List of interesting stories on ‘Reptiles’ in Hindi!

Contents:

  1. ब्राह्मण और केकड़ा |
  2. बंदर और मगरमच्छ |
  3. मूर्ख कछुआ |
  4. सांप और चींटियां |
  5. मेढक और धूर्त सांप |

Hindi Story # 1 (Kahaniya)

ब्राह्मण और केकड़ा |

ब्रह्मदत्त दूर किसी नगर में काम से जा रहा था । वह नगर काफी दूर था । उसके परिवार वाले भी चिंता में थे कि वह अकेला कैसे जाएगा ? जाने के पूर्व मां ने पूछा : ‘बेटा ! तुम अकेले जा रहे हो, क्या कोई और भी तुम्हारे साथ जा रहा है ?’

‘नहीं मां, मैं बिकुल अकेला ही जा रहा हूं ।’ ब्रह्मदत्त ने कहा । यह सुनकर उसकी मां उदास हो गई, वह कहने लगी : ‘तुम्हारा इस तरह अकेले जाना ठीक नहीं है । मार्ग में चोर-लुटेरे और जंगली जानवर हैं ।’ फिर कुछ सोचकर वह बोली : ‘मैं तुम्हें एक चीज देती हूं ।’

ब्रह्मदत्त ने चौंककर पूछा: ‘क्या ?’ तभी मां ने एक छोटा केकड़ा लाकर ब्रह्मदत्त को दिखाया और उसे देते हुए कहा : ‘यह केकड़ा तुम्हारा रास्ते का साथी बनकर  जाएगा । इसको अपने साथ रखना । अकेले रहने से दो का रहना अच्छा होता है ।’

अब ब्रह्मदत्त को हंसी आ गई : ‘यह जरा-सा केकड़ा और मेरा साथी । यह मेरी क्या सहायता करेगा ?’ पुत्र की बात सुनकर मां उदास हो गई, तो मां को खुश करने के लिए ब्रह्मदत्त ने कहा : ‘मां, तुम ठीक ही कह रही हो ।

मैं यह केकड़ा अपने साथ ले जाता हूं । इसे एक डिब्बे में रख दो, मैं उसे झोले में रखकर अपने साथ ले जाऊंगा । ‘ ब्रह्मदत्त अपनी यात्रा पर निकल पड़ा । चलते-चलते वह थक गया, तो कुछ देर विश्राम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुका, तो उसे नींद आ गई और वह वहीं सो गया ।

जिस पेड़ के नीचे वह सो रहा था, वहीं एक भयानक सांप भी था । सांप रेंगता हुआ झोले के पास आया और उसमें रखा डिब्बा खोलने लगा । उसे उसमें से खाने की गंध आ रही थी । जैसे ही डिब्बे का ढक्कन खुला केकड़े ने सांप को मौका दिए बिना उसकी गर्दन दबोच ली । सांप वहीं तड़पकर मर गया ।

थोड़ी देर बाद ब्रह्मदत्त की निद्रा टूटी । पास में मरा सांप देखकर वह समझ गया कि केकड़े ने उसे मारा है और मेरी जान बचाई है । अगर यह केकड़ा नहीं होता, तो सांप तो मुझे डस ही लेता । अब मैं समझा कि किसी को भी छोटा और बेकार नहीं समझना चाहिए ।


Hindi Story # 2 (Kahaniya)

बंदर और मगरमच्छ |

बहुत पहल का बात है, कसा नदा के कनार एक सेब के पेड पर एक बदर रहता था । वह रोज मीठे-मीठे सेब तोड़कर खाता रहता था । एक दिन नदी में रहने वाले मगरमच्छ ने उसे सेब खाते हुए देखा, तो उसका भी जी ललचा गया ।

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वह धीरे-धीरे चलकर बंदर के पास पहुंचा और बड़े ही मीठे शब्दों में बंदर से बोला : ‘बंदर भैया ! क्या तुम मुझे कुछ सेब दे सकते हो ? मुझे बहुत भूख लगी है ।’ बंदर ने तुरंत कुछ मीठे सेब तोड़कर उसके लिए नीचे गिरा दिए । मगरमच्छ ने बड़े स्वाद से उनको खा लिया, फिर वह बंदर से बोला : ‘यदि मैं फिर दुबारा यहां आऊं तो तुम मुझे सेब दोगे ?’

बंदर बोला : ‘ही हां, जब मर्जी हो आ जाना ।’ मगरमच्छ रोज उसके पास आने लगा और सेब लेकर खाने लगा । बार-बार आने पर वह बंदर से ढेरों सुख-दुख की बातें करने लगा और उसका दोस्त बन गया । अपने परिवार, बच्चों और सुंदर पत्नी की बातें भी उसने बंदर को बताई ।

बंदर ने यह सब सुनकर उसकी पत्नी के लिए भी कुछ और सेब उसे दे दिए । मगरमच्छ की पत्नी ने जब कुछ रसीले फल खाए तो उसे बहुत अच्छा लगा । उसने मगरमच्छ से रोज सेब लाने की फरमाइश की । इसके बाद मगरमच्छ प्रतिदिन पत्नी के लिए मीठे-मीठे सेब लाने लगा ।

इन्हीं दिनों बंदर और मगरमच्छ की दोस्ती और गहरी होती गई, क्योंकि वे ज्यादातर समय इकट्ठे रहकर गुजारते थे । मगरमच्छ की पत्नी उन दोनों के ज्यादा समय साथ-साथ गुजारने के कारण नाराज हो गई, क्योंकि अब उसे मगरमच्छ का साथ बहुत कम मिल पाता था । उसने उन दोनों की दोस्ती तुड़वाने के लिए एक चाल चली ।

उसने सोचा-जो बंदर रोज-रोज मीठे सेब खाता है, उसका कलेजा कितना मीठा होगा ? उसने पति मगरमच्छ से कहा कि ‘आप उस बंदर को अपने घर क्यों नहीं बुलाते पड़’ मगरमच्छ ने उत्तर दिया : ‘मैं बुलाना तो चाहता हूं, पर वह नदी तैर कर पार नहीं कर सकता ।’

मगरमच्छ की पत्नी ने तब एक सुंदर कहानी गढी । वह चुपचाप बिस्तर पर बहाना बनाकर पड़ गई मानो वह बहुत सख्त बीमार हो । मगरमच्छ ने आकर पूछा कि क्या हुआ ?  उसने आहे भरते हुए उत्तर दिया : ‘मैं बहुत बीमार हूं वैद्य ने कहा है कि यह बीमारी सिर्फ बंदर का कलेजा खाने से ही ठीक हो सकती है ।

अगर तुम मेरी जिंदगी बचाना चाहते हो, तो शीघ्र ही मुझे बंदर का कलेजा लाकर दो, अन्यथा मैं मर जाऊंगी ।’ अब मगरमच्छ बड़ी दुविधा में पड़ गया । एक तरफ उसका प्यारा मित्र था, तो दूसरी ओर उसकी पत्नी । मगरमच्छ भारी मन से सेब के पेड़ के पास गया और बंदर को आवाज दी : ‘प्यारे बंदर ! आज तुम मेरे घर चलो, मेरी पत्नी ने तुम्हें खाने पर बुलाया है ।

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तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं जल्दी ही तुम्हें नदी के पार ले जाऊंगा ।’ बंदर मगरमच्छ के घर जाकर दावत खाने की बात सुनकर बहुत खुश हुआ । वह मगरमच्छ के साथ जाने को तैयार हो गया । बंदर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया और दोनों नदी में तैर कर दूसरी ओर जाने लगे ।

बीच नदी में जाने पर मगरमच्छ पानी में नीचे की ओर जाने लगा । बंदर डूबने लगा तो उसे बहुत डर लगा । उसने मगरमच्छ से कहा : ‘भैया यह क्या कर रहे हो ?’  मगरमच्छ ने उत्तर दिया : ‘भैया मैं क्या करूं, मेरी पत्नी ने तुम्हें मारकर तुम्हारा कलेजा लाने के लिए भेजा है ।’

बंदर ने शीघ्र ही उत्तर दिया : ‘अरे भैया तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, मैं अपना कलेजा तो पेड़ पर ही छोड़ आया हूं । तुम जल्दी-जल्दी वापस चलो, तो मैं पेड़ पर से कलेजा उतार कर तुम्हें शीघ्र ही दे दूंगा ।’ बेवकूफ मगरमच्छ उसकी बातों में आ गया और शीघ्र ही बंदर को वापस पेड के पास ले गया । डरता हुआ बंदर जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ गया और ऊपर जाकर मगरमच्छ से बोला : ‘तुम अपनी पत्नी को कह देना कि उसने संसार के सबसे बड़े बेवकूफ से शादी की है ।’


Hindi Story # 3 (Kahaniya)

मूर्ख कछुआ |

किसी घने जंगल में एक तालाब था । उसके किनारे दो हंस और एक कछुआ मित्र बनकर रहते थे । तालाब का पानी कभी सूखता नहीं था, अत: तीनों को भूख मिटाने के लिए वहां पर्याप्त आहार मिल जाता था ।

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घने जंगल में स्थित होने के कारण तालाब के निकट बहेलिए भी कभी नहीं पहुच पाते थे, अत: तीनों मित्र निश्चिंत होकर जीवन का भरपूर आनंद लेते थे । शाम होते ही वे आपस में मिलकर तरह-तरह की बातें करते हुए हंसते रहते थे तो कभी नाचते-गाते और खुशी मनाते थे ।

तीनों का जीवन बहुत सुख-चैन से बीत रहा था । दुर्भाग्य से एक साल वर्षा नहीं हुई । सूर्य की तेज किरणों से उस जगह की हरियाली नष्ट होने लगी । पेड़-पौधे सूखने लगे । तालाब का पानी भाप बनकर उड़ गया । उसमें मुस्किल, से थोड़ा-सा पानी ही शेष रहा ।

फिर सूर्य के निरंतर ताप से वह पानी भी सूखने लगा । तालाब में रहने वाले छोटे-छोटे जीव और मछलियां मरने लगीं । अब तो वे तीनों मित्र भी चिंतित हो उठे । दोनों हंसों ने निर्णय किया कि किसी नए तालाब की खोज की जाए जिसमें खूब गहरा पानी हो और उसी तालाब के किनारे अपना ठिकाना बना लिया जाए ।

अगले दिन दोनों हंस दूर तक उड़कर गए और एक ऐसा ही तालाब देख आए जिसमें स्वच्छ और निर्मल जल पर्याप्त मात्रा में भरा हुआ था । दोनों हंसों ने निर्णय किया कि कल से वे भी इसी सरोवर के किनारे रहा करेंगे । शाम को दोनों हंस अपने पुराने वाले तालाब पर पहुंचे ।

हंसों को देखा तो कछुआ भी कीचड़ से निकलकर बाहर आ गया । हंसों ने उससे कहा : ‘मित्र कछुए ! हमने तो अपने रहने के लिए नया तालाब खोज लिया है । अब हमें सिर्फ तुम्हारी चिंताहै ।’  कछुआ रोने जैसी आवाज में बोला : ‘मित्रो ! अब मेरा मरना तो निश्चित है ।

कुछ दिन बाद मैं भी जल के अन्य जीवों, मछलियों की तरह जल के अभाव में तड़प-तड़प कर दम तोड़ दूंगा ।’  फिर कुछ ठहरकर आशा भरे स्वर में उसने पूछा : ‘मित्रो । क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं भी तुम्हारे साथ उस नए तालाब पर रहने के लिए चल सकूं ?’ ‘ऐसा कैसे हो सकता है ?’  दोनों हंस बोले : ‘हमारे पास तो पंख हैं, हम कहीं भी उड़कर आ-जा सकते हैं, तुम तो एक रेंगने वाले जीव हो ।

भला तुम हमारे साथ कैसे चल सकते हो ?’ एक उपाय है मेरे दिमाग में’ : कछुए ने कहा । ‘तुम लकड़ी का एक टुकड़ा खोज लाओ । मैं उस लकड़ी के मध्य में अपने दांतों से कसकर पकड़ लूंगा । तुम दोनों के साथ मैं भी हवा में उड़ता हुआ उस सरोवर तक पहुंच जाऊंगा ।’ दोनों हंस कछुए की इस योजना पर सहमत हो गए ।

शीघ्र ही उन्होंने लकड़ी का एक टुकड़ा तलाश कर लिया । कछुए ने अपने दांतों से लकड़ी को मध्य भाग से पकडू लिया । उड़ने से पूर्व हंसों ने अपने मित्र कछुए को चेतावनी दी : ‘मित्र कछुए ! लकड़ी के टुकड़े को अपने दांतों से कसकर पकड़े रहना और किसी भी हालत में अपना मुंह मत खोलना ।

तुम थोड़ा चंचल हो, जरा-जरा-सी बात पर बहस करना शुरू कर देते हो, अत: इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना यदि तुमने तनिक भी अपना मुंह खोल दिया तो ऊंचाइयों से गिरकर तुम्हारा शरीर कई टुकड़ों में बिखर जाएगा ।’  ‘मित्रो ! विश्वास रखो, मैं बिकुल वैसा ही करूंगा, जैसा तुमने मुझे समझाया है ।’ कछुए ने कहा ।

दोनों हंसों ने उड़ान भरी । वे बहुत ऊपर उड़ते चले गए । हंस तेजी से अपने नए तालाब की ओर उड़ते जा रहे थे, तभी कछुए ने नीचे की तरफ देखा । नीचे एक कस्बा दिखाई दे रहा था, जहां बहुत-से लोग खड़े होकर कछुए को हंसों द्वारा ले जाते हुए आश्चर्य से देख रहे थे ।

‘अरे देखो तो ! दो हंस कछुए को लकड़ी पर लटकाकर आकाश में उड़े जा रहे हैं ।’ कछुए ने नीचे से आती हुई आवाज धीरे से सुनी : ‘उड़ने वाला कछुआ ।’ किसी दूसरे व्यक्ति ने कछुए की ओर उंगली से संकेत करके कहा : ‘भई, उड़ने वाला कछुआ तो मैंने पहली बार ही देखा है ।’

नीचे से आती आवाजों को सुन-सुनकर कछुआ बेचैन होने लगा । ज्यों ही कुछ कहने के लिए उसने अपना मुंह खोला कि लकड़ी के टुकड़े पर से उसके दांतों की पकड़ हट गई और वह तेजी से नीचे गिरने लगा । जमीन पर पहुंचते हा नम्र एक पत्थर के टुकड़े से टकराया और उसके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े हो गए ।

मूर्ख कछुआ अपने मित्र हंसों की चेतावनी भूल गया था, इसलिए उसे अपनी जान गवानी पड़ी । किसी ने सच ही कहा है : जो व्यक्ति अपने मित्र, अपने हितैषियों की सलाह पर ध्यान नहीं देता, उसका पारिणाम बहुत बुरा होता है । बिल्कुल उसी कछुए की तरह, जिसने अपने मित्र हंसो की सलाह न मानकर अपना मुंह खोला और अंतत: उसकी मृत्यु हो गई ।


Hindi Story # 4 (Kahaniya)

सांप और चींटियां |

बहुत पहले की बात है । सांपों का राजा एक घने जंगल में रहता था । सांप बहुत होशियार शिकारी था । वह चिड़ियों, छिपकली और कछुए के अंडे खाया करता था । वह उनका शिकार स्वयं ही करता था ।

रात को तो वह शिकार करता और दिन में जब सूरज चमकता तो अपनी बिल में जाकर सो जाता । धीरे-धीरे सांप ताकतवर होता गया और एक दिन वह इतना मोटा हो गया कि उसके लिए बिल में घुसना और निकलना मुश्किल हो गया ।

जब भी वह बिल से बाहर निकलता तो उसके शरीर पर खरोंचें पड़ जातीं । मोटे सांप को अपना बिल छोड्‌कर नए घर की खोज करनी पड़ी । उसने एक बहुत बड़े पेड़ को अपना घर बनाया । पेड़ का घर काफी छायादार और शांत था, परंतु उसकी जड में चींटियों-कीडियों का एक दल रहता था ।

सांप ने विचार किया कि उसके लिए हजारों कोड़ियों के साथ रह पाना बड़ा मुश्किल होगा, इसलिए वह रेंगकर चींटियों के पास पहुंचा और गुस्से से फुफकारता हुआ अपना फन पूरा फैलाकर बोला : ‘मैं सांपों का राजा कोबरा हूं ।

मैं इस जंगल का भी राजा हूं । अब मैं यहीं रहूंगा, तुम सब कहीं और जाकर अपना घर बनाओ ।’ पेड़ के पास जो भी छोटे जानवर रहते थे, सांप की फुफकार सुनकर डर के मारे इधर-उधर भाग गए परंतु चींटियों ने सांप के डराने-धमकाने पर कोई ध्यान नहीं दिया ।

उन्होंने हजारों की संख्या में इकट्‌ठी होकर चुपचाप सांप के शरीर पर जाकर चिपट गईं और उसे जगह-जगह से काटने लगीं । सांप गुस्से से तमतमाया और फुफकारने लगा, परंतु वह चीटियों का कुछ न बिगाड़ सका । चींटियां उसके सारे शरीर पर कांटों की तरह चुभ रही थीं ।

आखिरकार दर्द से कराहता हुआ वह घमंडी सांप मर गया । विजयी हुई चींटियां अपने घर खुशी-खुशी वापस चली गईं । हालांकि वह बहुत छोटी-छोटी थीं, परंतु एकाग्रता और एकता से काम करते हुए उन्होंने इतने बड़े और ताकतवर दुश्मन को हरा दिया ।


Hindi Story # 5 (Kahaniya)

मेढक और धूर्त सांप |

एक बार किसी पहाड़ पर मांडीवेश्या नामक सांप रहता था । एक दिन वह बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था । उसने सोचा : ‘अब मैं बहुत बूढ़ा होता जा रहा हूं मुझमें शिकार करने की शक्ति कम होती जा रही है । मुझे कोई ऐसा उपाय खोजना चाहिए जिससे बिना ज्यादा काम किए खाना मिलता रहे ।’

बहुत सोच-विचार के बाद उसने एक योजना बनायी । वह पास के एक तालाब के किनारे जाकर सिर झुकाकर बैठ गया । वह तालाब मेढकों से भरा था । तालाब के मेढकों ने सोचा कि आज सांप सिर झुकाकर चुपचाप क्यों बैठा है ?

एक मेढक पानी में से बाहर निकल कर बोला : ‘सांप जी ! आज आप रोज की तरह खाने की तलाश में क्यों नहीं घूम रहे हैं ? सांप ने धीमी आवाज में कहा : ‘अब मुझे खाने की बिकुल इच्छा नहीं है, क्योंकि पिछली रात जब मैं खाने की तलाश में घूम रहा था, तो मुझे एक मेढक दिखाई दिया ।

जब मैंने उसे पकड़ना चाहा तो वह डर के मारे कूदकर ब्राह्मणों के समूह में जा पहुंचा । वे ब्राह्मण वेद पाठ कर रहे थे । मेढक वहां से गायब हो गया । मैं उसके इंतजार में वहीं पर बैठ गया । इसी प्रतीक्षा के समय एक ब्राह्मण का लड़का वहां आया, मैंने उसे काट लिया और वह मर गया ।

उसके पिता का दिल टूट गया और उसने मुझे शाप दिया : ‘तुमने मेरे बेटे को काट खाया और वह मर गया । उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था आज से तुम मेढकों की सेवा करोगे और वे तुम्हारी सवारी किया करेंगे । वे जो कुछ भी तुम्हें खाने को देंगे, उसी पर तुम निर्वाह करोगे ।’ इसीलिए मैं तुम्हारी सेवा करने आया हूं ।’

मेढक ने जब सांप की कहानी सुनी, तो वह खुशी से फूला न समाया । उसने तालाब में जाकर अन्य मेढकों को भी यह कहानी सुना दी । धीरे-धीरे यह कहानी मेढकों के राजा के कान तक जा पहुंची । मेढक राजा को यह कहानी बड़ी अजीब लगी । वह अपने कुछ मंत्रियों को साथ लेकर स्वयं सांप को देखने चला ।

वह जानना चाहता था कि जो कहानी उसने सुनी है, क्या वह सच है ? जब सांप ने उसे दिलासा दिलाया कि उसका जीवन सुरक्षित है, तब वह कूदकर सांप की पीठ पर चढ़ गया । वह बोला : ‘मैंने हाथी, घोड़ा, बग्घी और मनुष्य की सवारी की है, परंतु जितना मजा मुझे इस सांप की सवारी करने पर आ रहा है, उतना कहीं नहीं आया ।’

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राजा मेढक को सांप पर चढ़ा देखकर अन्य मेढकों को भी सांप पर विश्वास हो गया और वे भी सांप की लंबी पीठ पर चढ़ गए ।  सभी मेढक अपनी किस्मत पर बहुत खुश थे । जो बचे हुए मेढक सांप की पीठ पर नहीं चढ़ सके थे, वे उसके किनारे खड़े हो गए । सांप मेढकों को खुश करने के लिए तरह-तरह की चाल से रेंगने लगा ।

वह मन में बड़ा खुश था कि इतने सारे मेढक मेरे जाल में फंस गए हैं । अगले दिन सांप जानबूझ कर धीरे-धीरे चलने लगा । मेढकों के राजा ने पूछा : ‘आज तुम इतना धीरे-धीरे क्यों चल रहे हो ?’ सांप ने उत्तर दिया : ‘मैंने कल से कुछे खाया नहीं, इसलिए मैं इतना कमजोर हो गया हूं कि जल्दी-जल्दी नहीं चल सकता ।’

मेढकों के राजा ने कहा : ‘अच्छा तुम अपनी पीठ पर सबसे पीछे चढ़े छोटे मेढक को खा सकते हो ।’ सांप ने कहा : ‘आपकी दयालुता से मैं बहुत खुश हूं ।’ वह खुशी-खुशी पूंछ के ऊपर बैठे छोटे मेढक को निगल गया । इस तरह प्रतिदिन मेढकों का राजा सांप की पीठ पर बैठकर सैर करता और अंत में पूंछ की तरफ बैठे मेढक को सांप के खाने के लिए दे देता ।

सांप उसे खुशी-खुशी जल्दी से खा लेता । इस तरह बहुत दिन बीत जाने पर सांप ने एक-एक करके सारे मेढक खा लिए । सिर्फ मेढकों का राजा बचा । उसे मालूम ही नहीं था कि सारे मेढक समाप्त हो चुके हैं ।

अगले दिन जब सैर के बाद राजा मेढक ने उसको मेढक खाने के लिए कहा तब वह पलट कर मेढक राजा को ही खा गया । यह देखकर तालाब में बचे सारे मेढक अपनी किस्मत पर खुश हो रहे थे कि वे बच गए ।


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