Selfish Always Suffers (With Picture)!

स्वार्थी सदैव कष्ट पाता है |

कोकिला वन में असंख्य पशु-पक्षी रहते थे । समय के साथ-साथ वन में दो दल बन गए । पशु चाहते थे कि वन पर उनका शासन हो । पक्षी चाहते थे कि उन्ही में से कोई उस जंगल का राजा बने । इस विवाद को लेकर दोनों पक्षों में घमासान युद्ध चल रहा था । पशुओं की तरफ से शेर, रीछ, हाथी जैसे शक्तिशाली पशुओं ने पक्षियों का जीना हराम कर रखा था ।

शेर रातों को दहाड़कर पक्षियों की नींद उड़ा देता था । रीछ पेड़ पर चढ़कर पक्षियों के घोंसले तोड़ कर, उनके बच्चों को जमीन पर फेंक देता । हाथी उस पेड़ को ही उखाड़ देता । पक्षी भी कमजोर नहीं पड़ रहे थे । गरुड़ और गिद्ध जब भी अवसर मिलता, वे चोंचें मारकर हाथी तक को अंधा बना देते । खरगोश, चूहे, बिल्ली जैसे छोटे सैकड़ों पशु तो उनका आहार बन चुके थे ।

इस जीव-संहार का कोई परिणाम नहीं निकल रहा था । यह लड़ाई बहुत दिनों तक चलती रही । इस लड़ाई में एक जीव ऐसा भी था जो स्वार्थी था । वह जिसे भी जीतता समझता, उसी तरफ जा मिलता । साथ ही अपनी शेखी खुद बघारता फिरता । इस आपसी लड़ाई में फंसे रहने के कारण पशु-पक्षी उस स्वार्थी को पहचान नहीं सके । वह स्वार्थी अपना मतलब साधता रहा ।

अंतत: यह लड़ाई बंद हुई । दोनों पक्षों में संधि हुई । सभी ने मिलकर शेर को जंगल का राजा मान लिया । तब उस स्वार्थी जीव की बात चली । पता चला कि वह अन्य कोई नहीं, चमगादड़ था । वह धोखा देकर दोनों पक्षों में मिला रहना चाहता था । वह जीवधारी था । शेर ने चमगादड़ को पशु-सभा में आने का आदेश दिया । वह आ गया।

”तुम स्वयं को क्या मानते हो? पशु या पक्षी?” शेर ने प्रश्न किया । ”मै…मैं पशु हूं ।” चमगादड़ घबरा गया । ”परंतु तुम्हारे पंख तो पक्षियों जैसे हैं ।” चमगादड़ निरुत्तर हो गया । ”तुम हमें धोखा देते हो ।” शेर क्रोधित हो गया- ”भाग जाओ यहां से । तुम पशुओं में नहीं मिल सकते ।”

ADVERTISEMENTS:

चमगादड़ अपना-सा मुह लेकर वहां से चल दिया । वह पक्षियों के पास पहुंचा । उनसे अनुरोध किया कि उसे अपनी जाति में मिला लें । ”तुम पक्षी नहीं हो । तुम्हारी चोंच नहीं है ।” गरुड़ ने कहा- ”हमें तो तुम पक्षी नहीं लगते । तुम धोखेबाज हो । स्वार्थी हो ।”

”गरुड़ महाराज! मैं कहां जाऊं?” ”हमें कुछ नहीं पता । तुम्हारे कान चूहों जैसे हैं । भागो, यहां से ।” चमगादड़ वहां से भी निराश लौट आया । अब वह चूहों की शरण में पहुंचा । चूहे उसे देखकर मुंह बनाने लगे । ”भाइयो! मुझे अपनी जाति में मिला लो । मेरे लम्बे-लम्बे कान तुम्हारी तरह हैं । मैं भी अपने बच्चों को तुम्हारी तरह दूध पिलाता हूं ।” वह बोला ।

”यह लो भाई! यह आ गया हमें भी धोखा देने । इसे अपनी जाति में मिला लो । हुंह! तुम्हारी पूंछ तो नजर नहीं आती । तुम पैरों से भी नहीं चलते । तुम तो उड़ते हो । तुम्हें हम अपनी जाति में नहीं मिला सकते ।” चमगादड़ लज्जित हो गया । उसके स्वार्थ ने उसे न घर का छोड़ा, न घाट का । अपनी दुर्गति पर पछताता हुआ वह पेड़ पर जा लटका । तभी से वह रातों में अकेला घूमता है । और दिन में छिपा रहता है ।

सीख:

बच्चो! स्वार्थी का कभी भी भला नहीं होता । स्वार्थी पर कोई भी विश्वास नहीं करता । इसलिए हमें स्वार्थ से बचना चाहिए ।

Home››Hindi Stories››