Hindi Story on the House on the Back!

पीठ पर घर |

प्राचीनकाल की बात है । देवताओं के राजा ईंद्र ने विवाह करने की ठानी । उन्होंने सोचा कि यह विवाह इतनी आन-बान और शान से होना चाहिए कि युगों-युगों तक उसकी चर्चा होती रहे ।

ऐसा तभी हो सकता था, जब हर प्राणी उस शादी में शामिल होता और उसे अपनी आखों से देखता । यही सोचकर इन्द्रदेव ने सभी देवी-देवताओं के साथ-साथ धरती पर विचरण करने वाले प्राणियों को भी विवाहोत्सव में आमंत्रित किया ।

विवाह में अद्‌भुत भोज का भी प्रबंध किया गया । उस भोज की खास बात यह थी कि वहां प्रत्येक प्राणी की इच्छा का भोजन था । इस आमंत्रण में सभी प्राणी, चाहे वे चार पैर वाले हों या दो पैर वाले, धरती पर चलने या रेंगने वाले हों या आकाश में उड़ने वाले, समय पर पहुंच गए ।

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परंतु कछुआ, जो अपनी धीमी गति के लिए प्रसिद्ध है, कई घण्टे देर से विवाहोत्सव में पहुंचा । उसकी अनुपस्थिति के कारण सारा भोज कार्यक्रम रुका हुआ था । जैसे-जैसे समय गुजर रहा था, वैसे-वैसे इन्द्रदेव का क्रोध भी बढ़ता जा रहा था । अब जैसे ही कछुआ वहां पहुचा, वैसे ही इन्द्रदेव उस पर बरस पड़े ।

”क्या कारण है कि तुम इतनी देर से आए?” इन्द्र देवता ने भौंहें चढ़ा लीं: ”हम सब तुम्हारी प्रतीक्षा में बैठे हुए थे । बताओ, तुम्हें यहाँ पहुंचने में देर क्यों हुई?” बजाय इसके कि कछुआ देर से आने के लिए क्षमा मांगता, वह बहुत ढिठाई से बोला : ”मैं अपने घर में यानी अपने प्यारे खोल में आराम कर रहा था ।”

“’क्या?” इंद्र देवता ने आखें तरेर लीं: “क्या तुम अपने खोल में इंद्र के महल से अधिक सुखी और सुरक्षित हो? सुनो, मूर्ख ! तुम्हें यदि अपना घर इतना ही प्यारा है तो जाओ आज से तुम जहां-जहां भी जाओगे, तुम्हारा घर तुम्हारी पीठ पर लदा होगा ।”

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निष्कर्ष: अहंकारी को सदा नीचा देखना पड़ता है ।

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