Hindi Story on the Quarrel between Two Benefits the Third (With Picture)!
दो झगड़े तीसरा रगड़े |
किसी जंगल में एक शेर और एक रीछ रहते थे । जंगल में उन दोनों की धाक थी । सिंह तो वन का राजा था । रीछ भी राजा जैसा ही समझा जाता था । दोनों बलवान थे । न तो शेर रीछ से डरता था, न ही रीछ शेर से डरता था । उन दोनों से सभी जंगलवासी डरते थे ।
एक दिन वे दोनों शिकार पर निकले । उन दोनों ने इलाके बांट रखे थे । न रीछ शेर की सीमा में शिकार करता और न शेर कभी उसके इलाके में जाता । इस तरह उनके टकराव की नौबत नहीं आती थी, परंतु उस दिन टकराव की स्थिति बन गई ।
एक हिरन शेर के इलाके में चर रहा था । शेर ने उसे देखकर दहाड़ लगाई । उसकी दहाड़ सुनकर हिरन कांप गया । उसे आभास हो गया कि उसकी मृत्यु निकट है, फिर भी वह जान बचाकर भागा । शेर उसके पीछे दौड़ पड़ा ।
हिरन भागता हुआ रीछ के इलाके में पहुंच गया । रीछ ने उसे देखा । उसने छलांग लगाई । उसी समय शेर ने छलांग लगाई । बेचारा हिरन उन दोनों के वजन से ही प्राण खो बैठा । शेर ने उसे चीर-फाड़ना शुरू किया ।
”बस, बस सिंहराज!” रीछ गरजकर बोला- ”अब इसे छोड़िए । यह मेरा शिकार है । मैं ही इसे खाऊंगा । यह मेरे इलाके में है ।” ”पागल हुआ है क्या! यह मेरा शिकार है । इसे मैं ही खदेड़कर लाया हूं ।” शेर ने दहाड़कर कहा- ”अपना रास्ता नाप, वरना मैं तेरा बुरा हाल करूंगा ।” ”शर्म की बात है! आप दूसरे के किए शिकार पर ललचाते हैं ।”
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रीछ ने कहा- ”मेरे सामने यह दादागिरी नहीं चलेगी । आप जंगल के राजा हैं तो क्या हुआ, मैं भी आपसे कम नहीं । शर्त के अनुसार यह मेरे इलाके में है । आप शक्ति के अहंकार में शर्त भूल रहे हैं ।” ”अबे रीछ के बच्चे, यह मेरे इलाके से भागा है । मैं ही इसके पीछे था, तू तो अकारण ही धौंस दिखा रहा है ।
मैं शेर हूं, शेर । तेरी ऐसी खोखली धमकी में नहीं आने वाला । अपनी खैर चाहता है तो भाग जा ।” ”खैर तो आज तेरी नहीं है बिल्ली के बच्चे ।” रीछ भी उग्र हो गया- ”मैं भी तुझसे कमजोर नहीं हूं, मिला पंजा । देखें आज किसने मां का दूध पिया है । जो जीवित रहेगा वही शिकार खाएगा ।”
”आज तू बुरे शगुन से घर से निकला होगा । तभी तो अपनी मौत को दावत दे रहा है । अब तुझे मेरे हाथों से कोई नहीं बचा पाएगा ।” ”बातें ही बनाते रहोगे? गर्जना सुनाकर डराना चाहते हो । इसका फैसला तो तब होगा जब हार-जीत होगी ।”
रीछ गरजकर शेर पर टूट पड़ा । शेर ने दहाड़कर रीछ पर आक्रमण किया । जंगल में हाहाकार मच गया । जंगल के सभी पशु-पक्षी उस मल्लयुद्ध को देखने दौड़े । परंतु एक वृद्ध हाथी ने सबको समझाया- ”भाइयो! उन दोनों की तो मति भ्रष्ट हो गई है ।
तुम लोग वहां न जाओ । उनका क्या है? वे फिर एक हो जाएंगे । तुम्हें वे चुन-चुनकर चीर-फाड़ डालेंगे । यह उनकी चाल भी हो सकती है । वे इसीलिए लड़े होंगें कि तुम मल्लयूद्ध देखने पहुंचो और वे अपना शिकार करें।” ”हाथी भाई सत्य कह रहे हैं ।”
बंदर ने कहा । सभी वहां से वापस लौट पड़े, परंतु गीदड़राम इन बातों से शिक्षा नहीं लेता था । वह तो मतलब में चौकस रहता था । गीदड़ उस अखाड़े से दूर छुपकर बैठ गया । सामने ही शेर और रीछ भयंकर रूप से एक-दूसरे से लड़ रहे थे ।
उन दोनों के शरीर खून से नहा रहे थे, परंतु कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था । अंत में शाम तक लड़ते-लड़ते वे दोनों ही थककर गिर पड़े । गिरते ही दोनों बेहोश हो गए । गीदड़ ने देखा कि अब उनमें उठने की भी शक्ति नहीं रही । वह उछलता-कूदता वहां आ गया । वहां उसने मरा हुआ हिरन देखा ।
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”आहा, कितना स्वादिष्ट भोजन है! ये दोनों मूर्ख इसी के कारण एक दूसरे के प्राण लेना चाहते हैं । मुझे क्या! मेरा तो काम बन गया ।” यह कहकर गीदड़ हिरन को फाड़कर खाने लगा । कुछ ही देर में उसने भरपेट मांस खा लिया, उसने डकार ली ।
तभी शेर ने कराहकर आंखें खोलीं । उसने गीदड़ को हिरन का मांस खाते देखा । वह क्रोध में तो आया, परंतु खड़ा न हो सका । रीछ ने भी धीरे-धीरे आंखें खोलीं । उसने भी गीदड़ को देखा, जो मजे से हिरन को खाकर जा रहा था । गीदड़ भी उन दोनों को होश में आते देख भाग लिया ।
”हम दोनों बड़े मूर्ख निकले ।” शेर ने कराहकर कहा- ”इतनी मार-काट करते रहे, लहूलुहान हो गए और लाभ इस गीदड़ को हुआ ।” ”मारे गए!” रीछ भी लज्जित होकर बोला- ”अपनी मूर्खता से कुछ हाथ तो आया नहीं, उल्टे घायल पड़े हैं । किसी समझदार ने सच ही कहा है कि दो झगड़े तो तीसरा रगड़े।
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सीख:
बच्चो! यह कहानी हमें बताती है कि आपस के झगड़े में हमारी हानि ही होती है । लाभ तो कोई अन्य उठा लेता है । इसलिए हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए ।