चुनावी वायदे पर निबन्ध | Essay on Election Promises in Hindi!

चुनाव चालों और बुद्धि पर आधारित युद्ध है । जैसे जिसके हाथ में बन्दूक होती है, जीत उसी की होती है । उसी प्रकार उम्मीदवार की विजय चुनाव-प्रचार पर निर्भर करती है ।

चुनाव प्रचारक जनता को आकर्षित करने के लिए बड़े-बड़े वायदे करते हैं, वर्तमान दयनीय स्थिति के लिए दूसरे दल को दोषी मानकर अपने दल की अच्छी छवि को जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं । जैसे हाथियों को गढ़्ढों के द्वारा पकड़ा जाता हैं, उसी प्रकार निष्कपट आम आदमी चुनावी वायदों का शिकार हो जाता हैं ।

राजनीतिज्ञ जनता की नब्ज को पहचानते हैं । वे जानते हैं कि वे सभी को खुश नहीं रख सकते हैं, इसलिए वे बहुमत वाले वर्ग की समस्याओं पर अपने ध्यान को केन्द्रित कर देते हैं । वे जनता के उस भाग को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं जोकि उनके झूठे वायदों पर सरलता से विश्वास कर लेता हैं । भारत का आम व्यक्ति अपने नेताओं पर अंधविश्वास रखता है ।

चुनावी वायदों की प्रकृति आम समस्याओं को सुलझाने से संबंधित वायदों से भिन्न होती है । राजनीतिज्ञ जनता की आशाओं, भावनाओं और अभिरुचियों के अनुरूप अपने वायदों पर बल देते हैं । सन् 1977 में जनता पार्टी ने परिवार नियोजन कार्यक्रम को त्यागने के संबंध में वायदा कर चुनाव में जीत हासिल की ।

1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कार्य-कुशल सरकार के वायदे के आधार पर विजय प्राप्त की और 1984 में श्री राजीव गांधी ने जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती गांधी के आदर्शो पर निर्मित एक साफ छवि वाली सरकार देने के वायदे पर भारी मतों से विजय श्री प्राप्ति की । 1989 में बोफोर्स तोप सौदे की दलाली की हवा ने राजीव गाँधी की कांग्रेस सरकार को उड़ा दिया और विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने ।

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1999 में कांग्रेस और तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने और गिराने के नाटक का पटाक्षेप करने और स्थिर सरकार देने के वायदे में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बने गठबंधन ‘ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ‘ ने आम चुनाव जीते । इस प्रकार चुनाव के दौरान किए गए वायदों पर ही हार-जीत निश्चित होती हैं ।

भारत के सभी राजनैतिक दल इसी प्रकार के वायदे जनता से करते हैं । वे बेरोजगारी हटाने, गरीबी उन्मूलन, किसानों की स्थिति में सुधार आदि के वचन देते हैं । उनका मुख्य उद्देश्य तो अपना उल्लू सीधा करना होता हैं । लोग अपनी आशाओं के पूरा होने की खुशी में अपनी वर्तमान दयनीय स्थिति को भूल जाते हैं । पाँच साल तक कुर्सी पर जमे रह कर जनता के प्रतिनिधि अपने वायदों को भूल जाते हैं ।

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स्व. श्री पीलू मोदी की गणना के अनुसार, प्रत्येक पंचवर्षीय योजना के बाद बेरोजगारों की संख्या में और वृद्धि हो जाती है । अपनी व्यंग्यात्मक शैली में उनका प्रश्न था, ” पूरे देश को बेरोजगार बनाने के लिए प्रधानमंत्री को और कितनी पंचवर्षीय योजनाओं की आवश्यकता होगी?” जीतने के बाद उम्मीदवार अपने वायदों को भुला देते हैं और जनता वायदों की पूर्ति की बाट ही जोहती रहती है ।

लेकिन हमेशा ऐसी ही नहीं चल सकता । आज जनता जागरूक हो गई है । वह राजनीतिज्ञों के चुनावी हथकंडों को पहचान गई है । यदि चुनावी वायदे इस प्रकार झूठ पर ही आधारित होंगे तो जनता उन नेताओं का भांडा फोड़ करने में पीछे नहीं रहेगी।

जिस प्रकार कौए और लोमड़ी की बहुत पुरानी कहानी में चालाक लोमड़ी कौए के मधुर गाने की प्रशंसा कर उसे गाने को उत्साहित करती है और उसके मुँह से छूटकर गिरे पनीर को उठाकर भाग जाती है यद्यपि आज के राजनीतिज्ञ चालाक लोमड़ी के समान हो सकते हैं, लेकिन आज का मतदाता यानि आम आदमी कौए के समान सीधा और मूर्ख नहीं हैं । क्योंकि यदि कोई उम्मीदवार अपने वायदे को अपने कार्यक्रम में पूरा नहीं करता है, तो जनता उसे अगली बार अपना बहुमूल्य मत नहीं देगी ।

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