Hindi Story on Punishment for Copying!
नकल का दण्ड |
एक बार जंगल में एक पेड पर एक कौआ बैठा था । सामने ही हरी-भरी चरागाह में कुछ भेडें और मेमने चर रहे थे । तभी उड़ता हुआ एक उकाब आया । थोड़ी देर तक वह पंख फैताए आकाश में मंडराता रहा । फिर नीचे की ओर आकर मेमनों के झुण्ड पर झपट्टा मारा और एक मोटे ताजे मेमने को उठाकर ले गया ।
कौआ यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया । वह उकाब को उस समय तक देखता रहा, जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गया । उसके लिए उकाब का करतब बहुत ही रोमांचकारी था । वह उसके बारे में सोच-सोचकर इतना उत्तेजित हो गया कि उसने स्वर्य भी उकाब के समान ही शिकार करने का निश्चय कर लिया ।
ADVERTISEMENTS:
उसने मन ही मन सोचा कि जब उकाब ऐसा कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता । यह सोचकर वह हरी-भरी चरागाह की ओर उड़ चला । कुछ ही देर में वह चरागाह में चर रही भेड़ों के सिर पर आकाश में उड़ने लगा और फिर किसी उकाब के समान ही वह एक बड़ी-सी भेड़ पर झपटा ।
वह यह भूल गया कि उसके पंजे उतने शक्तिशाली नहीं थे, जितने उकाब के होते हैं । नतीजा यह हुआ कि उसके पंजे भेड़ के बालों में फंस गए । उसने बहुत प्रयत्न किया अपने पंजों को भेड़ के बालों से निकालने का, मगर सफल नहीं हुआ ।
अंत में जब चरवाहा आया तभी उसने उसके पंजे भेड़ के बालों से निकाले । चरवाहे ने कौए को आजाद करके उसे इतनी जोर से जकड़ लिया कि बेचारा उड़ नहीं सकता था । चरवाहा कौए को घर लाया और उसके पंख काट दिए । अब बिना पंखों का कौआ उसके बच्चों का खिलौना बन गया ।
बच्चे उस कौए के इर्द-गिर्द जमा होकर तरह-तरह के प्रश्न पूछते : ”पिताजी, यह कौन-सा पक्षी है ? इसका नाम क्या है ?” चरवाहा इन प्रश्नों के उत्तर में हंसकर कहता : ”अगर इससे पूछोगे तो यह कहेगा कि मैं उकाब हूँ । जबकि असलियत यह है कि यह मात्र एक कौआ है ।”
निष्कर्ष: अपनी क्षमता के अनुसार ही कार्य करना चाहिए ।