Praise always Fails (With Picture)!
प्रशंसा का भूखा ठग जाता है |
एक कौआ था । एक दिन वह भोजन की तलाश में उड़ता जा रहा था । तभी उसकी नजर जमीन पर पड़े एक मांस के टुकड़े पर पड़ी । उसने वह टुकड़ा चोंच में दबा लिया, फिर वह एक पेड़ पर आकर बैठ गया । उस पेड़ के नीचे एक सियार बैठा था । जब उसने कौए की चोंच में मांस का टुकड़ा देखा तो उसकी नीयत खराब हो गई ।
वह सोचने लगा कि किस तरह यह मांस का टुकड़ा हथियाया जाए । अंत में उसे एक उपाय सूझा । ”अरे, कौए भाई, बड़े दिनों बाद दर्शन दिए ।” सियार बोला- ”मैं तो तुम्हारे दर्शनों को तरस गया था । कहां रहे इतने दिन?” कौआ कुछ नहीं बोला ।
”तुम्हारी सुंदरता का जबाव नहीं । तुम्हारा काला रंग कितना चमकीला और प्यारा है । तुम्हारी चोंच की तो प्रशंसा ही क्या करूं! और तुम्हारी आंखें! वाह, कितनी सुंदर और गोल-मोल हैं । तुम्हारे पंख तो मखमल की तरह चिकने हैं, परंतु हाय!” सियार ने आह भरी । कौआ उसके हाय कहने पर चौंक पड़ा ।
”भगवान ने तुम्हें गूंगा कर दिया । यदि तुम बोल सकते तो अवश्य ही पक्षियों के राजा होते । ईश्वर की लीला भी अनोखी है । ऐसा सुंदर रूप दिया, परंतु आवाज नहीं दी ।” कौआ अपनी प्रशंसा सुनकर फूला न समाया, परंतु उसे यह आश्चर्य हुआ कि सियार उसे गूंगा समझ रहा था । ‘यह मूर्ख सियार मुझे गूंगा समझ रहा है ।
मैं अभी इसे अपनी आवाज सुनाकर इसका भ्रम तोड़े देता हूं ।’ कौए ने सोचा । वह कांव-कांव करने लगा । मांस का टुकड़ा उसकी चोंच से गिरा तो सीधा सियार ने लपककर गटक लिया । ”वाह, वाह, तुम गूंगे नहीं हो ।” सियार बोला- ”परंतु मूर्ख अवश्य हो ।” कौआ उसकी चालाकी समझ गया, परंतु अब क्या हो सकता था । अपनी मूर्खता से वह ठगा जा चुका था ।
”मैं मूर्ख निकला ।” वह दुखी होकर रह गया- ”यदि मुझमें जरा भी अक्ल होती तो मैं सियार की चालाकी पहले ही समझ जाता । सच है जो प्रशंसा का भूखा होता है, वह ऐसे ही ठगा जाता है ।”
सीख:
बच्चे! हमें अपनी प्रशंसा सुनकर सावधान हो जाना चाहिए । किसी विद्वान ने कहा भी है कि ‘जो तुम्हारी प्रशंसा कर रहा है, वह या तो तुम्हें धोखा दे चुका है या धोखा देने की तैयारी कर रहा है ।’