Hindi Story on the Hare and the Tortoise!
खरगोश और कछुआ |
दो मित्र थे-खरगोश और कछुआ । खरगोश अपनी तेज तथा कछुआ अपनी धीमी चाल के लिए प्रसिद्ध था । एक बार दोनों आपस में बातें कर रहे थे । खरगोश कछुए की धीमी गति का मजाक उड़ाने लगा ।
कछुआ खरगोश की बातें सुनकर चिढ़ गया, मगर फिर भी बोला : ”मैं धीमी गति से चलता हूँ तो क्या हुआ, यदि हमारी आपसी दौड़ हो जाए तो मैं तुम्हें पराजित कर दूंगा ।” कछुए की बातें सुनकर खरगोश आश्चर्य करने लगा, बोला : ”मजाक मत करो ।”
”मजाक नहीं, मैं गंभीर हूं ।” कछुआ बोला : ”मैं निश्चित रूप से तुम्हें पराजित कर दूंगा ।” ”अच्छा!” खरगोश कछुए की बातें सुनकर हंसता हुआ बोला: ‘तो फिर दौड़ हो जाए । हम एक रेफरी रख लेंगे और दौड़ का मैदान निश्चित कर लेंगे ।’
कछुआ खरगोश की बात से राजी हो गया । दूसरे दिन चूहे को रेफरी नियुक्त किया गया । नदी के किनारे पड़ने वाले एक मैदान को दौड़ के लिए चुना गया । वहा से एक मील दूर स्थित बरगद के पेड़ को वह स्थान माना गया जहा दौड़ समाप्त होगी ।
दौड़ आरम्भ होने से पहले रेफरी चूहा आया । उसने दोनों को अपने स्थान पर खड़ा किया : ”हा ! सावधान हो जाओ…और…दौड़ ।” चूहा बोला । दौड़ आरम्भ हो गई । खरगोश तो पलक झपकते ही बिजली की गति से दौड़ा और बहुत दूर निकल गया ।
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कछुए की चाल देखते ही बनती थी । वह बहुत धीमी गति से चल रहा था । खरगोश तेजी से दौड़ रहा था । लगभग आधा मील पहुंचकर वह रुका और पीछे मुड़कर देखा कि आखिर कछुआ गया कहा । उसे कछुआ कहीं नजर नहीं आया । वह सोचने लगा: ‘अभी तो उसका दूर-दूर तक पता नहीं है ।
क्यों न तब तक मैं थोड़ी-सी घास खा लू और आराम कर लूं । जब कछुआ नजर आएगा तो मैं उठकर दोबारा तेजी से दौड़ लूंगा ।’ खरगोश ने तब थोड़ी हरी घास खाई । पानी पिया और एक पेड़ के नीचे लेटकर आराम करने लगा ।
खरगोश लेटकर सोना तो नहीं चाहता था, परंतु नदी किनारे से आती ठंडी हवा ने उसे गहरी नींद सुला दिया । खरगोश खर्राटे लेकर सोता रहा । दूसरी ओर कछुआ धीमी गति से मगर लगातार बिना रुके अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा था । खरगोश बहुत देर तक सोता रहा । जब वह जागा तो उसे कछुआ कहीं नजर नहीं आया ।
चूंकि वह खूब सो चुका था, इसलिए उठते ही बहुत फुर्ती और तेजी से बगद के पेड़ ओर दौड़ने लगा । मगर पेड़ के पास पहुंचते ही मानो उस पर बिजली-सी गिरी । वह यह देखकर दंग रह गया कि कछुआ तो वहां पहले से ही उपस्थित था । खरगोश दौड़ में हार चुका था । उसने भी हंसकर खेल भाव से अपनी पराजय स्वीकार कर ली । उसने दोबारा कभी कछुए का मजाक उड़ाने का प्रयत्न नहीं किया ।
निष्कर्ष: सफलता प्राप्ति के लिए निरन्तर परिश्रम करो ।