The House of the Lizard!
छिपकली का घर |
बहुत पुरानी बात है । दुनिया का निर्माण-कार्य गति पा चुका था । अनेक जीव-जन्तु अपने-अपने तरीकों से जिंदगी बिताने के लिए कामों में लगे थे । आदमी बुद्धिमान था, इसलिए उसने घर बनाकर गांव बसा लिए । उसने अपने घर को लीप-पोतकर सुंदर बनाने का तरीका भी सीख लिया था ।
मगर छिपकली का कोई घर नहीं बन पाया था । इसका कारण यह था कि उसका नर अत्यंत आलसी और निकम्मा था । वह कुछ भी काम नहीं करता था । बेचारी छिपकली ही उसके लिए कीड़े-मकोड़े मारकर लाती जिन्हें वह खा लेता और सो जाता ।
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जाड़ों में वह एक चट्टान पर पड़ा धूप सेंकता, बरसात में चट्टान के नीचे किसी दरार में दुबक जाता और गर्मियों में चट्टान के पास छाया में लेट लगाता । उसका यही काम था-खाओ-पिओ और ऐश करो । छिपकली अपने नर की काहिली पर बहुत दुखी होती, उसे समझाने की कोशिश करती और नर को अपना घर बनाने के लिए उकसाती ।
नर उसे बड़े-बड़े आश्वासन देता और फिर सो जाता । आए दिन ऐसा होता था । अब तो छिपकली भी उसे समझाते-समझाते थक चुकी थी । अंत में थक-हारकर उसने उससे कुछ कहना ही छोड़ दिया । एक दिन छिपकली भोजन की तलाश में घूमती-घामती एक गांव के पास पहुंची ।
उसने वहां मनुष्यों के सुंदर-सुंदर घर देखे । उन सुंदर घरों को देखकर उसकी भी इच्छा हुई कि उसका भी अपना एक घर होना चाहिए । लेकिन घर होगा कहां ? उसका नर तो बडा ही निकम्मा था । जब वह छोटे-मोटे काम ही नहीं कर पाता था तो भला घर कहां बना पाता ।
उस दिन वह बड़े ही दुखी मन से अपने नर के पास आई । नर ने उससे भोजन मांगा तो वह रोने लगी । उसने नर को भला-बुरा कहा और उसे धिक्कारते हुए बोली: ”जाकर मनुष्यों के घर देख । तू यूं ही जनम अकारथ कर रहा है । क्या तुझसे अपना एक घर भी नहीं बनाया जाता ।”
”अच्छा, तू चिंता मत कर । बरसात बीतते ही मैं घर बनवाना शुरू कर दूंगा ।” नर ने उसे आश्वासन दिया । भोली-भाली छिपकली फिर उसकी बातों में आ गई और अपने घर के सपने देखने लगी । बरसात बीत गई तो छिपकली ने नर को घर बनाने की याद दिलाई । नर ने कहा : ”बस काम शुरू करता हूं ।”
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इसी तरह जाड़े बीत गए । छिपकली ने फिर पूछा, ”तुम्हारा घर कब बन रहा है ?” नर ने कहा, ”बस, बहुत जल्दी ।” फिर कुछ दिन इसी प्रकार बीत गए तो छिपकली ने पूछा, ”घर बनाने का काम कैसा चल रहा है ?” ”जमीन तय कर ली है । कल से चिनाई का काम शुरू करूंगा । ”
छिपकली जब भी उससे पूछती, वह उसे इसी प्रकार की उल्टी-सीधी पट्टियां पढ़ा देता । छिपकली इतनी भोली थी कि हर बार उसकी बातों में आ जाती थी । इसी प्रकार दिन बीतते गए । नर आश्वासन देता रहा मगर घर नहीं बना । गर्मियां आईं । भयंकर गर्मी पड़ने लगी, गर्म लूएं चलने लगीं ।
चट्टान पर रहना मुश्किल हो गया तो एक दिन छिपकली रोने लगी । नर ने कारण पूछा तो बोली, ”तुम तो चिंता करते नहीं । हर बार मुझे झूठी-सच्ची बातें बताकर बहला देते हो । रहने का कहीं ठौर-ठिकाना नहीं है । आंधी आई तो यह चट्टान भी खिसक जाएगी । फिर कहां रहोगे ?”
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नर ने उसे आश्वासन दिया । मगर छिपकली रोती रही । नर के बहुत समझाने-बुझाने पर भी छिपकली ने रोना बद नहीं किया । आखिर नर ने उसे प्यार से दुलारा और कहा, ”अच्छा, आज तुम आराम करो । मैं भोजन लेने जा रहा हूं । मनुष्यों के घर भी देख आऊंगा, फिर अपना घर अवश्य बनाऊंगा ।”
कहकर नर गांव की ओर चला गया । वह गांव के पास पहुंचा तो उसने मनुष्यों के सुंदर-सुंदर घर देखे । उसने सारे गांव में घूम-फिरकर देखा । फिर वह छिपकली के पास लौट आया । छिपकली उसे खाली हाथ आया देखकर उदास हो गई । मगर नर उत्साह से बोला : ”पगली ! चिंता क्यों करती है ।
तू क्या समझ रही है कि मैं खाली हाथ हिलाता हुआ ही लौट आया हू ! अरी बावली ! मैं तो अपना घर बना आया हूं । चल मेरे साथ ।” छिपकली खुश हो गई और दोनों गांव की ओर चल दिए । गांव के पास पहुंचकर नर छिपकली से बोला, ”देख, ये सब हमारे ही घर हैं । हम लोग यहीं रहेंगे । इन्हीं घरों में हमारे बच्चे पलेंगे ।”
छिपकली बोली, ”अरे ! यहां तो मैं रोज आती थी । मगर मेरे दिमाग में तो यह बात आई नहीं ।” ”तूने कभी इस ढँग से सोचा ही नहीं । यहां देख, हमें खाने को मक्खियां, मच्छर और खूब कीट, पतंगे मिलेंगे । हम आराम से खाएंगे और सोएंगे ।”
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नर ने कहा, फिर वे दोनों एक घर में घुस गए । नर घर में जाते ही एक दीवार पर चिपककर इत्मीनान से सो गया । बस, तभी से छिपकली सपरिवार हम इंसानों के घरों में रहती है । पूरी दुनिया में कहीं भी छिपकली का अपना घर नहीं है क्योंकि छिपकली को अपना घर बनाना नहीं आता । सीखने की उन्हें जरूरत भी नहीं पड़ी ।