Hindi Story on the Greed is the Cause of Sorrow (With Pictures)!
छोटा लोभ बड़ा दुख |
एक यात्री था । वह पैदल यात्रा कर रहा था । उसे चलते-चलते बहुत देर हो गई थी । वह थक था । अब उससे एक कदम भी नहीं चला जा रहा था । वह थककर वहीं बैठ गया । वहां से थोड़ी दूर एक छोटा गांव था । यात्री कुछ देर सुस्ताकर फिर चल पड़ा ।
किसी तरह वह उस गांव में पहुंचा । वहां उसने एक घोड़ा ढूंढा । घोड़े के मालिक को भी कहीं जाना था ।”महाशय।” यात्री बोला- ”अभी मुझे कई मील यात्रा करनी है । मैं बुरी तरह थक चुका हूं । यदि आप मुझे अपना घोड़ा दे दें तो कृपा होगी ।”
”घोड़ा क्या मुफ्त में दे दूं?” घोड़े का मालिक बोला । ”मैं घोड़े का किराया दूंगा ।” यात्री बोला ”ठीक है, परंतु मेरी एक शर्त है ।” ”कैसी शर्त?” ”मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा । अगले गांव में मुझे काम है । मैं वहां तक तुम्हारे साथ चलूंगा ।” घोड़े का मालिक बोला ।
”मुझे कोई एतराज नहीं ।” यात्री ने घोड़ा ले लिया । किराया तय हो गया । यात्री घोड़े पर बैठ गया । घोड़े का मालिक भी पीछे बैठ गया । घोड़ा चल पड़ा । बड़ी तेज धूप पड़ रही थी । दोनों पसीने से तर-बतर थे । आसपास दूर तक कोई पेड़ भी नहीं था । ”जरा सुस्ता लेना चाहिए ।” यात्री बोला ।
”ठीक है, पर छाया तो कहीं है नहीं ।” वे दोनों घोड़े से उतर पड़े । यात्री घोड़े की छांव में बैठ गया । घोड़े का मालिक उसका आराम देखकर जल उठा । ”मैंने तुम्हें घोड़ा किराए पर दिया है, उसकी छाया नहीं ।” घोड़े का मालिक बिगड़कर बोला- ”हटो यहां से, छाया पर मेरा अधिकार है ।”
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”भलेमानस! तुम कैसी बात कर रहे हो । घोड़ा तो मैंने किराए पर लिया है, इसलिए उसकी छाया पर भी मेरा अधिकार है, परंतु मैं तुम्हें मना नहीं कर रहा । तुम भी इसकी छाया में बैठ जाओ ।” ”नहीं, छाया में सिर्फ मैं बैठूंगा ।” ”यह तो तुम जिद कर रहे हो ।” यात्री चकित स्वर में बोला ।
”तुम जो भी समझो, यहां से उठो । मुझे बैठने दो ।” ”बातें मत बनाओ । घोडा अब मेरा है । मैं तुम्हें ले आया, यही क्या कम है । अब यहाँ से चलते-फिरते नजर आओ ।” यात्री ने कहा । ”अजी, मैं क्या तुमसे डरता हूं । तुमने घोड़ा किराए पर लिया है । इसकी छाया का तुमने कुछ नहीं दिया ।
हटो, वरना मैं तुम्हें धक्के मारकर भगा दूंगा ।” ”तुम्हारी इतनी हिम्मत!” यात्री गुस्से में आ गया- ”मैं तुम्हारी इज्जत कर रहा था । तुम तो सिर पर चढ़े जा रहे हो । लगता है मुझे तुम्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा ।” ”तुम मुझे क्या सबक सिखाओगे! मैं तुम्हें मार-मारकर रुला दूंगा ।”
इस तरह झगड़ा बढ़ता ही गया । उस जंगल में उनका बीच-बचाव करने वाला भी कोई नहीं था । दोनों एक-दूसरे को पीटने लगे । एक-दूसरे पर लातों-घूसों की बरसात करने लगे । घोडा उनके खगड़े से भड़क गया । वह वहां से भाग गया ।
”अरे! घोड़ा कहां गया?” घोड़े का मालिक आश्चर्य से बोला । ”भाग गया । अच्छा रहा । छाया के लिए रो रहा था, अब काया के लिए रोता रह । बैठ ले छाया में ।” तब घोड़े के मालिक को अपनी भूल का अहसास हुआ । वह बोला- ”अरे, यह मैंने क्या किया । घोड़ा तो अभी नया था । वह तो घर भी नहीं जाएगा ।”
”मैं क्या करूं? गलती तुम्हारी है ।” यात्री ने कहा ।”हाय! मेरा थोड़ा-सा लोभ मेरा कितना नुकसान कर गया । मुझे मेरी करनी का फल मिल गया ।” वह अपना माथा पीटने लगा । इस तरह घोड़े की छाया से मोह रखने वाला घोड़े की काया से भी हाथ धो बैठा । सही कहा है, लोभ बुरी बला है ।
सीख:
बच्चो! छोटा लोभ बड़े दुख का कारण है । लोभ करने से लाभ नहीं होता, बल्कि नुकसान होता है । लोभी व्यक्ति को सिर्फ पछताना पड़ता है ।