List of interesting short stories on Animals!
Contents:
- गधे की मूर्खता |
- गीदड़ की चतुराई |
- सांप और कौए |
- शेर और चालाक गीदड़ |
- शिकारी और लालची गीदड़ |
- शेर और बैल |
- गधा और धोबी |
- ऊंट के गले में घंटी कि कहानी |
Hindi Story # 1 (Kahaniya)
गधे की मूर्खता |
किसी जंगल में एक शेर रहता था । बढ़ा हो जाने के कारण वह शिकार नहीं कर पाता था, इसलिए उसका शरीर कमजोर होता जा रहा था । वह अपनी कमजोरी दूसरे जानवरों के सामने प्रकट भी नहीं करना चाहता था नहीं तो दूसरे पशु उसके आदेशों की अवहेलना करने लगते ।
बहुत विचार करने के बाद उसने सोचा कि किसी ऐसे पशु की मदद ली जाए जो किसी न किसी पशु को बहका कर मेरे समीप ले आया करे, मैं उस पशु को मारकर अपना पेट भर लिया करूंगा और थोड़ा-बहुत उसके लिए भी छोड़ दिया करूंगा ।
ऐसा विचार कर उसने एक लोमड़ को अपने पास बुलाया और कहा: ‘सुनो लोमड़ ! आज से मैं तुम्हें अपना मंत्री नियुक्त कर रहा हूं । मेरे भोजन की व्यवस्था करना अब तुम्हारा काम है । तुम एक जानवर प्रतिदिन मेरे पास लाओगे ।
उस जानवर को किस युक्ति से लाते हो, यह तुम्हारी बुद्धिमानी पर निर्भर है । मैं उसे मार कर अपनी भूख को भी शांत कर लूंगा और तुम्हें भी भोजन मिल जाएगा । अब जाओ और मेरे लिए कोई ऐसा पशु लेकर आओ, जिसे खाकर मैं अपनी भूख मिटा सकूं ।’
मंत्री जैसा सम्मानित पद पाकर लोमड् खुश हो गया । वह प्रसन्नतापूर्वक शेर के लिए भोजन की तलाश में निकल गया । वन के समीप ही एक गांव था । उस गांव के धोबी ने गांव के समीप वाले तालाब में अपना धोबी-घाट बनाया हुआ था ।
सुबह अपने गधे की पीठ पर धुलने वाले कपड़ों की लादी लादकर वह घाट पर पहुंच जाता और शाम को धुले कपड़े इकट्ठे करके ले आता था । गधा इस बीच मैदान में हरी-हरी घास चरता रहता था । लोमड़ कभी-कभी दिन में इधर का फेरा भी मार लिया करता था, इसलिए उसको गधे से मामूली जान-पहचान हो गई थी ।
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शेर के लिए शिकार ढूंढने निकले लोमड़ ने उसी गधे को शिकार बनाने का इरादा कर लिया । वह गधे के पास पहुंचा और बोला ‘मित्र ! तुम तो जानते ही हो कि हमारा राजा एक सिंह है, जो जंगल के सभी पशुओं में सबसे ज्यादा शक्तिशाली है । आज उसने मुझे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया है ।
उसने मुझसे कहा है कि मैं दूसरा मंत्री नियुक्त करूं, इसलिए मैं चाहता हूं कि मंत्री के पद पर आपकी नियुक्ति हो जाए तो ठीक रहेगा ।’ लोमड़ बोला । अपनी प्रशंसा सुनकर गधा खुश हो गया । लोमड् ने गधे को ऐसे ऊंचे ख्वाब दिखाए कि वह हिचकिचाहट छोड़ कर पद पाने के लालच में लोमड् के साथ चलने को तैयार हो गया ।
उसने लोमड़ से पूछा : ‘मंत्री का पद पाने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा, मित्र ?’ ‘कुछ भी तो नहीं, तुम्हें सिर्फ शेर के पास चलकर उसे प्रणाम करना पड़ेगा ।’ लोमड़ ने कहा । ‘और यदि उसने मुझ पर हमला करके मुझे मार डाला तो?’ गधे ने शंका जाहिर की ।
‘तुम तो व्यर्थ ही शंका कर रहे हो मित्र ।’ लोमड़ बोला : मैं हूं न तुम्हारे साथ, मेरे रहते तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा । गधा लोमड़ के झांसे में आकर उसके साथ चल पड़ा । लोमड़ उसे शेर की गुफा के पास ले आया । शेर तो उसी की प्रतीक्षा कर रहा था, लोमड़ के साथ गधे को आते देखा, तो एक झाड़ी के पीछे छिप गया ।
फिर जैसे ही गधा निकट आया, उसने गधे की ओर छलांग लगा दी । एकाएक गधे को खतरे का अहसास हुआ, तो वह तत्काल मुड़ा और तेजी से वापस दौड़ पड़ा । क्या शेर उसका पीछा न कर सका और हाथ मलता रह गया ।
वह लोमड़ पर बहुत नाराज हुआ और बोला : ‘मूर्ख लोमड़ हाथ आया शिकार निकलवा दिया न, क्या थोड़ी देर और उसे बातों में बहलाए नहीं रख सकता था ?’ ‘महाराज ‘! लोमड़ बोला : ‘गलती तो आपकी भी है । आप तो उसे देखते ही उस पर झपट पड़े । थोड़ा और धैर्य रखते, तो शिकार हाथ से न जाने पाता ।’
‘जाओ ! एक बार फिर उसे किसी तरह बातों से बहलाकर ले आओ । इस बार उसे मारने में मैं जल्दबाजी नहीं करूंगा ।’ शेर ने कहा । लोमड़ फिर से गधे के पास पहुंचा और बोला : ‘वहां से भाग क्यों आए, मित्र ?’ ‘भागता नहीं तो क्या अपनी जान गंवाता ?’ गधा बोला: ‘शेर तो मुझे मारने के लिए तैयार बैठा था ।’
‘अरे मित्र ! तुम्हें इन राजाओं से मिलने के तौर-तरीके नहीं आते । शेर तो तुम्हारा स्वागत करने के लिए आतुर था । तुमने समझा कि वह तुम्हें मारना चाहता है, बस, डरकर भाग आए । चलो मेरे साथ । वनराज तुमसे मिलने को व्याकुल हो रहा है ।’ लोमड़ बोला ।
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मूर्ख गधा फिर लोमड़ के बहकावे में आ गया और उसके साथ चल पड़ा । जैसे ही वह गुफा के समीप पहुंचा, शेर ने इस बार कोई गलती नहीं की । झाड़ी से निकलकर उसने ऐसा पंजा मारा कि गधा लोट-पोट हो गया । सिंह उस पर सवार हो गया । कुछ ही देर में उसने गधे का काम तमाम कर दिया ।
खुश होकर शेर ने लोमड़ से कहा : ‘देखो लोमड़ मैं नदी में नहाने के लिए जा रहा हूं । शिकार को हाथ मत लगाना । पहले मैं खाऊंगा, इसके बाद ही तुम्हारी बारी आएगी ।’ यह कहकर शेर नदी में स्नान करने चला गया । लेकिन लोमड़ को चैन कहां ? वह उछलकर गधे के शरीर पर चढ़ गया और उसके दोनों कान और दिमाग निकाल कर खा गया ।
शेर स्नान करके वापस लौटा, तो गधे के मृत शरीर से खून टपकता देखकर वह लोमड़ से बोला : ‘अरे लोमड़ मेरे मना करने पर भी तू नहीं माना । जगह-जगह से गधे का मांस खा ही डाला तूने ।’ ‘मैंने कुछ नहीं किया महाराज!’ लोमड़ धूर्तता से बोला: ‘गधा तो आपके पंजों से पहले से ही इतना घायल हो गया था कि इसके शरीर से खून बहने लगा था ।’ ‘मैं नहीं मानता ।’
शेर बोला: ‘तुमने जरूर शिकार के साथ कुछ छेड़खानी की है । इसके दोनों कान कहां हैं ? इसका दिमाग भी इसके सिर से गायब है पू जरूर तूने ही दोनों चीजें खाई हैं ।’ ‘नहीं वनराज ! मैंने तो इसके शरीर का स्पर्श भी नहीं किया ।’ लोमड़ बोला : ‘महाराज, इस गधे के कान और दिमाग तो थे ही नहीं ।
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अगर इसके कान और दिमाग होता, तो क्या एक बार आपके हाथों से बच जाने के बाद भी यह दूसरी बार मेरे साथ यहां तक आया होता ? दिमाग वाले व्यक्ति क्या कभी ऐसी गलती करते हैं ? संशय छोड़िए और शिकार का आनंद लीजिए ।’ शेर का संशय जाता रहा ।
वह शिकार पर टूट पड़ा । पहले उसने भर पेट आहार लिया, बाद में लोमड़ ने । यह कहानी यही शिक्षा देती है कि पहले सोचो, फिर करो । किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आना उचित नहीं है । यदि वह गधा अपने दिमाग से काम लेता, तो एक बार शेर के पंजे से बच निकलने के बाद दुबारा वह हरगिज जंगल की ओर न जाता ।
Hindi Story # 2 (Kahaniya)
गीदड़ की चतुराई |
किसी जंगल में महाचतुर नाम का एक गीदड़ रहता था । एक दिन जब वह जंगल में अपने आहार की खोज में भटक रहा था, तो उसने मरा हुआ एक हाथी देखा । गीदड़ ने हाथी की लाश के चारों ओर घूमकर उसका निरीक्षण किया, किंतु हाथी के शरीर में उसे कहीं भी ऐसा मुलायम स्थान दिखाई न दिया, जहां से उसका मांस खाया जा सके ।
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अभी वह इस बात पर विचार कर ही रहा था कि कैसे हाथी की मोटी खाल को फाड़ा जाए, तभी उसे एक सिंह आता दिखाई दे गया । सिंह को देखते ही गीदड के छक्के छूट गए । वह सोचने लगा कि आज मारा गया । सिंह ने मुझे देख लिया, तो वह एक ही बार में मेरा काम तमाम कर देगा ।
लेकिन गीदड़ बहुत चतुर था । सिंह जब तक उसके पास पहुंचता, उसने एक तरकीब सोच ली । सिंह जब उसके निकट पहुंचा, तो गीदड़ ने बजाए वहां से भागने के, उसे हाथ जोड़कर प्रणाम किया, फिर बहुत ही नम्र स्वर में बोला : ‘वनराज । यह शिकार आपके लिए ही है ।
मैं तो सिर्फ आपके लिए इसकी चौकीदारी कर रहा था ।’ सिंह गीदड़ के व्यवहार और मधुर वाणी से बहुत प्रभावित हुआ । बोला : ‘भोजन के लिए निमंत्रित करने के लिए तुम्हें धन्यवाद! लेकिन मैं किसी मरे हुए या दूसरे के द्वारा मारे गए पशुओं को कभी नहीं खाता, अपना शिकार मैं स्वयं ही किया करता हूं ।
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तुमने इसे खोजा है, तो अब इस पर तुम्हारा ही हक है । आराम से खाओ और मौज करो ।’ यह कहकर सिंह वहां से चला गया । सिंह जैसे ही वहां से गया कि एक तेंदुआ वहां आ पहुंचा । तेंदुए को देखकर गीदड़ चिंतित हो गया ।
वह सोचने लगा : ‘सिंह को तो मैंने अपने व्यवहार से टरका दिया, किंतु इस तेंदुए से कैसे निपटूं यह तो बहुत धूर्त और शक्तिशाली है ।’ यह विचारकर वह तेंदुए से बोला : ‘नमस्कार चाचा ! आज बहुत दिन के बाद इधर नजर आए । इस हाथी का शिकार जंगल के राजा सिंह ने किया है ।
वह अभी नदी में स्नान करने गया हैं और मुझे अपने शिकार की निगरानी पर नियुक्त कर गया है । वह कह गये हैं कि कोई तेंदुआ इसे छूने न पाए ।’ सिंह का नाम सुनते ही तेंदुआ भयभीत हो गया । उसे भयभीत देखकर गीदड़ बोला: ‘चाचा ! सिंह तेंदुओं से बहुत नफरत करते हैं ।
उन्होंने मुझे बताया था कि एक बार तेंदुए ने उनका शिकार जूठा कर दिया था । बस, तभी से वह तेंदुओं का जानी दुश्मन बन गये हैं । अभी तक कई तेंदुए उनके द्वारा मारे जा चुके हैं ।’ गीदड़ की यह बात सुनकर तेंदुआ डर गया । वह बोला : ‘भतीजे ! तब तो यहां से खिसकने में ही अपनी भलाई है ।
मैं कहीं और जाकर अपना शिकार तलाश लूंगा ।’ कहकर तेंदुआ जल्दी से वहां से चला गया । तेंदुए के जाते ही एक बाघ वहां आ धमका और मृत हाथी के शरीर को ललचाई निगाहों से घूरने लगा । गीदड़ उसे देखकर सोचने लगा कि ‘इसके दांत और नाखून बहुत तेज हैं ।
शेर की तरह यह भी बहुत शक्तिशाली है । इसी से हाथी के पेट को फड़वाना चाहिए । ऐसा सोचकर वह बाघ से बोला : ‘बाघ भाई ! यह शिकार सिंह का है । वह नदी में स्नान करने गये हैं और मुझे इसकी चौकीदारी पर छोड़ गये हैं ।
जब तक वह लौटें, फाड़ दो इसका पेट और मिटा लो अपनी भूख । मैं तब तक यह देखता रहूंगा कि सिंह कब वापस लौटते हैं । जैसे ही वह मुझे दिखाई देंगे, मैं तुम्हें सूचित कर दूंगा ।’ गीदड़ का इतना कहना था कि बाघ चढ़ गया मृत हाथी के शरीर पर ।
बात की बात में उसने अपने तीक्षा नख-दांतों से हाथी का पेट फाड़ डाला । उसने अभी थोड़ा ही मांस खाया था कि गीदड़ चिल्लाया : ‘बाघ भाई ! भागो, शेर आ रहा है ।’ गीदड़ के इस प्रकार कहते ही बाघ घबरा गया और तुरंत वहां से भाग निकला ।
उसके जाने के बाद गीदड़ अपना आहार करने में जुट गया । उसने पेट भर भोजन किया । हाथी इतना विशाल था कि गीदड़ के आहार के लिए कई दिनों तक का प्रबंध हो गया ।
Hindi Story # 3 (Kahaniya)
सांप और कौए |
एक बहुत पुराना व बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था । उस पर रहने के लिए एक कौओं का जोड़ा आया । पेड़ की मोटी-मोटी शाखाएं थीं, हरे पत्तों का शामियाना-सा बना हुआ था, जिसमें सूरज की धूप भी नहीं आती थी ।
यह घोंसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह थी । कौए इस जगह को पाकर बहुत खुश हुए । उन्होंने जल्दी ही उस पर घोंसला बना लिया । अब मादा कौआ को उसमें अंडे देने थे । घोंसला पत्तों से छिपा हुआ था, इसलिए बाहर से नजर भी नहीं आता था ।
एक दिन एक काला सांप उस बरगद के पेड़ के नीचे से गुजरा । उसने उस पेड़ के नीचे बड़ा-सा छेद देखा । उसे वह बहुत पसंद आया, उसने उसे अपना घर बनाने का निश्चय किया । कौए उस सांप को देखकर डर गए । उन्हें पता था कि सांप उनके लिए खतरा है ।
कौआ अपने सभी पड़ोसियों से जैसे कि गिलहरी, कबूतर और छिपकली आदि जो सभी उस पेड पर रहते थे, इस विषय पर बातचीत करने लगा । ‘सांप से बचकर रहो, क्योंकि यह बहुत ही दुष्ट सांप है, मौका पाकर तुम्हारे सब बच्चों को खा सकता है ।’
जब कौवी ने यह सुना तो वह रोने लगी । मैं इस घोंसले में अंडे कैसे दे सकती हूं जबकि मुझे पता चल गया है कि यह सांप मेरे बच्चों को कभी भी खा सकता है । उसने कौए से कहा : ‘मैं यहां से जाना चाहती हूं । हमें कोई अन्य सुरक्षित जगह ढूंढनी चाहिए जो इस खतरनाक सांप से दूर हो । हम नया घोंसला बनाएंगे ।’
‘नहीं हम अपना घर बरगद के पेड़ पर ही बनाएंगे । ये जगह रहने के लिए सबसे अच्छी है । मैं इस सांप को भगाने की तरकीब सोचूंगा । कौआ ने कौवी को समझाया । कौवी ने सात अंडे अपने घोंसले में दिए । वह उनकी बड़ी अच्छी देखभाल करती रही ।
जब वे अंडे पक गए, तो उनमें से सात सुंदर छोटे बच्चे निकले, छोटे बच्चों का चहकना सारे पेड़ पर सुनाई देता था । सांप ने भी उनकी आवाज सुनी और एक दिन जब कौए घोंसले से बाहर गए हुए थे, वह धीरे-धीरे पेड़ की टहनियों से ऊपर चढ़कर सारे बच्चों को खा गया ।
जब कौए घर वापस आए, तो अपने प्यारे बच्चों को न पाकर बहुत दुखी हुए । मां कौवी रोने लगी । पिता कौए ने उसे ढाड़स बंधाया : तुम ज्यादा मत रोओ, मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तुम अगली बार अंडे दोगी, तो हम अंडों की रक्षा इस भांति करेंगे कि सांप को उनको खाने का अवसर ही नहीं मिलेगा ।
कुछ महीनों बाद कौवी ने फिर अँडे दिए । इस बार कौए बहुत होशियारी से अंडों की चौकीदारी करने लगे । मां कौवी फिर भी भयभीत थी । उसने पिता कौए से कहा : ‘तुम सांप को भगाने का कोई प्रयत्न जल्दी करो, नहीं तो वह हमारा घोंसला ढूंढ लेगा और मेरे प्यारे बच्चे मारे जाएंगे ।’
पिता कौआ एक बूढी और बुद्धिमान लोमड़ी के पास गया । वह भी कभी-कभी उस पेड़ पर आती थी । उसने कौए की सारी दुख-भरी कथा सुनी, फिर उसे एक उपाय सूझा । उसने कौए को अगली सुबह नदी किनारे जाने को कहा । वहां पर राजा की रानियां नहाने आती थीं ।
वे सभी अपने कपड़े और जेवर नदी किनारे रख देती थीं । वहां उनके नौकर देखभाल करते रहते थे । लोमड़ी ने कौए को माणिक का हार उठाकर जोर से शोर मचाकर उड़कर वापस आने को कहा । शोर सुनकर नौकर उनका पीछा करेंगे और जब वे पेड़ के पास पहुंचें, तो माणिक के हार को सांप के बिल में डाल देना ।
अगले दिन कौए ने वही किया जो लोमड़ी ने समझाया था । मां कौवी ने एक माणिक का हार अपनी चोंच में दबा लिया और पिता कौआ जोर-जोर से शोर मचाने लगा ताकि नौकर उसके पीछे-पीछे दौड़े । उन्होंने कौवी को माणिक का हार सांप के बिल में डालते हुए देखा ।
नौकरों ने लाठी से माणिक के हार को बाहर निकालना चाहा । सांप गुस्सा होकर फुफकारता हुआ बाहर आया । नौकर सांप को मारना चाह रहे थे, परंतु साप अपनी जान को खतरे में देख जोर से भाग गया । वह फिर कभी बरगद के पेड़ के पास वापस नहीं आया ।
समझदारी और चतुराई से कौए ने शक्तिशाली शत्रु को परास्त कर दिया । मां कौवी और पिता कौआ फिर उस पेड़ पर बहुत दिन तक रहे और उन्होंने वहुत से बच्चे पैदा किए तथा उन्हें निश्चिंत होकर पाला-पोसा ।
Hindi Story # 4 (Kahaniya)
शेर और चालाक गीदड़ |
एक बार घने जंगल में वज्रदंतसुर नामक एक शेर रहता था । उसके दो साथी थे । एक चतुरका नामक गीदड़ और दूसरा करवयामुख नामक भेड़िया । एक दिन व्यापारियों का एक दल ऊंटों पर सवार होकर उधर से निकला ।
उनके साथ एक ऊंटनी थी, जिसके बच्चा होने वाला था । उससे चला नहीं जा रहा था, इसलिए व्यापारियों का दल उसे वहीं जंगल में छोड्कर आगे चला गया । भूखे शेर ने तुरंत उसे मार डाला और मजे से उसका मांस खाने लगा ।
साथ में उसके साथी भी मांस खाने लगे, लेकिन जब उन्होंने उसका पेट खोला, तो उसमें एक छोटा-सा ऊंट का बच्चा दिखाई दिया । शेर को उसे देखकर दया आई और वह उसे जिंदा अपने घर ले आया । घर लाकर शेर ने ऊंट के बच्चे से कहा : ‘प्यारे छोटे ऊंट ! तुम इस जंगल में आराम से रहो, यहां तुम्हें कोई तंग नहीं करेगा ।
तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं । न मुझसे और न ही मेरे साथियों से । आज से तुम्हारा नाम शंकुकर्ण होगा, क्योंकि तुम्हारे कान बहुत बड़े हैं और तिकोने हैं ।’ उसके बाद वे चारों एक बडे परिवार की तरह इकट्ठे रहने लगे ।
थोड़े दिन बीतने पर शंकुकर्ण बड़ा हो गया । वह शेर को बहुत प्यार करता था और हमेशा उसके साथ रहता था । एक दिन शेर का एक हाथी से झगड़ा हो गया । हाथी ने शेर को बुरी तरह घायल कर दिया । शेर से ठीक से चला भी नहीं जा रहा था ।
उसे बहुत भूख भी लगी थी, इसलिए उसने अपने साथियों से कहा : ‘तुम जंगल में जाकर एक जानवर को ढूंढकर लाओ, जिसे मारकर मैं अपना और तुम्हारा पेट भर सकूं ।’ गीदड़, भेडिया और ऊंट तीनों सारे दिन जंगल में घूमते रहे, लेकिन सांझ तक कोई शिकार न मिला और वे खाली हाथ वापस लौट आए ।
चतुरका नामक गादड़ बहुत चालाक था । उसने सोचा : ‘यदि शर इस ऊट का कर मार डाले, तब हम सबको कई दिन का खाना मिल जाएगा । लेकिन हमारा राजा इस ऊंट को नहीं मारेगा, क्योंकि उसने उसकी रक्षा का वचन दिया है ।
मुझे कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे ऊंट स्वयं अपने आपको शेर के हवाले कर दे । ‘गीदड़ ने चालाकी से ऊंट के पास जाकर कहा: ‘शंकूकर्ण! हमारा प्यारा सरदार भूख से मर रहा है, यदि वह मर गया तो हम सब अनाथ हो जाएंगे । केवल तुम ही उसकी जान बचा सकते हो ?’
गीदड़ की बात सुनकर शंकुकर्ण ने कहा : ‘मैं अपने राजा के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं जिसने मेरी जान बचाई और मुझे प्यार से रखा ।’ हमारे धर्म में कहा भी गया है : ‘यदि तुम अपने बचाने वाले के कुछ काम आओ, तो भगवान तुम्हें उसका सौ गुणा फल देगा ।’
चालाक गीदड़ ने तुरंत कहा : ‘तब तुम्हें अपना शरीर शेर को अर्पित कर देना चाहिए । तुम्हें अगले जन्म में इस शरीर से दुगुना बड़ा शरीर मिलेगा ।’ शंकुकर्ण ये सुनकर प्रसन्न हो गया । फिर तीनों जानवर मिलकर शेर के पांस गए । शेर से इस प्रकार बोले : ‘सरदार जी शाम हो गई, खाने के लिए हमें कोई भी जानवर नहीं मिला ।
यदि आप शंकुकर्ण ऊंट को अगले जन्म इससे दुगुना बड़ा शरीर मिलने का वायदा करें तो यह अपने आपको आपके खाने के लिए हवाले कर देगा ।’ शेर ने उत्तर दिया : ‘ऐसा ही होगा । मैं प्रतिज्ञा करता हूं ।’ जैसे ही शेर ने यह उत्तर दिया, वैसे ही चालाक गीदड़ और भेड़िया ऊंट पर टूट पड़े और उसे मार डाला ।
थोड़ी देर बाद शेर ने गीदड़ से कहा कि मैं नदी में नहाकर आता हूं तब तक तुम इसकी लाश की रक्षा करना । शेर नहाने चला गया और चालाक गीदड़ सोचने लगा । मैंने ही ऊंट को मरवाने की चाल बनाई थी, मेरा ऊंट पर पूरा हक है ।
मैं इसे अकेले ही खा लेता हूं । फिर उसने भेड़िये को कहा : ‘मैं देख रहा हूं तुम्हें भी बहुत जोर की भूख लगी है । तुम भी ऊंट का थोड़ा मांस खा लो । जब तक शेर नहाकर आता है, मैं उसे समझाने के लिए नई कहानी गढ़ लेता हूं ।’
भेड़िए ने जरा-सा मांस खाया ही था कि गीदड़ जोर से चिल्लाया : ‘देखो शेर वापस आ रहा है ।’ यह सुनते ही भेड़िए ने मांस खाना छोड़ दिया । जब शेर वापस आया, तो उसने देखा कि ऊंट के दिल का मांस खत्म हो गया है ।
वह जोर से चिल्लाया : ‘मेरा खाना किसने खाया है, जल्दी से मुझे उसका नाम बताओ ! मैं उसको सजा दूंगा ।’ भेड़िए ने गीदड़ की तरफ देखा, शायद वह कोई झूठमूठ की कहानी बनाए पर चालाक गीदड़ ने कहा : ‘देखो मैंने तुम्हें पहले ही ऊंट का दिल खाने से मना किया था । अब तुम्हें इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा ।’
भेड़िए ने जब ये झूठे वचन सुने तो वह इतना डरा कि तुरंत जंगल की तरफ भाग गया । उसी समय सामान लादे ऊंटों का एक झुंड वहां से गुजर रहा था । ऊंट के गले में एक बड़ी-सी घंटी लटक रही थी । ऊंट के चलने पर घंटी में से बड़ी आवाज होती थी ।
जब शेर ने यह आवाज सुनी तब वह गीदड़ से बोला : ‘जल्दी जाओ और देखकर आओ कि यह डरावनी आवाज कहां से आ रही है ।’ गीदड़ तुरंत बाहर की ओर गया और डरा हुआ-सा मुंह बनाकर वापस लौट आया । वह शेर से बोला : ‘मेरे मालिक ! यदि आपको जिंदा रहना है, तो शीघ्र इस जगह को छोड्कर भाग चलिए ।’
शेर ने कहा : ‘तुम्हें किस चीज ने इतना डरा दिया है ।’ गीदड़ ने उत्तर दिया: ‘मालिक ! मृत्यु का देवता यम आप से बहुत नाराज है, क्योंकि आपने एक ऊंट को समय से पहले ही मार दिया है । यम देवता ऊंट के पिता और दादा को साथ लेकर आपसे मिलने आ रहे हैं ।
वे आपसे बदला लेना चाहते हैं । यह जो घंटी की आवाज आप सुन रहे हैं, यह यम ने ऊंट के पिता के गले में बांध दी है ।’ शेर यह सब सुनकर बहुत डर गया और ऊंट के मांस को खाना छोड़ अपनी जान बचाने के लिए दूर जंगल में भाग गया । गीदड़ यह सब देखकर बहुत हंसा और ऊंट का सारा मांस खुद ही खाने लगा ।
Hindi Story # 5 (Kahaniya)
शिकारी और लालची गीदड़ |
एक बार एक शिकारी जंगल में गया । जब उसने एक हट्टे-कट्टे सूअर को देखा, तो उसने अपना तीर-कमान निकाल लिया । उसने निशाना साधकर, सूअर पर मारा । तीर सूअर के शरीर में अंदर तक घुस गया । सूअर ने घायल हो गया ।
उसने दर्द में होते हुए भी अपनी पूरी शक्ति से शिकारी पर वार कर दिया और शिकारी की मृत्यु हो गई । थोड़ी देर बाद सूअर भी मर गया । इसके बाद एक भूखा गीदड़ वहां आया । वहां पर शिकारी और सूअर के शव पड़े थे ।
दो मुर्दा शरीरों को देखकर गीदड़ बहुत खुश हुआ और सोचने लगा : ‘आज भगवान ने इतना भोजन भेजकर मुझ पर बहुत कृपा की है । आज का दिन मेरे लिए बहुत अच्छा है, तभी तो बिना कुछ परिश्रम किए आज इतना इनाम मिला है ।
सभी बुद्धिमान लोग अपने धन का धीरे-धीरे उपयोग करते हैं, इसलिए मुझे सबसे पहले तीर-कमान पर लगी गट तांत के टुकड़े को खाना चाहिए ।’ ऐसा सोचकर गीदड़ शिकारी के शव के पास गया और तीर-कमान पर लगा तात का टुकड़ा खाने लगा ।
एकाएक कमान से तीर छूटी और सीधा गीदड़ के पेट में जा घुसा । गीदड़ वहीं गिरकर मर गया । गीदड़ बुद्धिमत्ता और ध्यान से काम कर रहा था, पर उसे पता नहीं था कि भाग्य, धन, शिक्षा, जीवन और मृत्यु सब भगवान-अधीन है । उसने इन्हें पहले से निर्धारित कर रखा है ।
Hindi Story # 6 (Kahaniya)
शेर और बैल |
बहुत पहले एक व्यापारी अपनी बैलगाड़ी पर सवार होकर मथुरा जा रहा था । उसकी बैलगाडी में दो बैल जुते हुए थे, संजीवक और नंदक । जब व्यापारी की बैलगाड़ी जंगल से गुजर रही थी, तब एकाएक संजीवक बैल थककर जमीन पर गिर पड़ा । व्यापारी ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ फायदा न हुआ । बैल जमीन पर बिना हिले-डुले पड़ा रहा ।
आखिरकार व्यापारी को बैल वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाना पड़ा । संजीवक बैल ने सोचा मैंने अपने मालिक की ईमानदारी से सारी उम्र सेवा की है, मेरे मालिक ने मुझे त्यागकर मेरी वफादारी का यह इनाम दिया है ? बैल ने सोचा अब मेरे पास दो ही तरीके बचे हैं या तो मैं अपने आपको किस्मत के हवाले कर यहीं पर मर जाऊं या फिर मैं अपनी बची-खुची ताकत को इकट्ठा कर अंत तक लड़ता रहूं ।
संजीवक बैल ने साहस करके खड़े होने का प्रयास किया । आखिरकार वह लड़खड़ाता हुआ बड़ी मुश्किल से खड़ा हो पाया । संजीवक बैल अपने स्वामी के पास वापस नहीं जाना चाहता था । वह जंगल में ही धीरे-धीरे चलने लगा । वह वहां पर उगी हरी-हरी घास खाने लगा ।
नदी से स्वच्छ पानी पीने लगा । कुछ समय बाद संजीवक में फिर से फुर्ती और ताकत वापस आ गई । वह फिर से हट्टा-कट्टा और ताकतवर हो गया । वह शेर की तरह दहाड़ने लगा । उसकी ऊंची और डरावनी आवाज जंगल में दूर तक गूंजती थी ।
एक दिन पिंगलक नामक शेर नदी पर पानी पीने आया, तभी उसने बैल के दहाड़ने की आवाज सुनी । इतनी डरावनी आवाज सुनकर शेर बहुत डर गया । वह डर के मारे भागकर अपनी गुफा में छिप गया । उसने सोचा कि कोई बहुत बड़ा और ताकतवर जानवर मेरे जंगल में घुस आया है अन्यथा कोई आम जानवर इस तरह की आवाज नहीं निकाल सकता ।
शेर के दो गीदड़ मंत्री थे । एक का नाम दमनक और दूसरे का कारतक था । वे चालाक बदमाश थे । वे हमेशा राजा का चहेता बनने का मौका ढूंढते रहते थे । जब दमनक नामक गीदड़ ने अपने राजा को डरा हुआ देखा, तब वह शेर के पास गया और बड़ी होशियारी से बोला : ‘महाराज ! आपको किसने डराया है ।
मुझे जल्दी बताइए मैं उसको लाकर आपके सामने खड़ा कर दूंगा ।’ शेर क्योंकि राजा था, वह गीदड़ के सामने यह मानने को तैयार नहीं था कि वह किसी से डरा हुआ है, परंतु चालाक गीदड़ ने उससे किसी तरह सच उगलवा ही लिया ।
गीदड़ ने शेर से कहा : ‘महाराज ! अब आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं । मैं उस डरावनी आवाज का जल्दी ही पता लगा लूंगा ।’ यह कहकर वह ध्यान से जंगल की ओर चला और उसे शीघ्र ही पता चल गया कि वह अजीबो-गरीब डरावनी आवाज निकालने वाला और कोई नहीं, केवल एक सामान्य बैल है ।
गीदड़ बहुत खुश हुआ और बैल के पास जाकर उसे डराता हुआ बोला : ‘इस जंगल का राजा शेर तुम्हारी इस खंखारती हुई आवाज से बहुत नाराज है, अगर तुम्हें अपनी जिंदगी प्यारी है, तो मेरे साथ चलो और उससे क्षमा मांग लो ।’ बैल इस नए वार से डर गया और गीदड़ के पीछे-पीछे चल पड़ा ।
चालाक गीदड़ राजा के दरबार में पहुंच गया और झुककर शेर से बोला : ‘मैंने जोर से आवाज निकालने वाले जानवर को ढूंढ लिया है । वह एक बैल है जिसे शिव भगवान का आशीर्वाद प्राप्त है और वह कहता है कि भगवान शिव ने उसे जंगल में जहां मर्जी घूमने की इजाजत दे रखी है ।’
पिंगलक नामक शेर बहुत घबरा गया । गीदड़ बोलता गया : ‘जब मैंने यह सुना, तब मैंने उससे कहा कि इस जंगल का राजा शेर है और उसे शिव की रानी पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त है । यदि तुम यहां आराम से रहना चाहते हो, तो तुम्हें शेर का मित्र बनकर रहना पड़ेगा ।’
‘तुमने यह बहुत अच्छा काम किया है ।’ शेर ने खुश होकर दमनक नामक गीदड़ से कहा: ‘तुम उस बैल को मेरे पास लेकर आओ ।’ जब बैल शेर के पास आया, तब शेर ने अपनी दोस्ती पक्की करने के लिए बैल का स्वागत करते हुए अपना पंजा उसके आगे बढ़ा दिया ।
समय के साथ-साथ शेर और बैल की दोस्ती बढ़ती गई । बैल बुद्धिमान और शांत स्वभाव का था, वह शेर को बुद्धि और अपने ऊपर काबू रखने का ज्ञान सिखाने लगा । वे दोनों पक्के दोस्त बन गए और घंटों आपस में बातचीत करते रहते ।
यह देखकर जंगल के सारे जानवर शेर के दरबार से दूर रहने लगे । शेर ने शिकार करना भी छोड़ दिया, क्योंकि वह सारा समय अपने नए दोस्त के साथ बात करने में बिताने लगा था । शेर के दोनों गीदड़ मंत्री इस अवस्था को देखकर बहुत दुखी हुए और उनकी मित्रता को तुड़वाने का यत्न करने लगे ।
कारतक गीदड़ ने दमनक गीदड़ से कहा : ‘यह सब तुम्हारा किया धरा है । तुम ही बैल को शेर के पास लाए थे और अब वे दोनों अलग नहीं हो रहे यह सच है । पर अब हम दोनों मिलकर अपनी बुद्धि द्वारा इस समस्या का उपचार कर सकते हैं ।’ दोनों मंत्रियों ने मिलकर एक योजना बनाई ।
दमनक गीदड़ शेर के पास जाकर बोला : ‘महाराज ! मैं एक बुरी खबर लेकर आपके पास आया हूं । मेरा दिल भी दुखी है, पर क्या करूं ? इस संजीवक बैल की आपके राज्य पर बुरी नजर है । वह आपको मारकर खुद राजा बनना चाहता है ।’
पिंगलक शेर यह सुनकर हैरान रह गया । ‘मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकता’, अपना सिर घुमाते हुए शेर ने कहा : ‘वह मेरे दिल के इतना करीब है । वह मेरे खिलाफ क्यों होगा ?’ गीदड़ ने मीठे शब्दों में कहा : ‘मैं जानता हूं कि आपका नरम दिल एक मित्र की दगाबाजी से आहत हुआ है, परंतु मैंने अपना कर्तव्य समझकर आपको बता दिया कि आप अपने पास एक धोखेबाज (दुश्मन) को रख रहे हैं ।
आपको शीघ्र ही उसे मार डालना चाहिए ।’ अगले दिन वह गीदड़ बैल के पास गया और उसे एक अलग कहानी सुना दी : ‘राजा शेर तुम्हें मारने के लिए षड्यंत्र रच रहा है, वह तुम्हारा मांस जंगल के सभी जानवरों में बांटना चाहता है ।
अच्छा होगा यदि तुम अपने नुकीले सींगों से शेर को मार दो, इससे पहले कि वह तुम्हें मारे ।’ बैल ने उत्तर दिया : ‘मेरा दिल इस पर विश्वास नहीं करता कि मेरा सच्चा मित्र मुझे मारना चाहता है ।’ ‘लेकिन यह सच है ।’ गीदड़ ने कहा: ‘अभी यदि तुम उसके पास जाओगे, तो उसको धमकी-भरी स्थिति में बैठा पाओगे, उसकी नीयत खराब हो गई है ।’
संजीवक बैल शेर के दरबार में चला गया । जब शेर ने बैल को सावधानी पूर्वक आते देखा, तो उसे गीदड़ के कहे वाक्य याद आ गए । वह तुरंत अकड़ कर अपनी पूछ ऊपर उठाकर नीचे झुककर बैठ गया । जब बैल ने शेर को आक्रामक स्थिति में देखा, तो वह भी सावधान हो गया ।
उसने अपने पैर आगे फैला लिये और अपने नुकीले सींग आगे बढ़ा दिए । शेर ने सोचा कि बैल मुझ पर वार करने आ रहा है, वह तुरंत बैल पर दहाड़ता हुआ झपट पड़ा । दोनों जानवरों में काफी देर तक युद्ध चलता रहा । सारी जमीन लहू से तर हो गई ।
आखिर में शेर ने बैल को मार डाला । बाद में शेर ने बैल को मरा हुआ देखा, तो उसे बहुत अफसोस हुआ, क्योंकि कभी वही बैल उसका प्यारा मित्र था । दमनक नामक गीदड़ ने उसके कान भर दिए थे, इसलिए उसने बैल को मार डाला ।
Hindi Story # 7 (Kahaniya)
गधा और धोबी |
एक नगर में एक गरीब धोबी रहता था । उसके पास एक गधा था । गधा बहुत पतला हो गया, क्योंकि उसे खाने को बहुत कम मिलता था । एक दिन धोबी जंगल में गया था, तो उसे एक मरे हुए शेर की खाल दिखाई दी ।
उसने सोचा कि यदि यह खाल मैं अपने गधे को पहना दूं तो गधा पड़ोसियों के बाजरे के खेत में जाकर आराम से खाना खाता रहेगा । रात में इसको कोई पहचान नहीं पाएगा । सब समझेंगे कि यह शेर है, इसलिए डर के मारे कोई इसके पास नहीं आएगा और यह बाजरा खाता रहेगा ।
धोबी ने ऐसा ही किया और गधा खेतों में जाकर जी भरकर खाता । सुबह होते ही धोबी आराम से उसे अपने पशुशाला में ले आता । धीरे-धीरे गधा मोटा हो गया । अब धोबी मुश्किल से गधे को घसीट कर अपनी पशुशाला पर ला पाता था ।
एक रात गधा जब खेत में बाजरा चर रहा था, तो उसे गधी के रेंकने की आवाज सुनाई दी । वह इतना मदहोश हो गया कि उसने भी जवाब में रेंकना शुरू कर दिया । वह जोर-जोर से रेंक रहा था । जल्दी ही सब किसानों को पता चल गया कि वह शेर नहीं एक गधा है, जो शेर की खाल पहने है ।
वे सब भागे-भागे आए और गधे को इतना पिटा कि वह मर गया । गधे को शिक्षा मिली कि तुम जो नहीं हो, वह सबको मत दिखाओ ।
Hindi Story # 8 (Kahaniya)
ऊंट के गले में घंटी कि कहानी |
बहुत दिन पहले एक कस्बे में एक गरीब छकड़ा बनाने वाला रहता था । वह अपनी गरीबी से इतना तंग आ गया कि उसने अपना कस्बा और घर छोड़कर कहीं और जाकर रहने की सोची । वह अपने परिवार को भी साथ में ले गया ।
रास्ते में छकड़ा बनाने वाले ने एक ऊंटनी को देखा, जिसके बच्चा होने वाला था । ऊंटों का समूह उसे अकेला छोड़कर चला गया था । थोड़ी देर बार ऊंटनी ने एक बच्चे को जन्म दिया । अगले दिन सुबह ऊंटनी जब थोड़ी स्वस्थ हुई, तब छकड़ा बनाने वाला ऊंटनी और उसके बच्चे दोनों को अपने साथ ले गया ।
उस नए घर में जाकर थोड़े दिन बाद ऊंटनी स्वस्थ हो गई । बच्चा भी बडा सुंदर ऊंट बन गया । छकड़ा बनाने वाला इस जवान ऊंट को बहुत प्यार करता था । उसने उसके गले में एक घंटी बांध दी । छकड़ा बनाने वाला ऊंटनी का दूध बेचने लगा ।
उससे जो पैसा मिलता, उससे वह घर का खर्च चलाता था । उसने सोचा यदि मैं और ऊंटनी पाल लूं तो उनका दूध भी बेचकर अच्छा पैसा कमा सकता हूं । उसने अपनी पत्नी से कहा : ‘यह व्यापार अच्छा रहेगा । मैं कुछ पैसा उधार लेकर गुजरात जाऊंगा ।
वहां से एक और ऊंटनी खरीद कर लाऊंगा । तुम पीछे से इन दोनों ऊंटों की अच्छी तरह देखभाल करना ।’ उसकी पत्नी मान गई । छकड़ा बनाने वाला गुजरात जाकर एक और ऊंटनी खरीद लाया । किस्मत ने छकड़े वाले का साथ दिया और जल्दी ही वह बहुत से ऊंटों का स्वामी बन गया ।
उसने अपनी सहायता के लिए एक और आदमी रख लिया जो ऊंटों की अच्छी तरह देखभाल करता था । वह उसको हर साल एक ऊंट का बच्चा और ऊंटनी का दूध हर रोज पीने के लिए देता था । इस प्रकार छकडा बनाने वाला खुशी से रहने लगा ।
वह ऊंट के बच्चों को बेचने का व्यापार भी करने लगा । वह ऊंटों की भली-भांति देखभाल करता था, इसलिए उसके ऊंट अच्छी सेहत वाले थे । वे पास के जंगल में जाकर कोमल-कोमल पत्ते खाते थे । जंगल में उगने वाले फल भी वे बे रोक-टोक खाने लगे ।
पास की झील का स्वच्छ और मीठा पानी पीकर वे घंटों आपस में खेलते रहते । जिस ऊंट के गले में घंटी बै धी थी वह घमंडी हो गया । उसने सोचा : मैं एक विशेष ऊंट हूं त भी मेरे गले में घंटी बा धी गई है । जब सारे ऊंट इकट्ठे चलते तब वह उनसे अलग थोड़ी दूर हटकर चलता ।
जब दूसरे ऊंटों ने ये देखा तो वे आपस में कहने लगे : ‘यह बेवकूफ ऊंट हमसे अलग चलता है । इसके गले की घंटी भी बजती रहती है । यह जरूर किसी दिन मुसीबत में फंस जाएगा कोई जंगली जानवर इसे मार डालेगा । वे सब घंटी वाले ऊंट को भला-बुरा कहने लगे ।
उसके बेवकूफी भरे व्यवहार को उसे समझाया, पर घंटी वाले ऊंट ने कोई ध्यान न दिया । एक दिन जंगल में रहने वाले शेर ने घंटी की आवाज सुनी । वह आवाज का पीछा करने लगा । उसने जवान ऊंटों का एक झुंड देखा, जो कि चरने के बाद पानी पीने के लिए झील पर जा रहा था । घंटी वाला ऊंट अकेला अ भी भी आराम से चारा चर रहा था ।
थोड़ी देर बाद स भी ऊंट पानी पीकर अपने घर की तरफ चले गए । घंटी वाला ऊंट अ भी भी वहां पर अकेला घूम रहा था । शेर उसकी घंटी की आवाज का पीछा करते-करते उसके रास्ते में छिपकर बैठ गया । ऊंट जब बिल्कूल पास से निकला तब शेर ने झपट्टा मारकर ऊंट का गरदन को पकड़ कर मार डाला । बेचारा ऊंट अच्छी नसीहत न सुनने के कारण मारा गया ।