विकल्प बनने की राह पर जैविक ईंधन पर निबंध | Essay on Organic Fuel Becoming Optional in Hindi!
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पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों से विश्व चिंतित तो है ही, क्योंकि इससे महंगाई बढ़ने की रफ्तार तेज होती जा रही है । एसे में खनिज तेल का विकल्प जैविक ईंधन के रूप में मिला तो है पर अभी परीक्षणों की अवस्था में है ।
प्रयोग किये जा रहे हैं कि कौन-सा जैविक ईंधन वातावरण को प्रदूषित नहीं करता है और करता है तो इसके क्या उपाय किये जा सकते हैं । सरकारें प्रयास कर रही हैं कि मक्के के इथेनाल या रेपसीड बायोडीजल में से कौन प्रदूषण कम करता है ।
इस समय बहुत सारे देश वातावरण को कम प्रदूषित करने वाले बायोडीजल पर काम कर रहे हैं । आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और कनाडा किसानों को प्रोत्साहन दे रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि वे अपने यहां जैविक ईंधन की रिफाइनरी के साथ-साथ वितरण की भी व्यवस्था करें ।
इसके लिए उन्हें सब्सिडी दी जा रही है । बहुत से यूरोप के देश प्रयासरत हैं कि वर्ष के अंत तक नये जैविक ईंधन का प्रयोग किया जाये । ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिससे पता चला है कि वातावरण को प्रदूषित करने में जैविक ईंधन की भूमिका खनिज तेल के मुकाबले कम है ।
स्विटजरलैंड में हुए अध्ययनों मै पाया गया है कि एक लीटर जैविक ईंधन, खनिज ईंधन के मुकाबले चालीस प्रतिशत कम प्रदूषण फैलाता है । यह विशेष विधियों से शोधन के बाद हुआ है । तब चाहे वह ईंधन मक्का का इथेनाल हो या फिर रेपसीड के तेल से बना हो । फिर भी, जैविक ईंधन का प्रयोग करने के लिए शोधकर्ता इस बारे में व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही आश्वस्त होना चाहते हैं ।
जर्मनी भी इसके गुण और अवगुणों के आधार पर ही किसी निर्णय पर पहुचना चाहता है । जैविक ईंधन के प्रति लोगों की रूचि सिर्फ इसलिए हुई थी कि यह कार्बन निक्रिय ईंधन है । क्योंकि जो कार्बन डाईआक्साइड जैविक ईंधन के जलने से वातावरण में उत्सर्जित होती है, उसे रचय पौधे अपनी वृद्धि के लिए वातावरण से सोख लेते है ।
लेकिन यह समीकरण फसलों द्वारा उत्सर्जित की जाने वाली कार्बन डार्स्साक्साइड के साथ सही नहीं बैठता क्योंकि खादों के उत्पादन में कारखानों से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाईआक्साइड भी तो वातावरण को प्रदूषित कर रही है । ये कारक विभिन्न जैविक ईंधनों के द्वारा प्रदूषण फैलाने में सहायक हैं । हाल ही में यूरोपीय संघ ने एक ऊर्जा नीति के तहत जैविक ईंधन के आयात पर रोक लगाई है । क्योंकि यह वातावरण को शुद्ध करने में सहायक ईंधन नहीं है ।
वर्ष 2007 में यूरोप ने प्रति हेक्टेयर 45 यूरो और अनुमानित रूप में 27 डॉलर प्रति एकड़ जैविक ईंधन के उत्पादन में किसानों को सब्सिडी दी थी । इस तरह का प्रोत्साहन उन्हें इसलिए नहीं दिया गया कि वे अच्छे जैविक ईंधन का उत्पादन करें, बल्कि इसलिए दिया गया कि वे जो पैदा कर रहे हैं, उसी के उत्पादन में और वृद्धि करें । यह बात ब्रुसेल्स में वर्ल्ड वाइड फंड के ग्लोबल बायो एनर्जी कोर्डिनेटर जीन फिलिप डेनरयूटर ने कही ।
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नीदरलैंड ने हाल ही में घोषणा की कि पाम के तेल के आयात के लिए कोई सब्सिडी नहीं दी जायेगी । जबकि यह हरित ऊर्जा उत्पादन का मुख्य स्रोत है, लेकिन एशिया में, जहा इसका उत्पादन हो रहा है, वहां यह वातावरण पर अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ रहा है, ऐसा इनका विश्वास है ।
जर्मनी भी 5.75 प्रतिशत जैविक ईंधन का प्रयोग ट्रांसपोर्ट के लिए करना चाहता है । अमेरिका में उत्पादित मक्के का इथेनाल भी यूरोपीय मानकों पर खरा नही उतर रहा है, क्योंकि वह वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड को सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत तक ही रेगुलर गैसोलीन से कम कर पा रहा है ।
स्विट्जरलैंड की नीति के मानकों में मक्के का जैविक ईंधन मान्यता प्राप्त नहीं कर सकेगा । खाद्य फसलें – चुकंदर, रेपसीड और सोया दूसरे नंबर पर हैं । इनके उत्पादकों को यह साबित करना होगा कि यह वातावरण को कैसे कम प्रदूषित करते हैं । यूरोप के देश आज विकासशील देशों से आयात होने वाले जैविक ईंधन पर गहरी नजर रखे हुए है । वे नहीं चाहते कि बिना वजह इनके उत्पादन के लिए रियायत दी जाये ।
वातावरण को कम प्रदूषित करनेवाले मानकों को आधार मानकर ही वे इसके उत्पादन और आयात को प्रोत्साहन देने की कोशिश कर रहे हैं । अमेरिका में मक्के के इथेनाल पर करों की छूट के पीछे कारण किसानों की सहायता करना है । यूरोपीय देश यह मानकर चल रहे है कि जैविक ईंधन के उत्पादन के लिए कार्य फसल उपयुक्त नहीं है ।
इस प्रकार विश्व अभी जैविक ईंधन को पूरी तरह से स्वीकारने के पक्ष में नहीं है । इन पर परीक्षण लगातार चल रहे हैं । जिस दिन वैज्ञानिक इसके प्रदूषण की दर को नियंत्रित कर देंगे उस दिन से यह सबसे उपयोगी ईंधन होगा । लेकिन यह अभी विकल्प बनने की स्थिति में नहीं है । इसका मुख्य कारण है जनसंख्या वृद्धि और खेती का घटता क्षेत्रफल । तीव्र औद्योगीकरण जिस रफ्तार से उपजाऊ भूमि को लील रहा है, वह कृषि उत्पादन के लिए अच्छे संकेत नहीं है ।