नेकी का फल |

एक समय सूडान के खारतूम नाम के शहर में फजल इलाही नाम का एक सम्पन्न सौदागर रहा करता था । धन-वैभव की उसके पास कमी नहीं थी । उसके पास अनेक समुद्री जहाज और ऊंटों का एक बड़ा काफिला था ।

जिनके द्वारा दूर-दराज के कई देशों में उसका व्यापार फैला हुआ था । सौदागर बहुत ही भला और अच्छे स्वभाव का ईसान था । किसी ने उसे कभी क्रोध करते नहीं देखा था । दया और स्नेह की भावना उसमें कूट-कूटकर भरी हुई थी । अपने नौकरों तथा कर्मचारियों से भी उसका व्यवहार बड़ा मधुर था ।

इसके अलावा दान-पुण्य में भी उसका कोई सानी नहीं था । उसके दरवाजे पर अगर कोई साधु-फकीर पहुंच जाता था तो वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता था । अपने परिश्रम तथा अच्छे व्यवहार के कारण उसका व्यापार दिन दूनी, रात चौगुनी प्रगति कर रहा था ।

लक्ष्मी उस पर मेहरबान थी । पांच वर्ष पहले जब फजल इलाही खारतूम आया था, तब वह सिर्फ फजलू था । उसकी हालत इतनी खराब थी कि उसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं थी । नया-नया देश था । उसकी जान-पहचान किसी से भी नहीं थी ।

वह दो दिन तक खारतूम की गलियों में भूख-प्यास से मारा-मारा घूमता रहा । हालांकि वह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना चाहता था, मगर जब भूख से उसकी हालत बिगड़ गई तो उसे मजबूरन एक घर का दरवाजा खटखटाना पड़ा । जब दरवाजा खुला तो घर के मालिक से फजल इलाही ने खाने की याचना की ।

फजल की याचना सुनकर मकान-मालिक को आश्चर्य हुआ । फजल शक्ल-सूरत से अच्छा-भला लग रहा था । भिखारी जैसा तो वह किसी भी हालत में नहीं लग रहा था । मकान-मालिक एक क्षण न जाने क्या सोचता रहा, फिर उसे ठहरने का संकेत करके अंदर चला गया ।

फजल को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी । शीघ्र ही मकान-मालिक एक रकाबी में दो रोटियां और खजूर का गुड ले आया । फजल को बड़ी तेज भूख लगी थी । उसने खाने की सामग्री ले ली और वहीं बैठकर खाने लगा । मकान-मालिक हैरानी के साथ उसे देख रहा था ।

जब फजल खाना खा चुका तो मकान-मालिक अपनी उत्सुकता दबाए न रख सका । उसने फजल से उसकी दुर्दशा का कारण पूछा । फजल ने अपनी गरीबी की कहानी दो शब्दों में बयान कर दी । मकान-मालिक को उस पर दया आ गई । नगर में उसकी एक छोटी-सी दुकान थी ।

ADVERTISEMENTS:

उसने फजल को रोटी-कपड़े के बदले यहां नौकर रख लिया । फजल परिश्रम से काम करने लगा । उसकी मेहनत, लगन और बुद्धिमत्ता देखकर मालिक को बड़ी प्रसन्नता हुई । थोड़े दिनों में उसने फजल को वेतन देना भी आरंभ कर दिया ।

फजल वेतन के पैसे बहुत सोच-समझकर खर्च करता था । इसका नतीजा यह हुआ कि उसके पास थोड़ा-थोड़ा धन एकत्र होने लगा । जब उसके पास अच्छी-खासी पूंजी जमा हो गई तो उसने नौकरी छोड़ दी । अब उसने छोटी-मोटी सौदेबाजियां करनी शुरू कर दीं ।

हर सौदेबाजी से उसे कुछ-न-कुछ लाभ होता । थोड़े अरसे में ही वह नगर का अच्छा खाता-पीता नागरिक बन गया और खारतूम शहर के निवासी उसे फजल इलाही के नाम से पुकारने लगे । जल्द ही उसे सूडान के प्रभावशाली व्यापारियों में से एक गिना जाने लगा ।

देश-विदेश में उसका व्यापार फैलने लगा था । एक दिन की बात है । फजल इलाही शाम के वक्त अपनी हवेली के बाहरी हिस्से में बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था । तभी एकाएक उसकी नजर मुख्य दरवाजे पर गई । वहां एक आदमी चौकीदार से कुछ निवेदन कर रहा था ।

फजल इलाही को वह आदमी परिचित-सा लगा । लेकिन उसे याद नहीं आया कि उसे कहां और कब देखा है । फजल इलाही ने चौकीदार को आवाज देकर करीब बुलाया । चौकीदार फौरन पास आ गया । फजल इलाही ने पूछा, ”कौन है यह आदमी ? क्या चाहता है ?”

ADVERTISEMENTS:

”वह आपसे मिलना चाहता है । कोई जरूरतमंद है ।” फजल इलाही ने हुक्के के दो-तीन कश खींचकर कहा, ”ठीक है, उसे यहां भेज दो ।” वह आदमी पास आया तो फजल ने पूछा, ”कहा से आ रहे हो, भाई ?” ”खारतूम के दक्षिण से ।” ”दक्षिण से ?” फजल ने चौंककर कहा ।

उसे अपने पुराने दिन याद आ गए । गरीबी की हालत में काफी दिन उसने वहीं गुजारे थे । उसने पूछा, ”यही कैसे आए हो ?” ”वहां मैं एक सौदागर के यहा नौकर था । एक दिन उनका काफिला डाकुओं ने लूट लिया । सौदागर एकदम कंगाल हो गया ।  उसने खारतूम का दक्षिणी इलाका छोड़ दिया और न जाने कहां चला गया । उस दिन से मैं भी बेकार हूं और दर-दर की ठोकरें खा रहा हूं ।”

”मेरे पास क्यों आए हो ?” ”आपकी बड़ी तारीफ सुनी है । लोग कहते हैं, आपके यहां से कोई मुरादी खाली नहीं जाता ।” फजल ने कुछ सोचकर पूछा: ”तुम्हारी क्या मुराद है ?” ”मालिक, मैं बड़ा मेहनती हूँ । पुराना मालिक भी मेरे काम से बड़ा खुश था । आप कोई काम दे दीजिए बस यही मेरी मुराद है ।”

ADVERTISEMENTS:

”हूं । कौन-सा काम जानते हो ?” ”मैं बढ़िया-बढ़िया खाना बनाना जानता हूँ ।” ”ठीक है, तुम हमारे यहां बावर्ची के काम पर रखे जाते हो ।” उसका नाम ऐतमाद था । उस दिन से वह फजल इलाही का बावर्ची बन गया । वह नए-नए पकवान बनाता और बड़े प्रेम से अपने मालिक को खिलाता ।

खाना खिलाते समय वह आस-पास किसी को फटकने नहीं देता था । एक दिन फजल इलाही खाना खा रहा था । पास ही ऐतमाद उसकी सेवा में खड़ा  था । अचानक बाहर से कोई फकीर गुहार मचाने लगा । ऐतमाद ने फौरन खिड़की बंद कर दी, ताकि फकीर की गुहार से मालिक के खाने में किसी प्रकार का विप्न न पड़े ।

फजल इलाही ने पूछा, ”खिड़की क्यों बंद कर दी ?” ”हुजूर, बाहर कोई फकीर खड़ा है । ये लोग खाने के समय ही आ मरते हैं । आप खाना आरंभ कीजिए ।” फजल ने एक रकाबी में दो रोटियां और थोड़ा शोरबा डालकर ऐतमाद को देते हुए कहा कि, ”पहले फकीर को खिलाओ ।”

ऐतमाद मुंह बनाकर रकाबी लेकर बाहर चला गया । थोड़ी देर बाद उसने लौटकर फजल इलाही को बताया, ”मालिक, फकीर और कोई नहीं मेरा पुराना मालिक है ।” ”ओह! तुम इज्जत के साथ उसे अंदर क्यों नहीं लाए ।” फजल ने आदेश दिया:

ADVERTISEMENTS:

”फौरन उन्हें अँदर लेकर आओ ।” ऐतमाद अपने पुराने मालिक को अंदर ले आया । फजल ने पास में बिठाकर उसे खिलाया-पिलाया । खाने-पीने के बाद वे दोनों हुक्का खींचकर बैठ गए ।  फजल बोला : ”मुझे खारतूम का दक्षिणी इलाका आज भी याद है ।”

”वहां आप क्या करते थे?” फकीर ने पूछा । ”मैं गरीबी की हालत में वहां गया था । मेरा कोई नहीं था । मैं भूख से बेहाल था । जब हालत बदतर हो गई तो मुझे मजबूरी में वह करना पड़ा जो मैं नहीं करना चाहता था ।

ADVERTISEMENTS:

यानी एक दरवाजे पर भीख मांगने पहुंच गया । मकान-मालिक दयालु आदमी था, उसने न सिर्फ मुझे भर-पेट खिलाया-पिलाया, बल्कि अपने यहां नौकर भी रख  लिया । उसकी दया से आज मैं सौदागर बना हूँ ।” मेहमान गौर से उसे देखने लगा ।

ADVERTISEMENTS:

उसकी औखें चमक उठीं । शायद उसे कुछ याद आ गया था लेकिन वह कुछ नहीं बोला । थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद फकीर मेहमान ने रुख्सत मांगी । फजल इलाही ने मुस्कराकर कहा, ”यह कैसे हो सकता है ? आपको मैं यहां से कभी नहीं जाने दूंगा ।” मेहमान ने चौंककर फजल इलाही की ओर देखा ।

फजल इलाही बोला, ”मैं आपको देखते ही पहचान गया था, जिस आदमी ने मुझे भूख और गरीबी में सहारा दिया था, उसे मैं कैसे भूल सकता हूं ।  आज आपकी दया से मेरे पास सब कुछ है । यह सब आपका दिया हुआ है । अगर आपकी इस हालत में मैं आपके किसी काम न आया तो मेरी जिंदगी बेकार है ।”

मेहमान की आखों से औसू बहने लगे । फजल बोला, ”आपके एहसानों का बदला तो मैं नहीं चुका पाऊंगा, लेकिन आज से आप मेरे घर पर रहेंगे । मेरे मां-बाप बचपन में ही मुझे छोड़ गए थे, आप मेरे पिता समान हैं । आज से आप यहीं रहेंगे ।”

”फजल, तू महान है । तूने मुझे खरीद लिया ।” कहते हुए फकीर मेहमान ने फजल इलाही को अपनी बांहों में भर लिया । किसी ने सच कहा है-नेकी का फल इंसान को अवश्य मिलता है । संसार का सबसे बड़ा धनवान वही होता है जो नेक और रहमदिल होता है ।

Home››Hindi Stories››