भारत-चीन संबंध पर निबन्ध | Essay on Indo-China Relationship in Hindi!

भारत व चीन एक लम्बी अवधि से एक-दूसरे को सामरिक, आर्थिक एवं कूटनीतिक दृष्टि से पीछे करने के लिए प्रयत्न करते आ रहे हैं तथा एशिया में अपने वर्चस्व को लेकर उलझ रहे हैं । आज के राजनीति में चल रहे संक्रमण काल में भारत-चीन संबंधों की नई पहल का महत्व दोनों देशों के हितों के लिए ही नहीं, अपितु तृतीय विश्व के विकासशील देशों के हितों के लिए भी आवश्यक है ।

1954 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु तथा तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई द्वारा सह अस्तित्व के लिए प्रतिपादित पंचशील सिद्धांत दोनों देशों के बीच सहयोग एवं सम्मान हेतु स्थापित किया गया । पंचशील के पाँच सिद्धांतों में एक-दूसरे की अखण्डता व सम्प्रभुता का सम्मान, अनाक्रमण, समानता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा एक-दूसरे के आतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना शामिल था ।

भारतीय प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी की चीन यात्रा के समय चीनी प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ के साथ हुई बातचीत के बाद सरहदी रारत्ते से व्यापार बढ़ाने की एक सहमति के साथ-साथ आपसी संबंधों को व्यापक बनाने वाला एक साझा घोषणा-पत्र जारी किया गया, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को गति मिलने पर आपसी विश्वास का एक नया परिवेश पनपेगा ।

दोनों देशों ने व्यापार सम्बन्धी सहमति एमओयू और नौ समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए । वास्तविकता यह है कि दोनों देशों का आर्थिक व व्यापारिक भविष्य राजनीतिक व राजनयिक वातावरण के द्वारा सही सही अर्थों में तय होगा ।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्बर्द्धन परिषद (सी.सी.पी.आई.टी.) ने भारत के शीर्ष उद्योग संगठन फिक्की के साथ मिलकर एक-दूसरे के बाजार में यथाशीघ्र प्रवेश पाने व समझने के लिए गाइड बुक तथा बेवसाईट लांच किया है । इसके साथ ही व्यापारिक सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए क्षेत्रानुसार मार्गों के मानचित्र (रोड-मैप) भी तैयार किए गए हैं ।

दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई आपसी बातचीत के बाद सरहदी रास्ते से व्यापार बढ़ाने की सहमति के साथ-साथ आपसी सम्बन्धों को व्यापक बनाने पर भी बल दिया गया और एक संयुक्त घोषणा-पत्र भी जारी किया गया । आशा है कि अब आर्थिक सम्बन्धों को एक नया आयाम मिलेगा ।

भारत-चीन सम्बन्ध एक नये युग में प्रवेश कर रहे हैं, जो कि व्यापारिक व आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं सामयिक पहल है, चीन ने भारत में ढाँचागत विकास और संसाधन के क्षेत्र में 50 करोड़ डॉलर के निवेश की इच्छा व्यक्त की है ।

दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग हेतु एक कार्यवाही योजना तय करने पर भी सहमति हुई है, सीमा व्यापार हेतु सिक्किम आने हेतु चीन ने ‘नाथू दर्रा’ खोलने पर भी स्वीकृति दे दी है तथा सिक्किम के ‘छांगू’ में चीन का व्यापार केन्द्र तथा तिब्बत के ‘रेनिगगौग’ में भारतीय व्यापार चौकी स्थापित करने में सहमति हुई है ।

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भारत का चीन रो व्यापार (आयात-निर्यात) 1999-2000 में 1825 मिलियन डॉलर था, जो 2002-03 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसके निरन्तर बढ़ते रहने कई सम्भावना है । इसके साथ ही व्यापारिक वीजा की अवधि भी बढ़ाई गई है, यद्यपि व्यापारिक सम्बन्धों को लेकर आपसी मतभेद रहा है कि अपने सस्ते माल से भारत के बाजार को भर रहा है, किन्तु भारत ने इसकी परवाह करते हुए भूमण्डलीकरण के इस दौर का एक अभिन्न अंग मानते हुए इसे भी सहर्ष स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं किया ।

दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी वाले दोनों देशों के बीच बाजार व व्यापार की संभावनाएं इतनी विशाल हैं कि आगामी कुछ वर्षों में साझा बाजार स्थापित हो सकता लेकिन इस व्यापार को साझा बाजार के रुप में विकसित करने के लिए संयुक्त रुप से समझदारी व संयम के साथ काम लेने की आवश्यकता है ।

यह उल्लेखनीय है कि इस भारत का वस्त्र उद्योग इस स्थिति के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है जब 2005 इसका निर्यात कोटा समाप्त हो जाएगा । अत: ऐसी स्थिति में चीन के वस्त्र उद्योग के थ सहयोगी उद्यम के माध्यम से इस उत्पादन का एक बड़ा स्तर सुनिश्चित किया जा सकता है ।

इसके साथ ही भारत अनेक वर्षों से लगभग 5 करोड़ टन अतिरिक्त अनाज का भार वहन करता रहा है, जबकि अनाज का एक बड़ा भाग सहयोग एवं कं के साथ आसानी से चीन को निर्यात किया जा सकता है । प्रतिस्पर्धा के इस युग दोनों देशों को जर्मनी, फ्रांस व ब्रिटेन से सबक सीखते हुए साझा बाजार स्थापित करना हितकारी होगा ।

चीन के साथ भारत का सीमा विवाद एक पुराना रोग है, जिसका उपचार किसी भी प्रति में तुरन्त सम्भव नहीं है । विगत 22 वर्षों के दौरान 14 बार किए गए प्रयासों के सीमा विदा समाप्त करने के सन्दर्भ में कोई भी सार्थक एवं स्पष्ट नीति अभी तक नहीं बन पायी है ।

यह भी उल्लेखनीय है कि चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, भूटान एवं म्यांमार से अपने सीमा विवाद समाप्त कर दिए और रुस, कजाकिस्तान व वियतनाम से भूमि व विवादों को भी विराम दिया जा चुका है । एकमात्र भारत के साथ चीन का सीमा बरकरार बना हुआ है ।

भारत व चीन के बीच की सर्श्वा सीमा जो लगभग 4056 किलोमीटर है, तीन क्षेत्रों-पूर्वी क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश में म्यांमार से भूटान तक है, मध्य नेपा के शिपकी दर्रा में लिपुलेख दर्रा तक तथा पश्चिमी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में लद्दाख से कराकोरम दर्रा तक है ।

पूर्वी क्षेत्र के एक बडे भू-भाग पर चीन ने 1962 के युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया । किन्तु युद्ध विराम के बाद वह पहले वाली रथति पर तो चला गया, लेकिन उसने प्रदेश में लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर के सम्पूर्ण क्षेत्र पर अपने दावे की लगायी हुई है ।

पूर्वी क्षेत्र में 1100 किलोमीटर लम्बी सीमा है, जिसे मैकमोहन रेखा कहा जाता है, जो अरुणाचल को तिबत से अलग करती है । इसके अन्तर्गत लगभग 5000 किलोमीटर भू-भाग विवादग्रस्त है, पश्चिमी क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य स्थित 1600 किलोमीटर लम्बी जम्मू-कश्मीर सीमा रेखा चीन को सिक्यांग तथा तिब्बत के क्षेत्रों से करती है ।

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इसमें लगभग 25,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग विवादित है जिसमें पेमोंग के निकटवर्ती अक्साई चीन तथा चिंग झील के निकटवर्ती अक्साई चिन तथा चिंग हेनम घाटी सम्मिलित हैं । पाकिस्तान ने तथाकथित चीन-पाक समझौते के तहत् पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हमारा 5180 वर्ग किलोमीटर भू-भाग गैर-कानूनी राप से चीन को दे दिया है ।

मध्य क्षेत्र में लगभग 650 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा है, जो हिमालय में स्पीति वाराहोती तथा नीलांग के पहाड़ी क्षेत्रों को अलग करती है । इसके अन्तर्गत 1600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र विवादित है । पूर्वी क्षेत्र की सीमा रेखा को लेकर चीन को जितनी पेरशानी हो रही है, उससे कहीं अधिक समस्या वास्तव में वास्तविक नियन्त्रण रेखा को लेकर बनी हुई है ।

आश्चर्य किन्तु सत्य है कि चीन सेना ने अरुणाचल प्रदेश में उस दौरान भी जबरन प्रवेश करने का प्रयास किया जब भारत-चीन वार्ता हेतु वाजपेयी चीन यात्रा पर थे । इस घटनाक्रम में सीमित समर्पण के बाद भारत ने 15 चौकियाँ पीछे हटाई, चीन सैनिकों ने अर्द्धसैनिक बल के जवानो एवं खुफिया ब्यूरो के कर्मचारियों को घेरा, ललकारा व हथियार रखवाकर समर्पण की वीडिया फिल्म भी बनाई जिससे चीन की नीयत पर सन्देह होना स्वाभाविक है ।

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सिक्किम के सन्दर्भ में भी चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि इसको भारत का अंग मानने की मान्यता उसने परोक्ष राप में भी नहीं दी है । सीमा विवाद के साथ ही चीन का पाकिस्तान के प्रति सामरिक लगाव भारत-चीन विश्वास में भटकाव उत्पन करता रहा है ।

चीन द्वारा पाकिस्तान को दिए जा रहे आधुनिक हथियारों को लेकर उपजी सुरक्षा चिन्ता अविश्वास की असली समस्या है । पाकिस्तान में चीन ने न केवल काराकोरम राजमार्ग निर्माण करके अपनी सेना के लिए अरब सागर तक मार्ग बना चुका है, बल्कि इसके साथ ही नेपाल सीमा को राजमार्ग से जोड़ने का भी चीन द्वारा अनूठा प्रयास किया गया है ।

चीन की ओर से सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील राज्य के रुप में सिक्किम गिना जा रहा है क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों से सटा हुआ है । पूर्वोतर के उग्रवादियों को चीन से हथियार व प्रशिक्षण मिलता रहा है । अत: सिक्किम में सीमा व्यापार के नाम पर चीन के प्रवेश करते ही भारतीय सुरक्षा तन्त्र पर अतिरिक्त बोझ बढ़ने की आशंका से कदापि इनार नहीं किया जा सकता है ।

भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर दोनों की दोस्ती के बीच बहुत अवरोध है । चीन जान-बूझकर भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने की उपेक्षा करता जा रहा है जो कि सम्बन्धों के सन्दर्भ में शुभ संकेत नहीं है ।

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यही चीन दूसरी ओर अन्य पड़ोसियों विशेषकर रुस के साथ सीमा विवाद सौहार्दपूर्वक सुलझा चुका है । इतना ही नहीं भारत पर लगाम लगाने व नकेल डालने की एक योजनाबद्ध रणनीति के तहत चीन अपने आधुनिक हथियारों एवं विकसित नाभिकीय प्रौद्योगिकी की आपूर्ति पाकिस्तान को करता रहा है ।

पाकिस्तान का सहयोग और चीन की भारत के चारों ओर जारी सामरिक व रणनीतिक गतिविधियाँ हमें निरन्तर सतर्क रहने के लिए रयष्ट संकेत देती हैं । कुछ भी हो भारत व चीन को सीमा सम्बन्धी विवाद हर हाल में सुलझाना होगा और उनके सह-अस्तित्व के लिए शर्तों पर, सहमत होना ही होगा ।

भारत ने इस दृष्टि से तत्परता दिखा दी है और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव बृजेश मिश्र को इस कार्य हेतु विशेष दूत बनाया गया है । अब देखना है कि सीमा विवाद सुलझाने में चीन कितनी रुचि लेगा उसी से नये सम्बन्धों के मीकरण सही अर्थो मे सुनिश्चित हो सकेंगे ।

भारत-चीन के व्यापारिक एवं व्यावहारिक कदम जिस गर्मजोश के साथ उठाए गए उससे भारत-चीन रिश्तों की खाइयाँ आहिस्ता-आहिस्ता पटती जा रही है । इसके लिए ल दोनों ओर से हुई है । सीमा विवाद के अलावा दोनों देशों ने वाजपेयी के इस दौरे व्यापार, शिक्षा, वीजा व सूचना तकनीकी आदि को लेकर भी अनेक महत्युपर्ण समझौते किए हैं, इस समझौतों से भी अधिक महत्युपर्ण एवं प्राथमिक कदम यह होगा कि भारत व न इस बात का विश्वास बनाए कि अब दोनों एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं बनेंगे ।

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62 के आकस्मिक युद्ध के बाद यह प्रश्न प्रत्येक भारतीय के मन में उभरता है कि क्या चीन पर विश्वास किया जा सकता है ? इसका उत्तर तुरन्त देना सम्भव नहीं है, यह समय के साथ ही पता लग सकेगा यद्यपि चीन अब प्रत्यक्ष रुप से किसी भी देश के साथ युद्ध नहीं करना चाहता है, किन्तु इसके बावजूद अप्रत्यक्ष रुप से चीन अपने गेधियों को लामबन्द करने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता रहा है ।

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चूँकि इस समय गया में भारत चीन का प्रबलतम प्रतिद्वन्द्वी प्रमाणित हो रहा है जिससे वह भारत को भी तें ओर से अप्रत्यक्ष रुप से घेरने का भी हर सम्भव प्रयास कर रहा है । चीन का भारत के प्रति आकस्मिक लगाव उसके हृदय परिवर्तन के कारण नहीं पनपा बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आए बदलाव और उससे उत्पन्न आवश्यकताओं के रण हुआ है ।

अमरीका के एशिया में नये समीकरणों की तलाश के कारण चीन को नी बड़ी है । चूँकि अमरीका अपनी दूरगामी रणनीति के तहत् चीन को घेरने के प्रयास लगा है और अपनी दादागिरी के बल पर चीन पर अपना अंकुश लगाना चाहता है ।

प्रस्थिति यह है कि चीन इस समय एशिया की एक महान शक्ति के रुप में उभरा है, को यदि भारत का सहयोग एवं समर्थन मिल जाता है तो उसके द्वारा अमरीका के स्व को सीधी चुनौती सरलता एवं सहजता से दी जा सकती है ।

भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार करने के लिए आवश्यक है कि दोनों देश अतीत के पदों को भूलकर एक नए अध्याय का आरम्भ व्यापार, व्यवहार एवं विश्वास के साथ करें, आशंकाओं एवं सन्देहों को दर-किनार कर सामरिक सतर्कता के साथ सम्बन्धों को परने पर बल देने की सामयिक आवश्यकता है, यद्यपि हमारे चीन के साथ अनेक मुद्‌दों विरोधाभास है, जैसे-भारत में सिक्किम विलय को मान्यता न देना, दोनों देशों के बीच घणु अप्रसार सन्धि, दलाईलामा का भारत में प्रवास, पाकिस्तान के प्रति उसका विशेष व हथियारों की आपूर्ति तथा सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के सन्दर्भ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दक्षिण एशिया में जो स्थिति है, इसमें दोनों देशों को अपने क्रियावादी रुख का परित्याग करना होगा और सम्बन्धों के सन्दर्भ में ठोस पहल करनी होगी ।

यद्यपि सीमा विवाद बेहद जटिल है, किन्तु अमरीका के बढ़ते वर्चस्व एवं गान समन्वित परिवेश की दृष्टि से भारत-चीन के साथ एक समुचित सौहार्दपूर्ण वातावरण का विकास एक आवश्यकता बन गई है ।

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