List of Six Popular Hindi Stories with Moral Values!
Hindi Stories with Moral (Kahaniya) # 1
सुनहरा केकड़ा |
एक समय की बात है की एक गांव में एक ब्राह्माण खेतीबाड़ी था । वह ब्राह्मण खेतीबाड़ी करता था । उसके पास कुछ खेत भी थे जिनसे अच्छी पैदावार होती थी और मजे में उसकी गुजर-बसर हो जाया करती थी । उसके खेतों के पास ही एक तालाब था ।
एक दिन खूब गर्मी पड़ रही थी । ब्राह्मण खेतों में काम कर रहा था । दोपहर को काम बंद करके वह नहाकर ठंडा होने के लिए तालाब के जल में उतरा । नहाते-नहाते उसकी नजर एक सुनहरे केकड़े पर पड़ी । उसे वह केकड़ा बहुत प्यारा लगा ।
उसने केकड़े को हाथों में लेकर पुचकारा । केकड़ा भी उससे प्यार करने लगा । वह अपने जम्बूर जैसे पंजों से कभी ब्राह्मण की नाक तो कभी होंठ या कान पकड़कर धीरे से खींचते । ब्राह्मण को केकड़े का यह खिलवाड़ अच्छा लगा ।
नहाने के बाद उसने तालाब के किनारे लकड़ियां गाड़कर अपना गीला अंगोछा उस पर तानकर छोटा-सा तम्पू बनाया और केकड़े को उसमें रख दिया । ताकि गर्मी से बचाव हो । शाम को काम समाप्त करने के बाद ब्राह्मण तालाब के किनारे अंगोछा लेने गया ।
केकड़ा उसके अंगोछे की छांव में आराम से सो रहा था । यह देखकर वह बहुत खुश हुआ । ब्राह्मण अंगोछा लेकर चलने लगा तो केकड़ा उसके पीछे चलने लगा । उसने केकड़े को अप ने अंगोछे में लपेटकर पूछा : ”मित्र, तुम मेरे घर चलना चाहते हो न ? चलो ।
मैं तुम्हें तुम्हारी भाभी से मिलवाऊंगा ।” इस प्रकार केकड़े से बतियाता हुआ वह घर पहुंचा । घर पहुंचकर केकड़ा अपनी पत्नी को दिखाकर वह बोला : ”यह सुनहरा केकड़ा मेरा दोस्त है ।” ब्राह्मणी हंसी : “कहीं आदमी और केकड़े में भी दोस्ती हुई है ?”
वह बोला : ”क्यों नहीं ? दोस्ती किन्हीं के बीच भी हो सकती है । बस प्रेम और विश्वास होना चाहिए ।” इस प्रकार अब वह ब्राह्मण रोज रात को केकड़े को घर ले आता और सुबह काम पर जाता हुआ साथ ले जाता । खेतों पर पहचक केकड़े के नामात्र में छोड़ देता ।
उसी ब्राह्मण के खेतों के पास एक ताड़ का पेड़ था । उस पर एक कौआ और कौवी रहते थे । कौवा लालची और पेटू स्वभाव की थी । वह रोज ब्राह्मण को खेतों की और जाते हुए देखती तो सोचती, कितनी बड़ी-बड़ी आँखें हैं उस आदमी की । चर्बी भरी होगी इनमें ।
खाने में कितनी स्वादिष्ट होंगी । एक दिन कौवी कौए से कह ही दिया : “मैं उस आदमी की आंखें खाना चाहती हूं ।” कौए ने उसे समझाना चाहा, पर कौवी ने हट दंड ली कि किसी भी तरह उसकी औखें लाकर खिलाओ । जब भी ब्राह्मण नीचे से गुजरता, कीवी की लार टपकने लगती ।
कौआ कौवी की जिद पूरी करना चाहता था, क्योंकि कौवी अंडे देने वाली थी । मां बनने वाली मादा का दिल नहीं दुखाना चाहिए । एक दिन कौआ उड़ रहा था कि नीचे उसे एक भयंकर नाग अपने बिल में पुसता नजर आया । नाग को देख कौए के दिमाग में ख्याल आया कि अगर यह नाग दोस्त बन जाए तो काम बन सकता है ।
यह ब्राह्मण को डसेगा । जब वह बेहोश होकर गिर पड़ेगा तो मैं उसकी औखें चोंच से खोद निकालूंगा । कौआ शहर के बाहर पड़े कूड़े के ढेर पर मंडराया । कूड़े में चूहे पलते ही हैं । उसने एक मोटा-सा चूहा पकड़ा और उसे लेकर नाग के बिल के पास जाकर पंजों में चूहे को जकड़कर ‘कां-कां’ करने लगा ।
शोर सुनकर नाग बाहर आया तो कौए ने उसके आगे चूहा फेंक दिया । नाग घप से चूहा खा गया । अब कौआ रोज चूहे लाकर नाग को खिलाने लगा । दोनों में दोस्ती हो गई । एक दिन कौए ने अपने मित्र नाग में कहा : “नाग भाई, तुम्हारी भाभी को एक आदमी की आखें खाने की बड़ी तमन्ना है ।
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तुम मदद करो तो काम बन सकता है । तुम उसे डसना । जब वह गिर पड़ेगा तो मैं उसकी आँखें निकाल लूँगा ।” नाग बोला : “यह कौन-सी बड़ी बात है । तुम्हारे लिए तो मैं जान भी दे सकता हूं ।” बस, दूसरे ही दिन प्रात: अपने खेतों में जाने के लिए ब्राह्मण उधर से गुजरा तो घास में ताक में बैठे नाग ने उसे डस लिया ।
नाद द्वारा डसे जाते ही ब्राह्मण चिल्लाकर गिर पड़ा । उसका अंगोछा एक ओर जा गिरा । अंगोछे में उसका मित्र केकड़ा था । ब्राह्मण गिरकर विष के असर से बेहोश हो गया तो कौआ उसकी आंखें निकालने के लिए छाती पर आ बैठा । केकड़ा यह सब देखकर सारा माजरा समझ गया ।
केकड़े ने उछलकर कौए की गर्दन को अपने जम्बूर जैसे पंजों में पकड़ लिया । कौआ ‘कां कां’ कर पंख फड़फड़ाने लगा । पर केकड़े ने खप छोड़ा नहीं । कौए को मृत्युपाश में फंसा देखकर नाग उसकी सहायता करने आया तो केकड़े ने दूसरे पंजे से नाग की गर्दन पकडू ली और बोला : “तू चुपचाप मेरे मित्र को जहां तूने डसा है, वहां से विष चूस ले, वर्ना दोनों की गर्दनें तोड़ दूंगा ।”
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ऐसा कहकर उसने अपना जम्बूरी पंजा नीचे सरकाकर साप को पूंछ की ओर से पकड़ा ताकि वह भाग न सके, पर मुँह से विष चूस सके । मरता क्या न करता, नागको विष चूसना पड़ा । जैसे ही उसने विष चूसा, केकड़े ने कौए व नाग दोनों की गर्दनें दबाकर उन्हें धड़ों से अलग कर दिया और बोला : ”तुम जैसे दुष्टों का जीवित रहना सबके लिए खतरनाक होगा ।”
ब्राह्मण को होश आया तो केकड़े, मरे साप और कौए को देखकर वह सारी कहानी समझ गया । तब तक और किसान भी आकर तमाशा देखने लगे थे । ब्राह्मण ने अपने मित्र केकड़े को छाती से लगा लिया ।
सीख : मित्रता किन्हीं भी दो प्राणियों के बीच हो सकती है । बस प्रेम व विश्वास होना चाहिए ।
Hindi Stories with Moral (Kahaniya) # 2
जहरीले फल |
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यह बात काफी पुरानी है । एक गाव के बाहर से मुख्य मार्ग गुजरता था । मार्ग के साथ ही एक विशाल पेड़ था । उस पेड़ पर बड़े मनमोहक फल लगते थे । लाल, गुलाबी और पीले रंग वाले ।
उन्हें देखते ही खाने को मन ललचाने लगता । फल ऐसे दिखते थे जैसे मीठे रस के भरे कटोरे हों । वे खाने में भी मीठे थे । पर थे वे जहरीले । उनको खानेवाला एक घंटे में ही स्वर्ग सिधार जाता था । इसलिए गांव वाले तो उस पेड़ के निकट भी नहीं आते थे ।
गांव में तीन-चार ठग भी थे । यह पेड़ उनके लिए वरदान साबित हो रहा था । वे एक पत्थर के पीछे छिपकर पेड़ की निगरानी करते थे । जैसे ही मार्ग से गुजरने वाला कोई राहगीर उसके फल खाता, वे उसके पीछे हो लेते । जैसे ही राहगीर गिर जाता, वे उसका मालमत्ता लेकर वह चम्पत हो जाते ।
एक दिन उसी मार्ग से एक बड़े चतुर व्यापारी की बैलगाड़ियों का काफिला गुजरा । गाड़ियां माल से लदी थीं । कुल तीस-चालीस गाड़ियों का काफिला था वह । पहली गाड़ी में बैठे चालक और कर्मचारी ने उस फलों से लदे पेड़ को देखा तो उछल पड़े । इतने प्यारे रसीले फल ।
कर्मचारी ने एक फल तोड़कर चखा । उसके मुंह से ‘अहा’ निकल गया । फल बड़े स्वादिष्ट थे । रास्ते में खाने के लिए उन्होंने कुछ फल तोड़कर गाड़ी में रख लिए । उसके बाद की गाड़ी वालों ने भी ऐसा ही किया । बीच में वह बैलगाड़ी भी थी, जिसमें स्वयं व्यापारी सफर कर रहा था ।
उसकी गाड़ी के साथ-साथ उसका अंगरक्षक भी घोड़े पर सवार बैलगाड़ी के बाईं ओर चल रहा था । व्यापारी ने अपने से दो-तीन आगे की बैलगाड़ी वालों को दूर से वृक्ष से फल तोड़ते देखा तो चिल्लाया : “ठहरो ! ये फल मत खाओ । ये जहरीले हैं ।”
उसने अपने साथ चल रहे अगरक्षक को कहा कि तुम दौड़कर आगे जाकर देखो कि किस-किसने फल खाए हैं । जिसने फल खाए हैं, उन्हें तुरत मुह में अंगुलियां डालकर उल्टी करने के लिए कहो । जिन्होंने नहीं खाए हैं, उन्हें फलों को फेंक देने का आदेश दो ।
अंगरक्षक दौड़ा हुआ आगे गया । वह सबको फल न खाने व तोड़े फल फेंकने का व्यापारी का आदेश सुनाना गया । जिन चार-पांच आगे की बैलगाड़ी वालों ने फल खा लिया था, उनसे तुरंत उल्टी करने के लिए कहा गया ।
सबसे आगे वाली बैलगाड़ी वालों ने जो सबसे पहले फल खा चुके थे, उनकी हालत सचमुच खराब हो रही थी । उनका सिर चकरा रहा था व पेट में मरोड़ उठ रहे थे । व्यापारी द्वारा समय रहते चेताने व उल्टियां कराने पर सबकी जान बच गई । उधर चारों ठग बड़े निराश हुए । उनके हाथ से सुनहरा मौका निकल गया ।
कुछ लोगों ने व्यापारी से शिकायत की कि जब उन्हें पता था कि उस पेड़ के फल जहरीले हैं तो पहले ही सबको क्यों नहीं बताया । व्यापारी बोला : “मुझे भी पहले पता नहीं था । मैं भी इस मार्ग से पहली बार यात्रा कर रहा हूं । मैंने बस देखा कि फल देखने में प्यारे हैं ।
रसीले-मीठे हैं, क्योंकि एक फल पर चींटियां चिपकी थीं । तो क्या कारण है कि यह पेड़ फलों से लदा है ? जबकि पास ही गांव है । गांव के लोग तो ऐसे पेड़ के फल सबसे पहले कच्चे ही खा जाते हैं । मैंने सामान्य बुद्धि का प्रयोग कर निष्कर्ष निकाला कि ये फल अवश्य ही जहरीले हैं ।” फिर उस चतुर व्यापारी ने अपने आदमियों से उस पेड़ को कटवा दिया ताकि फिर कोई राहगीर धोखा न खा जाए । चारों ठग उसे देखते रह गए ।
सीख : हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती । जिसे कोई हाथ नहीं लगा रहा है समझो कि इसमें कुछ भारी दोष है ।
Hindi Stories with Moral (Kahaniya) # 3
फिर चूहा बन जा |
एक जंगल में एक पहुंचे हुए तपस्वी महान्मा रहते थे । लोगों का तो कहना था कि सैकड़ों वर्षों से वे तप करते देखे जाते रहे थे । प्राय: वे नदी किनारे एक बड़ी चट्टान पर पद्मासन लगाकर ध्यानमग्न हो जाते और कई दिन उसी प्रकार बिना हिले-डुले लीन रहते । इतने वर्षों की घोर तपस्या से उन्होंने अलौकिक शक्तियां प्रान्न का रखी थी ।
एक दिन वे ध्यान में लीन थे कि चट्टान के नीचे बिल में रहने वाने एक छोटे-से चूहे को जंगली बिल्ली ने देख लिया । उस बिल्ली ने चूहे पर घात लगायी । जैसे ही वह बिल से बाहर निकला, बिल्ली उस पर झपट पड़ी । चूहा बच निकलने में सफल हो गया । अब चूहे बिल्ली में दौड़ शुरू हो गई ।
कई बार चूहा बिल्ली के पंजे में आता-आता बचा । जान बचाने के लिए चूहा चट्टान पर आसन लगाए महात्मा की ओर दौड़ा और उनकी गोद में जाकर छिप गया । ठीक उसी समय महात्मा तपस्या समाप्त कर औखें खोल ही रहे थे ।
उन्होंने अपनी गोद में भय से थरथर कांपते चूहे को देखा । कुछ ही दूर उन्होंने बिल्ली को ललचाई नजरों से चूहे की ओर देखते पाया । वे सारी बात समझ गए । उन्हें चूहे पर दया आ गई । महात्मा ने कुछ मत्र पढ़ा और चूहे की ओर फूक मारी ।
चूहा झट से एक बिल्ले में बदल गया । महात्मा बोले : “अब तुम्हें बिल्ली से डरने की कोई आवश्यकता नहीं ।” बिल्ला बना चूहा बिल्ली को देखकर गुर्राया । बिल्ली भाग गई । बिल्ला निडर होकर चट्टान के आसपास घूमने लगा । महात्मा मुस्कराए ।
दूसरे दिन बिल्ला नदी के पास मछलियों का शिकार करने की ताक में घूम रहा था कि वहां पानी पीने एक जंगली कुत्ता आ निकला । कुत्ते ने बिल्ले को देखा तो वह गुर्राया । कुत्ते की गुर्राहट सुनकर विन्ते का खुन जम गया । उसके रोंगटे खड़े हो गए ।
कुत्ते को झपटने के लिए तैयार होता देख बिल्ला भागा । कुत्ता भौं-भौं करता उसके पीछे लग गया । बिल्ले ने कुत्ते को चमका देने की काफी कोशिश की, पर सफल न हुआ । कुत्ता उसके निकट आता जा रहा था । एक अंतिम ज़ोर लगाकर बिल्ला चट्टान की ओर दौड़ा और महात्मा के सामने जाकर म्याऊं-म्याऊं करके गीड़गिड़ाने लगा ।
महात्मा ने कुत्ते को भौंकते देखा तो उन्होने मंत्र पढ़कर बिल्ले पर फूंक मारी । बिल्ला भी कुत्ते में बदल गया । कुत्ता बनते ही उसने जंगली कत्ते को ललकारा । जंगली कुत्ता अपने से बड़े कुत्ते को देखकर दुम दबाकर भाग गया ।
अब वह एक कुत्ता बनकर जंगल में घूमने लगा । उसे दूसरे कुत्तों से कोई भय नहीं लगता था । फिर एक दिन अचानक उसका सामना एक शेर से हो गया । ऐसे भयंकर जीव की कुत्ते बने चूहे ने कल्पना भी नहीं की थी ।
शेर की आखों से आग की लपटें-सी निकल रही थी, जिससे कुत्ते का शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया । चिल्लाने के लिए उसने मुंह खोला तो गले से आवाज नहीं निकली । शेर गुर्राया तो कुत्ते का शरीर पत्ते की तरह कांप उठा । वह चट्टान की ओर भागा ।
उसकी दुम टांगोंके बीच दबी थी । महात्मा के आगे जाकरवह कांपता हुआ कुं-कुं करता लोट गया । तभी शेर की दहाड़ से जंगल गूँज उठा । मड़ात्मा ने चूहे को सदा के लिए सभी भयों से मुक्ति दिलाने के लिए मंत्र पढ़कर शेर बना दिया । अब चूहा शेर बनकर वन में घूमने लगा ।
मंत्र के बल पर शेर बने चूहे को असली शेर की तरह शिकार करना कहां आता था ? उसके लिए बचपन से शेर के रूप में अभ्यास की जरूरत होती है । कुछ ही दिनों में शेर भूखा मरने लगा । वह एक खरगोश का शिकार भी न कर पाता । एक दिन शेर ने महात्मा को ही खाने का निर्णय लिया ।
उनका शिकार करना आसान था, क्योंकि वे तो हिलते-डुलते भी नहीं थे । उस दिन जब महात्मा ध्यान में था, क्योंकि वे तो हिलते-डुलते भी नहीं थे । उस दिन जब शेर दबे पांव आया और उसने महात्मा की ओर छलाग लगाई । महात्मा की छठी इंद्री तो जाग रही थी । उसने शेर की मांश की सूचना दी । महात्मा ने क्रोधित होकर कहा : ‘पुनर्मूषको भव’ । हवा में उछला शेर फिर से चूहा बनकर नीचे आ गिरा ।
सीख : अयोग्य व्यक्ति को यदि शक्ति दे दी जाए तो वह उसका दुरुपयोग ही करता है ।
Hindi Stories with Moral (Kahaniya) # 4
भगवान जो |
एक राजा के दरबार में एक मंत्री था । उसकी एक विचित्र आदत थी । जो कुछ भी होता वह यही कहता : ”भगवान जो भी करता है, अच्छा ही करता है ।” कभी-कभी वह यह बात बेमौके भी कहता ।
लोग उससे नाराज होते, परन्तु बाद में माफी मांगते जब उसकी बात सच्ची होती । उसकी इसी आदत के कारण लोग उसे ‘भगवान जो’ कहने लगे थे । एक बार वह मंत्री बीमार पड़ गया । सब जाकर सात्वना के शब्द बोल आए, पर बीमार मंत्री ने कहा : ”भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है ।” सभी मंत्रियों को बहुत दुख लगा ।
राजा ने किसी काम पर बीमार मंत्री के स्थान पर दूसरे मंत्री को भेजा । काम ऐसा खतरनाक साबित हुआ कि दूसरा मंत्री मारा गया । एक बार एक कारीगर दरबार में अपनी बनाई हुई एक तलवार राजा के लिए लेकर आया । तलवार मखमल में लपेटी हुई थी । कारीगर का कहना था कि ऐसी तेज तलवार आज तक नहीं बनी होगी ।
राजा ने मखमल हटाकर अपनी अंगुली से तलवार की पर परखनी चाही । सचमुच तलवार इतनी तेज निकली कि राजा की अंगुली कटकर नीचे जा दरबारियों ने ‘ओह-ओह’ का शोर मचाया । एक दरबारी वैद्य को बुलाने दौड़ पड़ा । राजा की अंगुली से खून टपक रहा था और उसे पीड़ा भी बहुत हो रही थी ।
एक मंत्री बोला : ”गजब हो गया ।” दूसरे ने कहा : ”घोर अनर्थ ।” तीसरा बोल उठा : “बहुत बुरा हुआ ।” परंतु भगवान जो ने अपना वही वाक्य दोहराया : “भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है ।” राजा उसकी बात से क्रोधित हो गया । भला अंगुली कटने में क्या भलाई हो सकती उसने भगवान जो को तुरंत दरबार से निकल जाने का आदेश दिया ।
भगवान जो ने जाते समय वही वाक्य दोहराया । इस घटना के एक महीने पश्चात् कहीं अंगुली का जख्म पूरा होने पर राजा शिकार खेलने जंगल गया । वहां राजा दुर्भाग्य से अपने सैनिकों से बिछुड़ गया । वह काफी देर अकेला भटकता रहा ।
उसी जंगल में एक दुर्दांत डाकू कर्काणसिंह रहता था । वह काली मां का उपासक था । डाकुओं ने राजा को अकेले घूमते पाया तो उसे पकड़कर अपने सरदार के पास ले गए । राजा के आभूषण वगैरह उतार दिए गए । डाकू कर्काणसिंह ने घोषणा की : “मैं कई दिनों से काली मां को मनुष्य की बलि देना चाहता था ।
आज इस राजा की बलि दी जाएगी ।” डाकुओं के पुजारी ने काली के मंदिर में पूजा आरम्भ की । राजा को बलि देने के लिए वहां लाया गया । पुजारी ने राजा के सारे शरीर की अच्छी तरह जांच की । अचानक पुजारी बोल उठा : “इस व्यक्ति की तो अंगुली कटी हुई है । काली मां अपूर्ण अंग वाले की बलि स्वीकार नहीं करती ।”
राजा को बलि के अयोग्य पाने पर छोड़ दिया गया । कटी अंगुली के कारण उसकी जान बच गई थी । अब राजा को भगवान जो की याद आई । उसने अपने सैनिकों को चारों और भेजकर भगवान जो को खोजकर लाने का आदेश दिया ।
भगवान जो को ढूंढकर लाया गया तो राजा ने उसे गले लगा लिया और क्षमा मांगी । फिर राजा ने पूछा : “भगवान जो, अंगुली काटने के कारण मेरी तो जान बच गई । परंतु मैंने तुम्हें दरबार से निकाल दिया, उससे तुम्हारा क्या अच्छा हुआ ?”
भगवान जो बोला : “सरकार, अगर आपने मुझे अपनी सेवा से न निकाला होता तो मुझे अपने साथ शिकार पर ले जाते । डाकू आपके साथ मुझे भी पकड़ते । तो राजा ने उसे गले लगा लिया और क्षमा मांगी । फिर तुला कटने के कारण मेरी तो जान बच गई । परन्तु मैंने उससे तुम्हारा क्या अच्छा हुआ ?”
भगवान जो बोला : “सरकार, अगर आपने मुझे अपने साथ शिकार पर ले जाते । डाकू आपके साथ मुझे अपने साथ शिकार पर ले जाते । डाकू आपके साथ मुझे भी पकड़ते । मेरी तो बाली दी गयी होती, क्योंकि मेरे सारे अंग साबुत थे ।” राजा व सभी दरबारी चकित रह गए ।
सीख : हर बात का अच्छा पक्ष ही देखना चाहिए । बुरे पक्ष को ही देखकर उसकी चिंता में नहीं लगे रहना चाहिए ।
Hindi Stories with Moral (Kahaniya) # 5
मूषक व्यापारी |
एक शहर में गांव से एक नवयुवक आया । नाम था उसका चंदु । वह बहुत कुछ करना चाहता था । व्यापारी बनना चाहता था । परन्तु उसके पास व्यापार आरम्भ करने के लिए धन नहीं था ।
एक दिन बाजार में दो सफल व्यापारी बात करते जा रहे थे । चदू उनके पीछे उनकी बातचीत सुनता चलने लगा । यह सोचकर कि शायद इनसे व्यापार का कोई गुण सीखने को मिल जाए । एक व्यापारी कह रहा था : ”व्यापार करने के लिए धन की नहीं, बल्कि लगन और चतुराई की जरूरत होती है ।
कोई चाहे तो वह जो कूड़े पर मरा चूहा पड़ा है, उससे भी व्यापार शुरू किया जा सकता है ।” चंदू ने कूड़े पर पड़े चूहे को देखा । वह सोचने लगा कि क्या सचमुच इस मरे चूहे से व्यापार शुरू किया जा सकता है ? लगन और चतुराई तो है मुझमें । बस उसने जाकर वह मरा हआ चूहा उठा लिया ।
तभी एक सेठ अपनी बिल्ली को गोद में उठाए उधर से गुजरा । चंदू के दिमाग में एक तरकीब आई । वह चूहा उठाए उस सेठ के आगे-आगे चलने लगा । सेठ की बिल्ली चूहे को देखकर उतावली हो गई व म्याऊँ-म्याऊँ करने लगी और कुलबुलाने लगी ।
सेठ ने युवक से कहा : “क्यों भाई, यह चूहा बेचोगे ?” चंदु ने कुछ देर सोचने का नाटक कीया । अंत में वह तैयार हो गया । सेठ ने उसे एक सिक्का दिया । चंदु सिक्का लेकर आगे चला । इस एक सिक्के से क्या किया जाए ? तभी उसे आगे एक प्याऊ नजर आई ।
लोग पानी पीकर प्याऊ वाले को धन्यवाद देते जा रहे थे । कुछ उसे पाइयां भी दे रहे थे । यह देखकर चंदु ने मोचा कि क्यों न यही काम किया जाए । यह सोचकर चंदू ने एक पड़ा खरीदा और उसमें पानी भरकर खेतों के निकट बैठ गया । थके-प्यासे किसानों ने उसका ठंडा पानी पीया ।
उनके पास देने को और कुछ तो नहीं था, खेतों के किनारे ओ फूल चंदू को दे गए । चंदु मटके में फूल भरकर मंदिर की ओर चला । उसका दिमाग अब घोड़े की तरह दौड़ रहा था । वह मंदिर के बाहर फूल लेकर बैठ गया । मंदिर में चढ़ाने के लिए लोग सिक्के देकर उससे फूल लेने लगे ।
चंदू की अच्छी कमाई हो गई । अब चंदू दोपहर को किसानों को पानी पिलाकर उनसे फूल पाता और शाम को मंदिर में बेचकर पैसे कमाता । एक दिन उसने किसी से सुना कि अगले महीने एक बड़ा व्यापारी पाच सौ घोड़े लेकर शहर आने वाला है ।
उसके बाद चदू समय निकालकर घड़े में पानी व गुड़ डालकर यदा-कदा गर्मी के रोज दोपहर बाद जगल पहुच जाता और घसियारों को मुफ्त में शर्बत पिलाता । घसियारे उसके बहुत आभारी हो गए । वे उसकी सेवा के बदले उसके लिए कुछ करना चाहते । चंदू उन्हें टाल देता ।
कहता समय आएगा तो मौका दूंगा । व्यापारी के आने की पहली शाम चंदु घसियारों के पास गया और अपनी सारी जमा-पूंजी देकर बोला : ”आज जितनी घास आपने काटी है वह मुझे बेच दो ।” घसियारे तुरंत मान गए । चंदु ने सारी घास ले ली । बाजार में कोई घास नहीं लाया ।
व्यापारी शहर पहुंचा तो उसे घोड़ों के लिए घास नहीं मिली । केवल एक जगह घास का अम्बार लगाए चंदु मिला । उसके पास पांच सौ गट्ठर थे । व्यापारी को घोड़ों के लिए घास की बहुत जरूरत थी । उसने चंदू से घास की कीमत पूछी । चंदु ने एक हजार सिक्के मांगे ।
मजबूर होकर व्यापारी को घास के लिए एक हजार सिक्के देने पड़े । कुछ ही दिनों बाद एक जहाज माल लेकर आया । नगर के व्यापारियों के दल के पहुंचने से पहले ही वदू जहाज के व्यापारियों के पास पहुच गया और उसने एक हजार सिक्के अग्रिम देकर जहाज का सारा माल खरीद लिया ।
नगर के व्यापारियों को चंदु से माल खरीदना पड़ा । चंदू ने व्यापारियों से पैसे लेकर जहाज वालों को पूरी कीमत दे दी । शहर के व्यापारियों में वदू मशहूर हो गया । सब उसकी चतुराई के कायल हो गए । एक दिन चंदु एक व्यापारी के घर गया ।
यह वही व्यापारी था जिसकी बात सुनकर चंदु ने मरे चूहे से अपना कारोबार शुरू किया था । व्यापारी को वैटद्र नें पहुचकर उसने एक सोने का चूहा उसके सामने रखा और बोला : ”आप मेरे गुरु हैं । यह सोने का चूहा गुरुदक्षिणा के रूप में स्वीकार कीजिए ।”
चंदु ने मरे चूहे से लेकर अब तक की सारी कहानी उसे सुना दी । व्यापारी चकित रह गया । उसने शर्बत मंगवाकर चंदु को पिलाया और बोला : ”चंदू, तुम्हारे जैसे योग्य युवक को मैं खोना नहीं चाहता । मेरी विवाह योग्य सुदर व सुशील बेटी है । तुमसे योग्य न मुझे उसके लिए नहीं मिल सकता । मुझे गुरु दक्षिणा के रूप में यही संबंध चाहिए ।” चंदु ने रिश्ता सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसी सेठ की बेटी से उसका विवाह हो गया ।
सीख : मेहनत, लगन और चतुराई से किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है ।
Hindi Stories with Moral (Kahaniya) # 6
झूठी शान का फल |
एक जंगल में पहाड़ की चोटी पर एक किला बना था । किले के एक कोने के साथ बाहर की ओर एक ऊंचा विशाल देवदार का पेड़ था । किले में उस राज्य की सेना की एक टुकड़ी तैनात थी । देवदार के पेड़ पर एक उल्लू रहता था ।
वह भोजन की तलाश में नीचे घाटी में फैले ढलवां चरागाहों में आता । चरागाहों की लम्बी घासों व झाड़ियों में कई छोटे-मोटे जीव व कीट-पतंगें मिलते, जिन्हें उन्तु भोजन बनाता । निकट ही एक बड़ी झील थी, जिसमें हंसों का निवास था । उल्लू पेड़ पर बैठा झील को निहारा करता ।
उसे हंसों का तैरना व उड़ना मंत्रमुग्ध करता । वह सोचा करता कि कितना शानदार पक्षी है हंस । एकदम दूध-सा सफेद, गुलगुला शरीर, सुराहीदार गर्दन, सुदर मुख व तेजस्वी आखें । उसकी बड़ी इच्छा होती किसी हंस से उसकी दोस्ती हो जाए ।
एक दिन उल्लू पानी पीने के बहाने झील के किनारे उगी एक झाड़ी पर उतरा । निकट ही एक बहुत शालीन व सौम्य हंस पानी में तैर रहा था । हंस तैरता हुआ झाड़ी के निकट आया । उल्लू ने बात करने का बहाना ढूंढा : “हंस जी, आपकी आज्ञा हो तो पानी पी लूं ।
बड़ी प्यास लगी है । हंस ने चौंककर उसे देखा और बोला है : ”मित्र । पानी प्रकृति द्वारा सबको दिया गया वरदान है । इस पर किसी एक का अधिकार नहीं ।” उल्लू ने पानी पिया । फिर सिर हिलाया जैसे उसे निराशा हुई हो । हंस ने पूछा:
“मित्र ! आप असंतुष्ट नज़र आते हो । क्या प्यास नहीं बुझी ?” उल्लू ने कहा : “हे हंस ! पानी की प्यास तो बुझ गई । पर आपकी बातों से मुझे ऐसा लगा कि आप नीति व ज्ञान के सागर हैं । मुझमें उसकी प्यास जग गई है । वह कैसे बुझेगी ?”
हंस मुस्कराया : “मित्र, आप कभी भी यहां आ सकते हैं । हम बातें करेंगे । इस प्रकार मैं जो जनता हूँ, वह आपका हो जाएगा और मैं भी आपसे कुछ सीखूंगा ।” इसके पश्चात हंस व उल्लू रोज मिलने लगे । एक दिन हंस ने उल्लू को बता दिया कि वह वास्तव में हंसो का राजा हंस राज है ।
अपना असली परिचय देने के बाद हंस अपने मित्र को निमंत्रण देकर अपने घर ले गया । शाही ठाठ थे । खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के व्यंजन परोसे गए और जाने क्या-क्या दुर्लभ खाद्य थे, उन्तु को पता ही नहीं लगा । बाद में सौंफ, इलाइची की जगह मोती पेश किए गए । उन्तु दंग रह गया ।
अब हंसराज उल्लू को महल में ले जाकर खिलाने-पिलाने लगा । रोज दावत उड़ती । उसे डर लगने लगा कि किसी दिन साधारण उन्तु समझकर हंसराज दोस्ती न तोड़ ले । इसलिए स्वयं को हंसराज की बराबरी का बनाए रखने के लिए उसने झूठमूठ कह दिया कि वह भी उल्लुओं का राजा उल्लूक राज है ।
झूठ कहने के बाद उल्लू को लगा कि उसका भी फर्ज बनता है कि हंसराज को अपने घर बुलाए । एक दिन उल्लू ने दुर्ग के भीतर होने वाली गतिविधियों को गौर से देखा और उसके दिमाग में एक युक्ति आई । उसने दुर्ग की बातों को खूब ध्यान से समझा । सैनिकों के कार्यक्रम नोट किए ।
फिर वह चला हंस के पास । जब वह झील पर पहुंचा, तब हसराज कुछ हंसनियों के साथ जल मैं तैर रहा था । उल्लू को देखते ही हंस बोला : ”मित्र, आप इस समय ?” उल्लू ने उत्तर दिया : ”हां मित्र ! मैं आपको आज अपना घर दिखाने व अपना मेहमान बनाने पाया हूं ।
मैं कई बार आपका मेहमान बना हूं । मुझे भी सेवा का मौका दो ।” हंस ने टालना चाहा : ”मित्र इतनी जल्दी क्या है ? फिर कभी चलेंगे ।” उल्लू ने कहा : “आज तो आपको लिए बिना नहीं जाऊंगा ।” हंसराज को उल्लू के साथ जाना ही पड़ा ।
पहाड़ की चोटी पर बने किले की और इशारा कर उल्लू उड़ते-उड़ते बोला : “वह मेरा किला है ।” हंस बड़ा प्रभावित हुआ । वे दोनों जब उल्लू के आवास वाले पेड़ पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरू होने वाली थी । दो सैनिक बुर्ज पर बिगुल बजाने लगे ।
उल्लू दुर्ग के सैनिकों के कार्यक्रम को याद कर चुका था इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था । उल्लू बोला : ”देखो मित्र, आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे हैं । उसके बाद मेरी सेना परेड़ और सलामी देकर आपको सम्मानित करेगी ।”
नित्य की तरह ही परेड़ हुई और झंडे को सलामी दी गयी । हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा है । अत: हंस ने गद्गद होकर कहा : ”धन्य हो मित्र । आप तो एक शूरवीर राजा की भांति ही राज कर रहे हो ।” उल्लू ने हंसराज पर और रौब डाला : ”मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया है कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि हैं, तब तक इसी प्रकार रोज बिगुल बजे व सैनिकों की परेड़ निकले ।”
उल्लू को पता था कि सैनिकों का यह रोज का काम है । दैनिक नियम है । हंस को उल्लू ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल खिलाए । उनको वह पहले ही जमा कर चुका था । भोजन का महत्त्व नहीं रह गया । सैनिकों की परेड़ का जादू अपना काम कर चुका था । हंसराज के दिल में उल्लू मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो चुका था ।
उधर सैनिक टुकड़ी को वहां से कूछ करने के आदेश मिल चुके थे । दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा : “मित्र, देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा लिए बिना कहीं जा रहे हैं ।” उल्लू हड़बड़ाकर बोला : ”किसी ने उन्हें गलत आदेश दिया होगा । मैं अभी रोकता हूं उन्हें ।” ऐसा कह वह ‘हूं हूं’ करने लगा ।
सैनिकों ने उल्लू का घुघुआना सुना व अपशकुन समझकर जाना स्थगित किया । दूसरे दिन फिर वही हुआ । सैनिक जाने लगे तो उल्लू घुघुआया । सैनिकों के नायक ने क्रोधित होकर सैनिकों को मनहूस उन्तु को तीर मारने का आदेश दिया ।
एक सैनिक ने तीर छोड़ा । तीर उन्तु की बगल में बैठे हँस को लगा । वह तीर खाकर नीचे गिरा व फड़फड़ाकर मर गया । उन्तु उसकी लाश के पास शोकाकुल हो विलाप करने लगा : ”हाय, मैंने अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना परम मित्र खो दिया । धिक्कार है मुझे । ” उल्लू को आसपास की खबर से बेसुध होकर रोते देखकर एक सियार उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया ।
सीख : झूठी शान बहुत महंगी पड़ती है । कभी झूठी शान के चक्कर में मत पड़ो ।