चुनाव सुधार पर निबंध | Essay on Election Reformation in Hindi!
चुनाव लोकतात्रिक शासन का आधार है । स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था लोकतंत्र को स्थायित्व और परिपक्वता प्रदान करती है । काफी समय से देश में चुनाव सुधारों की मांग की जाती रही ।
चुनाव के दौरान अपनाए जाने वाले भ्रष्ट तरीकों को समाप्त करने का प्रश्न सरकार के समक्ष काफी समय से विचाराधीन रहा । पिछले वर्षों में हुए अनुभवों ने चुनाव सुधार की तात्कालिकता पर जोर दिया । चुनाव आयोग ने भी कुछ सुझाव सरकार के पास भेजे ।
राजनैतिक दलों के नेताओं तथा अन्य प्रबुद्ध नागरिकों ने भी अनेक सुधारों की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया । सुधारों की आवश्यकता और उनके स्वरूप के बारे में अनेक मंचों से समय-समय पर ठोस विचार सामने आते रहे ।
सरकार ने चुनाव सुधार के मुद्दों के बारे में राजनैतिक -दलों के नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया । इन सब बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने दिसम्बर 1988 में संसद के दो विधेयक पास कराए-एक संविधान संशोधन विधेयक और दूसरा जन प्रतिनिधि विधेयक ।
उपरोक्त दोनों विधेयकों के द्वारा देश की चुनाव प्रणाली में महत्त्वपूर्ण और व्यापक सुधारों का प्रावधान किया गया है । नीचे हम कुछ महत्वपूर्ण सुधारों की चर्चा करेंगे । इन सुधारों को हम कई श्रेणियों में बाट सकते हैं, जैसे मतदाताओं सम्बन्धी, मतदान प्रणाली संबंधी, उम्मीदवारों सम्बन्धी, चुनाव के दौरान होने वाले भ्रष्टाचार संबंधी, चुनाव आयोग संबंधी, चुनाव खर्च संबंधी और राजनैतिक दलों संबंधी ।
इसी क्रम में हम इनकी चर्चा करेंगे:
1) सबसे बड़ा और युगान्तकारी संशोधन मतदाताओं के सम्बन्ध में है । अभी तक मतदाता के लिए 21 वर्ष आयु निर्धारित थी । अब इसे कम करके 18 वर्ष कर दिया गया । ऐसा इसलिए किया गया कि देश के युवक शिक्षित और प्रबुद्ध हैं, और देश की राजनैतिक प्रक्रिया में उन्हें सहभागी बनाना श्रेयस्कर होगा ।
इस संशोधन के आधार पर अनुमानत: 5 करोड़ युवा (जिनकी आयु न 18 वर्ष हो चुकी है) मतदाताओं ने 1989 के आम चुनावों में भाग लिया था । यह सख्या 2009 में बढ्कर काफी अधिक हो गई है । यह संशोधन एक साहसिक लोकतांत्रिक प्रयोग है ।
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2) मतदाता प्रणाली के सम्बन्ध में संशोधन यह है कि मतदाता इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के माध्यम से अपना वोट दर्ज करायेंगे । इस विधि का प्रयोग करने से समय की बचत होगी और वोट देते समय की जाने वाली गड़बड़ियों की सभावना कम हो जाएगी । यद्यपि इन मशीनों को प्राप्त करने पर लगभग 250 करोड़ रु० खर्च होंगे, किन्तु इनसे होने वाली सुविधा को देखते हुए यह खर्च सार्थक माना जा सकता है । 1999 के आम चुनाव में कुछ राज्यों में इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया गया है ।
3) चुनाव में उम्मीदवारों के सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए हैं । चुनाव नियमावली में ऐसे अनेक नए अपराध सम्मिलित कर दिए गए हैं, जिनके अपराधी चुनावों में उम्मीदवार नहीं बन सकेंगे, जैसे पत्नी के साथ क्रूरता का व्यवहार करने वाले, सती प्रथा अपराध से जुड़े व्यक्ति, दहेज कानून का उल्लंघन करने वाले, साम्प्रदायिक झगड़े कराने वाले अपराधी, विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन करने वाले, स्वापक औषधियों (नशीली दवाओं) और सीमा शुल्क सम्बन्धी कानूनों का उल्लंघन करने वाले, और धार्मिक स्थानों का दुरुपयोग करने पर दण्डित व्यक्ति । इन सब नियमों के पीछे उद्देश्य यह है कि सामाजिक एव आर्थिक अपराधी चुनाव न लड़ने पाये । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अब अच्छी छवि वाले लोग ही जनता के प्रतिनिधि बन सकेंगे।
4) उम्मीदवारों के ही सम्बन्ध में एक सुधार यह है कि राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों के सदस्यों के लिए चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए आवश्यक है कि कम से कम 10 निर्वाचक या 10 प्रतिशत निर्वाचक उनके नाम का प्रस्ताव करें । ऐसा इसलिए कहा गया है कि केवल वही लोग उम्मीदवार के रूप में आ सकें, जो गंभीरता से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं ।
5) चुनाव के दौरान होने वाली गड़बड़ियों और भ्रष्ट उपायों को रोकने के लिए कुछ संशोधन किए गए हैं । चुनाव मीटिंगों में गड़बड़ी पैदा करने वालों या चुनाव मीटिंगों को तोड़ने (भंग कराने) वालों को तीन महीने तक की सजा और 1000 रु० जुर्मानस्-या दण्ड दिया जा सकता है ।
यह सुधार बढ़िया है और इससे अनुशासन बनाये रखने में सहायता मिलेगी । प्राय: मतदान केन्द्रों पर हमला करने या कब्जा करने की शिकायतें सुनने में आती रहीं हैं । अब कानून में स्पष्ट परिभाषा देकर व्यवस्था कर द्यई गई है कि जो लोग मतदान केन्द्रों पर हमला करने और उन पर कब्जा करने के दोषी पाये जायेंगे, उन्हें छ: महीने से तीन साल तक की सजा दी जा सकेगी ।
6) अधिकारों के अभाव के कारण चुनाव आयोग को अपने कर्त्तव्यों के पालन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । अब इन कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से चुनाव आयोग के अधिकार बढ़ा दिए गए हैं और इस प्रकार चुनाव आयोग अपेक्षाकृत अधिक सक्षम हो गया है । एक सबसे महत्वपूर्ण सुधार यह है कि जो लोग चुनावों के समय चुनाव संबंधी ड्यूटी पर तैनात किए जायेंगे, वे चुनाव अवधि के दौरान और चुनाव संबंधी कार्य करते समय चुनाव आयोग के अनुशासनाधीन रहेंगे । इस प्रकार चुनाव आयोग अपने कार्यों का निष्पादन अधिक कुशलता से कर सकेगा ।
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7) राजनैतिक दलों के संबंध में नई व्यवस्था यह है कि उन्हें चुनाव आयोग के पास अपना रजिस्ट्रेशन कराना पडेगा । नए नियमों के अनुसार ऐसी व्यवस्था होगी कि जो राजनैतिक दल समाजवाद, लोकतंत्र और धर्म-निरपेक्षता में विश्वास नहीं करते, उन्हें चुनाव आयोग पंजीकृत नही करेगा । इसके साथ ही चुनाव आयोग के पास अपना रजिस्ट्रेशन कराने वाले प्रत्येक राजनैतिक दल को देश के संविधान में निष्ठा रखने का वचन देना होगा । इस प्रकार राजनैतिक दलों को कुछ राष्ट्रीय अपेक्षायें पूरी करनी होंगी ।
ऊपर जिन सुधारों का जिक्र किया गया है, वे स्वागत योग्य हैं और उनसे सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़. स्वच्छ एवं अनुशासनबद्ध बनेगी । ऊपर बताये गए चुनाव सुधारों के अलावा चुनावों के बारे में कुछ अन्य मुद्दे और सुझाव आए हैं ।
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इन पर भी विचार करना आवश्यक है:
1) प्राय: शिकायतें होती हैं और देखा भी गया है कि राज्य प्रशासन के लोग सत्तारूढ दल के उम्मीदवारों की सहायता करते हैं । सत्तारूढ दल के उम्मीदवार अपने चुनाव अभियान में राज्य सरकार की मशीनरी का प्रयोग अपने लाभ के लिए करते हैं । यह परम्परा अच्छी नहीं है । अत: इसे रोकने का भी प्रयास किया जाना चाहिए ।
2) निष्पक्ष चुनावों के संबंध में एक सुझाव यह भी आया है कि जिस दिन मतदान होता है, उसी दिन मतदान का समय समाप्त होने के तत्काल बाद ही मतदान केन्द्रों पर ही मतों की गणना का काम (उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में) सम्पन्न हो जाये । मतपेटियों को दूर-दूर तक लाने-ले-जाने और बाद में (दो-तीन दिन बाद) गणना करने में लोगों को गड़बड़ी की शका रहती है।
3) चुनावों के दौरान जाली वोट डालने के अनेक मामले प्रकाश में आते हैं । लेकिन लोगों का ख्याल है कि जितने मामले प्रकाश में आते हैं, उसके कई गुना मामले छिपे रह जाते हैं । मतदान संबंधी इस बुराई को समाप्त करने हेतु मतदाताओं को पहचान पत्र देने का सुझाव आया है ।
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4) एक विचार यह भी आया है कि चुनाव से कुछ समय पहले (एक उचित अवधि निश्चित की जा सकती है) विद्यमान सरकार त्यागपत्र देकर हट जाये । जो सरकार चुनाव के समय सत्ता में होती है, उस दल के उम्मीदवार सरकारी प्रभाव का इस्तेमाल अपने लाभ में करते हैं । अन्य उम्मीदवारों को ऐसा लाभ नहीं मिलता ।
5) एक अन्य विचार भी जनमानस में तेजी से उभरा है कि यदि कोई उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद अपने मतदाताओं से किये गये वायदों को पूरा नहीं करता, या उनकी समस्याओं के समाधान में रुचि नहीं लेता, या भ्रष्ट तरीके से धन कमाने लगता है, या अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाता है, तो मतदाताओं का एक निश्चित प्रतिशत (प्रतिशत निश्चित किया जा सकता है) आवेदन पत्र देकर उस उम्मीदवार को वापस बुलाने की हकदार हो । इससे जन प्रतिनिधि अपना आचरण ठीक रखेंगे और अपने मतदाताओं की सेवा की ओर उलूख होंगे ।
6) एक सुझाव यह भी है कि चुनावों में उम्मीदवारों का चुनावी खर्च सरकार उठाये । सब उम्मीदवार समान मात्रा में धन खर्च नहीं कर पाते । जो उम्मीदवार चुनाव पर 8-10 लाख रुपये खर्च करता है, वह चुनाव जीतने के बाद दूनी कमाई भी करना चाहता है । यदि चुनावी खर्च सरकार उठायेगी, तो चुनाव में अधिक धन के बल पर फैसले नहीं हो पायेंगे । वैसे भी ऐसा होने पर लोकतंत्र शुद्ध होगा।
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7) चुनावों को धन और शराब के प्रभाव से मुक्त करने का भी सुझाव आया है । इस ओर ध्यान देना अति आवश्यक है ।
8) चुनाव के दौरान मतदान केन्द्र पर कब्जा करने के लिए या जबरन मतदान करवाने या रुकवाने में ‘दादाओं’ की भूमिका से भी लोग बहुत क्षुब्य हैं । अत: इस दिशा में ठोस व कारगर उपाय की अपेक्षा है ।
चुनाव सुधारों के संदर्भ में यह कहना था कि धन्ना सेठों, दादाओं और राजनीतिज्ञों की सांठ-गांठ तोड़ने के उपाय किए जाने चाहिए । आशा की जानी चाहिए कि इस मुद्दे पर भी अवश्य विचार किया जाएगा ।
अन्त में, जो सुधार दिसम्बर 1988 में किए गए थे वे वास्तव में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री टी० एन० शेषन के कार्यकाल में प्रभावी ढग से लागू किए गए थे ।
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किन्तु अन्य जिन सुधारों की ओर ध्यान दिलाया गया है, उनके बारे में भी विचार करके कानून बनाना आवश्यक है । इनके बिना लोकतंत्र दुर्बल और अर्थहीन रहेगा । चुनाव सुधारों के साथ देश की राजनैतिक प्रक्रिया में भी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है । अन्यथा तो देश की करोडों जनता के लिए आजादी और लोकतंत्र ‘राह में’, कुछ लोगों की जेबों में, ही बने रहेंगे ।