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नकलची बुरा फंसा |

काकू कौआ बड़ा ही ईर्ष्यालु था । वह जंगल के किसी भी जीव-जंतु से प्रेम-भाव नहीं रखता था । उसमें एक बुरी आदत थी । वह हमेशा दूसरों की नकल करके बड़ा प्रसन्न होता था । एक दिन वह बरगद के पुराने पेड़ पर बैठा था ।

उसने पेड़ के नीचे मोर के पंख बिखरे पड़े देखे । उसका मन ललचा गया । वह अपने आप से बोला- ‘काश! मैं भी मोर होता, भगवान ने मोरों को कितना सुंदर बनाया है ।’ अपनी चोंच से उसने मोर के सभी पंख समेटे और अपनी पूंछ के आस-पास खोंस लिए ।

फिर वह नाचते हुए स्वयं से बोला- ‘भगवान तुम सच में बहुत दयालु हो तुमने मेरी मोर बनने की इच्छा पूरी कर दी । आप सच में सर्वशक्तिमान हैं ।’ उसी पेड़ पर चीची चिड़िया बैठी थी । जो कौए के सारे ‘रंग ढंग’ हरकतें देख रही थी ।

”क्या बात है काकू भैया ।” वह चहकते हुए बोली- ”कहीं आज तुम्हारी शादी तो नहीं हो रही । तुम तो बड़े प्रसन्न नजर आ रहे हो ।” ”चुप रह मूर्ख!” कौवा गुस्से में बोला- ”तू मुझे कौआ समझ रही है । अरी, अब तो मैं मोर बन गया हूं । मैं मोरों की तरह सुंदर हूं ।

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मैं मोरों के पास पहुंचता हूं ।” ”भैया काकू, संभलकर जाना । बेशक आप ने पूंछ में मोर के पंख लगा लिए हैं । लेकिन आप मोर नहीं हैं । मुझे तो डर लग रहा है कि कहीं मोर तुम्हारा तीया-पांचा न कर दें ।” काकू ने उसकी बात नहीं सुनी । वह मोरों की टोली में जा पहुंचा ।

”देखो भाई, अब मैं भी मोर बन गया हूं ।” वह मोरों से बोला- ”अब मैं कौओं से कोई सबंध नहीं रखूंगा । वे सब भद्‌दे हैं ।” मोर उसकी बात पर ठहाका लगाकर हंस पड़े। ”भाइयों इस कौए की बात सुन ली तुमने । हमारे पंख लगाकर यह हम जैसा बनने की कोशिश कर रहा है । मारो इस नकलची को ।” एक मोर बोला ।

यह सुनते ही सभी मोर उस पर टूट पड़े । चोंच मार-मारकर उसका बुरा हाल कर दिया । कौआ चीखता हुआ वहां से भागा । वह रोता-कराहता कौओं की टोली में पहुंचा । ”क्या हुआ काकू! तू तो घायल हो गया है ।” एक कौए ने पूछा ।

”मुझे दुष्ट मोरों ने मारा है ।” वह रुआंसा होकर बोला- ”वे लोग हम कौओं से बहुत शत्रुता रखते हैं ।” ”उनकी यह हिम्मत! तू हमें सारी बात बता ।” दूसरा कौवा बोला । ”मैं वहाँ से गुजर रहा था । मैंने उनसे कुछ भी नहीं कहा था । वे लोग अकारण ही मुझे मारने लगे । मैं जान बचाकर भाग आया ।” कौवा दु:खी स्वर में बोला ।

”सुन ली इस बदमाश की बातें!” एक बूढ़ा कौआ बोला- ”एक तो नकल करता है, ऊपर से झूठ बोलता है । चीची चिड़िया ने हमें सब बता दिया है । जो जीव अपनी जाती के रूप-गुण से संतुष्ट नहीं होता, उसे बदलने की इच्छा रखता है, उसका हर जगह अपमान होता है ।”

काकू कौआ बड़ा लज्जित हुआ । इधर सारे कौवे उस पर हंसने लगे । तभी बूढ़ा कौवा बोला- ”आज यह मोर बनकर मोरों से हमारी चुगली कर रहा था । उन लोगों ने मार लगाई है । अब हमारे पास आ गया है । यह धोखेबाज है, इसे यहां से भगाओ ।”

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”मारो, मारो!” कहकर सारे कौए उस पर टूट पड़े । काकू कौए ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी । वह घबरा गया । उसने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी । आज उसकी नकल करने की आदत की वजह से उसे खूब मार पड़ी थी ।

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सीख:

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें औरों की नकल नहीं करनी चाहिए । हमें दूसरों के धन और सुंदरता से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए । हमें अपनी ही चीजों से संतुष्ट रहना चाहिए ।

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