Hindi Story on Valuable Gift!

मूल्यवान भेंट |

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किसी नगर में एक व्यापारी रहता था । व्यापारी ने अपने व्यापार से खूब कमाई की । जिससे उसकी तिजोरियां धन-दौलत से भर गईं । चारों ओर उसका नाम हो गया । एक दिन उसने एक बहुत ही मूल्यवान वस्तु खरीदी और उसे ईसा को अर्पित करने चला ।

पुलकित मन से वह ईसा के पास पहुंचा और अपनी भेंट आगे करके बोला : “प्रभो, मेरी इस तुच्छ भेंट को स्वीकार कीजिए ।” ईसा ने व्यापारी की तरफ देखा और फिर इसके बाद वस्तु पर निगाह डालकर नीचे देखने लगे । उनकी भाव-भंगिमा से व्यापारी का सारा उल्लास नष्ट हो गया ।

उसने विनम्र शब्दों में कहा : “प्रभो, यह चीज बड़ी कीमती है । मैंने बड़ी कठिनाई से जुटाई है । आप इसे ग्रहण करके मुझे उपकृत कीजिए ।” ईसा ने दृष्टि ऊपर उठाकर कहा : ”मैं इस भेंट को नहीं ले सकता । तुमने इसे चोरी के पैसे से खरीदा है ।”

व्यापारी को काटो तो खून नहीं! वह विस्मित होकर बोला : “प्रभो, यह आप क्या कहते है । मैंने तो इसे अपनी कमाई के पैसे से खरीदा है ।” ईसा ने कहा : ”तुम्हारा पड़ोसी भूखा और नंगा हो और तुम्हारी तिजोरी भरी हो तो यह पैसा चोरी का नहीं तो और किसका हो सकता है ? तुम अपनी इस भेंट को ले जाओ और इसे बेचकर जो पैसे मिले उनसे भूखों को खाना और नंगों को कपड़ा देने में खर्च करो ।”

व्यापारी ने अनुरोध करते हुए कहा : “प्रभो, मेरे पास अभी बहुत धन है । आप जो आदेश दे रहे हैं मैं उसका पालन करूंगा, पर इस भेंट को तो आप ले ही लीजिए ।” लेकिन फिर भी ईसा ने वह भेंट नहीं ली । बोले : “जो जरूरत-मंदों की सहायता करता है, वह मुझे सबसे कीमती भेंट देता है । इंसान की सेवा ही मेरी सेवा है ।”

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