भारतीय किसान | Essay on Indian Farmer in Hindi!

भारतीय किसान का जीवन प्रकृति की गोद में बीतता है । वह पौ फटते ही उठ जाता है और अपनी दैनिक चर्या से निवृत्त होकर अपने पशुओं की देख-रेख में जुट जाता है ।

वह उन्हें शांत और स्वस्थ देखकर संतोष का श्वास लेता है । वह उनके लिए चारे का प्रबंध करता है । पशु उसके लिए बाल-बच्चों के समान प्रिय होते हैं । उनकी सेवा से ही उसकी खेती पनपती और सोना उगलती है ।भारतीय किसान की भाँति उसकी पत्नी भी परिश्रम की साक्षात् मूर्ति होती है । वह अपने पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देती है ।

मुँहअँधेरे उठकर वह झाड़ू-बुहारू, चूल्हा-चौका करती है, पशुओं के रहने का स्थान साफ करती है, गोबर उठाकर उसके उपले बनाती है और अपने पति के लिए कलेवा तैयार करती है । किसान हल-बैल लेकर बहुत सबेरे ही खेतों पर निकल जाता है । प्रातःकाल उसकी पत्नी कलेवा लेकर पहुँच जाती है । दोपहर होने पर पत्नी उसका भोजन खेतों पर ही पहुँचाती है । गोधूलि तक वह घर लौटने का नाम नहीं लेता ।

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भारतीय किसान श्रम का उपासक है । श्रम ही उसका जीवन और श्रम ही उसका मनोरंजन होता है । सुबह से शाम तक वह श्रम करता रहता है, फिर भी उसके चेहरे पर थकान दिखाई नहीं देती । आलस्य को वह अपने पास फटकने तक नहीं देता । आँधी-तूफान, वर्षा की झड़ी, मेघों के गर्जन, बिजली की कड़क, प्रचंड लू और शीत के प्रकंपन के बावजूद वह अपने काम में लगा रहता है ।

काम के आगे उसे प्यास नहीं सताती । उसके हाथ कभी नहीं रुकके अपने बाहुबल पर उसका अटूट विश्वास है । संतोष उसका परम धन है । रात-दिन परिश्रम करके भी वह अपने फटे-हाल में मस्त रहता है । झोपड़ियों में रहकर वह महलों के स्वप्न नहीं देखता । आत्मनिर्भरता की वह जीवंत मूर्ति होता है ।

भारतीय किसान का रहन-सहन अत्यंत सरल है । अपने ही हाथों से वह अपने मकान बना लेता है । बाँस-बल्लियों के ठाठ से, जंगल की घास व फूस से और अपने गाँव के ताल की मिट्‌टी की कच्ची ईंटों से वह अपने रहने के लिए जो घर बना लेता है, वह किसी महल से कम आनंददायक नहीं होता । उसके घर के चारों ओर लहलहाते खेत ही उसके उद्यान और पार्क होते हैं ।

गरमी के दिनों में वह खुली हवा में सोता है, जाड़े के दिनों में उसे गुदगुदे गद्‌दों की आवश्यकता नहीं होती । पुआल का बिछौना ही उसका गददा और पुआल का ओढ़ना ही उसकी रजाई होती है । उसका भोजन अत्यंत सरल होता है । वह खाने के लिए नहीं जीता, जीने के लिए ही खाता है ।

भारतीय किसान धरती का सच्चा सपूत है । धरती की क्षमाशीलता, धरती की दानशीलता, धरती की उदारता, धरती की सहनशीलता, धरती का तप, त्याग और संतोष उसके व्यक्तित्व में समाहित रहता है । धरती माता से प्राप्त उसके यही गुण उसे संसार का अन्नदाता बनाते हैं ।

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वह अन्न उत्पन्न कर दूसरों का पेट भरता है और कपास उत्पन्न कर दूसरों का शरीर ढकता है । उसका तप और त्याग किसी साधु-संन्यासी से कम नहीं होता । अपने खेतों में हल चलाते समय वह शुभ-साधना करता है । वह पर्वत की खोहों में बैठे किसी योगी की काया-साधना से बढ़कर है । किसान के तप का फल सब भोगते हैं, पर योगी के तप का फल योगी ही भोगता है ।

भारतीय किसान व्यवहार-कुशल होता है । मेल-जोल का भाव परस्पर जीवन को बाँधनेवाली रस्सी होता है । उसमें मिल-जुलकर जीवन चलाने की अद्‌भुत शक्ति होती है । खेती के गाढ़े समय में जब काम का तोड़ा रहता है तब वह खुले दिल से एक-दूसरे का हाथ बँटाता है ।

विवाह, तीज-त्योहार आदि के समय किस तरह सारा गाँव एकसूत्र में बँध जाता है, यह देखने योग्य होता है । आज महकारिता के महत्त्व की चर्चा है, किंतु सहकारिता की भित्ति पर बनी हुई जीवन-पद्धति गाँवों में प्राचीन काल से ही चली आ रही है ।

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भारतीय किसान के लिए उसकी लहलहाती खेती ही उसका धन और उसकी पूँजी है । अपनी हरी-भरी खेती देखकर वह जिस प्रसन्नता और हर्ष का अनुभव करता है वह वर्णनातीत है । उसके खेतों में उसका श्रम मुसकराता है । उस समय वह अपने कष्टों को भूल जाता है, किंतु यदि वर्षा न हुई और उसके खेतों में समय पर पानी न पहुँचा तो उसकी दयनीय दशा का आकलन कोई नहीं कर सकता ।

अकाल के दिनों में दुनिया तो किसी-न-किसी प्रकार पेट भरकर सो जाती है, लेकिन किसान भूखा रहकर छटपटाता रहता है और उसके बाल-बच्चे दाने-दाने के लिए तरसते हैं । ऐसी ही संकटापन्न घड़ियों में उसका संतोष उसकी जीवन-यात्रा का संबल बनता है । भविष्य की सुखद आशा से वह सब कष्ट सहन कर लेता है ।

भारतीय किसान मनोरंजनप्रिय होता है । कथा-वार्त्ता में उसे विशेष आनंद मिलता है । गाँव में जब कोई कथावाचक आ जाता है तब सारा गाँव उत्साह से भर जाता है । विवाह आदि शुभ अवसरों पर नृत्य और संगीत के कार्यक्रम उनके परिश्रमशील जीवन के लिए खाद का काम करते हैं ।

रेडियो के संगीतज्ञों और कलाकारों के प्रति उन्हें विशेष दिलचस्पी नहीं होती । रेडियो के ग्राम संबंधी कार्यक्रमों में वे अधिक रुचि लेते हैं । कृषि-प्रधान देश होने के कारण भारत का किसान भारत की रीढ़ है । उसके सुखी और प्रफुल्लित रहने से ही भारत से संपन्न और खुशहाल हो सकता है ।

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उसका संकटग्रस्त होना भारत के लिए अभिशाप है । शासन की बागडोर सदा एक हाथ में नहीं रहती । सरकारें बदलती रहती हैं, इससे विशेष अंतर नहीं पड़ता, लेकिन यदि शासन के परिवर्तन की चक्की में पड़कर किसान का जीवन पिसता है तो देश का कल्याण होना असंभव है ।

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