Hind Story on Reap as One has Sown (With Picture)!

जैसी करनी वैसी भरनी |

एक जंगल में एक गिद्ध रहता था । उसने पुराने पीपल की खोह में अपना घोंसला बना रखा था । उसमें उसके तीन छोटे-छोटे बच्चे भी रहते थे । गिद्ध बड़ा आलसी और क्रूर प्रवृत्ति का था । एक दिन वह गिद्ध सूरज चढ़ने तक सोया रहा । उसके तीनों बच्चे भूख से तड़प रहे थे ।

वे रो रहे थे । उनका रुदन सुनकर गिद्ध जाग गया । ”क्या बात है बच्चों? क्यों रो रहे हो? सोने भी नहीं दे रहे ।” गिद्ध गुस्से से बोला । ”हमें भूख लगी है ।” तीनों बच्चे एक साथ बोले । ”अच्छा, रोओ मत । मैं अभी तुम्हारे खाने के लिए कुछ लाता हूं ।”

बच्चों को तसल्ली देकर वह जंगल में उड़ गया । उसे किसी अच्छे भोजन की तलाश थी । अचानक उसकी नजर जमीन पर उगी झाड़ियों के बीच पड़ी । झड़ियों में लोमड़ी का एक बच्चा बैठा था । गिद्ध की दृष्टि तो वैसे ही प्रसिद्ध है । उसने ताड़ लिया कि बच्चा अकेला है । उसे ऐसे ही भोजन की तलाश थी ।

‘आहा! कितना स्वादिष्ट भोजन मिला है ।’ वह मन-ही-मन प्रसन्न होकर बोला- ‘इसका नर्म गोश्त खाकर मेरे बच्चे बहुत खुश होंगे । इसे ही ले चलता हूं ।’ यह सोचकर गिद्ध ने जमीन की तरफ उड़ान भरी । लोमड़ी का बच्चा इस संकट से अनभिज्ञ था । गिद्ध ने झपट्टा मारकर उसे पंजों में दबोच लिया ।

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लोमड़ी का बच्चा भय से चीख पड़ा । उसकी चीख सुनकर कहीं से भागी-भागी लोमड़ी आ गई । अपने बच्चे को मृत्यु के मुंह में देखकर वह घबरा गई । ”है गिद्धराज! यह मेरा इकलौता बच्चा है । इसे छोड़ दो ।” वह रोते हुए बोली- ”यह बहुत ही मासूम और छोटा है । मैं इसे प्राणों से भी अधिक प्यार करती हूं ।

दया करके इसे छोड़ दो । मैं जीवन-भर तुम्हारा उपकार मानूंगी ।” ”अरी मूर्ख लोमड़ी! यह तू कैसी बात कर रही है । यदि मैं ऐसे दया दिखने लगा तो मेरे बच्चे भूखे न मर जाएंगे ।” गिद्ध बोला । ”तुम तो शक्तिशाली हो । तुम्हें भोजन की क्या कमी है । मेरे बच्चे को छोड़ दो । मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं ।”

”चल, चल! मेरा समय बर्बाद मत कर ।” गिद्ध बोला- ”मेरे बच्चे भूख से बिलख रहे हैं । मुझे उनके पास जल्दी पहुंचना है ।” ”ऐसी क्रूरता से काम न लो भैया! मेरे बच्चे को छोड़ दो । मैं तुमसे अपने बच्चे के प्राणों की भीख मांगती हूं । कुछ तो भगवान का भय मानो । इस अबोध बच्चे के प्राण लेकर तुम्हें क्या मिलेगा ।”

”बात मत बना । मुझे तो जाना है । तेरी बात कौन सुने ।” इतना कहकर गिद्ध उड़ चला । लोमड़ी का बच्चा चीख रहा था । अपने बच्चे की यह हालत देखकर लोमड़ी गिद्ध को कोसने लगी- ”अरे दुष्ट पापी, तू भी औलाद वाला है । अपने कलेजे पर हाथ रखकर देख ।

मेरे मासूम बच्चे को मत मार ।” इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगी । गिद्ध को इन बातों से क्या फर्क पड़ता । वह तो दुष्ट था । वह लोमड़ी के चीखने, चिल्लाने पर जरा भी अंई नहीं पसीजा । वह उड़ता जा रहा था । लोमड़ी उसके पीछे-पीछे दौड़ती जा रही थी ।

रास्ते में कई पशु-पक्षी मिले । सभी गिद्ध को बुरा-भला कह रहे थे । मगर वे बेचारे कर ही क्या सकते थे? गिद्ध उड़ता हुआ अपने बच्चों के पास आ गया । यह सब देखकर एक बूढ़े सियार से न रहा गया । वह गुस्से से बोला- ”दया कर दुष्ट! इतना निर्दयी मत बन । मेरे हाथ पड़ गया तो मैं तेरी गर्दन तोड़ दूंगा ।”

”भाग जाओ सब यहां से ।” गिद्ध बोला- ‘मैं किसी से नहीं डरता ।” ऐसा कहकर उसने लोमड़ी के बच्चे को अपने बच्चों के सामने रख दिया । बच्चे भूख से व्याकुल थे । वे उस पर टूट पड़े । उनकी नुकीली चोंचें लोमड़ी के बच्चे के शरीर में धंसने लगीं । बच्चा बुरी तरह चीखने लगा । लोमड़ी अपने बच्चे के इस हाल पर सिर पटकने लगी । गिद्ध को गालियां देने लगी ।

लोमड़ी के बच्चे के प्राण निकल गए थे । उसकी मौत की कल्पना से लोमड़ी की आंखें गुस्से से सुलग उठीं । वह बोली- ”पापी, तूने मेरे बच्चे की जान ले ली । मैं तुझे तेरी करनी का मजा अवश्य चखाऊंगी । तेरी ऐसी हालत करूंगी कि तू रोएगा । जब तक तू जीवित रहेगा, तेरी आंखों से नहीं सूखेंगे ।”

गिद्ध को अपने बल पर बड़ा घमंड था । वह बोला- ”तू मुझे मजा चखाएगी! मूर्ख लोमड़ी, भाग जा! मुझे गुस्सा आ गया तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा । तेरे ये हिमायती भी तुझे नहीं बचा सकेंगे । चली जा यहां से ।””अभी ठहर दुष्ट ।” लोमड़ी ने इधर-उधर देखा ।

पास ही एक जगह आग जल रही थी । लोमड़ी के मन में बदला लेने का उपाय आ गया । उसने जल्दी-जल्दी सूखी लकड़ियां एकत्र कीं । उन लकड़ियों को पीपल के आसपास जमाया । गिद्ध की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेवकूफ लोमड़ी क्या करना चाहती थी ।

”तू पागल है लोमड़ी । पेड़ में कहीं आग लगती है ।” वह हंसा । लोमड़ी कुछ न बोली । उसने लकड़ियों पर थोड़ी-सी आग लगा दी । जब आग की लपटें गिद्ध के पास पहुंचीं तो वह जान बचाकर भागा । वह उड़कर दूसरे पेड़ पर बैठ गया । उसके बच्चे अभी छोटे थे ।

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वे उड़ना नहीं जानते थे । आग की लपटें उन्हे झुलसाने लगी । वे सहायता के लिए चिल्लाने लगे । गिद्ध अपने बच्चो को बचाना चाहता था, पर वह चाहकर भी वैसा न कर सका । अपने बच्चों को मौत के मुंह में जाता देख वह फूट-फूटकर रोने लगा ।

वह लोमड़ी से बड़े दुखी स्वर में बोला- ”बहन मैंने तुम्हारे बच्चे को मारकर बड़ी भूल की है । मैं बहुत पापी हूं । मुझे अपनी भूल का पश्चाताप है । तुमसे विनती है, कि मेरे अपराध का दण्ड मेरे बच्चों को ना दो”

जब लोमड़ी ने देखा कि गिद्ध को उसके किए की पर्याप्त सजा मिल गई है, तो उसने अन्य पशुओं की सहायता से आग बुझा दी और गिद्ध के बच्चों को बचा लिया । गिद्ध की आंखों से आंसू बहने लगे । वह बोला- ”मैं बहुत बड़ा पापी हूं । मैं अहंकार में यह भूल गया था, कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे । अब मैं कभी भी ऐसा नहीं करूगा ।”

सीख:

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इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शक्ति के अहंकार में हमें कभी भी किसी को सताना नहीं चाहिए । जैसी करनी, वैसी भरनी!

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