Evilness is always Bad (With Picture)!
दुष्टता का परिणाम बुरा |
एक जंगल में एक कुत्ता रहता था । उसकी मित्रता एक मुर्गे से थी । दोनों एक-दूसरे के प्रति वफादार थे । वे दोनों सुख-दुख में साथ-साथ रहते थे । एक दिन दोनों जंगल में घूमने गए । बातों-बातों में वे काफी दूर निकल आए । एक अच्छी-सी जगह देखकर वे दोनों बैठ गए ।
फिर दोनों काफी देर तक गप्पें लड़ाते रहे । धीरे-धीरे शाम हो गई । और फिर रात घिर आई । ”मित्र, आज तो हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा ।” मुर्गा घबराकर बोला- ”बातों-बातों में रात हो गई । यह जंगल भी भयानक है ।
घर पहुंचना खतरे से खाली नहीं है । रास्ते में किसी दुष्ट के हाथ पड़ गए तो बचना मुश्किल है ।” ”अरे, तो घबराते क्यों हो?” कुत्ता लापरवाही से बोला- ”मैं तुम्हारे साथ हूं । ”यदि शेर मिल गया तो तुम क्या करोगे?”
”यह तो तुम ठीक कह रहे हो मित्र । खैर, एक काम करते हैं, यहीं सो जाते हैं । तुम पेड़ पर ऊपर चढ़ जाओ, आराम से सो जाओ । मैं नीचे सो जाता हूं । सवेरा होने तक मजे से सोओ ।” कुत्ते ने कहा । ”ठीक है, परंतु तुम अपना ख्याल रखना ।” ”मेरी चिंता मत करो ।
मेरी निंद्रा के बारे में सब जानते हैं ।” मुर्गा हंसता हुआ पेड़ पर चढ़ गया । कुत्ता नीचे पेड़ के तने से टिककर लेट गया । काफी देर तक वे आपस में बातें करते रहे, फिर सो गए । प्रात: होते ही मुर्गा जाग गया । वह रोज की तरह बांग देने लगा ।
सारा जंगल उसकी कुकड़-कूं से गूंज उठा । पास ही एक सियार सो रहा था । वह मुर्गे की बाग से जागा । उसे आश्चर्य हो रहा था कि इस जंगल में मुर्गा कहां से आ गया । फिर वह अचानक प्रसन्नता से उछल पड़ा ।’आहा, कितना सुंदर सवेरा हुआ है, आंखें खुली कि नाश्ता आवाज देने लगा ।
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अब मुझे नाश्ते के पास चलना चाहिए ।’ सियार मन में सोच रहा था । वह दौड़ता हुआ उस पेड़ के पास पहुंचा । पेड़ पर बैठा मुर्गा देखते ही उसकी लार टपकने लगी । वह पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था, इसलिए उसने मुर्गे को नीचे उतारना चाहा ।
”ओह, तो आप हैं मित्र महोदय। आपकी सुरीली आवाज से मेरी नींद खुली है । वाह, वाह! क्या सुरीला कंठ है! कानों में जैसे मिश्री घुल गई ।” सियार ने मुस्कराकर कहा- ”मैं भी स्वरों का थोड़ा ज्ञान रखता हूं । आओ, नीचे उतर आओ ।
मेरे साथ अपनी मधुर आवाज में कुछ गाओ ।” मुर्गा सियार की मक्कारी समझ गया । कुत्ता भी जाग गया था । वह भी सियार की बात सुन रहा था । ”मित्र, क्या तुम मेरी छोटी-सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?” सियार ने कहा । ”क्यों नहीं मित्र?”
मुर्गा हंसकर बोला- ”मैं अभी नीचे आता हूं । तुम्हारे साथ गाने में मुझे अधिक आनंद आएगा, परंतु मेरा एक मित्र भी है । वह पेड़ के उस तरफ सो रहा है । वह बाजा बहुत अच्छा बजाता है, उसे भी जगा लो । तीनों मिलकर गाएंगे! सच, बहुत मजा आएगा ।”
सियार यह सुनकर खुशी से फूला न समाया । वह तो एक मुर्गे की सोचकर आया था, वहां तो दो थे । नाश्ता क्या, भोजन ही तैयार था । वह पेड़ के दूसरी तरफ पहुँचा । वहां कुत्ते पर नजर पड़ते ही उसके प्राण कांप गए, वह जान बचाकर भागा, परंतु कुत्ता उसे कहां भागने देता । उसने उछलकर उसे दबोच लिया ।
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सियार की गर्दन कुत्ते के मुंह में आ गई । ”मु… मुझे छोड़ दो भाई! मुझसे भूल हो गई ।” सियार गिड़गिड़ाया । ”कपटी, दुष्ट, मेरे मित्र को छलने आया था । स्वरों का ज्ञाता कह रहा था स्वयं को । तूने कभी गाने की सरगम भी सुनी है?” कुत्ते ने पूछा । ”मुझसे भूल हो गई । मुझे क्षमा कर दो ।” परंतु कुत्ते ने उसकी गर्दन चबा डाली ।
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सियार तड़पकर मर गया । ”दुष्ट कहीं का!” मुर्गा हंसकर बोला- ”आया मेरा नाश्ता करने । यह नहीं जानता था कि कपट का परिणाम बुरा होता है । छली स्वयं छला जाता है ।” दोनों मित्र मूर्ख धोखेबाज सियार की बात करके हंसते रहे, फिर वे दोनों अपने-अपने घर चल दिए । सत्य ही है, कपट का परिणाम बुरा होता है ।
सीख:
बच्चो! यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें छल-कपट से दूर ही रहना चाहिए । हमारा छल हमें ही छल लेता है ।