीट रहे हो! इस तरह गाड़ी कैसे बाहर निकलेगी? तुम भी पहिए पर जोर लगाओ ।
बैलों को ललकारो । फिर देखो, तुम्हारी गाड़ी किस तरह बाहर निकलती है ।” महेश ने देवी की राय मानी । वह पहिए पर जोर लगाने लगा । उसने बैलों को भी ललकारा । बैलों ने ताकत लगाई । गाड़ी कीचड़ से बाहर निकल गई । महेश खुशी से उछाल पड़ा । उसने देवी को नमसकर किया और प्रसन्नता से बोला- ”मां! आप बहुत दयालु हैं ।
आपकी कृपा से मेरी गाड़ी बाहर निकाल गई । मैं घर ही आपको प्रसाद चढ़ाऊंगा ।” ”अरे भाई किसान!” देवी हंसकर बोली- ”मैं प्रसाद की इच्छुक नहीं हूं । मैंने तुम्हारी कोई सहायता नहीं की । तुम्हारी गाड़ी को मैंने नहीं निकाला । यह तो तुम्हरे ही कारण कीचड़ से निकली है ।”
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”यह आप क्या कह रही हैं देवी मां!” महेश आश्चर्य से बोला- ”क्या आपने मेरी कोई सहायता नहीं की है?” ”तुम मेरा मतलब नहीं समझे । देवी मां, देवी मां कह रहे हो, जबकि यह बात नहीं समझते कि आदमी को दूसरे के भरोसे नहीं रहना चाहिए । उसे अपना कार्य स्वयं करना चाहिए ।
देवी-देवता भी ऐसे ही लोगों से ज्यादा प्रसन्न रहते हैं । अर्थात स्वयं किया गया कार्य ही सफल होता है । जो व्यक्ति दूसरों के भरोसे रहता है, वह कभी सफल नहीं होता । जो व्यक्ति दूसरों का मुंह ताकता है, उसका काम विगड़ता ही है । ” ”मैं समझ गया मां ।” महेश बोला और देवी को नमसकर कर उनसे विदा ली । इस घटना के बाद वह सदैव अपना कार्य स्वयं करने लगा ।
सीख:
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरे की सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए । अपनी सहायता स्वयं करनी चाहिए ।