Hindi Story on Miser Wastes his Property (With Picture)!
कंजूस का धन व्यर्थ |
एक महाजन था । वह बहुत कंजूस था । गरीबों का पेट काटकर वह बहुत धनी हो गया था । वह सूदखोरी का विशेषज्ञ था । अब वह इतना धनवान था कि उसके घर में चारों तरफ धन-ही-धन दिखाई देता था । उसके पास एक अमूल्य हीरा भी था । एक दिन गांव में किसी के घर चोरी हो गई ।
अब तो महाजन बहुत चिंतित हुआ । ‘यह तो बहुत बुरा हुआ । मेरे पास तो बहुत धन है । यदि चोरों को इसका पता चल गया तो गजब हो गया समझो ।’ वह सोचने लगा- ‘इतने धन की रक्षा कैसे की जाए? मुझे कोई उपाय सोचना चाहिए ।’ अन्त में उसे एक उपाय सूझा ।
उसने अपना सारा धन देकर एक और अमूल्य हीरा खरीद लिया । फिर उसने उन दोनों हीरों को बगीचे में ले जाकर दबा देने का विचार किया । ‘यही उचित उपाय है । इस अमूल्य धन को जमीन में गाड़ दूंगा, फिर चोर क्या चुराएंगे ।’ ऐसा सोचकर वह खुश हो गया ।
उसी दिन उसने दोनों हीरे जमीन में कहीं छिपा दिए, परंतु उसे अब चैन नहीं आता था । दिन-रात हीरों की चिंता सताती । वह रोज मौका देखकर बगीचे में पहुंचता । उस जगह को देखता । हीरे देखकर निश्चिंत हो जाता और फिर गड्ढा भर देता । इसी तरह कई दिन व्यतीत हो गए ।
महाजन का नौकर बहुत चालाक था । वह अपने मालिक के इस व्यवहार पर शंकित था । वह जानना चाहता था कि उसका मालिक रोज बगीचे में क्या करने जाता है, अत: वह उसकी ताक में रहने लगा । एक दिन उसने महाजन को देख लिया । वह जमीन से हीरों को निकालकर देख रहा था ।
‘तो इस कंजूस मक्खीचूस ने सारा धन बेचकर हीरे खरीद लिए हैं ।’ नौकर ने सोचा- ‘तभी मैं कहूं कि इसका धन कहां गया ।’ बस एक दिन मौका पाते ही नौकर ने हीरे निकाल लिए । फिर वह वहां क्यों रुकता? वह तो उसी दिन गांव छोड़कर भाग गया ।
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उधर महाजन नियमानुसार हीरे देखने पहुंचा । उसने देखा कि वहा की मिट्टी खुदी पड़ी हे । वह अचम्भित रह गया । शंका के मारे उसका दिल लरज उठा । उसने गड्ढे में हीरे तलाशे । लेकिन वे वहां नहीं थे । महाजन की आंखें पथराने लगीं । उसे लगा कि वह मर जाएगा ।
”हाय मेरे हीरे! मैं लुट गया ।” महाजन दहाड़ें मार-मारकर रोने लगा । महाजन बहुत जोरों से रो रहा था । महाजन का विलाप सुनकर उसका एक पड़ोसी दौड़ा-दौड़ा आया। ”अरे, सेठजी, क्या बात है? क्या हो गया है?” पड़ोसी ने पूछा । ”मैं लुट गया, मेरे यहां चोरी हों गई, मैंने तमाम जीवन अपना पेट काटकर धन संचय किया ।
दिन दूनी सूद कमाया । उस धन से मैंने दो हीरे खरीदे । उनको मैंने इस गड्ढे में दबा रखा था, परंतु कोई दुष्ट उन्हें निकालकर ले गया ।” सेठ माथा पीटकर बोला। ”च…च…च! यह तो बहुत बुरा हुआ ।” ”हां भई, मैंने कभी अच्छा नहीं खाया, कभी अच्छा नहीं पहना, बड़ी मुसीबतें उठाकर इतना धन इकठ्ठा किया था । सब व्यर्थ! ”
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”अच्छा रोइए मत, यह लीजिए ।” पड़ोसी ने दो पत्थर उठाकर उसे दे दिए- ”इन पत्थरों को इस गडूढे में दबा दीजिए । रोज इन्हें देखते रहिएगा । समझ लेना कि यही तुम्हारे हीरे हैं ।” ”तुम मेरा मजाक उड़ा रहे हो ।” सेठ अप्रसन्न होकर बोला- ”तुम मुझे ढाढ़स नहीं बंधा सकते तो चले जाओ ।
पत्थर की तुलना हीरे से करते हो ।” ”सेठजी, मैं सत्य कह रहा हूं ।” पड़ोसी बोला- ”आप हीरों को सिर्फ देखते ही तो थे । उनसे कोई कार्य तो नहीं लेते थे । अब इन पत्थरों को हीरे समझकर देखते रहना । धरती में गड़ा धन तो पत्थर से भी गया-गुजरा होता है ।
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धन तो खाने-पीने, खिलाने-पिलाने के लिए होता है । यदि वह अकारण ही संचित है, तो इसी तरह नष्ट हो जाता है । कंजूस का धन व्यर्थ होता है । वह धन नहीं मिट्टी होता है ।” सेठ की आंखें खुल गईं । वह पश्चाताप करता रहा गया ।
सीख:
बच्चो! इस कहानी से हमें पता चलता है कि कष्ट भोगकर धन संचित करना और खर्च न करना मूर्खता है । गड़ा हुआ धन पत्थर के समान होता है । उसकी कोई कीमत नहीं होती ।