देश-प्रेम पर निबंध | Essay on Love for Country in Hindi!

”जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है । वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है ।।”

जिस व्यक्ति में देश-प्रेम की भावना का अभाव है और जो अपने देश व अपनी जाति की उन्नति करना अपना धर्म नहीं समझता, उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ है । जिस देश में हम पैदा हुए हैं, जिसकी धूल में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं, जिसका अन्न खाकर हम पले हैं, उसके प्रति हमारा प्रेम होना स्वाभाविक है ।

मातृभूमि तो माता के समान है । जिस प्रकार माता से हमारा अटूट प्रेम होता है उसी प्रकार अपने देश के प्रति हमारा प्रेम अटल होता है । इसीलिए वेद में कहा गया है- ‘नमो मातृ भूम्यै, नमो मातृ भूम्यै ।’ सचमुच माता और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती हैं । पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी ने भी कहा है:

”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।”

मनुष्य ही नहीं वरन् चर-अचर, पशु-पक्षी सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं ।

योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इसी भावना से अविभूत होकर कहा है :

”ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहिं ।”

जिस समय हम अपनी मातृभूमि छोड्‌कर किसी को जाते हुए देखते हैं या स्वयं जा रहे होते हैं, उस समय हमारा दिल रो उठता है । मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है :

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”जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं । वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।।”

देश-प्रेम की भावना से पूर्ण व्यक्ति ही देश की उन्नति में सहायक होते हैं । देश की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए वे अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहते हैं । किसी विद्वान् का कथन है :

”जो व्यक्ति देश की सभी संस्थाओं से स्वाभाविक प्रेम करता है, देश के रीति-रिवाजों से प्रेम करता है; देश में उत्पन्न हुई सभी वस्तुओं से स्नेह दिखाता है; देश की वेशभूषा को अपनाता और देश की भाषा की उन्नति करता है, वस्तुत: वही सच्चा देशभक्त है ।”

जो व्यक्ति देश की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए तथा देश में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना बलिदान दे सकता है; जो व्यक्ति बाल-विवाह, अंधविश्वास, छुआछूत, स्वार्थ-सिद्धि और भाई-भतीजावाद को दूर करने का प्रयत्न करता है तथा विधवा-विवाह और स्त्री-शिक्षा को समाज का आधार मानता है, वह सच्चा देशभक्त है ।

देश-प्रेम ही देश की उन्नति का परम साधन है । जो मनुष्य अपना तन, मन, धन देश पर निछावर कर देता है, वही सच्चा देश-प्रेमी है । भामाशाह का नाम ऐसे देशभक्तों में सर्वोपरि है । उन्होंने चित्तौड़ की स्वतंत्रता के लिए महाराणा प्रताप को अपनी समस्त संपत्ति अर्पित कर दी थी ।

राष्ट्र के संकट के समय जो व्यक्ति चोर-बाजारी, रिश्वतखोरी या अन्य अनुचित साधनों द्वारा धन कमाते हैं, वे देशद्रोही हैं । ऐसे लोगों को कठोर सजा मिलनी

चाहिए । हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति अपने शारीरिक श्रम द्वारा और विद्वान् तथा साहित्यिक अपनी रचनाओं द्वारा राष्ट्रोत्थान में सहायता कर सकते हैं-

”तन-मन-धन प्राण चढ़ाएँगे, हम इसका मान बढ़ाएँगे । बहती अमृत की धारा है,  यह भारतवर्ष हमारा है ।

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राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘पुष्प की अभिलाषा’ के रूप में अपनी समर्पण भावना प्रकट करते हुए लिखा है-

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”चाह नहीं है सुरबाला के गहनों में मैं गूँथा जाऊँ । चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ । चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ । चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ । मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक । मातृभूमि हित शीश चढ़ाने जिस पथ जाते वीर अनेक ।

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भारत में ही नहीं, विदेशों में भी ऐसी अनेक महान् विभूतियों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया । संयुक्त राज्य अमेरिका में अब्राहम लिंकन तथा जॉर्ज वाशिंगटन, ईरान में रजाशाह पहलवी, आयरलैंड में डी. वेलरा, तुकी में कमाल पाशा आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।

आज हमारे देश की स्थिति बड़ी चिंताजनक है । हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन ने अपनी गिद्ध-दृष्टि हमारे राष्ट्र की स्वतंत्रता और भूमि को हड़पने के लिए लगा रखी है । ऐसी स्थिति में हममें देश-प्रेम की भावना का होना नितांत आवश्यक है । बिना इसके हम देश की अखंडता को अक्षुण्ण कैसे बनाए रख सकते हैं ? हमें जयशंकर प्रसाद के ये शब्द सदैव याद रखने चाहिए :

”जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष ।  निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।”

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