भारत की सांस्कूतिक एकता | Essay on Cultural Unity of India in Hindi!

भौगोलिक दृष्टि से भारत एक संगठित इकाई के समान है । भारत के आकार और क्षेत्रफल को देखते हुए यह कहा जाता है कि यह एक देश की अपेक्षा एक द्वीप लगता है ।

यह यूरोप जितना विस्तृत है और इसका क्षेत्रफल ग्रेट ब्रिटेन से बीस गुणा अधिक है । अपनी विविध भौतिक विशेषताओं और सामाजिक परिस्थितियों के कारण भारत एक छोटे विश्व के समान है । सामान्य तौर पर अवलोकन करने वाले विचारक भारतीय सांस्कृतिक विविधता को संदेह की दृष्टि से देखते हैं ।

वे अनेकता में एकता की विशेषता को समझने में असमर्थ हैं । उनके मत में भारत छोटे-छोटे वर्गो में क्या हुआ देश है । भारत वर्गो, जातियों, सम्प्रदायों में विभाजित होने के बावजूद एक सांस्कृतिक सूत्र में बँधा हुआ है जिसे समझने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है ।

संकीर्ण विचारधारा वाले लोग भारतीयों की मूल एकता को देख नहीं पाते हैं । यह भिन्नता भारत की कमजोरी नही उसकी शक्ति और मुख्य निधि है । प्रो. हरबर्ट रिसले के अनुसार भारत का भौतिक और सामाजिक रूप, भाषा, रीति रिवाज, धर्म की भिन्नता होने पर भी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एकता के सूत्र में बंधा है ।

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यह एकता है सांस्कृतिक एकता, जिसने भारत की विविधता को अपने में समोकर अभिन्न रूप प्रदान किया है । पाश्चात्य विचारक वी. ए. स्मिथ ने भारत में काफी समय व्यतीत किया, उनके अनुसार भारत की संस्कृति की अपनी विशिष्टताएं है, जो उसे विश्व के अन्य देशों से पृथक करती है, लेकिन इस विविधता का प्रभाव भारत की सांस्कृतिक एकता पर नहीं पड़ता है ।

भारत के इतिहास से भी यह ज्ञात होता है कि भारत में लोगों की राजनैतिक जागरूकता ने समस्त भारत को एकता के सूत्र में बांधे रखा । भारत भौगोलिक रूप तथा लोगों के रहन-सहन की दृष्टि से भिन्न है, लेकिन आंतरिक रूप से यह अभिन्न है ।

भारत में अलग-अलग जातियाँ उपजातियाँ, धर्मो के लोग, राष्ट्रवादी और साम्यवादी रहते हैं, लेकिन उनका मन एक है । हम सबका संबंध एक अमूल्य संस्कृति से है । सदियों पहले से विकसित कला और साहित्य में हमारी संस्कृति की झलक दिखाई देती है । हमारी सांस्कृतिक परम्परा हमारे देश के भिन्न-भिन्न मतों, विश्वासों के लोगों को एकता के सूत्र में बाँधती है ।

भारत जैसे उपमहाद्वीप में विभिन्न मतों और संस्कृतियों की लहर हमारे वर्तमान और भविष्य की ओर इंगित करती है । आयो के आगमन से पहले यहाँ द्रविड़ जाति रहती थी, इस प्रकार हिन्दू समाज दक्षिण और उत्तर की संस्कृतियों का मिला-जुला रूप है ।

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भारत की लगभग एक सौ पचास बोलियाँ है और 15 राजभाषाएँ हैं । परन्तु हिन्दी यहाँ की प्रमुख भाषा है । कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, बम्बई से लेकर नागालैंड तक यह भाषा सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है । आज हिन्दी को भारत की राजभाषा माना जाता है । यह सभी प्रान्तों के लोगों को एक भाषा के सम्पर्क सूत्र में बाँधती है ।

भारत की सांस्कृतिक परम्परा बहुत सम्पन्न है । संगीत, ललित कला, नश्त्य, नाटक, रंगमंच और शिल्पकला आदि सभी सांस्कृतिक परम्परा से प्राप्त हुए है । आध्यात्मिक उन्नति, इच्छाओं के दमन, व्रत अनुष्ठान आदि की दृष्टि से भी हमारा देश महान है । हमारे ऋषि, मुनियों ने उस अदृश्य सत्ता के ज्ञान की आकांक्षा की है । हमारे धार्मिक ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार है ।

हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं की उत्कृष्टता के कारण ही आज पश्चिमी देश हमारे आगे नतमस्तक हो जाते है । अमेरिका और यूरोप के लोग भारतीय जीवन पद्धतियों को अपना रहे हैं । भारतीय साधुओं, ऋषियों, संगीतज्ञों, आध्यात्मिक गुरूओं के प्रति वे आकर्षित होते हैं ।

भारतीय संस्कृति और उसके संदेश को दूसरे देशों तक पहुँचाने का सफलतम उपाय विश्व के विभिन्न देशों में सांस्कृतिक उत्सवों, भारत उत्सव आदि का आयोजन है । पश्चिमी लोग हमारे आध्यात्मिक मूल्यों जैसे ध्यानावस्था, उपासना, दया, प्रेम आदि का आयोजन है ।

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पश्चिमी लोग हमारे आध्यात्मिक मूल्यों जैसे ध्यानावस्था, उपासना, दया, प्रेम, मैत्री –बंधुत्व, ईश्वर का डर, श्रद्धा और निस्वार्थ भावनाओं का नियंत्रण, मानसिक शांति आदि की प्राप्ति की ओर बढ रहे हैं । इन आध्यात्मिक मूल्यों का संबंध हमारी उच्च संस्कृति से है ।

हमारी सांस्कृतिक एकता के अन्य उदाहरण दक्षिण भारत के मंदिर, खजुराहों, अजन्ता और एलोरा की गुफाएँ हैं । ये भारत की उदात्त शिल्प कला और वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं । भारतीय संगीत ने भी विश्व में अपना स्थान बना लिया है । भारतीय शास्त्रीय संगीत, भारतीय नृत्य राग और ताल में निबद्ध है ।

ऐसा माना जाता है कि दक्षिण और उत्तर की शैली को मिलाकर भारत में लगभग 250 राग प्रचलित है । रविशंकर जैसे महान संगीतज्ञों ने भारतीय संगीत द्वारा पूर्व और पश्चिम के संगीत के बीच सेतु का निर्माण किया है । भारतीय सांस्कृतिक एकता की एक अन्य विशेषता नृत्यों में शैली विभिन्नता और भावात्मक सम्पन्नता है ।

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शास्त्रीय नृत्यों, लोक नृत्यों और कबीलों, प्रान्तों के द्वारा हमारी कलात्मक अभिव्यक्ति, आध्यात्मिक उच्चता प्रकट होती है । इसी प्रकार भारतीय रंगमंच का इतिहास भी दो हजार वर्ष पुराना है । पहले नाटकों का मंचन मंदिरों, राजमहलों में होता था । पारम्परिक नाटकों में तो संगीत और नृत्य का सम्मिश्रण भी किया जाता था । दुर्भाग्यवश अब इसे प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा हैं ।

हमारी सांस्कृतिक एकता की महानता के कारण ही आज पश्चिमी लोग इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं । देश की युवा पीढ़ी का दायित्व है कि वह सांस्कृतिक एकता को दृढ़ करने के प्रयास करे और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें, ताकि विश्व के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत हों ।

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