List of six interesting stories on Birds in Hindi!
Contents:
- तोता |
- कौवे और उल्लू के बीच दुश्मनी |
- लालची बगुला |
- हंसो को मिली सीख |
- चिड़िया और हाथी |
- सोना टपकाने वाला पक्षी |
Hindi Story # 1 (Kahaniya)
तोता |
एक बार एक सुंदर तोती ने किसी जंगल में एक लंबे वृक्ष के ऊपर अपना घोंसला बनाया । उसने वहां दो अंडे दिए । समय पाकर उन अंडों में से दो सुंदर तोते के बच्चे निकले ।
वे दोनों बिकुल एक जैसे लगते थे और तोती को उन पर बहुत गर्व था । वह उनका बडे प्यार और ध्यान से ख्याल रखती थी । वे अच्छी तरह बड़े हो रहे थे । एक दिन जब वह खाना छूने बाहर गई थी तो बच्चों का चहचहाना सुनकर एक शिकारी वहां आ गया ।
वह तुरंत पेड़ के ऊपर चढ़कर तोते के घोंसले के पास पहुंच गया । ऊपर चढ़कर उसने दोनों बच्चों को पकड़ लिया । वह अपने थैले में दोनों को डाल रहा था, तभी एक बच्चा उसके हाथ से छूटकर दूर उड़ गया । शिकारी दूसरे बच्चे को अपने घर ले आया और उसे पालने लगा ।
एक साधु को अलग उड़ा हुआ तोते का बच्चा मिल गया । वह उसको इतना सुंदर लगा कि वह उसको अपने आश्रम पर ले गया । ‘मैं तुम्हारी अच्छी तरह देखभाल करूंगा और बदले में तुम मेरे अतिथियों का स्वागत करोगे ।’
समय गुजरता गया । बच्चे बड़े होकर सुंदर पक्षी बन गए । एक शिकारी के पास रहता था और दूसरा नेक साधु के घर । एक दिन एक राजा घोडे पर सवार होकर जंगल के बीच में से गुजर रहा था । वह शिकारी के घर के पास से निकला । वह घोड़े को घर के पास ले गया ।
‘यहां कौन रहता होगा’ : उसने सोचा । शिकारी का तोता घर के बाहर एक पिंजरे में बैठा था । उसने राजा को आते देखा तो वह जोर से चिल्लाने लगा : ‘एक आदमी घर के पास आ रहा है । जल्दी से अपना तीर और कमान निकाल लो स्वामी, ताकि आप जल्दी से उसे मार सको ।’
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राजा तोते का यह शब्द सुनकर हैरान रह गया । यह पक्षी कितना शैतान है । इसका स्वामी भी बड़ा बेशर्म होगा । उसने अपने घोड़े को घुमाया और बिना पीछे देखे घोड़ा दौड़ाकर चल दिया । थोड़ी दूर जाने पर राजा को प्यास लगी ।
उसे एक आश्रम दिखाई दिया । उसने सोचा कि मैं यहीं पर थोड़ी देर रुक कर पानी पी लूं । ज्यों ही वह घर के बरामदे के पास पहुंचा, उसने एक अन्य तोता पिंजरे में बैठे देखा । यह तोता पहले वाले तोते की शक्ल जैसा ही था । ‘अरे, फिर वही कडुवा बोलने वाला पक्षी ।
यह भी उसी की तरह बोलेगा ।’ पर राजा हैरान हो गया, जब उसने इस तोते को सीटी बजाते, गाना गाते सुना । साधु को उसने मीठी और सुरीली आवाज में पुकारा : ‘जल्दी बाहर आओ । हमारे घर कुछ मेहमान आए हैं । बाहर आकर उनका स्वागत करो ।’ राजा इस तोते का स्वभाव देखकर हैरान रह गया ।
शक्ल-सूरत में तो यह पहले तोते से बिस्कृल मिलता था । राजा तोते के पिंजरे के पास गया और बोला : ‘प्यारे पक्षी ! मैं तुम्हारे जैसे मित्रवत व्यवहार करने वाले पक्षी से मिलकर बहुत खुश हुआ । क्या तुम जानते हो ! मैंने अभी तुम्हारे जैसा तोता देखा, पर वह बहुत घटिया और दुष्ट था ।’ तोते ने पुछा : ‘क्या वह शिकारी के पास रह रहा था ?”
हां, पर तुम्हें कैसे पता चला ।’ तोता धीरे-धीरे रोने लगा : ‘वह मेरा प्यारा भाई था । हम एक ही घोंसले में रहते थे, पर एक दिन जब मेरी मां हमें अकेला छोड़ कर बाहर गई थी, तो एक शिकारी ने हमें पकड़ लिया । मैं भागकर निकल आया, पर वह मेरे भाई को ले गया ।
दयालु साधु मुझे अपने घर ले आया । उसने मुझे एक प्यारा और अच्छा घर दिया । मेरा भाई जैसी संगत में रहता है, वह वैसा ही बन गया । उसका स्वामी बड़ा निर्दयी है । वह हर समय सभी को मारने की सोचता रहता है, जबकि मेरा स्वामी बहुत नेक और अच्छे ख्यालों हर समय पूजा और ध्यान करता रहता है । वह गाना भी गाता है । अच्छी सोहबत में रहने से इनसान अच्छा बन जाता है ।’
Hindi Story # 2 (Kahaniya)
कौवे और उल्लू के बीच दुश्मनी |
एक बार दुनिया के सारे पक्षी इकट्ठे हुए । वे एक महत्त्वपूर्ण मन्त्रणा करना चाहते थे । तोते, बतख, कोयल, उल्लू, मोर, बगुले और भी तरह-तरह के पक्षी इकट्ठे हुए । पक्षियों ने कहा : ‘गरुड़ हमारा राजा है, पर वह सारा समय विष्णु भगवान की सेवा में लगा रहता है और हमारे लिए कुछ भी नहीं करता ।
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ऐसे राजा का क्या लाभ । वह शिकारियों के बिछाए जाल से कभी हमारी रक्षा नहीं करता, इसलिए हमें नए राजा का चुनाव समझदारी से करना चाहिए ।’ सब पक्षी अपनी नजर चारों ओर घुमाकर देखने लगे कि राजा किसे बनाया जाए । उन्हें उन्न बहुत प्रभावशाली लगा ।
उसका बड़ा सिर, बड़ी-बड़ी गोल-गोल औखें और बड़े विशाल पंख थे । सभी पक्षी चिल्लाए : ‘ये उन्न ही हमारा राजा बनने के लायक है । हमें जल्दी से इसे अपना राजा बना देना चाहिए ।’ वे पवित्र नदियों से जल भरकर ले आए और एक सिंहासन को सजाने लगे ।
फिर उन्होंने तरह-तरह के ढोल और शंख बजाए । पर जब वे उन्न को सिंहासन की ओर ले जाने लगे, तभी वहां पर एक कौवा आया और बोला : ‘यह सब क्या हो रहा है ? सब पक्षी यहां क्यों इकट्ठा हुए हैं ।’ ‘मित्र ! क्योंकि हमारा कोई राजा नहीं है, इसलिए हमने इस उन्न को अपना राजा चुना है और इसको ताज पहना रहे हैं ।
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तुम सही समय पर अपनी राय देने आए हो’ । कौवे ने मुस्कराते हुए कहा : ‘मैं उन्न के राजा बनने के बिकुल खिलाफ हूं । यह बदसूरत और रात को न देख सकने वाला पक्षी है । हमारे पास और सुंदर-सुंदर पक्षी हैं जैसे : ‘मोर, बतख, कोयल, कबूतर आदि, फिर हम इसे राजा क्यों बनाएं ।
इसकी नाक और औख टेढी है जैसे कि गुस्से में बैठा हो । जब यह गुस्से में होगा, तब और भी भयानक लगेगा । ऐसे बदसूरत और भयानक लगने वाले राजा से हमें क्या लाभ होगा ?’ जब पक्षियों ने कौवे की यह बात सुनी, तो वे सब एक-दूसरे की ओर देखने लगे ।
‘शायद कौवा ठीक कहता है । चलो आज उन्न को राजा बनाने की बात टाल देते हैं । हम सब फिर कभी इकट्ठा होकर कोई दूसरा राजा चुनेंगे ।’ तब सब पक्षी उड़कर चले गए । वहां पर सिर्फ कौवा, उन्न और उसकी पत्नी रह गए । उन्न अभी भी राजा बनने का इंतजार कर रहा था ।
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वह अपनी पत्नी से बोला : ‘अब यह क्या हो रहा है । अभी तक मुझे ताज पहनाने की रस्म शुरू क्यों नहीं हुई ?’ उन्न की पत्नी ने उत्तर दिया : ‘बदमाश कौवे ने तुम्हारे राजा बनाने की राह में रोड़ा अटकाया है, सभी पक्षी उड़कर वापस चले गए हैं, केवल यह कौवा ही न जाने क्यों यहां पर बैठा है ।’
जब उन्न ने यह सुना, तब वह बहुत निराश और दुखी हुआ । वह कौवे से गुस्से में बोला : ‘अरे शैतान कौवे ! मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो तुमने मेरा राजा बनना रुकवा दिया । आज से तुममें और मुझमें हमेशा दुश्मनी रहेगी । सारे कौवे उस्तुओं के दुश्मन रहेंगे ।’
यह कहकर उन्न अपनी पत्नी के साथ घर वापस आ गया । जब वे चले गए तब कौवे ने सोचा : ‘मैंने बेवकूफी करके उन्न से बेवजह लड़ाई मोल ली । मैंने उन्न को सारे कौवों का दुश्मन बना दिया । क्या अच्छा होता, यदि मैं चुप ही रहा होता और अपनी राय अपने पास ही रखता । मैंने बिना बात उन्नओं को कौवों का दुश्मन बना दिया ।’
Hindi Story # 3 (Kahaniya)
लालची बगुला |
किसी झील के किनारे एक बगुला रहता था । वह इतना बूढ़ा और कमजोर हो चुका था कि अपना आहार भी नहीं खोज पाता था । मछलियां उसके समीप से गुजर जाती थीं, लेकिन जल में गर्दन डालकर उन्हें पकडूने की शक्ति भी उसमें नहीं थी ।
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इसी कारण कई-कई दिन उसे भूखा ही रह जाना पड़ता था । एक दिन झील के किनारे खड़ा होकर वह बुरी तरह से रोने लगा । उसकी आखों से आसू बह-बहकर जमीन पर गिरने लगे । उसे इस प्रकार रोता हुआ देखकर एक केकड़ा उसके पास पहुंचा और सहानुभूतिपूर्वक उससे पूछा : ‘बगुला भाई ! तुम रो क्यों रहे हो ?’ बगुला बोला : ‘मित्र ! मैंने जीवन में अनेक पाप किए हैं ।
अब जब इस बात का ज्ञान हुआ है, तो मैंने निश्चय किया है कि अपने प्राणों की आहुति दे दूं । इसीलिए मैं समीप आई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा हूं । इसके अतिरिक्त एक और भी चिंताजनक बात है ?’ ‘वह कौन-सी, मित्र?’ केकड़े ने पूछा ।
बगुला बोला : ‘मुझे एक ज्योतिषी ने बताया है कि इस बार बारह वर्ष तक वर्षा का योग नहीं है । जल के बिना हमारा जीवन कैसे बचेगा ? यह झील तो कुछ समय के बाद सूखने लगेगी । ऐसे में जल में रहने वाले जो प्राणी भूमि पर चलने में भी सक्षम हैं, वे तो यहां से कुछ दूर एक बहुत बड़े सरोवर में चले जाएंगे, पर तुम्हारे जैसे छोटे जीव और मछलियों का क्या होगा ? वे बेचारी तो सारी की सारी मर जाएंगी ।
बस, मैं इसी चिंता में घुला जा रहा हूं इसीलिए मैंने खाना-पीना भी छोड़ दिया है ।’ बगुले की बात सुनकर केकड़ा भी चिंता में पड़ गया । उसे अपने जीवन की चिंता सताने लगी । केकड़े ने जब यह बात अन्य जलचरों को बताई, तो वे सभी चिंतित हो उठे ।
सारे जलचर बगुले के पास पहुंचे और उससे पूछा : ‘बगुले भाई ! क्या किसी उपाय से हमारे प्राणों की रक्षा हो सकती है ?’ बगुला बोला : ‘यहां से कुछ दूर एक बहुत बड़ा सरोवर है । उसका पानी कभी सूखता नहीं । अगर चौबीस वर्ष भी वर्षा न हो, तब भी उस सरोवर का जल समाप्त नहीं होने वाला ।
वह बहुत गहरा सरोवर है । यदि सारे जलचर उसमें चले जाएं तो उनका जीवन बच जाएगा, अन्यथा सभी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे ।’ यह सुनकर मछलियां उदास हो गईं और बोलीं : ‘तब तो हमारी मृत्यु निश्चित है । हमारे तो पांव ही नहीं हैं, जिनसे चलकर वहां तक पहुंच सकें ।’
केकड़े ने पूछा : ‘बगुले भाई, क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे हम सबका जीवन बच जाएंगे ।’ ‘उपाय तो है ।’ बगुला बोला: ‘और वह उपाय यह है कि तुममें से एक जलचर प्रतिदिन मेरी पीठ पर बैठ जाए, मैं उसे ले जाकर उस सरोवर में छोड़ आऊंगा । इस तरह से एक-एक करके सारे जलचर दूसरे सरोवर में पहुंच जाएंगे ।’
‘तब मेहरबानी करके आप हमें उस दूसरे सरोवर में छोड़ आइए । हम आपका बहुत आभार मानेंगी ।’ मछलियों ने आग्रह किया । उस दिन से वह बगुला रोज एक मछली अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाता । कुछ दूर जाने पर वह एक शिलाखंड पर जा कर बैठ जाता ।
मछली को शिलाखंड पर पटक-पटक कर मारता और उसे गड़प जाता । मछलियां खा-खाकर बगुला खूब हृष्ट-पुष्ट हो गया । एक दिन केकड़े ने उस बगुले से कहा : ‘मित्र बगुला ! सबसे पहले मैं ही तुमसे मिला था । तुम अन्य जीवों को तो उस दूसरे सरोवर में ले जा रहे हो, किंतु मेरी उपेक्षा कर रहे हो ।
कृपा करके आज मुझे उस सरोवर में छोड़ आओ ।’ बगुला मछलियां खा-खाकर ऊब चुका था । उसने सोचा कि स्वाद बदलने के लिए आज यह केकड़ा ही ठीक रहेगा । ऐसा सोचकर उसने केकडे को अपनी पीठ पर बैठा लिया और उस काल्पनिक सरोवर की ओर उड़ चला ।
नित्य की भांति वह केकड़े को लेकर शिलाखंड पर जाकर बैठ गया । यह देखकर केकड़ा आशंकित हो उठा । उसने बगुले से पूछा : ‘मित्र बगुला ! और कितनी दूर है, वह सरोवर ?’ बगुले ने सोचा कि अब इसे सच्चाई से अवगत करा ही देना चाहिए क्योंकि थोड़ी देर बाद तो यह मर ही जाएगा ।
केकड़े की बात सुनकर वह हंस पड़ा । बोला : ‘कैसा सरोवर ? अरे मूर्ख ! यहां कोई भी सरोवर नहीं है । यह तो तुम लोगों को लाने के लिए मेरी एक चाल थी ?’ बगुले की बात सुनकर केकड़ा सन्त रह गया । उसने नीचे झांका तो उसे बगुले द्वारा खाई गई मछलियों के अवशेष भूमि पर पड़े दिखाई दे गए ।
वह केकड़ा अब अपनी जान बचाने के लिए उद्यत हो गया । बगुला ने केकड़ा से कहा : ‘केकड़े ! अपने इष्ट देवता को याद कर ले, क्योंकि मैं तेरा जीवन छीनने जा रहा हूं ।’ बगुले का इतना कहना था कि केकड़ा उसकी गर्दन से चिपट गया ।
उसने अपने तीक्षण दांत और पंजे बगुले की नरम गर्दन में गड़ा दिए और तब तक बगुले की गर्दन दबाता रहा, जब तक कि बगुले का प्राणांत न हो गया । फिर वह केकड़ा किसी प्रकार सरकता हुआ अपने सरोवर में जा पहुंचा । उसे वापस आया देख मछलियों ने उससे पूछा : ‘केकड़ा भाई ! तुम तो आज नए सरोवर के लिए गए थे, वापस क्यों लौट आए ?’
‘कैसा सरोवर और कैसा जल?’ केकड़ा बोला: ‘यह तो उस धूर्त बगुले की एक चाल थी ।’ यह कहकर उसने मछलियों को सारी बातें बता दी । साथ ही यह भी बता दिया कि मैंने उस बगुले को मार डाला है । सारे जलचर यह सुनकर बहुत प्रसन्न हो उठे और केकड़े को धन्यवाद देने लगे, जिसकी बुद्धिमत्ता के कारण वह अकाल-मृत्यु का शिकार ‘होने से बच गए थे ।
‘अच्छा हुआ उस धूर्त बगुले को दंड मिल गया ।’ मछलियां बोलीं: ‘अब हम सब निश्चिंत होकर आनंद-पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करेंगी ।’ इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि हमें औख मूंद कर किसी की बात पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए क्योंकि कभी-कभी भेड़ की खाल में भेडिए भी छुपे रहते हैं ।
Hindi Story # 4 (Kahaniya)
हंसो को मिली सीख |
किसी जंगल में बरगद का एक विशाल वृक्ष था । उस वृक्ष पर काले रंग के अनेक हंस घोंसले बनाकर रहते थे । वृक्ष का तना बहुत मोटा और चिकना था, इस कारण किसी का उस पर चढ पाना बहुत मुश्किल था । सभी हंस स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हुए वहां आनंदपूर्वक रह रहे थे ।
एक बार उस वृक्ष की जड़ में अंगुर की एक बेल उग आई । यह देखकर एक बूढ़ा हंस चिंतित हो उठा । उसने दूसरे हंसो से कहा : ‘मित्रो, सुनो ! बरगद की जड़ में जो अंगूर की बेल उग आई है, यह हमारे विनाश का कारण बन सकती है ।
यह वृक्ष पर चढ़ती जाएगी और धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाती जाएगी । एक दिन यह मोटी होकर वृक्ष के समूचे तने से लिपट जाएगी, फिर इस मोटी बेल पर चढ़कर कोई भी शिकारी हमारे घोंसले तक आसानी से पहुच सकता है, इसलिए दूरदर्शिता यह है कि इस बेल को अभी ही नष्ट कर दो ।
इसकी जड़ें अभी मुलायम हैं, इसलिए इसे नष्ट करने में ज्यादा परिश्रम नहीं करना पड़ेगा । बूढ़े हंस की बात सुनकर जवान हंस उसका उपहास करने लगे । बोले : ‘चाचा रहने दो अपनी सीख । भला इस घने जंगल में कौन शिकारी आ सकता है, जो हमें नुकसान का अंदेशा होने लगता है ।
यह बेल उग रही है, तो उगने दो । इससे वृक्ष की सुंदरता ही बढ़ेगी, हमारा कुछ नुकसान थोड़े ही हो जाएगा ।’ बेचारा आ हंस खिसिया कर चुप रह गया । अंगूर की बेल निरंतर बढती गई । धीरे-धीरे उसने वृक्ष के सारे तने को अपने घेरे में ले लिया ।
उसकी तनियां वृक्ष की अन्य शाखाओं तक फैल गईं और उसका आकार भी किसी मोटी रस्सी की तरह का हो गया । हंस किसी भावी खतरे से बेखबर अपनी दिनचर्या में मस्त रहने लगे । बूढ़े हंस की आशंका सच साबित हुई । एक दिन प्रात: ही जब हंस अपना भोजन खोजने के लिए जाने को तैयार हो रहे थे, तभी एक बहेलिया न जाने कहां से घूमता-घामता उधर आ निकला ।
उसने वृक्ष पर ढेर सारे हंस देखे तो मन ही मन पुलकित हो उठा । वह सोचने लगा : ‘आज का दिन मेरे लिए बहुत शुभ लगता है । एक ही स्थान पर इतने पक्षी । आज इन सभी को पकड़ लूंगा । मेरे कई दिन के भोजन का प्रबंध हो जाएगा ।’ ऐसा विचार कर वह बहेलिया एक वृक्ष के पीछे छिप गया और हंसों के वहां से जाने की प्रतीक्षा करने लगा ।
कुछ देर बाद जब सभी हंस अपने-अपने घोंसले छोड़कर भोजन खोजने के लिए चले गए तो बहेलिया उस मोटी बेल के सहारे वृक्ष पर चढ़ गया । उसने अपना जाल खोला और घोंसलों के ऊपर फैला दिया । फिर वह नीचे उतरा और यह सोचकर वापस चल पड़ा कि सुबह आकर जाल में फंसे हंसों को निकालूंगा ।
शाम को जब हंस अपने-अपने बसेरे में लौटे, तो एक-एक कर सभी बहेलिए के बिछाए जाल में फंस गए । अब तो वे बहुत घबराए । उन्होंने अपने पंख फड़फड़ा कर जाल से निकलने का बहुत प्रयास किया, किंतु उनके सारे प्रयास असफल रहे । हंसों की ऐसी दुर्दशा देखकर क्या हंस बहुत दुखी हुआ ।
बोला : ‘मैंने पहले ही तुम सब को चेताया था कि इस बेल को बढ़ने से पूर्व ही काट डालो, लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी, उलटे मेरी ही खिल्ली उड़ाई । अब परिणाम सामने है । हम सब किसी बहेलिए द्वारा बिछाए मजबूत जाल में फंस गए हैं । सुबह बहेलिया आएगा और हम सबको पकड़कर ले जाएगा । हमारा जीवन अब कुछ ही देर का बचा है ।’
बूढ़े हंस की बात सुनकर जवान हंसों के सिर शर्म से झुक गए । रोते-कलपते और स्वयं को कोसते हुए बोले : ‘हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई । हमें आपके कहने के अनुसार काम करना चाहिए था । हाय, क्या सचमुच कल सुबह हम सब मारे जाएंगे ।’
‘जिस स्थिति में तुम फंसे हुए हो, उसमें तो तुम सबकी मृत्यु निश्चित ही समझो ।’ बूढ़ा हंस बोला । ‘बुजुर्गवार ! हमने आपकी सीख नहीं मानी, इसी कारण आज हम मुसीबत में फंस गए हैं । हमें आपकी उपेक्षा करने पर पश्चाताप हो रहा है ।
आप हम सबसे अनुभवी और बड़ी आयु के हैं । कृपा करके अब हमें कोई ऐसा उपाय बता दीजिए जिससे हम इस जाल से मुक्त हो जाएं ।’ कई हंसों ने उस बूढे हंस से प्रार्थना की । हंसों की बात सुनकर बूढे हंस को दया आ गई । उसने कहा : ‘तो सुनो ! जब बहेलिया आकर तुम्हें जाल से निकालने लगे, तो तुम सब ऐसा जाहिर करना, जैसे तुम मर चुके हो ।
तुम्हें मृतक जानकर बहेलिया तुम्हें जाल से निकालकर नीचे फेंकेगा । जैसे ही वह हमारे अंतिम साथी को भी आजाद करके नीचे फेंके, तुम सब तुरंत उड़ जाना ।’ सभी हंसों ने वचन दिया कि वे उसी के कहे अनुसार काम करेंगे ।
अगले दिन प्रात: बहेलिया पुन: आ पहुंचा । नीचे से उसने ऊपर दृष्टि उठाई तो हंसों को जाल में फंसा देख हर्षित हो उठा । वह झटपट बेल के सहारे ऊपर पहुंचा, किंतु उसकी खुशी आधी रह गई जब उसने देखा कि उसके जाल में फंसे सभी हंस मर चुके हैं ।
बहेलिए ने जाल की तनियां खोलीं और एक-एक करके हंसों को जाल से मुक्त करके नीचे फेंकने लगा । जब अंतिम हंस भी उसने नीचे फेंक दिया, तो जैसे सभी हंसों में अचानक जान आ गई । उन्होंने अपने पंख फड़फड़ाए और आकाश की ओर उड चले । यह देखकर बहेलिया जाल को नीचे फेंक जल्दी-जल्दी उतरने लगा ।
उसे उम्मीद थी कि वह एक-दो हंस तो जरूर ही पकडू लेगा, किंतु सब निष्फल रहा । हंस उसके नीचे पहुंचने से पहले बहुत ऊपर उड़ चुके थे । अपने शिकार को इस प्रकार हाथ से निकल जाते देख बहेलिए को बड़ा दुख हुआ । वह हाथ मलता हुआ वहां से चला गया ।
बूढ़े हंस की सीख मान लेने के कारण हंसों की जान बची, अत: उन सबने अब यह निश्चय किया कि भविष्य में वे कभी भी किसी बुजुर्ग का उपहास नहीं उड़ाएंगे, बल्कि उसके अनुभव से ज्यादा ही फायदा उठाने की कोशिश करेंगे ।
Hindi Story # 5 (Kahaniya)
चिड़िया और हाथी |
एक बार जंगल में एक लंबे पेड़ पर चिड़िया और उसके साथी ने मिलकर सुंदर छोटा सा घोंसला बनाया । उन्होंने घोंसला बनाने में बहुत मेहनत की थी । चिड़िया उस घोंसले को देखकर बहुत खुश थी । उसने उसमें चार अंडे दिए ।
उनको सेकने के लिए वह आराम से उनके ऊपर बैठी रही । एक दिन एक जंगली हाथी पेड़ के पास से गुजरा । वह हाथी जवान और ताकतवर था । वह जगल में इधर-उधर मस्ती से घूमता रहता । उसने कई पेड़-पौधे उखाड़ दिए ।
वह झाड़ियों पर अपनी ताकत आजमाता और बड़े-बड़े बोल्डरों को इधर-उधर फेंक देता । हाथी उस पेड़ के पास पहुंचा, जहां चिड़िया ने अपना घर बना रखा था । उसने अपनी छ से एक बड़ी डाल को तोड़ डाला । इसी डाल पर चिड़िया का घोंसला था ।
घोंसला नीचे जमीन पर गिर गया और सारे अंडे टूट गए । चिडिया जोर-जोर से रोने लगी । हाथी अपनी मस्त चाल से अपने रास्ते चला गया । थोड़ी देर दुख मनाने के बाद चिड़िया ने अपने पति से कहा कि मुझे इस हाथी से इसकी करनी का बदला लेना है ।
मुझे कुछ करना पड़ेगा । ‘मेरी रानी ! हम हाथी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि वह इस जंगल का सबसे ताकतवर जानवर है और तुम केवल एक छोटी-सी चिड़िया हो । अच्छा है तुम अपने गम को भूल जाओ । हम एक नया घोंसला बनाएंगे और फिर तुम उसमें अंडे देना ।’
‘मैं एक छोटी चिड़िया जरूर हूं पर मैं चतुर हूं । मैं हाथी से बदला लेने के लिए तरकीब लगाऊंगी ।’ यह कहकर वह अपने तीन मित्रों के पास सहायता लेने चल पड़ी । उसके तीन मित्र-मच्छर, कठफोड़वा और मेढक थे । काफी सोच-विचार के पश्चात तीनों ने मिलकर एक तरकीब निकाली ।
मेढक ने मच्छर से कहा : ‘तुम हाथी के कान के पास जाकर जोर से मीठी आवाज में गाना गाना ।’ मेढक को पता था कि हाथी को गाना सुनना अच्छा लगता था । वह गाना सुनकर औख बंद करके झूमने लगेगा । मेढक ने कठफोड़वा को कहा : ‘जब हाथी औख बंद करके झूम रहा होगा तो तुम उसकी आख में जाकर जोर से चोंच मार देना, हाथी दर्द के मारे चिल्लाने लगेगा और वह देख न सकने के कारण लड़खड़ाने लगेगा और मैं एक गड्ढे के किनारे बैठकर जोर-जोर से टर्र-टर्र करूँगा ।
हाथी सोचेगा कि यहीं कहीं पास में तालाब है, सो वह अपनी औख ठंडे पानी में धोने के लिए जल्दी से भागेगा और गड्ढे में गिर जाएगा । चिड़िया यह तरकीब सुनकर बहुत खुश हुई । अगले दिन ही तीनों ने इसी तरकीब के मुताबिक काम किया ।
चिड़िया के मित्रों ने अपना-अपना काम ठीक तरीके से किया और हाथी गड्ढे में गिर गया । ‘जब छोटे-छोटे मित्र मिलकर काम करें तो बड़े से बड़े शत्रु को भी गिरा सकते हैं ।’ बाद में चिडिया अपने पति को यह खुशखबरी सुना रही थी ।
Hindi Story # 6 (Kahaniya)
सोना टपकाने वाला पक्षी |
पर्वत की तलहटी में एक घने और ऊंचे वृक्ष पर सिंधुक नाम का एक विचित्र प्रजाति का पक्षी रहता था । विचित्र इसलिए कि जब वह बीट करता था, तो भूमि पर गिरते ही वह बीट सोना बन जाती थी ।
एक दिन एक बहेलिए की नजर उस पर पड़ गई, जो आखेट के लिए उस समय निकला हुआ था । पक्षी की बीट को सोने में परिवर्तित होते देख उसे बहुत आश्चर्य हुआ । वह मन में विचार करने लगा कि मेरी आयु अस्सी वर्ष की हो चली, पर अभी तक मैंने ऐसा पक्षी नहीं देखा था ।
यह तो चमत्कारी है, किसी तरह से इसे पकड़ सकूं, तो यह मेरे लिए सोने की खान साबित हो सकता है । यह सोचकर बहेलिया दबे पांव वृक्ष पर चढ़ गया । पक्षी आराम से बैठा गुनगुना रहा था कि बहेलिए ने उस पर फंदा फेंका और वह जाल में फंस गया ।
बहेलिया उसे लेकर खुशी-खुशी अपने घर लौट आया । उसने पक्षी को एक पिंजरे में बद कर दिया । कुछ देर बाद अचानक उसे विचार आया कि यदि राजा को इस बात की खबर लग गई कि मेरे पास सोना देने वाला एक पक्षी है, तो वह मुझे निश्चित ही कारागार में डलवा देंगे ।
वे यही दोष मुझ पर लगाएंगे कि मैंने इस पक्षी को राजा को क्यों नहीं दिया मैंने क्यों इसे अपने घर में छिपाए रखा ? ऐसा विचार कर अगले ही दिन वह पिंजरे में सिंधुक पक्षी को लेकर राजा के दरवार में जा पहुंचा । उसने राजा को पक्षी की विशेषता बताई, तो राजा बहुत खुश हुआ ।
उसने बहेलिए को इनाम देकर वह पक्षी उससे ले लिया और बड़े यत्नपूर्वक उसे पहले पिंजरे से निकलवाकर एक बड़े एवं सुंदर पिंजरे में बंद करा दिया । बहेलिया चला गया तो राजा के मुख्यमंत्री ने राजा से कहा : ‘महाराज ! आपने बहेलिए की बात पर इस पक्षी को ले तो लिया, किंतु यदि यह ऐसा न निकला जैसा बताया गया है, तो आप व्यर्थ ही उपहास के पात्र बन जाएंगे ।
उचित यही रहेगा कि इस पक्षी को आजाद कर दिया जाए ।’ यह सुनकर राजा कुछ क्षण के लिए सोच में पड़ गए फिर बोले : ‘तुम ठीक कहते हो । हम अभी इसे आजाद किए देते हैं ।’ यह कहकर उसने पक्षी का पिंजरा खोल दिया ।
सिंधुक उड़कर राजमहल कैएाई मुंडेर पर जा बैठा और बीट कर दी । राजा सहित वहां उपस्थित सभी दरबारी उस समय आश्चर्यचकित रह गए जब सिंधुक की बीट भूमि पर गिरते ही सोने में परिवर्तित हो गई । अब राजा को पश्चाताप होने लगा कि उसने पक्षी को आजाद क्यों कर दिया ।
उधर मुंडेर पर बैठे सिंधुक ने सोचा-पहला मूर्ख तो मैं था, जो आसानी से बहेलिए के जाल में फंस गया । दूसरा मूर्ख बहेलिया निकला, जिसने-मेरी उपयोगिता को जानते हुए भी मुझे राजा को सौंपा और उससे भी बड़ा मूर्ख वह मंत्री था, जिसने राजा को मुझे स्वतंत्र करने की सलाह दी ।
इन सबसे भी बड़ा मूर्ख तो यह राजा साबित हुआ, जिसने परीक्षण किए बिना ही मुझे आजाद कर दिया । यही विचार करता हुआ सिंधुक उड़ा और सीधा जंगल की ओर उड़ता चला गया ।