Hindi Story on ‘First Interview’!
पहला साक्षात्कार |
पांडिचेरी के श्रीअरविंद आश्रम के एक कक्ष में बैठा जब मैं माताजी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था, तब मेरे मस्तिष्क में विचारों का तूफान उठ रहा था, जिनकी ज्योति से आश्रम का कण-कण आलोकित था ।
जिनकी दिव्य प्रेरणा देश की परिधि को लाघकर विश्व के अनेक देशों में व्याप्त थी, उन माताजी से प्रथम साक्षात्कार का वह दुर्लभ अवसर था । मैं अपने विचारों को समेटकर एक शृंखला में बांधने का जितना प्रयत्न कर रहा था, उतने ही वे अनियंत्रित हो रहे थे ।
ADVERTISEMENTS:
थोड़ी ही देर पश्चात निर्धारित समय पर, माताजी ने उस कक्ष में प्रवेश किया । मुझे लगा जैसे बिजली कौंध गई हो । उनके मुखमण्डल पर अपूर्व आभा थी, होंठों पर स्मित का दैव्य माधुर्य था और नेत्र अलौकिक प्रेम और वात्सल्य से छलछला रहे थे । उनका अंग-प्रत्यंग चैतन्य से भरा था ।
मैं उनके अभिवादन में उठता कि तब तक वे कुर्सी पर आसीन होकर बड़ी ममता से मेरी ओर देखने लगी । मैंने उनके चरण छुए और उनके निकट ऐसे बैठ गया, जैसे कोई अबोध बालक अवाकू होकर अपने अभिभावक के आगे बैठ जाता है ।
मेरा मस्तिष्क एकदम विचारशून्य हो गया था, वाणी मूक हो गई थी और ऐसा लग रहा था जैसे सोचने की शक्ति ही कुण्ठित हो गई हो । माताजी मेरी ओर एकटक देखती रही, फिर गहरे स्नेह-भाव से पूछा : ”आश्रम में पहली बार आए हो ?”
नहीं जानता कैसे साहस जुटाकर मैंने कहा : ”जी हां ।” उसके बाद कुछ ही क्षण में वहां के वातावरण को प्रेम और करुणा की उस सजीव मूर्ति ने इतना स्निग्ध (कोमल) बना दिया कि मैं बड़े सुखद आनद के भाव में खो गया ।
ADVERTISEMENTS:
उन प्रवास के दौरान और बाद में माताजी से मिलने और बातचीत करने के अनेक प्रसंग आए । उनकी क्षति आज भी मेरे मन पर अंकित है, पर पहले साक्षात्कार में जो मनोभाव बना, उसकी याद आज भी मेरे रोम-रोम को पुलकित कर देती है ।