List of interesting short stories on Pets in Hindi!
Contents:
- खरगोश और हाथीओं का राजा |
- बिल्ला, बटेर पक्षी और खरगोश |
- मुर्गी और पक्षी |
- दो बिल्लियां |
- नेवला और ब्राह्मण की पत्नी |
Hindi Story # 1 (Kahaniya)
खरगोश और हाथीओं का राजा |
एक बार एक बड़ा ताकतवर हाथी था, जो अपने हाथियों के झुंड पर राज करता था । वह बहुत बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा था । उसके झुड के सब साथी उसका आदर करते थे ।
एक बार जंगल में बडा भारी अकाल पड़ा । जंगल के सभी तालाब, नाले और पानी के झरने सूख गए । सभी हाथी पानी के बिना प्यासे एवं कमजोर पड़ने लगे । राजा हाथी को अपने सभी साथियों को देखकर बड़ी चिंता हुई ।
उसने कुछ हाथियों को इधर-उधर अलग-अलग दिशा की ओर पानी की तलाश में भेजा । आखिरकार एक हाथी अच्छी खबर लेकर आया । उसने कहा एक स्वच्छ पानी से भरी गहरी झील देखी है, जो काफी दूर है । जब राजा ने यह सुना, तो उसने उसी समय निर्णय लिया कि वह अपने सभी साथियों को झील पर ले जाएगा ।
फिर सभी हाथी चल पड़े । छोटे और बड़े हाथी, चाचा, चाची और बच्चे हाथी सभी सड़क पर आ गए । ये एक लंबा और थका देने वाला सफर था । आखिरकार जब वे अपनी मंजिल पर पहुंचे, तो सभी थक कर चूर हो चुके थे । उनके गले प्यास से सूख रहे थे ।
सभी जल्दी से जल्दी झील की ओर पहुंचना चाहते थे । इस जल्दी में एक-दूसरे को धक्का देते और टकराते । वे ठंडा पानी पीने के लिए बेचैन थे । झील के चारों ओर नरम और गीली रेत पर हजारों खरगोशों ने अपने घर बना रखे थे ।
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वे वहां आराम से बहुत दिनों से रह रहे थे । हाथियों द्वारा अपने क्षेत्र में इस तरह उनका घुसना उन्हें बिकुल अच्छा नहीं लगा । हाथी चीखते-चिल्लाते झील की तरफ बड़े, तो खरगोशों के बिल टूट गए और सैकड़ों खरगोश हाथियों के पैरों तले कुचल कर मर गए ।
जब हाथी पानी पीकर झील का किनारा छोड्कर वापस चले गए तो बचे हुए खरगोशों ने एक सभा की । अब हमें आगे क्या करना चाहिए । इस तरह यदि हाथी झील पर पानी पीने आते रहे, तो हममें से कोई न बचेगा । खरगोश का सरदार मान गया ।’
हमें हाथियों को यहां से दू रखने के लिए कोई उपाय ढूंढना होगा । हम यह जगह छोड्कर नहीं जा सकते । हम यहां वर्षों से रह रहे हैं । सब लोग अपना-अपना दिमाग कुरेदो और तब तक सोचते रहो, जब तक कि इस समस्या का हल नहीं निकल आता ।’
थोड़ी देर बाद एक बूढ़ा खरगोश बोला : ‘मेरे ख्याल में इस समस्या का हल है, पर इसे पूरा करने के लिए हमें एक निडर और दूसरे को अपनी बात मनवा देने की क्षमता रखने वाला खरगोश चाहिए ।’ खरगोशों के सरदार ने कहा : ‘पहले अपनी पूरी बात सुनाओ ।’ थोड़ी देर बाद आसमान में चाद निकल आएगा और उसकी परछाईं झील पर पड़ेगी ।
यदि हम हाथियों के सरदार को यह मनवा दें कि झील का स्वामी चंद्रमा है और वह किसी का भी झील से पानी पीना पसंद नहीं करता, तब शायद हम हाथियों के झुंड को यहां से डराकर दूर भगाने में सफल हो जाएं ।
खरगोशों का सरदार खुश होकर बोला : ‘ये तरकीब बहुत अच्छी है ।’ उसने चारों ओर देखा और खरगोशों की भीड़ में से एक छोटे खरगोश की तरफ इशारा किया, जो उसकी बात ध्यान से सुन रहा था । यह खरगोश फुर्तीला और भरोसेमंद था ।
सरदार बोला : ‘तुम एक अच्छे वक्ता और बहादुर खरगोश हो । क्या तुम हाथियों के सरदार को यह मनवा सकते हो कि चंद्रमा देवता उसके झुड को यहां से दूर भगाना चाहता है ।’ खरगोश ने कहा : ‘ये सब मैं कर लूंगा ।’ अगली सुबह खरगोश हाथियों के राजा की ओर चल पड़ा ।
राजा खाना खा रहा था । खरगोश ऊपर-नीचे कूदा । उसने राजा का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ताली बजाई । जब हाथियों के राजा ने उसकी ओर देखा, तो वह बोला : ‘राजा जी आपको नमस्ते ! मुझे चंद्रमा देवता ने भेजा है । मैं आपके लिए एक संदेश लेकर आया हूं ।’ हाथियों का राजा खाना रहा था, इसलिए उसको खरगोश का बीच में बोलना अच्छा नहीं लगा ।
वह नारा होकर खरगोश से बोला : ‘यह चंद्रमा देवता कौन है और वह मुझे संदेश क्यों भेजेगा ?’ ‘क्या तुमने चंद्रमा देवता के बारे में कभी नहीं सुना’ : खरगोश दुखी स्वर में बोला ।’ वह बहुत ताकतवर देवता है । उसने तुम्हें संदेश इसलिए भेजा है, क्योंकि वह तुमसे खुश नहीं है ।
तुम और तुम्हारे साथी उसके रहने के स्थान पर बिन बुलाए चले गए ।’ हाथियों का राजा बोला : ‘यह चंद्रमा देवता कहां रहता है ?’ ‘वह झील के बीच गहरे पानी में रहता है, जहां तुम अपने साथियों को पानी पिलाने के लिए ले गए थे । वह तुमसे बहुत नाराज है कि तुम उसकी इजाजत के बिना वहां घुस गए और उसने तुम्हें आगे से ऐसा करने को सख्त मना किया है ।’
‘मुझे क्या पता कि तुम सच बोल रहे हो? तुम झूठ भी तो बोल सकते हो’ : सरदार ने कहा । ‘यदि तुम मेरे साथ चलो, तो स्वयं ही झील में चंद्रमा को प्रणाम करना और वापस आ जाना । हो सकता है उसकी नाराजगी दूर हो जाए और वह तुम्हें कोई सजा न दे ।’
खरगोश हाथियों के राजा को झील के किनारे ले गया । ‘वहां देखो’, खरगोश ने हाथियों के राजा को कहा । हाथी आगे की ओर झुका, उसने झील के स्वच्छ पानी मेंचांद कींई परछाईं देखी । चांद चमक रहाथा आकाश में और पानी में भी ।
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खरगोश ने कांपती आवाज में धरि से कहा : ‘देखो, चांद कैसा चमक रहा है ? क्या तुम्हें उसकी चमक से ताकतवर देवता का पता नहीं चलता ।’ हाथीओं के राजा ने सोचा कि चांद देवता सचमुच यहां रहता है । मुझे बिल्कुल इसका पता नहीं थी ।
वह अपने घुटनों पर झुककर चांद को प्रणाम करने लगा । मैं आपको आदर देना चाहता हूं । मैं अपने झुंड के पानी पीने के लिए कोई और जगह ढूंढ लूंगा । वह ज़ोर से चीखा और मुड़कर जल्दी से वापस चला गया । छोटा खरगोश जीत की खुशी में ज़ोर से चिल्लाया ।
जैसे ही हाथी नजरों से ओझल हुआ, उसने बाकी सब खरगोशों को भी अपनी कामयाबी की खबर सुनाई । खरगोश खुशियां मना रहे थे । बूढ़े खरगोश ने जिसने ये सब चतुराईपूर्ण विचार दिया था, बोला : ‘कभी-कभी हमें अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग अपने आपको बचाने के लिए करना चाहिए ।’
Hindi Story # 2 (Kahaniya)
बिल्ला, बटेर पक्षी और खरगोश |
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एक बार की बात है गर्मियों में बटेर पक्षी एक बड़े वृक्ष के खोखले तने में रहता था । यह एक सुरक्षित जगह थी, परंतु कुछ दिनों के बाद उस पक्षी को लगा कि इस पेड़ के आस-पास खाने को कुछ भी नहीं है, इसलिए वह पास वाले गेहूं के खेत पर चला गया ।
वहां पर बहुत-सा गेहूं का दाना था । बटेर पक्षी वहां पर रहकर खूब दाना खाने लगा । वह अपने नए घर में बहुत खुश और सतुष्ट था । इसी बीच एक खरगोश अपने लिए घर ढूंढ रहा था । उसने वृक्ष के खोखले तने को देखा । यह मेरे लिए बिकुल ठीक रहेगा, यह सोचकर वह उस घर में घुसकर रहने लगा ।
कुछ महीने बाद मौसम बदल गया । ठंडी हवाएं चलने लगीं और बटेर पक्षी गेहूं के खुले खेत में ठंड से कांपने लगा । उसे अपने पुराने घर की याद आई । वृक्ष के तने के खोखली जगह पर उसका आरामदायक घर था । उसने वहां शर्दी भर रहने के लिए सोचा ।
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वह खेत में दाना खा-खा कर शक्तिशाली और मोटा हो गया था, इसलिए कुछ दिन के लिए बटेर पक्षी बिना खाए भी रह सकता था । वह जल्दी-जल्दी अपने पुराने घर पर पहुंचा, परंतु एक खरगोश को उसमें रहते देखा । ‘तुम यहां क्या कर रहे हो ? यह मेरा घर है ।
तुम्हें पता है कि इस जगह को पहले मैंने ढूंढा था । मैं यहां कई महीने रहा हूं । तुम्हारा यहां कोई काम नहीं है । तुम जल्दी से यहां से चले जाओ’ : पक्षी बोला । खरगोश गुस्से से बोला : ‘तुम क्या कह रहे हो । यह तुम्हारा घर है । जब मैं अपने लिए जगह ढूंढ रहा था, तब मैंने इसे खाली पाया था, इसलिए मैं यहां आ गया ।
अब यह मेरा घर है, इसलिए तुम जहां से आए हो वहीं चले जाओ ।’ बटेर पक्षी यह मानने को तैयार नहीं था । दोनों में देर तक लड़ाई होती रही । इस झगड़े का कोई अंत न दीख रहा था, इसलिए खरगोश ने कहा : ‘गंगा के किनारे एक बुद्धिमान और बूढ़ा बिल्ला रहता है ।
वह हमारा झगड़ा निबटाने में सहायता करेगा, सो चलो उसके पास चलकर फैसला करवा लेते हैं ।’ ‘पर वह एक बिल्ला है’ पक्षी ने कहा: ‘मुझे सिखाया गया है कि बिल्ले का कभी विश्वास मत करो ।’ ‘पर वह बिल्ला दूसरी तरह का है । वह बहुत बुद्धिमान और नेक बिल्ला है । वह हमारा कोई नुकसान नहीं करेगा ।’
दोनों जानवर चल पड़े और शीघ्र ही बिल्ले के पास पहुंच गए जहां वह बैठकर ध्यान कर रहा था । दोनों ने दर से बिल्ले को प्रणाम किया । बिल्ला बहुत चालाक था । दो जानवरों को देखकर उसकी आखों में चमक आ गई । उसने मीठी आवाज में पूछा : ‘तुम्हें क्या चाहिए ?’
खरगोश ने उत्तर दिया : “हमारी एक समस्या है, उसे सुलझाने के लिए हम आपकी बुद्धिमत्ता का सहारा लेना चाहते हैं । ‘मेरे नजदीक आओ ताकि मुझे ठीक से देख और सुन सके । मैं आ हो गया हूं और दूर से देख-सुन नहीं सकता ।’ बटेर पक्षी पास जाने से कतरा रहा था, परंतु खरगोश नहीं डरा, फिर दोनों उसके पास चले गए ।
ज्यों ही वे पास आए बिल्ले ने झपट कर दोनों को पकडू लिया और खा गया । बेचारा बटेर पक्षी और खरगोश दोनों मारे गए । क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि धूर्त कभी भी अपना स्वभाव नहीं बदलता, चाहे वह अपना रूप कितना भी बदल ले ।
Hindi Story # 3 (Kahaniya)
मुर्गी और पक्षी |
एक बार एक मुर्गी और एक पक्षी में मित्रता हो गई । दोनों साथ-साथ बैठते, एक-दूसरे का हाल-चाल जानते, कह-सुनकर समय बिताते । एक दिन पक्षी ने मुर्गी से कहा : ‘सुना है कि तुम बड़ी कपटी हो ! बेईमान भी हो !’
यह सुनकर मुर्गी सन्त रह गई, फिर कुछ सोचकर बोली : ‘तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो ? तुमने मुझमें कौन सी बेईमानी देखी है, बताओ तो ?’ यह कहकर मुर्गी गुस्से में पंख फैलाने लगी । तब पक्षी ने कहा : ‘देखो तो, तुम अपने स्वामी को कितना सताती हो ।
दिन में वह तुम्हें दाना खिलाता है । रात में दड़बे में रखकर तुम्हारी रक्षा करता है, फिर भी तुम उसे हाथ नहीं लगाने देती । यहां-वहां उसे अपने पीछे दौड़ाती हो । क्या यह अच्छी बात है ? हमें देखो हमारी कोई देखभाल नहीं करता, पर जब कोई आदमी हमें पालतू बनाता है तो हम उसके साथ रहते हैं ।
उसकी मानते हैं, कहीं भी हों उसकी एक आवाज पर उड़कर उसके पास आ जाते हैं ।’ पक्षी की बात सुनकर मुर्गी बोली : ‘तुम सच कह रहे हो । मैं तुम्हें झूठा नहीं कह सकती, लेकिन तुम्हें क्या पता कि हम आदमियों को अपने पीछे क्यों दौड़ लगवाते हैं ? तुम्हें कैसा लगेगा, जब तुम किसी दूसरे पक्षी को काटे जाते या अग्नि पर सेंके जाते देखो तो ?
जब हमारा स्वामी हमें पकड़कर आग में भूनना चाहता है, तब हम बचने के लिंए यहां-वहां दौड़ते हैं । मैं तो एक कोने से दूसरे कोने ही भागती हूं, लेकिन यदि ऐसा तुम्हारे साथ हो, तो तुम एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ की ओर भागोगे, समझे !’ मुर्गी की बात सुनकर पक्षी निरुत्तर हो गया । जिम पर जो बीतती है, वही तो जान पाता है ।
Hindi Story # 4 (Kahaniya)
दो बिल्लियां |
एक गरीब बूढ़ी औरत किसी टूटे-फूटे से झोपड़े में रहा करती थी । उसने एक बिल्ली पाल रखी थी, जो उसी की तरह दुबली-पतली थी । बुढ़िया के पास खाने-पीने के नाम पर रूखा-सूखा भोजन ही होता था, जिसका बचा-खुचा उसकी पालतू बिल्ली खा लेती थी ।
एक दिन पालतू बिल्ली झोपड़ी के कोने में बैठी अपने आपको चाट रही थी, तभी उसने सामने एक अन्य बिल्ली को आते देखा । वह एक दीवार पर चलकर आ रही थी । एक नजर में तो पालतू बिल्ली भी धोखा खा गई कि यह बिल्ली ही है या कोई और !
फिर उसे विश्वास हो गया कि यह तो बिल्ली ही है । उस बिल्ली के बाल बड़े चमक रहे थे और डीलडौल भी खासा था । मोटापा खूब था । दुम तनी हुई थी और आखों की चमक तो पूछो मत ! उस मोटी बिल्ली को देखकर पालतू बिल्ली ने उसे आवाज दी : ‘बहन !’ आवाज सुनते ही मोटी बिल्ली उसकी ओर पलटी । ‘तुम बहुत अच्छी लग रही हो । तुम अपने को इतना तगड़ा कैसे रख पाती हो ?
मुझे भी तो बताओ, तुम क्या खाती हो ? कहां खाती हो ?’ पालतू बिल्ली ने कहा । यह सुनकर मोटी बिल्ली एकदम इतरा गई । मुंह पर तिरछी जीभ और हिलाती दुम के साथ वह बोली : ‘जाहिर है, राजा के यहां से । मैं राजा के भोजन कक्ष में चुपचाप घुस जाती हूं और इसके पहले कि राजा और अन्य लोग आकर खाएं, मैं छिपकर तली मछली-गोश्त, सब्जी-मेवे खा जाती हूं ।’
अब पालतू बिल्ली की उत्सुकता और बढ़ गई । वह मोटी बिल्ली से पूछने लगी : ‘मुझे बताओ न मछली और गोश्त का जायका कैसा होता है ? मेरी मालकिन बुढ़िया तो मुझे बस सूखी रोटी और बचा-खुचा खाना देती है । मैंने कभी मछली-गोश्त नहीं खाए ।’
‘तभी ! मैं कहूं कि तुम इतनी दुबली क्यों हो ? तुम्हारी तो अभी से पसलियां दिखने लगी हैं ।’ मोटी बिल्ली ने कहा । वह फिर बोली : ‘अगर तुम राजा के खाने का कक्ष देखोगी, रखा रहता है ?’ अब पालतू बिल्ली के मुंह में पानी आ गया । मुंह से लार टपकी जा रही थी ।
उसे लगा जल्दी से वह भी राजा के रसोईघर में पहुंच जाए तो कितना अच्छा ! यह सोचकर वह बोल पड़ी : ‘बहन ! क्या तुम मुझे अपने साथ नहीं ले जा सकती ?’ मोटी बिल्ली बोली : ‘ले तो चलती हूं पर वहां तुम्हें अपनी रक्षा स्वयं ही करनी होगी, सोच लो ।’
पर पालतू बिल्ली कहां मानने वाली थी, वह तो मछली-गोश्त खाने की कल्पना में खोई थी, इसलिए जल्दी से अपनी मालकिन से विदा लेने चली गई । बुढ़िया ने पालतू बिल्ली को समझाया : ‘यहीं रहो, जो मिल रहा है, जैसा मिल रहा है, उसी में प्रसन्न रहो ।
सोचो, अगर राजा के नौकरों ने तुम्हें पकडू लिया तो क्या होगा ?’ लेकिन उसने एक न मानी और अपनी नई सहेली के साथ महल की ओर फांद गई । कुछ दिन पहले राजा के भोजन कक्ष में उस मोटी बिल्ली को राजा ने भोजन चुराते देख लिया था, इसलिए उसने आज्ञा दे रखी थी कि ‘यदि कोई भी बिल्ली महल में घुसे, तो उसे मार दिया जाए ।’
मोटी बिल्ली बहुत चालाक थी, वह तो प्रवेश द्वार पर चालाकी से सिपाहियों से आंख बचाकर घुस गई, पर पालतू बिल्ली में यह गुण नहीं था । वह आराम से चली जा रही थी, तो तत्काल पकड़ में आ गई । बेचारी मछली-गोश्त की गंध में खोई थी, पर यहां तो उलटा ही हो गया ।
सिपाहियों ने उसकी गर्दन पकड़ी और मरोड़ डाली । उधर जब देर रात तक पालतू बिल्ली नहीं लौटी, तो बुढ़िया समझ गई कि क्या हुआ होगा ? उसने मन ही मन सोचा : ‘अगर वह, जो मिल रहा था उसी को खाकर प्रसन्नता और संतोष रखती, तो ऐसा नहीं होता ।’
Hindi Story # 5 (Kahaniya)
नेवला और ब्राह्मण की पत्नी |
कहते हैं ‘बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताए’ । बहुत समय पहले एक छोटे कस्बे में देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था । समय बीतने पर उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया ।
संयोग से उसी समय आंगन में एक नेवली ने भी छोटे से नेवले को जन्म दिया । दुर्योग से उस छोटे नेवले की मां चल छोटे से नेवले को बिना मां का देख ब्राह्मणी को उस पर दया आ गई और वह उसकी देख-रेख करने लगी ।
उसने छोटे नेवले की खूब सेवा की, पर उसे रखा अपने बच्चे से दूर ही, क्योंकि उसे पता था कि यह जानवर उसके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है । एक दिन ब्राह्मण की पत्नी मटका उठाकर नदी की ओर पानी भरने जाने लगी । जाने के पहले उसने पति से कहा : ‘देखो बच्चा पालने में सो रहा है ।
आप उसका ध्यान रखना, कहीं नेवला उसके पास न चला जाए । मैं जल्दी से पानी भरकर आती हूं ।’ यह कहकर वह चल दी । देवशर्मा को भी उस दिन भिक्षा मांगने निकलना था, इसलिए वह अनसुनी करके घर से निकल गया ।
अब बच्चा घर में अकेला था ! सिर्फ नेवला ही उसके पास था, तभी आ गया एक भयानक काल सर्प ! अपने बिल से निकलकर वह सर्प बच्चे की ओर बढ़ा । वह उसे कोई नुकसान पहुंचाता इसके पहले ही नेवले ने एक झपट्टे में उसे दबोच डाला ।
दोनों देर तक गुत्थम-पूत्था करते रहे, फिर नेवले ने सांप को मार डाला । इस लड़ाई में नेवले के मुंह, हाथ-पांव सब खून से रंग गए । हांफता हुआ नेवला घर के बाहर दरवाजे पर बैठ गया कि जैसे ही ब्राह्मणी आएगी, तो मैं उसे बताऊंगा कि कैसे मैंने सर्प को मारकर बच्चे की रक्षा की ।
कुछ ही देर में सिर पर पानी का मटका रखे ब्राह्मण की पत्नी दरवाजे पर पहुंची । आते ही उसने देखा कि नेवला खून में मुंह लिपटाए बैठा है : ‘जरूर इसने मेरे बच्चे को नुकसान पहुंचाया है ?’ यह सोचकर बिना देर किए आव देखा न ताव, पानी से भरा भारी मटका नेवले के सिर पर दे मारा ।
बेचारा नेवला वहीं ढेर हो गया । अब वह अंदर पहुंची, तो हैरान रह गई : ‘यह क्या ?’ बच्चा तो बड़े मजे से पालने में खेल रहा है । हां, एक सर्प, जरूर वहां मरा पड़ा था । अब उसे पूरी बात समझ में आ गई कि नेवले ने किस तरह उसके बच्चे की रक्षा की ।
वह दौड़कर नेवले के पास पहुंची, पर तब तक वह मर चुका था । ब्राह्मण की पत्नी विलाप करने लगी । उसे बहुत दुख हो रहा था, जैसे उसने अपने पुत्र की हत्या कर दी हो । शाम को देवशर्मा जब घर लौटा, तो वह उस पर चिल्लाने लगी : ‘न तुम भिक्षा मांगने जाने की जल्दी करते, न हम पुत्र जैसा रखवाला नेवला खोते । यह तुम्हारे नहीं सुनने का नतीजा है ।’